Magazine - Year 1953 - Version 2
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Language: HINDI
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इतना तो करिए ही
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(श्री अगरचन्द जी, नाहटा बीकानेर)
प्रायः लोग यह कहा करते हैं- हमसे यह नहीं बन पाता। वह काम बड़ा कठिन है। क्या करें। इच्छा होते हुए भी सत्कार्य कर नहीं पाते, बुरी आदतें छूटती नहीं। कठिन प्रतिक्षाएं करने के लिए मन तैयार नहीं होता, तैयार करते हैं तो मन निभा नहीं पाता, कठिन तप करने के लिए समय नहीं मिलता। आदि बातें कहकर बाहरी कारणों को आगे करके हम अपना बचाव करते रहते हैं। वस्तुतः यह हमारे मन की कमजोरी है, दृढ़ संकल्प शक्ति की कमी है। वास्तविक कमी तो अपने भीतर है पर दोष दूसरों को-निमित्त कारणों को देते हैं। यदि मन में किसी कार्य के करने के लिए कृत संकल्प हो जायं और तदनुसार कार्य में प्रवृत्त हो जायं तो बाधाएं स्वयं दूर हो जाएंगी। अभ्यास से शक्ति प्रस्फुटित होगी। असम्भव कार्य सम्भव और कठिन कार्य सहज हो जाएंगे।
एक कार्य को अनेक बार कर लेने से उसका अभ्यास पड़ जाता है। जिस प्रकार बुरी आदतें बुरे कार्यों के अनेक बार करने के कारण पड़ गई हैं उसी प्रकार अच्छे कार्यों को निरन्तर करते रहें तो उसकी भी आदत पड़ जाएंगी। अभ्यास के द्वारा ही मनचाहा कार्य व परिवर्तन सम्भव होता है अतः सर्वप्रथम अपने में कहाँ-कहाँ खराबियाँ हैं, कमजोरियाँ हैं उनको ढूँढ़कर सुधार करना व किसी भी शुभ कार्य के अभ्यास, दृढ़ निश्चय व पूरी लग्न से करने में प्रवृत्त होना चाहिए। वास्तव में हम जो कार्य करना चाहते हैं वह हो ही जाता है। नहीं होता तो दृढ़ संकल्प की कमी है या जितना समय व श्रम उसके लिए आवश्यक है, दे नहीं रहे हैं, यही कमी है। करने की प्रबल इच्छा है तो उसके लिए समय व साधन मिल ही जायगा साधन जुटा ही लेंगे। बाधाएं आयेंगी तो दूर नहीं भाग कर डटे रहेंगे। इससे वे भी थोड़ी ही देर में समाप्त हो जाएंगी। बाधाएं सदा बनी नहीं रहतीं। दृढ़ मनस्वी उन्हें परीक्षा का समय समझकर अधिक दृढ़ता अपनाता है वह घबराता नहीं, इससे उन पर विजय पा लेना है। अतः आज से ही अपनी कमजोरियों पर दृढ़ मन से विजय पाने का निश्चय करिए। सफलता सुनिश्चित है। उतावली न कर धैर्य रख आगे बढ़ते जाइये। लक्ष्य ठीक है, उसके लिये प्रगति हो रही है, तो साध्य प्राप्ति की सिद्धि देर सवेर में मिलेगी ही।
यदि आप महान कार्य करने योग्य शक्ति का अपने में अनुभव नहीं कर रहे हैं, तो निराश नहीं होइये। जितना कर सकते हैं उतना तो करने के लिए तैयार हो जाइये। बहुत से सहज कार्य भी हम नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें तो आज से व अभी से ही करने का निश्चय कीजिये व प्रवृत्ति प्रारम्भ कर दीजिये। छोटे-छोटे कार्यों में सफलता मिलने पर बड़े-बड़े कार्य करने का भी साहस होगा। बहुत सी बातें तो वास्तव में सरल ही होती हैं।
जितना चाहिए उतना नहीं कर पा रहे हैं तो उसके लिए योग्यता बढ़ाने के लिये जितना भी कर सकते हैं, उतना तो करिये। पूरा नहीं तो आधा ही सही, आधा न हो तो पाव ही या थोड़ा बहुत भी जितना भी सहज कर सकते हैं, उतना तो करिये। कोई भी व्यक्ति कुछ भी न कर सके, यह असम्भव है। कर्त्तव्य शक्ति ही तो जीवन का लक्षण है।
प्रस्तुत लेख में ऐसी ही कुछ बातें आपके सम्मुख रख रहा हूँ जो तनिक भी दुःसाध्य व कष्ट साध्य नहीं अपितु सहन साध्य हैं, अतः अधिक कुछ नहीं कर सकते उनके लिए ‘इतना तो करिये’, के रूप में उनकी ओर ध्यान आकर्षित किया जा रहा है। शुभ कार्य थोड़ा भी महान फलदाता है वह बीज की भाँति उसकी जड़ दृढ़ व विस्तृत होती जाती है। छोटे से बीज से वृक्ष फल फूल कितने बड़े व कितने सुन्दर लगते हैं। “थोड़ा करने से तो न करना ही अच्छा” यह गलत धारणा दूर कर, “नहीं करने की अपेक्षा तो थोड़ा सा भी करना अच्छा” इस आदर्श वाक्य को अपनाइये। नीतिकार ने तो यहाँ तक कह दिया है कि ‘बैठे से बेगार भली’ कुछ कार्य होगा तो सही।
मान लीजिये कि आप किसी का भला व परोपकार कर सकने योग्य बुद्धि धन व शक्ति अपने में अनुभव नहीं कर रहे हैं तो बुराई से बचने का प्रयत्न तो करिये ही। यदि आप किसी के भी बुरा करने से बच सकें तो बड़ा भारी काम हो गया। बुराई करना तो हमारे हाथ में होती है उसके लिए तो किसी साधन की आवश्यकता नहीं। हमारे मन, वचन, काया की प्रवृत्ति से ही तो हम उसे करते हैं।
किसी को बचाने के समर्थ नहीं भी हों तो उसे न मारना तो आपके हाथ है। थोड़ा सा ध्यान रखा जाय तो अनुपयोग, अज्ञानता से जो छोटे बड़े हजारों लाखों प्राणियों को आपके द्वारा त्रास व कष्ट मिलता है, यावत प्राण हरण होता है वह तो रुक जायगा। उसकी हिंसा के पाप से तो बच जायेंगे। किसी की सेवा न भी कर सकते हो तो कुसुवा तो न कीजिये।
दान देने के लिए धन व वस्तुएं आपके पास नहीं हैं तो हर्ज नहीं आप सहानुभूति प्रकट कर उसे साँत्वना एवं प्रेरणा तो दे सकते हैं। और कम से कम किसी की कोई चीज छीनिये नहीं। किसी को सत शिक्षा दे सकते हो तो वह भी कोई कम महत्व की बात नहीं। धन और वस्तुओं से भी वह अधिक बढ़कर है। इसमें आपका लगता ही क्या है। लोगों को औषधि दान दे निरोग बनाना आपके लिए सम्भव नहीं हो तो रोगी के पास थोड़ा बैठें, उसके प्रति सहानुभूति प्रगट कर, आश्वासन देकर उसे शाँति पहुँचाइये उसके दुःख को हल्का करिये।
अन्य साधन भजन करने के लिए समय व साधन न हों यो सत्संगति तो सहज है। गुणी व्यक्ति के पास जो थोड़ा भी समय मिले बिताइये। कुछ काम की बातें तो जानने को मिलेंगी ही।
कहीं बाहर जा नहीं सकते तो घर बैठे ही कोई अच्छा ग्रन्थ अवकाश के समय पढ़ के प्रेरणा प्राप्त करिये। तप व योग की कठिन साधना न हो सके तो भक्ति तो अपने हृदय से होती है उसके लिये तो कहीं जाने की जरूरत नहीं, कुछ कष्टदायक नहीं होता। सच्चे हृदय से अपने इष्ट महापुरुष का स्मरण व भजन भक्ति करिये।
अपने में गुण प्रगट करने की योग्यता न हो तो गुणी व्यक्तियों का आदर करना तो कठिन नहीं है। गुणियों को देखकर हर्ष मनाइये। स्वयं न कर सकें तो जो कर सकते हैं उनका अनुमोदन करिये उसकी प्रशंसा करिये। शुभ काम नहीं कर सकते हो तो करने की इच्छा तो रखिये, प्रयत्न भी करते रहिये, मिले हुए सम्बंधियों से लाभ उठाया करिये। कार्यों में कठिनता ही क्या है? अधिक न सही इतना तो करिए ही।