
स्त्री शिक्षा में सुधार की आवश्यकता
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(श्री हजारीलाल जी कोठारी, राजनाँद गाँव)
प्रायः यह देखा जाता है कि भारतवर्ष में स्त्री शिक्षा का प्रचार कम है। यदि हम अन्य देशों के सामने अपने देश को रखें, तो मालूम होता है कि हमारा देश अन्य देशों से स्त्री शिक्षा में कितना पिछड़ा हुआ है। अब हमारे देश में भी स्त्री शिक्षा का प्रचार दिन प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है और ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि कुछ दिन के पश्चात हमारा देश अन्य देशों की भाँति स्त्री-शिक्षा में अपना स्थान ले लेगा।
प्राचीन काल में स्त्रियाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करती थीं और बड़े 2 महत्वपूर्ण कार्य करती थीं। इसका ज्वलन्त उदाहरण सती, सीता, सावित्री, अनुसूया, लक्ष्मीबाई इत्यादि हैं। जो कार्य पुरुष करता है, ठीक वही कार्य स्त्रियों ने किया, जबकि वे शिक्षित थीं। शिक्षा जीवन की बहुत बड़ी चीज है। शिक्षा से मस्तिष्क का विकास होता है साथ-साथ ज्ञान का भण्डार भर जाता है। वास्तविक रूप से देखा जाय तो शिक्षा ही से मूर्ख विद्वान बनता है, हृदय के ज्ञान रूपी द्वार खुल जाते हैं। पढ़-लिखकर मानव संसार के प्राणियों में अग्रगण्य हो जाता है। मानव सब प्राणियों से उच्च माना भी गया है, इसका कारण उसके ज्ञान की अधिकता ही है।
स्त्रियों को भी शिक्षा देना नितान्त आवश्यक है, परन्तु शिक्षा किस प्रकार देनी चाहिये, इसका विचार भी करना जरूरी है। मेरी समझ में स्त्री तथा पुरुषों की शिक्षा पृथक-पृथक होनी चाहिये। लड़कियों को भी लड़कों की भाँति उच्च से उच्च शिक्षा देनी चाहिये। यदि लड़कियों को उच्च शिक्षा दी जायेगी तो वे आगे चलकर अपना जीवन सुखमय तथा सरलता से व्यतीत कर सकती हैं।
स्त्रियाँ यदि शिक्षित होंगी तो उनकी सन्तान भी शिक्षित होगी। प्रारम्भ में बच्चा अपनी माता की ही गोद से सीखता। उनका प्रारम्भ में बच्चे की गुरु उनकी माता ही है। यदि माता सद्गुण सम्पन्न होगी, शिक्षित होगी, तो बच्चा भी अच्छे गुण वाला होगा। इसके अनेकों ज्वलन्त उदाहरण सामने ही मौजूद हैं।
स्त्री-पुरुष की अर्द्धांगिनी मानी जाती है और है भी ठीक। यदि स्त्री शिक्षित है, कार्य कुशल है तो अपने पतिदेव के कार्य में हाथ बंटा सकती है, दोनों पति-पत्नी शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं और गृहस्थ जीवन सफल बना सकते हैं। स्त्री यदि शिक्षित होगी तो पुरुष के कार्य को सरलतापूर्वक निपटा सकती है। शिक्षित स्त्री अपने कुटुम्ब की, राष्ट्र की भलाई में भी हाथ बंटा सकती है।
यदि स्त्रियों में पुरुष के समान शिक्षा प्रचार हो जायेगा, तो स्त्रियों की गणना पुरुष से भी श्रेष्ठ हो सकती है तथा पुरुष और स्त्री मिलकर कार्य करें तो अपनी उन्नति एवं राष्ट्र की उन्नति होगी, साथ ही अपना नाम विख्यात बना लेगी।
परन्तु यह ध्यान रखने की बात है कि लड़कियों और लड़कों की शिक्षा एक साथ, एक स्कूल में और एक जैसी न होनी चाहिए। स्त्रियों का कार्य क्षेत्र भिन्न है, इसलिए उनके शिक्षा क्रम में वे बातें सम्मिलित की जानी चाहिए, जो उनके गृह जीवन में उपयोगी हो सकें। आजकल की शिक्षा पद्धति में लड़की-लड़कों की शिक्षा एक सी होने के कारण लड़कियों को बहुत सी ऐसी बातें रटनी पड़ती हैं, जो उनके गृह जीवन में काम नहीं आतीं और ऐसी अनेक बातों से वंचित रह जाती हैं, जिन्हें जानना प्रत्येक सुगृहणी के लिए आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त लड़के और लड़कियों की पाठशालाएं अलग-अलग होनी चाहिए। सहशिक्षा के दुष्परिणाम विदेशों में भली-भाँति प्रकट हो चुके हैं। उनकी पुनरावृत्ति इस देश में भी करना भारत से साँस्कृतिक गौरव के अनुकूल न होगा। संयम, सदाचार एवं शील संरक्षण की दृष्टि से सहशिक्षा को उचित नहीं कहा जा सकता।
स्त्री शिक्षा आवश्यक है, क्योंकि उससे हमारे भविष्य का भारी संबंध है। अशिक्षित नारी राष्ट्र निर्माण में, गृह व्यवस्था में तथा जीवन के अन्य कार्यों में उतना सहयोग नहीं दे सकती, जितना कि शिक्षित नारी। इसलिए हमें उत्साहपूर्वक स्त्री शिक्षा को आगे बढ़ाना चाहिए, साथ ही शिक्षा पद्धति को सुधारने का भी ध्यान रखना आवश्यक समझना चाहिए।