Magazine - Year 1950 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
बुद्ध का त्याग
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
( श्री पं॰ ईश्वरलाल शर्मा)
छोटे से मानव प्राणों में सारी विश्व वेदना भर कर।
अर्ध निशा में तरुण चला वह ले विराग की ज्योति मनोहर॥
उसने नग में कम्पित होकर प्रलयंकर का ताँडव देखा।
उसने अग्नि शिखाओं में भस्मित होता सारा सब देखा॥
उसने देखा पशुता मानवता को पूर्णावृत्त किये है।
उसने देखा अनुकूल अपने अन्तर का अभिशाप लिये है॥
देखा उसने कथित ज्ञान है बना हुआ शोषण का साधन।
देखा उसने प्राणपहरण बना हुआ है-देवाराधन॥
उसके सम्मुख तारक माला भरे बनी थी अग्नि कणों सी।
उसके सम्मुख जीवन की स्थिति थी केवल परितृप्त क्षणों सी॥
बना दिया उसको विद्रोही इस भीषण नम उत्पीड़न ने।
“चलो विश्व स्वतन्त्र खोजने” कहा अर्धम्पत उसके मनने॥
बोल उठा वह तरुण-मुझे अब मेरे ममता मोह, विदा दो।
राग विदा दो, द्वेष विदा दो, क्षोभ विदा दो, द्रोड़ विदा दो॥
मेरे धन वैभव, तजता हूँ, आज तुम्हारी मादक ममता।
फैल सके जिससे यत्किंचित् विश्व व्यापिनी निर्मल समता॥
सर्व नाशिनी राज तृष्णा का सत्वर ही आत्यन्तिक क्षय हो।
मेरा अन्तर तम वसुधा की शान्ति साधना में ही लय हो॥
राहुल के सुकुमार प्यार को कहाँ आज मैं ठुकराता हूँ?
कहाँ स्नेह सी शुचि यशोधरा को मैं हा! तजने जाता हूँ?
पाकर मैं बुद्धत्व शीघ्र ही यहाँ लौट कर आ जाऊंगा।
इस मृदुता को, इस शुधिता को मानव बनकर अपनाऊंगा॥
राम! तुम्हारा ही आश्रय हो एक मात्र मुझको निर्जन में।
जिससे दिव्य ज्योति प्रकटित हो मेरे इस कलुषित जीवन में॥
-मानव धर्म,
*समाप्त*