Magazine - Year 1962 - Version 2
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Language: HINDI
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सामयिक जानकारी एवं सूचनाऐं
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इस बार चैत्र नवरात्रि ता. 5 अप्रैल गुरुवार से आरंभ होकर ता. 13 अप्रैल शुक्रवार को समाप्त होगी। नवरात्रि में साधनात्मक तपश्चर्या करने का सर्वश्रेष्ठ समय है। जिस प्रकार प्रातः और सायंकाल दिन और रात्रि की मिलन वेला—संध्या—उपासना के लिए उत्तम मानी जाती है उसी प्रकार सर्दी और गर्मी की ऋतुओं का मिलन आश्विन और चैत्र में होता है। इन महीनों के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक की 9−9 दिन की दो ऋतु संधि बेलाऐं आती हैं जिन्हें नवरात्रि कहते हैं। जिस प्रकार नारी के शरीर में ऋतुकाल की उपयोगिता गर्भ धारण की दृष्टि से है वैसे ही वर्ष−शरीर में नवरात्रि का महत्व आध्यात्मिक उपासनाओं की सफलता की दृष्टि से है। इस अलभ्य अवसर को हमें व्यर्थ न जाने देना चाहिए और जिनसे जितनी अधिक बन पड़े उन्हें उतनी साधना करनी चाहिए। नये उपासकों के लिए गायत्री उपासना नवरात्रि में सर्वोत्तम है। जो पाठक नियमित उपासना कुछ भी नहीं करते, जिनकी अभिरुचि इस ओर नहीं रहती और अवकाश भी नहीं मिलता उन्हें भी एक प्रयोग एवं परीक्षण के रूप में इन 9 दिनों में कुछ न कुछ समय निकाल ही लेना चाहिए। एक घंटा समय नित्य 9 दिन तक निकालते रहना कुछ कठिन बात नहीं है। प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर गायत्री माता का आवाहन, ध्यान, प्रणाम, पूजन करके जप आरंभ करना चाहिए। माला मिले तो ठीक नहीं तो उंगलियों के आधार पर गणना करके 10 माला अथवा 1100 मंत्र जप लेने चाहिए। एक घंटे में प्रायः इतना जप आसानी से हो जाता है। जिन्हें गणना में असुविधा होवे घड़ी सामने रखकर एक घंटा जप कर सकते हैं। जल का एक पात्र पूजा में रख लिया जाय और धूपबत्ती जलती रहे। गायत्री जप में जल और अग्नि को साक्षी रखने का विधान है। जप पूरा होने पर गायत्री माता को विदाई प्रणाम करके जल पात्र को सूर्य भगवान के संमुख अर्घ रूप में चढ़ा देना चाहिए। यह क्रम नित्य प्रति चले। ब्रह्मचर्य से रहा जाय। जिनसे नमक छोड़ सकना संभव हो वे 9 दिन तक बिना नमक शक्कर का अलौना आहार करें। यह अस्वाद व्रत उपवास के समान ही उपयोगी है। जो इस व्रत का पालन न कर सकें वे 9 दिन तक एक ही अन्न की रोटी एवं एक ही भाजी लेने का आसान नियम बना सकते हैं। दूध, छाछ आदि का प्रतिबंध नहीं है। फल भी लिये जा सकते हैं। नवरात्रि की यह सरल उपासना उन लोगों के लिए है जो अब तक नियमित गायत्री जप नहीं करते या व्यस्तता के कारण एक दो माला ही अनियमित रूप से कर पाते हैं। नवरात्रि में यदि ऐसे लोग एक घंटा प्रतिदिन की उपासना भी 9 दिन तक कर लें तो उनके यह 9 घंटे उनके आत्मिक विकास में तथा किन्हीं उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। नैष्ठिक उपासकों का अनुष्ठान जिन लोगों की गायत्री उपासना नियमित रूप से चल रही है उन्हें नवरात्रि में 24 हजार अनुष्ठान करना चाहिए। 27 माला प्रतिदिन के हिसाब से 9 दिन में अनुष्ठान पूरा हो जाता है। इसमें प्रातः 211−3 घंटे लगते हैं। जिन्हें एक ही समय इतना समय न मिल सके वे प्रातः सायं दो बार में अपना जप पूरा कर सकते हैं। जिनका अनियमित जीवन क्रम है वे 2400 मंत्र लेखन या 240 गायत्री चालीसा पाठ का नियम बिना किसी नियम प्रतिबन्ध के पूरा कर सकते हैं। अनुष्ठान काल में (1) ब्रह्मचर्य (2) अस्वाद व्रत या उपवास (3) हजामत, कपड़े धोना आदि अपनी शरीर सेवाऐं स्वयं ही करना (4) भूमि या तख्त पर सोना (5) चमड़े की वस्तुओं का त्याग यह तपश्चर्याऐं अनुष्ठान काल में उपयोगी हैं। इनमें से ब्रह्मचर्य तो अनिवार्य है शेष 4 ऐच्छिक हैं। अनुष्ठान के अन्त में 240 आहुतियों का हवन करना चाहिए। इसमें प्रायः 211 रु. खर्च हो जाते हैं। गायत्री हवन विधि की पुस्तक के आधार पर यह हवन करना कुछ कठिन नहीं होता। हो सके तो कुछ कुमारी कन्याओं को भोजन कराया जा सकता है। प्रसाद वितरण के रूप में गायत्री साहित्य की छोटी बड़ी पुस्तकें वितरण करनी चाहिए। अनुष्ठान काल में कोई विघ्न न आवे एवं किसी प्रकार की त्रुटि रहे तो उसका दोष परिमार्जन होता रहे ऐसी व्यवस्था गायत्री तपोभूमि में होती रह सकती है। जो अपने अनुष्ठान की सूचना दे देंगे उनका संरक्षण एवं दोष परिमार्जन यहाँ किया जाता रहेगा। जो अपना हवन न कर सकते हों उनका हवन भी यहाँ किया जा सकता है। आत्मबल की वृद्धि मानसिक शान्ति, एवं जीवन की लौकिक समस्याओं को सुलझाने के लिए नवरात्रि के 24 हजार के अनुष्ठान बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं। जिनसे बन पड़े उन्हें इसके लिए अवश्य ही प्रयत्न करना चाहिए। साधना की उच्च भूमिका गायत्री उपासना की प्रथम भूमिका जप हवन है। यह कार्यक्रम शरीर द्वारा चलाया जाता है। जिनकी उपासना इस प्रकार नियमित रूप से पाँच वर्ष तक चल चुकी हो उन्हें द्वितीय उच्च स्तरीय भूमिका में प्रवेश करना चाहिए। इसके लिए मन के द्वारा ध्यान प्रधान साधनाऐं अपनानी पड़ती हैं। शरीर की साधना से मन शुद्ध होता है और मन के द्वारा आत्मा की प्राप्ति होती है। शुद्ध आत्मा का तादात्म्य परमात्मा में हो जाता है। यही सनातन आत्म−विकास का क्रम चला आ रहा है। जिनकी उपासनाऐं पाँच से नियमित चल रही हैं उन्हें अब शरीर के द्वारा हो सकने वाली साधनाओं तक ही सीमित न रहकर मन द्वारा की जाने वाली ध्यानपरक उच्चस्तरीय साधना के क्षेत्र में प्रवेश करना चाहिए। नवीन संवत्सर के समय इस चैत्र की नवरात्रि से यह उच्च स्तर प्रवेश का शुभारंभ कर देना चाहिए। अन्नमय कोश, मनोमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश के अनावरण की साधना अखण्ड−ज्योति के अक्टूबर 61 के अंक में विस्तारपूर्वक बताई जा चुकी हैं। कितने ही नैष्ठिक उपासक उसे अपना भी चुके हैं। जिनने अभी तक उसे अपनाया न हो वे उपरोक्त अंक को पढ़ लें और इसी चैत्र की नवरात्रि से वह साधना प्रारंभ कर दें। इससे उन्हें आशाजनक आत्मिक प्रगति का प्रत्यक्ष अनुभव होगा। पंचकोशों के अनावरण की उच्चस्तरीय उपासना में संलग्न साधकों के लिए रविवार को प्रातःकाल सूर्य उदय होने से 1 घंटा पूर्व से लेकर सूर्योदय तक की अवधि में प्रति सप्ताह आत्मिक सम्पर्क स्थापित करने का एक विशेष प्रयोग हम लोग चलाते हैं। इस साधना के आधार पर पाठक मथुरा से दूर रहते हुए भी उन क्षणों में दूरी को भुलाकर समीपता अनुभव करते हैं और परस्पर विचार विनिमय का सुखद आनन्द अनुभव होता है। प्रेरणा, प्रकाश, उत्साह एवं बल भी मिलता है। जो नैष्ठिक उपासक इस प्राण संचार साधना क्रम को चला रहे हैं वे 1 अप्रैल से 1 जून तक अपना साधना समय 411 से 511 तक का कर लें। जिन्होंने आरम्भ नहीं किया है वे इस चैत्र की नवरात्रि से आरम्भ कर दें और इस सूक्ष्म सम्पर्क, प्राण संचार विधान की पीली पुस्तिका बिना मूल्य मंगालें। कल्प चिकित्सा शिविरों का आरम्भ गायत्री तपोभूमि में 1 अप्रैल से कल्प−चिकित्सा शिविर आरम्भ हो रहा है। आरम्भ में कब्ज के रोगी लिये गये हैं। भोजन ठीक तरह हजम न होना, दस्त साफ न होना, पेट में भारीपन एवं दर्द रहना, भूख न लगना जैसा साधारण रोग ही आगे चलकर 90 प्रतिशत भयानक रोगों का कारण बन जाता है। अभी भी जो लोग अगणित प्रकार की शारीरिक व्यथाओं में घिरे हुए हैं उनके मूल में भी कब्ज का विकार ही होता है। यदि पेट ठीक काम करने लगे तो लगभग सभी रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है और भविष्य के लिए आरोग्य एवं दीर्घजीवन की सुरक्षा हो सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कब्ज की चिकित्सा पर ही सारा ध्यान केन्द्रित किया गया है। अन्य छोटे−मोटे रोग तो इस सफलता के साथ−साथ अपने आप अच्छे होने लगते हैं। एक समय में 16 आरोग्याकाँक्षी रखने का प्रबंध हुआ है। पूरा ध्यान देकर भली प्रकार चिकित्सा कर सकना थोड़े व्यक्तियों को ही संभव है। इसलिए कम व्यक्ति ही लिये जाते हैं। प्रार्थना−पत्र अधिक और स्थान कम होने से स्वीकृति प्राप्त करके ही आने का प्रतिबंध रखा गया है। जिन्हें इस चिकित्सा का लाभ उठाने के लिए मथुरा आना हो वे नियमावली मंगाकर ध्यानपूर्वक पढ़ लें और पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये बिना न आवें। दूध, छाछ एवं शाक तथा फलों के रस का 40 दिन का कल्प रोगी की शारीरिक स्थिति को ध्यान में रख कर कराया जाता है। यह उपवास शरीर के भीतरी कल पुर्जों की जहाँ एकबार परिपूर्ण सफाई कर देता है वहाँ आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। चान्द्रायण व्रत एक महीने का होता है। यह कल्प−उपवास उससे भी 10 दिन अधिक का तथा अनेक दृष्टियों से अधिक वैज्ञानिक एवं उपयोगी होने से लाभदायक भी अधिक है। इसका प्रभाव शरीर पर ही नहीं मन एवं आत्मा की स्थिति पर भी आश्चर्यजनक रूप से पड़ता है। इसलिए यह चिकित्सा ही न होकर एक प्रकार से तपस्या भी है। दिनचर्या का जो क्रम यहाँ रहता है तथा दैनिक सत्संग एवं प्रवचनों की जो क्रमबद्ध शिक्षण−शृंखला चलेगी उसका भावी जीवन की गतिविधियों को मोड़ देने की दृष्टि से भी भारी महत्व है। अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होने जैसी यह व्यवस्था नहीं रहती वरन् जीवनक्रम में कायाकल्प प्रस्तुत करने वाला जीवन की प्रगति का यह एक महत्वपूर्ण क कार्यक्रम है। अपने निज के स्वास्थ्य को सँभाले रहने तथा दूसरों की आरोग्य रक्षा एवं चिकित्सा का समुचित ज्ञान इस दो महीने की अवधि में हो जाता है। अपनी रोग निवृत्ति के साथ−साथ दूसरों की अत्यन्त महत्वपूर्ण जीवन दान जैसी सेवा कर सकने की योग्यता भी इन दो महीनों में प्राप्त हो जाती है। इस दृष्टि से इन दो−दो महीनों के स्वास्थ्य सत्रों को आरोग्य शिक्षा शिविर ही कहा जा सकता है। 1 अप्रैल से छोटे रूप में ही इसका उद्घाटन हो रहा है पर शारीरिक और मानसिक दृष्टि से इस कार्यक्रम के व्यापक विकास की भारी संभावना है। अखण्ड ज्योति के अगले अंक अखण्ड ज्योति के अगले तीन अंक युग−निर्माण कार्यक्रम को पाठकों के सम्मुख भली प्रकार प्रस्तुत करने के लिए छोटे−छोटे विशेषांकों की तरह निकाले जा रहे हैं। 1 मई का अंक ‘स्वस्थ शरीर अंक’ 1 जून का ‘स्वच्छ मन अंक’ और 1 जुलाई का ‘सभ्य समाज अंक’ होगा। पृष्ठ संख्या साधारण अंकों से प्रायः ड्यौढ़ी रहेगी। पाठक इन अंकों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और अपने परिचित क्षेत्र में इन्हें पढ़ाने के लिए उन लोगों की एक लिस्ट बनालें जो अपने विचारों से सहानुभूति रखते हों। प्रत्येक परिजन का यह कर्तव्य है कि इन तीन अंकों को वह न केवल स्वयं पढ़ें, वरन् अपने सम्पर्क के 10 व्यक्तियों को पढ़ाने या सुनाने की तैयारी अभी से कर लें। अधिक लोग इन विचारों के सम्पर्क में आवें इसी एक आधार पर युग−निर्माण योजना की सफलता निर्भर है। अखण्ड−ज्योति के ग्राहक बढ़ाना हमारे जीवन मिशन में सक्रिय सहयोग देता है। जिन्हें हमारे विचारों के प्रति श्रद्धा एवं सहानुभूति है वे ही वस्तुतः हमारे आध्यात्मिक स्वजन हो सकते हैं। जून में एक विशेष स्वास्थ्य−सत्र जून का महीना अधिकतर लोगों के लिए सुविधा एवं अवकाश का समय रहता है। इस बार इस एक महीने गायत्री तपोभूमि में स्वास्थ्य शिक्षण शिविर रखा जायेगा। कमजोर, दुर्बल, बालक, वृद्ध सभी के लिये उपयोगी शरीर विज्ञान व्यायाम, आहार, रहन−सहन, रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा का आवश्यक शिक्षण दिया जायेगा। इस शिक्षण के लिए बाहर से भी कई सुप्रसिद्ध आरोग्यशास्त्री आवेंगे। इस शिविर में आने वाले स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को सुलझाने में कुशल बन सकेंगे ऐसी आशा है। स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज का त्रिविध कार्यक्रम ही हमारे सर्वांगीण विकास का माध्यम हो सकता है। इस सर्वांगीण स्वास्थ्य का समुचित शिक्षण प्रबन्ध इस विशेष सत्र में रहेगा। इस शिविर में सम्मिलित होने के लिए भी अपना पूरा परिचय लिखते हुए पूर्व स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है। कृपया जवाबी पत्र भेजें व्यक्तिगत पत्र−व्यवहार के लिए जवाबी पत्र भेजने की बात पाठकों को समय−समय पर स्मरण कराई जाती रही है। अब उसके लिए प्रत्येक पाठक का ध्यान आकर्षित करना अधिक आवश्यक हो गया है। प्रतिदिन कितने ही पत्र ऐसे आते हैं जिनका उत्तर तथा डाक व्यय यहाँ से लगाना पड़ता है। जो रोज ही कई रुपये का हो जाता है। अखण्ड ज्योति की लागत इस वर्ष तीन रुपये की अपेक्षा चार रुपये के करीब होते दिखाई पड़ रही है। उसमें स्पष्ट घाटा है। पुस्तक प्रकाशन का कार्य अब बन्द जैसा ही पड़ा है। ऐसी दशा में यहीं की आर्थिक कठिनाइयाँ स्वतः ही चिन्ताजनक हैं। इस पर भी यदि कई रुपये रोज का डाकव्यय बढ़े तो उसका दबाव सीधा हमारे चौके चूल्हे पर ही पड़ता है। पाठक अपने कर्तव्य का थोड़ा ध्यान रखें और जवाबी पत्र भेजा करें तो उस कठिनाई से हमें बचा सकते हैं। स्मरण रखने योग्य सूचना हर पत्र में अपना पूरा पता स्पष्ट अक्षरों में लिखना न भूलना चाहिए। अधूरे और अस्पष्ट अक्षरों में लिखे हुए पतों पर उत्तर देना कठिन होता है। अखण्ड ज्योति का चंदा भेजते समय मनीआर्डर कूपन पर घसीट में अधूरा पता लिख देने से यहाँ रजिस्टरों में गलत पता दर्ज हो जाता है और पत्रिका ठीक स्थान तक न पहुँच कर बीच में ही गुम होने लगती है। पाठक अपने पत्रिका के पते को ध्यान से पढ़लें और यदि उसमें कुछ गलती रहती हो तो उसकी सूचना दे दें ताकि आवश्यक सुधार कर लिया जाय। ग्राहक नम्बर पते के पास ही लिखा रहता है। उसे डायरी में नोट करके रखना चाहिए और पता बदलने, अंक न पहुँचने की सूचना देते समय उस ग्राहक नम्बर का उल्लेख अवश्य करना चाहिए। यहाँ से हर महीने दो बार जाँच कर पत्रिका भेजी जाती है। यदि ता. 15 तक न पहुँचे तो डाक की गड़बड़ी में अंक गुम हुआ समझना चाहिए और उसी महीने सूचना देकर दूसरा अंक और मंगा लेना चाहिए। पुस्तकें मँगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि छह रुपये से कम मूल्य की वी.पी. नहीं भेजी जाती। यदि इससे कम मूल्य की चीजें मंगानी हों तो उनका मूल्य तथा 1 रु. डाकव्यय मनीआर्डर से पेशगी भेजना चाहिए। डाकखर्च अपना लगा देने का नियम 6 रु. से अधिक की पुस्तकों पर ही लागू होता है।