Magazine - Year 1970 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
आप ही अपने परिवार का एक बालक उसमें भेजें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
गायत्री तपोभूमि में अवस्थित युग निर्माण विद्यालय ने पिछले तीन वर्षों में जो असाधारण प्रगति की है तथा अपने प्रयोजन में सफलता पाई है उसकी चर्चा दूर-दूर तक है एक वर्ष का पाठ्यक्रम इतने अधिक विषयों को इतनी सफलतापूर्वक सिखा सकता है। यह एक अपने ढंग का अनोखा प्रयोग है।
(1) बिजली सम्बन्धी फिटिंग और मरम्मत के अनेक काम (2) रेडियो ट्राँजिस्टर नये बनाना और पुरानों की मरम्मत करना (3) आँख के चश्मों के लेंस हर नम्बर के बनाना (4) मोजे बनियानें बनाना (5) प्लास्टिक के बटन खिलौने और फाउन्टेन पेन डाट पेन्सिलें बनाना (6) तरह-तरह के खिलौने बनाना (7) अनेक किस्म के सस्ते महंगे घटिया बढ़िया साबुन, मोमबत्तियां। स्याहियाँ पेन्ट वार्निस तेल पेन्ट शरबत फिनायल आदि कैमिकल (8) ड्राइक्लीनिंग रेशमी, ऊनी सूती कपड़े मशीनों द्वारा तुरन्त धोना (9) प्रेस का छपाई कम्पोज रबड़ की मोहरें, बाइंडिंग प्रबन्ध आदि का समग्र शिक्षण (10) घरेलू काम के छोटे बड़े बर्तन मकान फर्नीचर एवं अन्य उपकरणों की मरम्मत, सफाई और साज संभाल की अनेक दस्तकारियां। इन दस शिल्पों में सभी ऐसे हैं जिनके आधार पर प्रशिक्षित व्यक्ति इतनी आजीविका बड़ी आसानी से कमा सकता है। जितनी एम॰ ए॰ पास लोगों को बड़ी कठिनता से मिलती है।
लगभग यह सभी शिक्षण एक वर्ष में पूरा हो जाता है। शिक्षा की कोई फीस नहीं ,निवास के लिए छात्रावास का सुप्रबन्ध, व्यायाम तथा बंदूक तलवार लाठी भाला छुरी आदि अस्त्र शस्त्र चलाने की शिक्षा नित्य खेद कूद ड्रिल और मनोरंजन के साँस्कृतिक कार्यक्रम छात्रों को आकर्षक अनुभव होते हैं और उनका ऐसा मन लग जाता है कि आरम्भ में घर की बहुत याद करने वाले भी कुछ दिन बाद वहाँ से जाने का नाम तक नहीं लेते।
विद्यालय का मुख्य शिक्षण है- ‘जीवन जीने की कला’ शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक प्रगति के लिए उत्कृष्ट विचारणा और कार्य पद्धति को अपनाने की आवश्यकता है उसके बौद्धिक तथा व्यावहारिक रूप में उसे प्रतिदिन सिखाया जाता है। यह शिक्षा पद्धति इतनी अनुभूत और सारगर्भित है कि शिक्षार्थी का जीवन क्रम ही बदल जाता है। गुण कर्म स्वभाव को सुधारने संभालने और सुव्यवस्थित बनाने का विद्यालय द्वारा जो प्रयत्न होता है उसका लाभ देखकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। अभिभावकों को यह कहते सुना गया है कि यदि कोई भी शिल्प न सीखा जाता तो भी स्वभाव सुधार की शिक्षा इतनी महत्वपूर्ण है कि हम अपने बच्चे का एक वर्ष उतने मात्र से भी सार्थक और सफल मान सकते थे।
इस वर्ष छात्रों की संख्या पिछले वर्षों से कम रखनी है। क्योंकि छात्रावास का एक भाग 5 महीने तक चलने वाले शिविरों के लिए लेना पड़ रहा है यों सदा ही आवेदन पत्रों में से लगभग आधे स्थान की कमी से अस्वीकृत करने पड़ते हैं। इस वर्ष तो और भी अधिक कटौती होगी। गत वर्ष से भी कम छात्र इस वर्ष लिये जायेंगे। इसलिए जिन्हें अपने बच्चे इस प्रशिक्षण के लिए भेजने हों उन्हें अभी से विद्यालय की नियमावली माँगकर आवेदन पत्र भेज देने चाहिए यों शिक्षा पहली जुलाई से आरम्भ होती है पर स्वीकृति अभी से ली जा सकती है।
शिक्षार्थी की आयु कम से कम 14 वर्ष और शिक्षा कक्षा 8 तक होनी आवश्यक है। उसे शारीरिक, मानसिक दृष्टि से निरोग होना चाहिए और अनुशासन में रहने को तैयार रहना चाहिए। भोजन व्यय छात्रों को ही करना पड़ता है जो लगभग 30 रु. मासिक आता है। विशेष जानकारी के लिये युग निर्माण विद्यालय गायत्री तपोभूमि मथुरा के पते पर भेजकर नियमावली एवं आवेदन पत्र मंगा लें।