Magazine - Year 1965 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
उद्बोधन (kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
शक्तिवंत होकर ही आना जीवन के संग्राम में,
शौर्य तुम्हारे काम-काम में शक्ति तुम्हारे काम में,
संयम और शक्ति-संचय से कर लेना गठजोड़ रे,
आलस और अविद्या को तुम देना तोड़ मरोड़ रे,
आयें कितनी ही बाधायें उनको जाना झेल तुम।
हँसी-खुशी से सदा खेलना इस जीवन का खेल तुम॥
हृदय और अन्तस्तल अपना करना है विस्तीर्ण भी,
कोटि-कोटि अन्तःकरणों तक हों वह कीर्ण-प्रकीर्ण भी,
वातावरण विनिर्मित हो शुचि हास और उल्लास का,
हो प्रशस्त पथ फिर से मानव के उज्ज्वल इतिहास का,
आगत सत्य ज्ञान का स्वागत करना अपने द्वार पर।
नहीं लुटाना श्रद्धा अपनी छल या पापाचार पर॥
मुरझाई, सूखी धरती को फूलों का उपहार दो,
तुम मनुष्य हो तो मनुष्य को उन्नति शील विचार दो,
एक मनुज की सदा दूसरे से पावनतम प्रीति हो,
नहीं किसी के साथ भूल कर भी किंचित अनरीति हो,
मिटें परस्पर द्वेष, बन्धुता फैले इस संसार में।
बन्दी रहे न मानवता द्वंद्वों के कारागार में॥
अहंकार को आश्रय देना नहीं कभी भी भूल कर,
किसी सफलता पर इतराना भी न गर्व से फूल कर,
माटी-पानी का शरीर यह भी आखिर किस काम का,
अगर विश्व के परित्राण में काम न वह कुछ आ सका,
दुःखी देखकर असहायों की करना मत अवहेलना।
करना पर-उपकार यहाँ पर सौ-सौ दुःख भी झेलना॥
-बलराम सिंह परिहार
*समाप्त*