Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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मधु-संचय (Kavita)
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अच्छा होता अगर साधना होती साध न होती।
मेरा जीवन सहज कर्म को अपना धर्म बनाता,
मेरा भाव विश्व की करुणा का सहचर बन जाता,
मेरे प्राण तिरोहित होते वसुधा की ममता में,
मेरी श्वासों में सौरभ का अन्तराल मुस्काता,
तब शायद तारे बन जाते ये श्रम-कण के मोती।
अच्छा होता अगर साधना साध न होती॥
महायज्ञ है आज, सृजन की पावन बेला आई,
वर्तमान कह रहा भविष्यत की दो नहीं दुहाई,
आज आजकी बात कि कल बस दिवास्वप्न मृगतृष्णा,
शैशव बीता आज खड़ी शृंगार किये तरुणाई,
दिव्य दृष्टि अपने को दृगजल से यदि नहीं भिगोती।
अच्छा होता अगर साधना होती साध न होती॥
-विद्यावती मिश्र
आदर्श प्रेम आदान नहीं है जग में,
वह तो प्रदान है मानवता के मग में,
सामाजिक लज्जा आज कराह रही है,
अपनी आग्नेय तपस्या चाह रही है,
“क्या चिन्ता? ये तन बाह्य-वियोग सहेंगे,
हम सूक्ष्म शरीरों में तो एक रहेंगे
-शिशुपाल सिंह ‘शिशु’
जे तट पर बैठे बात बनाया करते हैं-
क्या वे जीवन भर सागर से कुछ पा पाय?
मोती उनको ही मनचाहे मिल जाते हैं-
जो त्याग मोह, सागर के तल तक हो आये॥
-रामस्वरूप खरे
हर दर्द को अपना बनाना जानता हूँ,
मुश्किलों से मैं निभाना जानता हूँ।
हर कदम पर मौत का साया मिला है,
फिर भी मैं हँसना-हँसाना जानता हूँ॥
-चन्द्रकुमार खन्ना
तुमने वैभव के पाँव पखारे अर्घ्य दिया,
इन्द्रासन की चारणता में गौरव माना।
अवसर की चंचल धाराओं में बहते तृण !
तुमने तूफानों से टकराना कब जाना?
जो बैसाखी पर चले, पले पर आश्रय पर,
गतिमान चरण का स्वाभिमान वह क्या जानें?
पतवारों के तालों पर ही नाचने वाली,
नैया, गति श्रम के सुख को कैसे अनुमाने?
-श्रीनिवास शुक्ल
समय का है अस्तित्व महान,
समय अभिशाप समय वरदान,
समय के साथ चलो इन्सान।
समय है आता हुआ भविष्य-
समय है बीता हुआ अतीत!
समय है धरती की मुस्कान,
समय है जीवन का संगीत!
-अमर बहादुर सिंह “अमरेश”
हर जीवन-दीप जलाने वालों से कहता-
दिन अन्धकार को बाँध शिखा में जलो जलो।
है दूर नहीं मंजिल कदमों को चूमेगी-
सन्तोष, सत्य के कठिन राह पर चलो चलो,
मैं तन, मन, धन, जीवन की बाजी लगा रहा-
तुम विश्व बन्धु का अनुपम पाठ पढ़ा देना॥
मैं दीप जलाता विषम विश्व के प्राँगण में-
तुम अन्तःतम में स्नेह शिखा सुलगा देना।
-सूरज प्रसाद रमानी
नहीं चाहता मेरे स्वर में दुनिया गाये,
किसी बाँसुरी को मैं अपना स्वर दे दूंगा।
हिचकी लेता होगा जिसके कर का दीपक,
उसी अभागे को मैं अपना घर दे दूँगा।
दाता अतिथि बुलाकर मेरी मर्यादा को मत बहकाओ।
जिनको मुझसे प्यार बहुत है ऐसे भी मेहमान बहुत हैं॥
-शलभ
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