Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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अन्ध दम्पत्ति-नेमेथ
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अब्राह्म नेमेथ उस अमेरिकन अंधे व्यक्ति का नाम है जिसकी आँखें जन्म से डेढ़ महीने बाद ही चली गई थी- फिर भी उसने अपने जीवंत बल पर केवल उच्च शिक्षा ही प्राप्त नहीं की वरन् अंधों के लिए एक ऐसी प्रणाली का भी आविष्कार किया, जिसके सहारे आज संसार अगणित नेत्र विहीनों के लिए गणित जैसे कठिन विषयों की शिक्षा प्राप्त कर सकना संभव हुआ है।
नेमेथ का पालन पोषण उनके पितामह ने बड़ी कठिन आर्थिक परिस्थितियों में किया। बड़े होने पर इतना भी उन्होंने किया कि अंधों के स्कूल में उनके पढ़ने की भी व्यवस्था कर दी। उस समय नेत्र हीनों की शिक्षा के लिए ‘ब्रेल पद्धति’ का आविष्कार हो चुका था और उस प्रकार की कुछ पुस्तकें भी छप चुकी थीं। कागज में छेद करके साँकेतिक भाषा में अक्षर उभारे जाते थे और अंधे छात्र उन्हें छूकर शिक्षा प्राप्त करने लगे थे। पर वह पद्धति उस समय बहुत ही अविकसित थी। गणित की उच्च शिक्षा के लिए उसमें संकेतों की कोई व्यवस्था न थी।
नेमेथ मनोयोग पूर्वक पढ़ने लगे तो उनकी प्रतिभा भी निखरी। गणित में अभिरुचि अधिक थी। ये गणित में एम.ए. करना चाहते थे, पर उस समय उसके लिए कोई व्यवस्था न थी। मन मार कर उसने मनोविज्ञान में एम.ए. किया। इतनी शिक्षा तो प्राप्त कर ली पर उसका उपयोग कुछ न था। वे गुजारे के लिए कुछ काम प्राप्त करना चाहते थे पर अंधे को भला कहीं क्या काम मिलता। अन्त में उन्होंने तकियों के खोल सीना आरंभ कर दिया और अपनी गुजर करने लगे।
उन्हीं दिनों फ्लोरेंस नामक युवती को किसी रोग से नेत्र-ज्योति खो देनी पड़ी। इस अंधी लड़की को आश्रय की खोज थी। एक दूसरे का परिचय हुआ तो इस अंधी-अंधों ने परस्पर विवाह कर लिया और घर बसा कर रहने लगे। एक अंधे को दूसरा आँख वाला साथी मिले तो उससे कुछ सहारे की भी आशा हो सकती है जब दोनों ही अंधे हों तो समस्या और भी अधिक उलझती है। प्रत्येक अपनी ही नहीं अपने अंधे साथी की भी चिन्ता करनी पड़ती है। जो हो, फ्लोरेंस बड़ी मनस्वी थी, उसने अपने पति का साहस बढ़ाया और अधिक पुरुषार्थ करके अधिक अच्छा जीवन बिताने के लिए उत्कण्ठा जागृत कर दी। नेमेथ आरंभ से ही बड़े अध्यवसायी और परिश्रमी थे, पर फ्लोरेंस ने तो उनके साहस को और भी दूना कर दिया। वे गणित में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। अंधी पत्नी ने कहा- हम लोगों की सिर्फ आँखें ही तो नहीं है, जो विकल्प शक्ति हमें मिली है वह इतनी समर्थ है कि उसके बलबूते पर भी आकाँक्षा की पूर्ति हो सकती है।
नेमेथ ने अंध शिक्षा प्रणाली पर कई शोध आरंभ कर दी और ऐसा उपाय खोजा जिससे नेत्रहीनों के लिए गणित पढ़ सकना भी संभव हो सके। इसके लिए अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से काम नहीं चल सकता था, अतएव उन्होंने फ्रेंच, हिब्रू, ग्रीक लेटिन आदि कई भाषायें पढ़ीं और अपने खोज कार्य को तेजी से चलाया। इसी बीच एक और सौभाग्य मिला कि अंधी फ्लोरेंस की एक आँख में थोड़ी रोशनी लौट आई और वह इस लायक बन गई कि पति के बोले हुए शब्दों को लिख सके या किसी कागज को पढ़ कर उन्हें सुना सके। अब तो उनका मार्ग और भी प्रशस्त हो गया। तो उदार व्यक्तियों की सहानुभूति भी उमड़ी। कालेज में गणित के शिक्षक छुट्टी पर गये तब अस्थायी रूप से नेमेथ को वह कार्य मिल गया। वे नौकरी से बचे हुए घण्टों में उसी विद्यालय में छात्र रूप में अध्ययन भी करते थे परिवार का खर्च पूरा न कर पाते तो नर्तक मण्डली के साथ पियानो बजाने का काम करते और कुछ उससे भी कमा लेते। इस प्रकार कठिनाइयों से निरन्तर संघर्ष करते हुए उन्होंने कोलम्बिया विश्व विद्यालय से एम.ए. की उपाधि प्राप्त कर ली।
जोडज ब्रेल आव अमेरिका ने हिब्रू भाषा-भाषी नेत्रहीनों के लिए बाइबल छापने का निश्चय किया तो वह कार्य नेमेथ के जिम्मे आया उन्होंने बड़ी तत्परता से उस कार्य को पूरा किया।
अंधों की शिक्षा के लिए किये जाने वाले सरकारी प्रयत्नों में वे रुचिपूर्वक भाग लेते और समय निकाल कर उन संस्थाओं को अपनी सेवा सहायता अर्पित करते जो अंधों की शिक्षा के लिए कुछ काम कर रही होतीं। उनकी धर्म पत्नी उन कार्यों में उन्हें सदैव प्रोत्साहित करती। अंधे होने का दुःख उनने न कभी माना वरन् अपने भाग्य को यह कहकर सराहा कि वे नेत्र-हीनों की सहायता के लिए इसी कारण कुछ अधिक प्रयत्न कर सके, जो नेत्रयुक्त होने पर शायद उनके लिए संभव न होता।
अपना शोध कार्य उन्होंने और भी अधिक उत्साह के साथ जारी रखा और उन्होंने पुरानी प्रचलित अंध शिक्षा पद्धति ‘ब्रेल कोड’ में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन किया जो ‘ब्रेल साइड रुल’ के नाम से पुकारा जाने लगा। वे इतने से ही संतुष्ट न हुए वरन् एक और पद्धति का आविष्कार किया जो पूर्व प्रचलन की अपेक्षा अधिक सरल ही नहीं है, वरन् उसमें गणित जैसे कठिन विषय को पढ़ाये जाने की भी पूरी सुविधा है। इस पद्धति के गुण दोषों पर विचार करने के लिए अमेरिकन शिक्षा विभाग की ज्वाइन्ट युनिफर्म ब्रेल कमेटी के विशेषज्ञों ने पूरी तरह जाँच पड़ताल की और जब उसे उपयुक्त पाया तो एक वर्ष बाद राष्ट्रीय सम्मेलन में उसे सरकारी मान्यता प्रदान कर दी गई।
ओछी मनोभूमि के लोग राई-रत्ती अभाव और असुविधाओं का बहाना लेकर अपने दुर्भाग्य का रोना रोने लगते हैं और गया-गुजरा जीवन जीने की परिस्थितियों को ईश्वरीय कोप-भाग्य दोष बता कर अपनी निर्दोषिता सिद्ध करते हैं। अपने को दीन-हीन सोचकर दूसरों की सहायता, याचना करते हैं और ऐसा मान बैठते हैं कि हम इन परिस्थितियों में कर ही क्या सकते हैं? ऐसे निराशावादी हीन-वृत्ति के लोगों को नेमेथ दम्पत्ति एक चुनौती के रूप में सामने खड़े होते हैं। वे कहते हैं- ‘कोई अभाव ऐसा नहीं जो मनुष्य को संकल्प शक्ति को प्रस्फुटित होने से रोक सके। मनस्वी व्यक्ति हर कठिनाई की परास्त कर सकते हैं और हर अभाव से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता निकाल ही सकते हैं जैसा कि उन्होंने स्वयं भी किया है।