Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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हमारा निमन्त्रण दूसरों तक पहुँचाइए
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गायत्री प्रचार जिस दिन हमने आरम्भ किया था, वह दिन हमारे जीवन का एक विशेष दिन था। उस शुभारंभ ने लगभग एक करोड़ लोगों को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है। अब यह दूसरा कदम भी ठीक इतना ही महत्वपूर्ण उठ रहा है। राष्ट्र के भावनात्मक निर्माण में हम एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करने जा रहे हैं। लेखनी, वाणी और रचनात्मक कार्य पद्धति, तीनों ही मोर्चों पर जो मुहीम खड़ी की जा रही है, वह कितना अनुपम परिणाम उत्पन्न करने वाली है उसे कुछ दिन में हर कोई भली भाँति प्रत्यक्ष देख सकेगा। ऐसे महान शुभारम्भ के अवसर पर अपने सगे साथियों को अपने समीप देखने और उनका विशेष सहयोग मिलने की हमारी आकाँक्षा अनुचित नहीं है।
अपने प्रतिनिधियों, उत्तराधिकारियों एवं कार्य सहचरों को इस सम्बन्ध में यह कार्य सौंप रहे हैं कि वे अपने क्षेत्र के प्रतिभा सम्पन्न परिजनों को ज्येष्ठ के दो शिविरों एवं उसके बाद ही होने वाले सम्मेलन में शामिल होने के लिए निमन्त्रित करने जायं और उन्हें अपने साथ ही खींच लाने का प्रयत्न करें। लेखनी और वाणी शिविर जहाँ सेवा का एक विशाल क्षेत्र प्रस्तुत करते हैं, वे वहाँ व्यक्तिगत प्रतिभा के विकास का भी द्वार खोलते है। इस बढ़ी हुई प्रतिभा एवं क्षमता के आधार पर कोई व्यक्ति अपने आध्यात्मिक ही नहीं भौतिक जीवन का भी विकास कर सकता है। जिनके पास कम समय हैं वे 15-15 दिनों में भी बहुत कुछ प्रकाश प्राप्त कर लेंगे। पर अच्छा यही है कि छः महीने मथुरा रह कर इन शिविरों में व्यवहारिक अनुभव प्राप्त किया जाय। जिनकी स्थिति ठहरने की है उन्हें इसके लिए तैयार करना चाहिए कि वे छः महीने मथुरा रह कर प्रवीणता प्राप्त करें।
तीन दिन का सम्मेलन वस्तुतः एक महान परिवर्तन की पूर्ण तैयारी में अभिनव मन्त्रणा का महत्वपूर्ण आयोजन है। जो शिविरों में आवेंगे उनमें से अधिकाँश से आशा की जायेगी कि वे सम्मेलन तक ठहरें और उसके बाद भी इसके अतिरिक्त सामाजिक कार्य में अभिरुचि लेने वाले दूसरे लोगों को भी व्यक्तिगत रूप से आमन्त्रण करने जाना चाहिए, ताकि अधिक योग्य व्यक्तियों के माध्यम में अधिक व्यापक योजना बन सके।
वैदिक-साहित्य संबंधी सूचना।
इन पुस्तकों के लिए बरेली लिखिए-(1) चारों वेदों का सायण भाष्य के आधार पर हिन्दी अनुवाद ( मन्त्रों समेत ) (2) 108 उपनिषद्, मन्त्र तथा हिन्दी अनुवाद (3) छहों दर्शन (हिन्दी अनुवाद) समेत हमारे सम्पादित, अनुवादित तो हैं पर मथुरा में मिलते नहीं। उनका प्राप्ति स्थान ‘संस्कृति संस्थान’-मुहल्ला ख्वाजा कुतुब, बरेली है। इस संबंध में कोई पत्र व्यवहार मथुरा न करके बरेली ही करना चाहिये। पुस्तकों के मूल्य इस प्रकार है। (1) ऋग्वेद (चार खण्डों में) 24) (2) अथर्ववेद (दो खण्डों में) 12) (3) यजुर्वेद 6) (4) सामवेद 6)। (5) 108 उपनिषद् (तीन खण्डों में) 21)। (6) योग दर्शन 4), वेदान्त दर्शन 4), साँख्य दर्शन 4), न्याय दर्शन (4), (5) वैशेषिक दर्शन 4), (5) मीमाँसा दर्शन 4।