Magazine - Year 1964 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मैं अनन्त पथ का राही हूँ। (कविता )
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युगों-युगों से चलता आया, और युगों तब फिर चलना है। जीवन-मरण नहीं कुछ मरा यह केवल झूठा छलना है। अर्ध से पूर्व चला हूँ मैं तो, चला चलूँगा ‘इति’ के आगे। धरा-व्योम क्षिर्ति पर थम जाते, मेरी राह क्षितिज के आगे। मेरे सम्मुख इस दुनिया की रात और ये प्रात नहीं है। मैं अनन्त पथ का राही हूं, रुकने की कुछ बात नहीं है। मेरी मंजिल को न ठिकाना, वह तो मंजिल हीन डगर है। मुझे मुख का आनक न डर हैं, मेरा अणु-अणु अजर अमर है। धरती की हर मंजिल मेरे पथ के, रज-कण के समान है। पारावार नहीं है उसका, वह असोमना मूर्तिमान है। मेरे आगे काल-व्याल का चल सकता उत्पात नहीं है। मैं अनन्त पथ की राही हूं, रुकने की कुछ बात नहीं है। मेरे एक चरण में जाने कितनी मंजिल तय हो जाती। लक्ष-लक्ष में चरण चल चुका, क्या उनकी गणना हो पाती। हार गया नक्षत्र लोक भी, लगा-लगा अनगिनत चक्कर। क्या शताब्दियाँ गिनूँ कल्प भी जब बन गए मील के पत्थर। नहीं बाँध सकते युग मुझको उनकी कुछ ओ बात नहीं हैं। मैं अनन्त पथ का राही हूँ, रुकने की कुछ नहीं है। मेरे आगे आदि अन्त ने कितने खेल तमाशे खेले लगे और उठ गए यहाँ से कई सभ्यताओं के मेले। मैंने देखी हैं मानवता पशुता को भी लज्जित करते। और कही देखा है उसको दिंडडडड भव्य भाव को भरते। यह तो नियति-चक्र की गति है, कहीं दिवस है रात, कही है। मैं अनन्त पथ का राही हूँ, रुकने की कुछ बात नहीं है। पल-छिप धूप-छाँह के सम ही रहे जमाने बनते मिटते। राम-कृष्ण के अवतारों को देखा अन्तिम बड़ियाँ गिनते। बुद्ध, मुहम्मद, ईसा सबको मैंने आते-जाते देखा। कोई नहीं बचा आखिर में, बचा हुआ हैं केवल लेखा। दृष्टा बन कर देखा करता, कहीं हर्ष संघात कहीं हैं। मैं अनन्त पथ का राही हूँ, रुकने की कुछ बात नहीं है। -डॉ. राजकुमार पाण्डेय ‘कुमार’ *समाप्त*