Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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संत समागम
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प्रार्थना जीवन का ध्रुवतारा है
ईश्वर-प्रार्थना ने मेरी रक्षा की। प्रार्थना के आश्रय बिना मैं कबका पागल हो गया होता। अन्य मनुष्यों की भाँति मुझे भी अपने सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत जीवन में अनेक कटु अनुभव करने पड़े। उनके कारण मेरे अन्दर कुछ समय के लिये एक प्रकार की निराश-सी छा गयी थी। उस निराशा को दूर करने में मुझको सफलता हुई तो वह प्रार्थना के ही कारण हुई। सत्य की भाँति प्रार्थना मेरे जीवन का अंग बनकर नहीं रही है। इसका आश्रय तो मुझे आवश्यकतावश लेना पड़ा। मेरी ऐसी अवस्था हो गयी कि मुझे प्रार्थना के बिना चैन पड़ता कठिन हो गया। ईश्वर के अन्दर मेरा विश्वास ज्यों-ज्यों बढ़ता गया, प्रार्थना के लिये मेरी व्याकुलता भी उतनी ही दुर्दमनीय हो गयी। प्रार्थना के बिना मुझे जीवन नीरस एवं शून्य-सा प्रतीत होने लगा।
सच पूछिये तो शरीर के लिये भोजन भी इतना आवश्यक नहीं है, जितनी आत्मा के लिये प्रार्थना की आवश्यकता है, क्योंकि शरीर को स्वस्थ रखने के लिये कभी-कभी उपवास (भोजन का त्याग) आवश्यक हो जाता है, किंतु प्रार्थना-रूप भोजन का त्याग किसी प्रकार ही हितकर अथवा वाञ्छनीय नहीं कहा जा सकता। प्रार्थना का अजीर्ण तो कभी हो नहीं सकता।
मैं आप लोगों से अनुरोध करूंगा कि आप लोग तार्किक युक्तियों का आश्रय छोड़कर एक नन्हें-से बच्चे की भाँति ईश्वर में निश्छल विश्वास करना प्रारम्भ कर दें। यदि मेरा अस्तित्व है तो ईश्वर का अस्तित्व अवश्य है। केवल मेरे ही जीवन का नहीं, किंतु मेरे जैसे अन्य लाखों मनुष्यों के जीवन का यह एक अत्यावश्यक अंग है। चाहे वे इसके विषय में वाद-विवाद न कर सकें, किंतु उनके जीवन से हम यह देख सकते हैं कि वह उनके जीवन का एक अंग बन गया है।
-महात्मा गाँधी
बढ़ो, आगे बढ़ो
विकासवाद का इतिहास हमको यह उपदेश देता है कि “आगे बढ़ो या मरो”। जो कोई आगे बढ़ने से इन्कार करेगा वह कुचला जायगा। इसके विषय और कोई वश या इलाज नहीं है। संसार में जितने प्राणी हैं, सबकी दशाओं पर ध्यान करने से यही नियम मालूम होता है कि “बढ़ो”। जड़, चेतन, वनस्पति सभी स्थानों पर इसी नियम का सिक्का (आतंक व राज्य) है। असभ्य जातियों और पशुओं को पढ़ने से भी यही मालूम होता है कि उनके खून की प्रत्येक बूँद पर लिख दिया गया है कि “आगे बढ़ो”। कहा गया है और सच है कि उन्नति पुरुषार्थ से और कष्ट उठाने से होती है। जो व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न न करेगा, वह नष्ट होगा और कुचला जायगा। जिस तरह एक गाड़ी में घोड़ा जोता जाता है, उसका काम है कि गाड़ी को खींच कर आगे ले जाये। यदि वह चले और रुक जाय तो कोचवान उस पर चाबुक पर चाबुक मारता है। यही दशा व्यक्तियों और जातियों की है।
-स्वामी रामतीर्थ
तीन पदार्थ
तीन पदार्थ खाओ, तीन वस्तुएं पहनो, तीन चीजों का आचरण करो-अहिंसा, सत्य और ब्रह्मचर्य। तीनों चीजों का स्मरण रखो, मृत्यु भौतिक दुःख तथा ईश्वर। तीन का परित्याग करो-अहंकार, कामना और राग। तीन गुणों का विकास करो- नम्रता, निर्भयता और प्रेम। तीन शत्रुओं का उन्मूलन करो-काम, क्रोध और लोभ। तीन बातों से प्रेम करो- मोक्ष की इच्छा, सत्पुरुषों का संग और निष्काम सेवा।
-स्वामी शिवानन्द
स्त्रियाँ ब्रह्म-विद्या परायण हों
जब तक कुछ ऐसी बहनें नहीं निकलती हैं, तब तक न स्त्री जाति का उद्धार होगा और न मानवता की उन्नति होगी। दोनों बातें आज रुकी हुई हैं। एक साल से मैं खास कर बहनों के लिए ये बातें कह रहा हूँ। मैंने ब्रह्म-विद्या की धुन में ही घर छोड़ा और वह धुन दूसरों को लगाने में भी कुछ सफल हुआ। लेकिन वे पुरुष थे। मुझे उम्मीद है कि अब कुछ स्त्रियों को ब्रह्मविद्या की धुन लगेगी, उनके जीवन का स्पर्श समाज को बदल सकेगा। आज तक एक भी स्त्री शास्त्रकार नहीं निकली है। शास्त्रकार वह होता है, जिसके शब्दों को अपना आधार समझकर लोग अपनी जिन्दगी उस पर खड़ी कर सकते हैं और निःशंक भाव से उस शब्द पर चल सकते हैं, जैसे अच्छे इंजीनियर के बनाये हुए रास्ते पर निःशंक भाव से चलते हैं। मैं चाहता हूँ कि कोई स्त्री शास्त्रकार बने। अब तक समाज के रक्षण का दारोमदार हिंसा पर था, लेकिन अब दुनिया के ध्यान में आ रहा है कि उससे रक्षण नहीं हो सकता है। इसलिए अब दुनिया को अहिंसा की तरफ मुड़ना होगा, उसके नये-नये हथियार ईजाद करने होंगे। अब स्त्रियों के लिए मौका आया है कि वे ब्रह्मविद्या-परायण हों और शास्त्रकार बनें। मुझे उम्मीद है कि ऐसी कुछ बहनें निकलेंगी, इसलिए नहीं कि यह मेरी ख्वाहिश है, बल्कि इसलिए कि वह जमाने की ख्वाहिश है। -विनोबा
आध्यात्मिक श्रद्धा
अनन्त युगों से भारत की जनता की प्रेरणा का मूल-स्रोत जीवन का आध्यात्मिक पक्ष ही रहा है न कि केवल भौतिक। आखिर श्रद्धा का यही स्रोत है जिसके आधार पर भारत अब तक टिका रह सका है। और यही श्रद्धा है जिसे यदि लोगों ने अपने जीवन में बनाए रखा तो यह भविष्य में भी भारत की रक्षा कर सकेगी। आध्यात्मिक श्रद्धा जीवन का अनिवार्य अंग है। हम समस्त भौतिक सुविधाओं को प्राप्त करें किंतु उसे प्राप्त करते हुए जीवन के आध्यात्मिक श्रद्धा की उपेक्षा की तो भारत का कोई सहारा नहीं बचेगा, आशा के समस्त तार टूट जायेंगे।”
-डॉ. राजेन्द्रप्रसाद
समय की कसौटी
समय का बरबाद होना और उसका सदुपयोग होना इसकी एक कसौटी है। जिस क्षण में चित्त में कोई विकार न उठता हो उस क्षण का सदुपयोग हुआ, फिर चाहे बाह्य निष्पत्ति हो या न हो। इससे उलटे, जबकि बहुत काम होता है, लेकिन चित्त में विकार-तरंग उठते हों, तो उतना सारा समय बरबाद हुआ, यही समझे। फिर चाहे दुनिया की दृष्टि से उतना समय काम में लगा, ऐसा भी क्यों न प्रतीत हो।”
-भावे
तीन बड़े सत्य
इस दुनिया के तीन ही बड़े सत्य हैं- आशा आस्था और आत्मीयता। दूसरों को अपना मानना और उसमें कुछ नहीं, यही कहना चाहिये। जिसमें प्रेम नहीं वह बड़ा उपदेशक होने पर भी निरा शंख या मजीरा मात्र है जो सिर्फ आवाज ही पैदा कर सकता है। किसी ने भले ही अष्ट सिद्धि और नौ निधियाँ प्राप्त कर ली हों पर यदि उसका हृदय प्रेम से सूना है तो उसे तुच्छ ही माना जायगा। कोई कितना ही बड़ा दानी या धर्म विद्या क्यों न ही पद यदि वह प्रेमी नहीं तो उसे भी स्वर्ग में प्रवेश न मिलेगा। ईश्वर को प्रेम और प्रेम को ईश्वर कहना चाहिए। जिसके हृदय में प्रेम मौजूद है उसे ईश्वर की प्राप्ति हो चुकी, इसमें संदेह नहीं किया जा सकता।
-सेन्ट पाल
संघर्ष करो-
इस बात की चिंता मत करो कि स्वर्ग और नर्क है ‘या नहीं’? मत इस बात की फिक्र करो कि आत्मा का अस्तित्व है या नहीं? इस झगड़े में भी मत पड़ो कि विश्व में कोई अविनाशी सत्ता है या नहीं? पर संसार हमारे नेत्रों के सम्मुख है, और वह कष्टों से भरा है। तुम भी बुद्ध के समान उसके भीतर जाओ और उसके कष्टों को कम करने के लिये संघर्ष करो या उसी प्रयत्न में मर जाओ। अपने को भूल जाओ, यह सबसे पहला पाठ है जो तुमको सीखना चाहिये-फिर चाहे तुम आस्तिक हो चाहे नास्तिक हो-द्वैतवादी हो या अद्वैतवादी हो-ईसाई हो या मुसलमान हो। एक ही पाठ जो प्रत्येक के लिये अनिवार्य है वह है अपने संकीर्ण अहम को समाप्त करके विराट आत्मा का निर्माण करना।
-स्वामी विवेकानन्द