Magazine - Year 1950 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्म सुधार की एक नवीन योजना।
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(प्रोफेसर रामचरण महेन्द्र, एम॰ए॰)
आत्मसुधार एवं मनुष्यों की सफलता के आंकड़ों की परीक्षा के पश्चात् पाश्चात्य विचारकों ने यह निर्देश किया है कि सौ में से केवल तीन ही व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो व्यापार में सफलता प्राप्त करते हैं। तैंतीस में से एक व्यक्ति सबसे ऊँचा उठ पाता है। शेष साधारण ही रह जाते हैं। वे अपनी जीविका उपार्जन तो करते हैं, किन्तु बड़ी सम्पत्ति के अधिकारी नहीं बन पाते। कुछ तो गरीबी की पंक्ति में ही रह जाते हैं।
बहुत कम आगे चल कर ऊँचे उठते हैं। एक वर्ष वैसा ही होता है, जैसा दूसरा वर्ष, उसमें कुछ भी उन्नति नहीं हो पाती। ऐसा क्यों होता है।
मानव जीवन की सात भूमिकाएँ-
साधारणतः मनुष्य के जीवन में सात स्टेज होती हैं। यदि सफल व्यक्ति 70 वर्ष जीवित रहा, तो उसका जीवन क्रम कुछ इस प्रकार रहेगा-
1 से 10 वर्ष तक-खेल कूद वाले चापल्य 10 से 20 वर्ष तक- शिक्षा प्राप्ति और पुस्तकावलोकन। 20 से 30 वर्ष तक- अपने व्यक्तित्व की पहचान, नाना क्रियाएँ। 30 से 40 वर्ष तक- सच्ची और ठोस उन्नति, संघर्ष 40 से 50 वर्ष तक- पूर्णता और सफलता 50 से 60 वर्ष तक- नाना प्रकार की शक्तियों की प्राप्ति । 60 से 70 वर्ष तक-प्रतिष्ठा और मनः शान्ति।
उपरोक्त तालिका में 10 से तीस वर्ष की आयु को तैयारी, या जीवन संघर्ष के लिए ज्ञान संचय की आयु माना जाता है। 30 वर्ष से 60 तक का जीवन नवीन और उत्पादक कार्य के लिए श्रेष्ठतम है। इन परिपक्व दिनों में मानव का ज्ञान और अनुभव संतुलित होता है, विवेक बुद्धि अपनी परिपक्वता को प्राप्त होती, और मनुष्य को अपनी स्थिति, शक्तियों एवं गुप्त सम्पदाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। साठ से सत्तर वर्ष की आयु प्रारम्भिक साठ वर्षों ज्ञान, बुद्धि, के अनुभव, विवेक का पुरस्कार हैं। उसमें मनुष्य मनः शान्ति का अपनी स्थिति, शक्तियों एवं गुप्त सम्पदाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। साठ से सत्तर वर्ष की आयु प्रारम्भिक साठ वर्षों के ज्ञान, बुद्धि, अनुभव विवेक का पुरस्कार है। उसमें मनुष्य मनः शान्ति और अमरत्व पद की प्राप्ति के लिए साधना में प्रवृत्त होता है। यही वह परिपुष्ट एवं सबसे अधिक प्रसन्नता का काल है, जिसके लिए मनुष्य का प्रारम्भिक संघर्ष चलता रहा था। इसी में जीवन का सर्वोच्च ज्ञान मिलता है।
हमारी त्रुटि कहाँ हैं?
वर्तमान असफल व्यक्तियों की प्रथम त्रुटि प्रारम्भिक तैयारी और आत्म की अनंत शक्तियों की वैज्ञानिक जानकारी का अभाव है मनुष्य जीवन की तैयारी के विषय में जागरुक नहीं रहते। उनमें उद्देश्य हीनता होती है। वहीं जीवन के नाना प्रलोभनों से ग्रसित मानव अपनी शक्तियों को उद्देश्य हीन कार्यों में नष्ट करते है। विवेकहीन मानव पिंड ही अपना विनाश करता है। शक्ति का मार्ग जब अनुचित मार्गों में खुल जाता है, तो मनुष्य एक ऐसे अंधकार में पड़ा रहता है, जहाँ से उसे यथार्थ आत्म ज्ञान नहीं होता।
नब्बे प्रतिशत व्यक्ति अपने विषय में गंभीरता से विचार नहीं करते वे अपनी मुख्य शक्तियाँ विशेषताएँ, प्रकृति की रुझान, मालूम करने की चेष्टा नहीं करते। हम अपना शक्तिशाली गुण कैसे मालूम कर सकते हैं? यह देखिये कि आपको किस कार्य को करने में सर्वाधिक शान्ति, संतोष, और आनन्द प्राप्त होता है। जिस कार्य में आपकी शक्तियाँ अनायास ही प्राकृतिक रूप में एकाग्र हो जाती हैं, वही हमारा मुख्य गुण है। उसी की दिशा में हमें विकास करना है, आगे उठकर सफलता लाभ करना है। शक्ति का सदुपयोग यदि इसी विशिष्ट गुण के विकास के हेतु चलता रहे, तो मनुष्य अपने मूल रूप को जाग्रत कर सकता है।
अपने व्यक्तित्व की गुत्थी सुलझाइये। अपना मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कीजिये। आप बाजार से कोई मशीन खरीदते है, तो उसकी विशेषताएँ दुकानदार से मालूम करते हैं। खेद है कि मनुष्य रूपी इस महाप्रतापी अटूट शक्तिपुँज शरीर की विशेषताओं का हमें ज्ञान नहीं? शरीर में जो मस्तिष्क है और मस्तिष्क के अणु अणु में जो नानाप्रकार की शक्तियों का खजाना मरा पड़ा है हमारे गुप्त मन में जो नाना व्यापार होते हैं, उनका हमें ज्ञान नहीं है। मनुष्य की शक्ति अनन्त है। वह भौतिकता की सीमा को चीर कर आध्यात्मिकता की ऊंचाई में उठती है। हम वास्तव में अपना विकास अवरुद्ध कर देते हैं, बढ़ना और विकसित होना समाप्त कर देते हैं, नवीन ज्ञान, और पराशक्ति के प्रकाश की ओर से नेत्र मूँद लेते है।
कृषक की उपज भूमि की जुताई तैयारी, खाद, जल तथा प्रकृति की कृपा पर है। यदि उसने अच्छी तरह जुताई और तैयारी करने में कसर नहीं रखी है, तो निश्चय ही उसे अच्छी फसल मिलेगी । यही तथ्य जीवन की तैयारी का भी है। अधिकाँश व्यक्ति किसी भी कार्य के लिए तैयारी नहीं करते। वे कुछ बनना ही नहीं चाहते यह एक कटु सत्य है। जो व्यक्ति कुछ भी नहीं जानता, किसी धन्धे में कुशल नहीं है, वह किस प्रकार सफल हो सकता है?
यदि आप अपनी आय, प्रतिष्ठा और सामाजिक जीवन की निष्ठा से असंतुष्ट हैं, तो सर्व प्रथम आत्म-निरीक्षण कीजिए। क्या आप जो रुपया पाते हैं, उससे ऊंची योग्यता या कुशलता रखते हैं? क्या आपकी शिक्षा और अनुभव ऊंचे हैं? आपको क्या क्या आता है? किस किस दिशा में आप दूसरों की अपेक्षा विकसित हैं? आपको क्यों अमुक पद दिया जाये? अपनी योग्यता, बुद्धि, अनुभव, स्वास्थ्य, चरित्र की दृढ़ता, में आप कितने व्यक्तियों को हरा सकते हैं?
पहले अपनी शक्तियों योग्यताओं और विशेषताओं को देखिये, तत्पश्चात् संसार से अपने लिए ऊंची तनख्वाह, प्रतिष्ठा, मान, इत्यादि पाने की आशा कीजिए। अधिक योग्यता अधिक की आशा कीजिए। अधिक योग्यता =अधिक मान, प्रतिष्ठा और रुपया। निम्नयोग्यता अपमान, दारिद्रय और बेकदरी। इसे साधारण न समझिये। योग्यताओं का ही संसार आदर करता है। योग्यता के आगे ही लक्ष्मी नत मस्तक होती है। आजकल के नवयुवक योग्यता तो बढ़ाते नहीं, यों ही कहते फिरते हैं कि कोई हमें पूछता नहीं? हमें पैसा नहीं मिलता?
हमारी योग्यता कैसे बढ़े?
योग्यता वृद्धि के लिए प्रथम तत्व अध्ययन और परिश्रम हैं। यदि मनुष्य परिश्रम करने के लिए प्रस्तुत है, सब कुछ भूलकर एक मार्ग में अपनी शक्तियों को लगा सकता है, तो वह अवश्य योग्यता बढ़ा सकेगा। आलस्य मनुष्य का सब से बड़ा शत्रु है, परिश्रम सबसे बड़ा मित्र। यदि आप परिश्रम करने को प्रस्तुत हैं, तो संसार की योग्यता आपकी होकर रहेगी।
योग्यता बढ़ाने के लिए जब आप अग्रसर हो तो दो शत्रुओं से सावधान रहें (1) निराशा का त्याग करें (2) असफलता से हतोत्साहित न हों। इनसे उन्नति का मार्ग कंटकाकीर्ण होता है। पग पग पर कठिनाईयाँ और अड़चने आती हैं, लोग कटु आलोचनाएं करते हैं, छिद्रान्वेषण होता है किन्तु सावधान। निराश न हो। आत्म प्रेरणा से कठिनाइयों को चीरते हुए निरंतर अग्रसर हों। यदि एक दो बार असफल हो जायें, तो मार्ग न त्यागें। डटे रहें। अनेक व्यक्ति आलसी तो नहीं होते किन्तु असफलता के एक साधारण से झटके से हतोत्साहित होकर बैठ जाते हैं।
आप ऐसे निराश डाँवाडोल व्यक्तियों में कदापि नहीं है। आप अपने में उच्चतम शक्तियों की उपस्थिति में विश्वास रखते हैं। आपकी मानसिक और बौद्धिक सम्पदाएं संसार को चमत्कृत करने वाली हैं। आप निरन्तर आगे बढ़ने के लिए बने है। अपने विषय में यह मनोवैज्ञानिक धारण, सही मार्ग है।
आप उस मुक्केबाज के विषय में क्या कहेंगे, जो एक मुक्का लगने से पस्त हिम्मत खोकर बैठ गया? यदि यही मुक्केबाज पुनः प्रयत्नशील है, तो कल वह अपने प्रतिद्वन्द्वी को अवश्य पराजित करेगा । यदि आप अपनी योग्यताएं बढ़ाने में सतत उद्योगशील हैं, तो आज नहीं, कल आप अवश्य ही योग्यतम व्यक्तियों में होंगे।
योग्यता वृद्धि के उपकरण-
योग्यता बढ़ाने के लिए कुछ मार्ग इस प्रकार हैं-(1) पुस्तकों का अध्ययन परीक्षाएं तथा स्वतन्त्र स्वाध्याय। जितनी पुस्तकें आज सस्ती हैं, वैसी कभी नहीं रही। इतनी सुविधाएं मनुष्य को कभी प्राप्त नहीं हुई हैं। शिक्षा के अनेक कोर्स पृथक भी बिकते हैं, जिन्हें खरीद कर आप अपनी योग्यता बना सकते हैं। यह मत समझिये कि आपको कोई आकर्षक सी डिग्री प्राप्त नहीं हुई। योग्यता के सन्मुख डिग्री का कोई महत्व नहीं। पुस्तकों का अध्ययन इस गंभीरता, शुद्धता, पूर्णता, और सम्हाल कर होनी चाहिए कि मूल तत्व स्मृति पर सदा के निमित्त अंकित हो जाये।
(2) दूसरा मार्ग बड़े विद्वानों का संपर्क है। उनके भाषण तथा प्रवचन अथवा करने से मानव उत्तरोत्तर सदर्शन संचय करता है और द्विगुणित वेग से उच्चता और पवित्रता की ओर उठता है। सत्संग के समान योग्यता वृद्धि का दूसरा सहज साधन नहीं है।
(3) तृतीय मार्ग संसार का भ्रमण और क्रियात्मक अनुभव प्राप्त करना है। मनुष्य को अधिक से अधिक व्यक्तियों, शहरों और समाज के कार्यों के संपर्क में आना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति अनुभवों का एक संसार लिए फिरता है। उस अनुभव को आप मस्तिष्क में रखने के लिए प्रस्तुत रहिये।
(4) मनुष्य का सामाजिक जीवन सबसे बड़ा शिक्षक है। समाज में अधिक से अधिक कार्य करने से मनुष्य नाना प्रकार के ज्ञान से पूर्ण होता है। ज्ञान का भण्डार तो आपके इर्द गिर्द फैला पड़ा है उसे बटोरने भर की आवश्यकता है।
(5) योग्यता प्रदर्शन के निमित्त इन कलाओं को सीखिये (1) भाषण देने की कला (2) लेखन द्वारा विचार प्रतिपादन (3) बातचीत करने की संभाषण कला (4) इन्टरव्यू (5) रेडियो के भाषण सुनना समाचार पत्र पढ़ना तथा उसमें लेख, कहानी, आवश्यक सामयिक ज्ञान संचय करना। इन्हीं के सहारे लेख लिखा जाता है। अपने विचारों को लिपिबद्ध करना आत्म प्रकटीकरण का सर्वोत्तम उपाय है। साहित्य क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए यह आवश्यक है कि हम किसी खास विषय का विशेष अध्ययन करें। कौन विषय हमारे युग-धर्म के अनुकूल हैं? इसका निर्णय स्वयं अपनी रुचि के अनुसार करना चाहिए।
सम्पादकाचार्य पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी ने ठीक ही लिखा है- नवयुवक लेखक के लिए किसी विषय का विशेष अध्ययन कर लेना ही साहित्य क्षेत्र में प्रवेश करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। आज का युग विशेषता का है।
किसी अच्छे पुस्तकालय के सदस्य बन जाइये। अनेक व्यक्तियों को यह पता नहीं कि कलकत्ते की इम्पीरियल लाइब्रेरी पुस्तकों के मूल्य के रूप पंद्रह बीस रुपये जमानत के तौर पर जमा करके और दुतरफा डाक व रजिस्ट्री का खर्च लेकर पुस्तकें उधार दिया करती है। उसी से लाभ उठाइये। छोटे छोटे निजी पुस्तकालयों के निर्माण की भी बड़ी आवश्यकता है। मास में कुछ रुपया उत्तम पुस्तकों के लिए रखिये । लेख लिखना बहुत कुछ अभ्यास और परिश्रम पर निर्भर है। प्रारम्भ में किसी मार्ग दर्शक के मिल जाने से कोई भी शिक्षित व्यक्ति अपनी भाषा में अपने भाव साधारणतया प्रकट कर सकता है। शिष्यत्व की भावना विकसित कीजिये और योग्य विद्वानों की संगति में रहिये।
हमारा जीवन साहित्य में प्रतिबिम्बित होता है। यदि हमारा जीवन उच्चकोटि का, ऊँचे आदर्शों, संयम और लोकोपकार पर निर्भर नहीं है, तो उसका कुप्रभाव कृतियों पर हो सकता है। अतः जीवन को ऊंचा उठाइये और फिर अपने अनुभव भाषा में प्रकट कीजिये। अत्याचार के विरुद्ध आपकी लेखनी तीव्र होनी चाहिए। एक रूसी लेखक ने लिखा है-
“क्या तुम लेखक बनना चाहते हो? यदि हाँ, तो मनुष्य जाति के पुराने जमाने के संबित दुःख समूह का इतिहास पढ़ो। अगर उसे पढ़ते हुए तुम्हारा हृदय विदीर्ण न हो तो अपनी लेखनी छोड़ दो। तब सब कोई तुम्हारे पाषाण हृदय की खेदजनक शुष्कता को पहचान लेंगे।”
अन्याय और अत्याचार के प्रति लिखने से आपकी वाणी में खोज आयेगा।