Magazine - Year 1966 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रोत्साहन (Kavita)
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कंटकमय जीवन के पथ पर, पथिक न हिम्मत हारना!
रोषपूर्ण बातों से मन की, सदा भड़कती आग है,
विनय शीलता के बचनों से, बढ़ता नव अनुराग है,
श्रेष्ठ वस्तु मानव जीवन में, समझो उसका त्याग है,
शक्ति, बुद्धि, कर्मठता जिसमें, वह तो पुण्य प्रयाग है,
ऐसे मानव की संगति में, तन, मन सदा सुधारना!
जीवन के कंटकमय पथ पर, पथिक न हिम्मत हारना!!
दुःख सुख का तो इस जगती में, होता जब तब मेल है,
घटनाओं पर बढ़ती रुकती, मानव जीवन रेल है,
आलस उष्मा सदा सुखाती, सुख आशा की बेल है,
उन्नति शील व्यक्ति करता नित, संघर्षों से खेल है,
सतत प्रयासों का संबल ले, बिगड़े कार्य संवारना!
जीवन के कंटकमय पथ पर, पथिक न हिम्मत हारना!!
छल छल कर सरिता कहती है, सीखों मेरी चाल से,
सुन्दर फल हमको सुख देते, ऊँचे तरु की डाल से,
नभ पर शशि चंचल किरणें रखतीं पाँव उछाल के,
ये रख देतीं है मनुष्य हित, काली रात उछाल के,
पंच तत्व के प्यारे पुतले पर-हित तुम न बिसराना!
जीवन के कंटकमय पथ पर, पथिक न हिम्मत हारना!!
सुख की आशा जीवित रक्खो, दुख-पलनों में पाल के,
सुन्दर सपना टूट न जाये, बोलो बात सम्हाल के,
नयनों का खारा जल पोंछो, साहस के रुमाल से,
मानव जग में डरना छोड़ो, भीषण दुख के व्याल से,
तुम प्रधान हो इस दुनिया में, जब तब यही विचारना!
जीवन के कंटकमय पथ पर, पथिक न हिम्मत हारना!!
—भगवती प्रसाद सोनी ‘गुँजन’
*समाप्त*