Magazine - Year 1971 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
चमत्कार कोई अवैज्ञानिक तथ्य नहीं
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
प्रकृति की प्रमुख शक्तियों में ताप, प्रकाश, विद्युत की भौतिक ही ‘शब्द’ की भी गणना होती है। ध्वनि टकराव से उत्पन्न होती है और ईथर तथा वायु के सहारे अपने अस्तित्व का परिचय देती है। सामान्यतः उसे किसी घटना की जानकारी देने वाली समझा जाता है और सर्वाधिक उपयोग शब्द गुच्छकों के माध्यम से वार्त्तालाप में किया जाता है पर इतने ही छोटे क्षेत्र तक सीमित वहीं माना बैठना चाहिए। शब्द की अपनी सामर्थ्य है और उसका प्रभाव, क्षमता प्राणि जगत एवं पदार्थ जगत में समान रूप से देखी जा सकती है।
जो प्राणी किसी रूप में शब्दोच्चार कर सकते हैं वे अपनी इच्छा, आवश्यकता एवं स्थिति की जानकारी अपने सहयोगियों को इसी माध्यम से देते हैं। अपने सजातियों में उनका पारस्परिक आदान-प्रदान इसी आधार पर चलता है। इस व्यवहार में मनुष्य सर्वाधिक प्रवीण है। निजी अभिव्यक्तियों से लेकर परिवार व्यवस्था, व्यवसाय एवं समाज व्यवहार के सारे काम वार्त्तालाप के माध्यम से ही सम्भव होते हैं। विचारणाओं और भावनाओं की व्यापक अभिव्यक्ति में लेखनी की तुलना में वाणी का उपयोग हजारों गुना होता है। जो गूँगा, बहरा व अपनी कह सके दूसरे की न सुन सके तो उसे एक प्रकार से अपंग ही कहना चाहिए।
ध्वनि का उपयोग भावनाओं और परिस्थितियों के माध्यम से उतना अधिक होता है जितना अन्य किसी इन्द्रिय के माध्यम से सम्भव नहीं। नेत्रों को प्रमुख माना जाता है, पर वाणी की तुलना में उनकी उपयोगिता भी नगण्य ही रह जाती है। विरजानन्द जैसे विद्वान, सूरदास जैसे कवि के.सी.डे जैसे गायक अन्ध समुदाय में हुए हैं किन्तु किसी मूक बधिर द्वारा कोई पुरुषार्थ प्रकट किया है ऐसा ‘केलर’ जैसा उदाहरण समस्त संसार खोज डालने पर भी युगों के मध्य एकाध ही मिलेगा। शिक्षा में शब्द शास्त्र की ही प्रमुखता है। लिपि और शब्दकोष के माध्यम से वह क्रमबद्ध लेखन की जो धारा बनती है उसे प्रकारान्तर से कथन के समतुल्य ही बना लिया जाता है। ज्ञान विज्ञान का विस्तार इसी आधार पर सम्भव हो सकता है। मानवी प्रगति के योगदान में सर्वोपरि उपयोग ध्वनि शक्ति के विभिन्न रूपों का ही ठहराता है।
इन दिनों ध्वनि के असन्तुलन एक आधार से उत्पन्न होने वाली विकृतियों की चर्चा जीरो से चल रही है और उससे उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया पर विज्ञ समाज में चिन्ता व्यक्ति की जा रही है। कोलाहल इन दिनाँक एक समस्या बन कर रह रहा है और उससे उत्पन्न होने वाले दुष्प्रभाव से बच सकने का उपाय गम्भीरतापूर्वक सोचा जा रहा है। बढ़ते हुए कोलाहल को किसी व्यापक महामारी की तरह ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनिष्ट कर आँका गया है।
इंग्लैंड की आवाज विरोधी सभा में ब्रिटिश सैनिक सर्जन ‘डान मेककेनसी’ ने अपने वक्तव्य में कहा था- विगत युद्ध में बहुत आदमी ध्वनि के प्रभाव से मरे हैं। विस्फोट की ध्वनि घातक होती है। वैज्ञानिक भविष्य में ध्वनि को युद्धों में मारक अस्त्र की भाँति उपयोग करने की सोच रहा हैं। केवल भीषण आवाज ही नहीं, धीमी आवाज भी निरन्तर होते रहने से बहुत से व्यक्तियों में स्नायुविक तनाव उत्पन्न कर देती है। वर्तमान में अमेरिका जैसे सभ्य देशों में मानसिक एवं पागलपन के रोगियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। इसका एक मुख्य कारण ध्वनि का दुष्प्रभाव है।
अधिक आवाज वाले स्थानों, महानगरों में बसे, छापेखानों में छापने वाले, मोटर ड्राइवर आदि जो भी शोर वाले वातावरण में रहते, उनमें अधिकाधिक बहरेपन की बीमारी बढ़ती जा रही है। कर्कश आवाज से मनुष्य की ध्वनि ग्रहण करने की क्षमता कम होती जाती है। स्नायु संस्थान पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तथा स्नायु परीक्षणों से मालूम हुआ है कि आवाज नींद में बाधा डालती हैं, स्नायुविक संस्थान में थकान उत्पन्न कर देती है एवं पाचन शक्ति की दुर्बल कर देती है।
वैज्ञानिकों ने ध्वनि को मापने की इकाई डेसीबल (बेल का दशाँश) मानी है जिसके अनुसार उपयोगी अनुपयोगी ध्वनियों का वर्गीकरण भी किया है। सुप्रसिद्ध डॉ. ई. लारेंसस्मिथ ने बताया है कि 60 डेसीबल अथवा उससे अधिक ध्वनि का पाचन क्रिया पर निश्चित ही बुरा प्रभाव पड़ता है। सामान्य रूप से बात करने की ध्वनि 40 डेसीबल के स्तर की होती है। कार्यालयों में एक-दूसरे की आवाज मिलाकर 50 डेसीबल हो जाती है। साधारण शोरगुल वाले स्थानों में ध्वनि का स्तर 70 डेसीबल तक पहुँच जाता है।
न्यूयार्क के मस्तिष्क विशेषज्ञ डॉ. फोस्टर कैनेडी ने प्रमाणित किया है कि तीव्र-तीक्ष्ण आवाज का मन पर बहुत भयंकर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने देखा कि कागज की थैली को हवा भरने से फटने पर जो आवाज हुई उससे एक रोगी के मस्तिष्क का दबाव 2 सेकेंड तक सामान्य से चार गुना हो गया।
यह दबाव मस्तिष्क को मोफिन और नाईट्रोग्लिसरीन नामक दबाव बढ़ाने वाले ड्रग्स की अपेक्षा भी अधिक था। उनका कहना है कि लगातार इस आवाज से आदमी की मृत्यु तक हो सकता है, पागल हो जाना सामान्य बात है।
ध्वनि की रचनात्मक उपयोगिता भी है। भाषण, परामर्श, शिक्षण, सत्संग आदि में शब्द के माध्यम से ज्ञान संवर्धन के प्रयत्न निरन्तर चलते रहते हैं। व्यवसाय जैसे पारस्परिक सहयोग पर आधारित अगणित क्रिया कलापों में शब्द संचार की ही प्रमुख भूमिका रहती है। प्रचार एवं विनोद के लिए नियोजित विभिन्न उपायों उपचारों में कथन-गायन का ही आश्रय लिया जाता है। संगीत और अभिनय कला का अधिक विस्तार होने और विज्ञान का सहयोग मिलने से सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन जैसे नये माध्यम निकले हैं इससे पूर्व यह कार्य छोटे-बड़े रंग-मंचों द्वारा सम्पन्न होता था। ज्ञान संवर्धन ही नहीं, विनोद और विविध-विधि उत्तेजनाओं के लिए भी शब्द शक्ति के भरपूर उपयोग मनुष्य ने किया है।
सामान्यतः संगीत को भाव संचरण एवं मनोविनोद के लिए प्रयुक्त किया जाता है, पर यह उसका उथला उपयोग है। गहराई में उतरने पर उसे एक स्वास्थ्य संरक्षण एवं मानसिक सन्तुलन के लिए उपयोगी शक्ति के रूप में कारगर सिद्ध होते देखा जा सकता है। इतना ही नहीं इन दिनों क्षेत्रों की प्रगति बढ़ाने के लिए संगीत का उपयोग एक महत्वपूर्ण पोषण एवं उत्तेजना की तरह ही बन पड़ता है। इस प्रकार ध्वनि शक्ति की एक शाखा संगीत की उपयोगिता में एक नई कड़ी और भी जुड़ जाती है। अब क्रमिक प्रगति में संगीत की शारीरिक एवं मानसिक चिकित्सा के लिए भी एक प्रभावी माध्यम की तरह प्रयुक्त किया जाने लगा है।
ऐसा बैकग्राउन्ड म्यूजिक तैयार करने का आर्डर दिया जिससे टाइपिंग में होने वाली अशुद्धियाँ कम हो सकें। ‘मुजाक’ कम्पनी ने जो बैकग्राउन्ड म्यूजिक बना कर दिया। उसको बजाने से टाइपिस्टों से होने वाली अशुद्धियों में 38.8 प्रतिशत कमी हुई।
हवाई-अड्डों पर उड़ान करने वाले यात्री जिनके मन प्रायः अशान्त होते हैं, उनके मन को शान्त करने के लिए बैकग्राउन्ड म्यूजिक बजाया जाता है।
बड़े शहरों लन्दन में ‘सुपर मार्केट’ में ऐसा बैकग्राउन्ड म्यूजिक बजाया गया जिससे ब्रिकी में 40 प्रतिशत वृद्धि पाई गई।
आजकल ‘बैकग्राउन्ड म्यूजिक’ तैयार करने वाली कम्पनियाँ ग्राहकों की इच्छानुसार संगीत-तर्ज बना देते हैं जिससे वाँछित लाभ हो।
कुछ ही समय पूर्व की शोधों से ज्ञात हुआ है तीव्र एवं उत्तेजक संगीत से नाड़ी की गति 22 प्रतिशत तथा श्वासोच्छवास की गति 50 प्रतिशत बढ़ जाती है।
डाक्टर लोग हमारे शरीर में होने वाली क्रियाएँ जैसे हृदय की धड़कन, आँख की पलकों का खुलना बन्द होना, साँस का निरन्तर चलना आदि क्रमबद्ध प्रक्रियाओं को ‘बायोलॉजिकल-क्लास’ कहते हैं अब यह निस्संदेह सिद्ध किया जा चुका है कि संगी की मन्द एवं तीव्रगति अनुलोमानुपाल में इस ‘बायोलॉजिकल क्लास’ की प्रभावित करती है।
ब्रिटेन की ‘संगीत-चिकित्सा सोसायटी’ की यह दावा है कि दमा से पीड़ित फेफड़ों पर संगीतमय-ध्वनि से श्वास-प्रश्वास की गति सही तथा सक्रिय हो सकती है।
पश्चिम-जर्मनी के वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि पेट के फोड़ (स्टमक अलसर) आपरेशन एवं दवाओं, की अपेक्षा संगीत से अधिक शीघ्रता से ठीक किये जा सकते हैं।
संगीत का सबसे अधिक सफल चिकित्सा उपयोग विभिन्न मानसिक रोगों में अस्वस्थ मन को शान्त करने में तथा बौद्धिक क्षमता प्रदान करने में पाया गया है।
संगीत चिकित्सा का मानसिक रोगों के क्षेत्र में उतना ही सफल योगदान है जितना ही सर्जरी एवं दवाओं का है, इसमें एक विशेषता यह भी है कि इससे अवाँछनीय ‘साइड इफेक्ट’ नहीं होते।
शस्त्र का उपयोग संरक्षण में भी होता है और आक्रमण में भी। चाकू से कलम भी बन सकती है और हत्याकाँड भी हो सकता है। कोलाहल विस्फोट से उत्पन्न होने वाले प्रभाव की तरह संगीत का ऐसा उपयोग ही हो सकता है जो घातक प्रतिक्रिया उत्पन्न करे। सपेरे, सर्पों को और बधिक हिरनों को पकड़ने में संगीत का उपयोग करते रहे हैं। युद्ध भेरियाँ सैनिकों को लड़ने मरने के लिए आतुर उत्तेजना देने में एक प्रकार की मदिरा जैसी सिद्ध होती रही है। अब ऐसे संगीत निकाले गये हैं जो मछुओं को जल क्षेत्र में बिखरी हुई मछलियों को एक स्थान पर एकत्रित करने और उन्हें सरलता पूर्वक पकड़ने में सहायता करते हैं।
वैज्ञानिक इन दिनाँक एक ऐसे ध्वनि यन्त्र “रोडेटरेपे लैट” पर परीक्षण कर रहे हैं जिसकी ध्वनि सुनकर चूहों की भूख कुछ समय के लिए समाप्त हो जाती है और वे प्रजनन में अक्षम हो जाते हैं। कल्पना की गई है कि भारत में खाद्यान्न की 10 प्रतिशत उपज चूहे खत्म कर जाते हैं। अब इस इलेक्ट्रानिक बीज की सहायता से यह समस्या हल की जा सकेगी। इस यन्त्र में एक धातु की छड़ लगी हुई है जिसके हिलने से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक लहरें उत्पन्न होती हैं जिसे सुनकर चूहे उत्तेजित हो जाते हैं और उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है। अमरीकी फर्म का दावा है कि इसका प्रभाव केवल चूहों पर ही होता है।
चूहों की भाँति अन्य प्राणियों के विनाश में भी इस प्रक्रिया का उपयोग हो सकता है। यहाँ तक कि शत्रु देशों के सैनिक एवं प्रजाजन बिना बारूद या गैस का सहारा लिए मारक ध्वनि प्रवाह उत्पन्न करके भी रुग्ण, दुर्बल अथवा मृतक बनाये जा सकते हैं।
यहाँ सामर्थ्य भर की चर्चा हो रही है। विनाश तो चारों ओर से ऐसे ही बरस रहा है। बात तो सृजन ओर उत्थान की सोचनी है और यह ढूंढ़ना है कि ध्वनि शक्ति का उपयोग पक्ष किसी प्रकार हस्तगत हो सकता है। संगीत क्षेत्र में दीपक रोग, और मेघ मल्हार जैसे प्रयोग हुए हैं। बुझे दीपक को जिस संगीत से जलाया जा सकता है वह बुझे मन में भी समर्थ हो सकता है। जिस राग को सुनकर मेघ मालाएँ उमड़ और बरस सकती हैं वह प्रकृति की अन्य सामर्थ्यों का भी अनुकूलता बरसाने के लिए सहमत कर सकती है। अन्तरिक्ष में बहुत कुछ भरा पड़ा है उन अनुदानों से ही धरातल एवं प्राणि समुदाय को सुविकसित होने का अवसर मिला है। इस क्षेत्र में अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त करने की असीम सम्भावनाएँ अभी भी विद्यमान हैं। यज्ञोपचार के साथ किये गये मन्त्रोच्चारण का प्रभाव अभीष्ट वर्षा के रूप में उपलब्ध होने का उल्लेख कथा-पुराणों में मिलता है। ध्वनि विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा मन्त्र विद्या की लुप्त कड़ियाँ यदि ढूंढ़ी जा सकें तो मन्त्र शक्ति को श्रद्धा परिधि में आगे बढ़ाकर एक प्रचण्ड शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
संगीत के माध्यम से स्नायविक दुर्बलता एवं मानसिक विकृति के निराकरण में उत्साहवर्धक सफलता मिल रही है। उपयोगी पशु-पक्षियों में अधिक प्रजनन कर सकने की समर्थता बढ़ाई गई है। दुधारू पशुओं ने अधिक दूध दिया है। पौधों को जल्दी बढ़ने और अधिक फसल देने में भी संगीत का उत्साहवर्धक प्रतिफल उत्पन्न हुआ है।
इन भौतिक प्रयोगों से आगे का वह क्षेत्र है जिसे प्राचीन काल में नादयोग कहते थे। उस विद्या को अपनाकर अध्यात्म क्षेत्र की रहस्यमय शक्तियों को जागृत किया जाता था और मानवी काया में छिपी दिव्य सामर्थ्यों से लाभान्वित हुआ जाता था। शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म ही साधना का उल्लेख योग शास्त्र के साधना प्रकरणों में विस्तारपूर्वक हुआ है।
संगीत और योग दोनों ही नाद विद्या के अंतर्गत बाते हैं। योग अनाहृत और संगीत आहृत नाद है। नाद मन को एकाग्र करने का अच्छा साधन है। जब साधक का मन नाद पर एकाग्र हो जाता है तब वह बाहरी विषयों से मुक्त हो जाता है।
संगीत के स्वरों का सीधा सम्बन्ध सात चक्रों से है। संगीत के सात स्वर सा र, ग म, प, ध, नि, संगीत के आधार माने जाते हैं। संगीत के साधक को इन साथ स्वरों के अभ्यास के बिना संगीत में प्रवीणता प्राप्त नहीं हो सकती। प्रत्येक स्वर का सम्बन्ध एक चक्र से है। जैसे मूलाधार का “सा” स्वाधिष्ठान का ‘रे’ मणिपूर का ‘ग’ अनाहत का ‘म’ विशुद्ध का ‘प’ आज्ञा को ‘ध’ सहस्राधार का ‘नि’ से है।
इन्हीं चक्रों के क्रम में स्वरों का अवरोह और अरोह होता है। मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा, सहस्राधार इसी के उल्टे क्रम में अवरोह होता है। साधारणतः स्वरों के लिए हृदय, कण्ठ और मूर्धन्य तीन को ही नाद उत्पत्ति का कारण मानते हैं। व्यवहार में सप्त स्वर इन्हीं तीन स्थानों से प्रकट होते दिखाई देते हैं।
संगीत में तन्मयता उत्पन्न करने की महान शक्ति का कारण ऋषियों ने इन्हीं चक्रों के जागरण में अनाहृत नाद के माध्यम से जाना। उपासना में भी संगीत को हृदय की वाणी का नाम दिया है।
मूलाधार से सहस्रार तक प्रत्येक चक्र के माध्यम से आरोह अवरोह निरन्तर करते रहने पर कुण्डलिनी जागरण में सफलता मिल सकती है। जैसे 2 ध्यान में तल्लीनता बढ़ती है उसी तरह संगीत की तल्लीनता भी कुण्डलिनी जागरण के समीप साधक को ले पहुँचती है।
शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म को साधना आत्मिक क्षेत्र को और तालबद्ध लयबद्ध संगीत लहरों से भौतिक क्षेत्र को प्रभावित करने और उससे लाभान्वित होने के लिए विशाल कार्य क्षेत्र विद्यमान है। साधना के साहसी लोगों को इससे प्रवेश करने लिए पदार्थ वैज्ञानिकों की तरह ही निष्ठापूर्वक प्रवेश करना चाहिए।