Magazine - Year 1959 - October 1959
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अपने आप को पहचानिए
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री ब्रह्मानंद सरस्वती)
परमात्मा ने आत्मा को अपनी सब शक्तियों से विभूषित कर दिया है। उसने स्वार्थवश कुछ छुपा कर नहीं रखा। आत्मा में अनन्त शक्तियाँ हैं। वह अद्भुत कार्य कर सकती है। महान् आत्माओं ने ऐसे कार्य कर दिखाए हैं जिन्हें पढ़ व सुनकर हम दाँतों तले उंगली दबाने लगते हैं। कई बार तो हमें उन पर संदेह होने लगता है। परंतु मनुष्य में वह शक्ति है कि वह असंभव को भी संभव बना सकता है।
मनुष्य जब तक अपने स्वरूप को नहीं पहचानता, तब तक वह क्षुद्र बना रहता है। जब वह अपने आपको जान लेता है तो वह महान हो जाता है। वह अपने आपको शरीर समझ कर अपनी समस्त क्रियाओं को उसी के लिए सीमित कर लेता है, तो उसमें सूक्ष्म शक्ति का अभाव होने लगता है क्योंकि जिसमें स्वयं कुछ भी शक्ति नहीं है उसे हम उपास्य देव मान कर चलें तो उससे शक्ति की प्राप्ति की किसी प्रकार की आशा नहीं की जा सकती। आत्मा के बिना तो वह क्रियाहीन है। इसलिए जो व्यक्ति अपने को केवल शरीर समझ कर उसके अनुरूप अपने जीवन को ढालता है उसकी भौतिक शक्तियाँ भले ही बढ़ती रहें परंतु उसका आत्मिक बल दिन दिन क्षीण होता रहता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति ‘खाओ पिओ और मौज उड़ाओ’ का पक्षपाती रहता है। वह उचित अनुचित, न्याय अन्याय आदि किसी भी बात पर विचार नहीं करता। वह तो केवल अपने आपको देखता है। अपने लाभ के लिए वह किसी की बड़ी से बड़ी हानि की परवाह नहीं करता। ‘कोई मरे कोई जिए, सुथरा घोल पतासा पिए’ उसे तो केवल अपने लाभ से ही मतलब है।
केवल भौतिक उन्नति चाहने वाला व्यक्ति अपनी आत्मा का हनन करता है। वह अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए झूठ, छल कपट, धोखेबाजी घूस आदि को अपनाने में कुछ भी संकोच नहीं करता। दूसरे की बढ़ती देखकर ईर्ष्या, द्वेष करने लगता है।
इसके विपरीत जो व्यक्ति सत्य, प्रेम, न्याय, दया, सहानुभूति, सेवा, परोपकार, संतोष आदि गुणों को अपनाता है और भौतिक लाभ के लिए कभी भी अपने सत्य पथ से विचलित नहीं होता, वह दिन-दिन ऊँचा उठता जाता है और उसकी सूक्ष्म शक्तियाँ बढ़ती रहती हैं क्योंकि आत्मा के गुणों के अनुकूल चलना ही अपने लिए शक्ति का स्त्रोत खोल लेना है।
अपने को शरीर मानकर उसके अनुरूप कार्य करने वाला व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं रह सकता। क्योंकि भौतिक वस्तुएं परिवर्तनशील होती हैं, उनमें स्थायित्व नहीं होता, उनको एक दिन क्षीण होना ही है, इसलिए उनके साथ ममत्व रखने वाला व्यक्ति दुखी रहेगा ही। अपने को शरीर समझने वाला ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे महान शत्रुओं को, जो उसकी जड़ों को काटते रहते हैं, अपना मित्र समझता और अपने कार्यों में इनको प्रवेश करने की सहर्ष आज्ञा देता है जिससे उसका लौकिक व पारलौकिक दोनों प्रकार का पतन अवश्यम्भावी है।
अपने आपको आत्मा मानने वाला निरंतर सुख शाँति की ओर बढ़ता है। वह किसी सांसारिक वस्तु के क्षीण होने से अपनी क्षति नहीं मानता। वह धन, ऐश्वर्य और वैभव के लिए झूठ, छल, कपट आदि निन्दनीय उपायों को कभी नहीं अपनाता। काम, क्रोध आदि उसके पास फल नहीं सकते। यदि हम चाहते हैं कि हम दुख के जाल से निकल कर आनन्द की सीमा में प्रवेश करें तो हमें अपने आपको पहचानने का प्रयत्न करना चाहिए।