Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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नये क्षितिज पर पुनः उदित हो (Kavita)
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जीवन के इस विषम-क्षेत्र को, सम कर-चरण धरो!
प्रेम-शान्ति समता के जलधर-बन, संचरण करो!!
युग का पथ कंटकाकीर्ण अति, तम छाया भारी।
पथ प्रशस्त करना ही होगा, सुन्दर-सुखकारी॥
तुम हो कवि, युग के निर्माता! सृष्टा, सत्य-पुजारी।
करो प्रज्वलित चेतनता की, नव-मशाल शुभ प्यारी॥
नई क्रान्ति के लिए आज -फिर, नव-उपकरण धरो।
गत से ले विश्वास, अनागत का अनुकरण करो॥
कथनी तज, करना कुछ होगा-नया समाज बनाने।
बढ़ना होगा भेद-भाव तज, मानवता अपनाने॥
प्रान्त-देश की सीमाओं में, बँधे अगर अनजाने
तो उद्धार असंभव, देखो सुमन लगे मुरझाने॥
आज एकता सोमनस्य का, मत अपहरण करो!
कटुताओं का विष विश्व-सम पी, जग संभरण करो!!
नये क्षितिज पर पुनः उदित हो, नूतन-सा दिनमान।
श्रम की भागीरथी प्रवाहित हो, कर कल-कल गान॥
‘अब आराम हराम’ न कर लें-जब तक नव-निर्माण।
गूँज उठे घर-घर यह नारा, हो नभ का अवसान॥
मृत्युञ्जय तुम, आज मृत्यु का हँस-हँस वरण करो।
बलिवेदो को सिर-सुमनों से भर, निज चरण धरो॥
-रामस्वरूप खरे
*समाप्त*