Magazine - Year 1973 - Version 2
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Language: HINDI
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कच्ची आस्तिकता से नास्तिक होना अच्छा
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परमात्मा की नाम रट लगाना ही यदि आस्तिकता है तो मुझे नास्तिक कहलाने में कोई ऐतराज नहीं। मैंने यह सोचा और जाना है कि अपने आपको समझना और अन्तरात्मा को विकसित करना पूजा करने से अधिक श्रेयस्कर है। मैं अपने पर आस्था रखता हूँ पर अगाध श्रद्धा करता हूँ क्योंकि वही मेरा भगवान् है। मैं सोचता हूँ यदि अपने आपे को भगवान् बनाया जा सकें तो फिर आस्तिकता का असली प्रयोजन पूरा हो जाएगा पर यदि आस्तिकता की परिभाषा यह है कि व्यक्ति कितना ही निकृष्ट बना रहें और थोड़ा पूजा-पाठ करके अपने को पवित्र होने और समुद्यत होने का उद्देश्य पूरा हो सकता है तो मुझे उस मान्यता से इनकार करना होगा। और यदि यह मत-भेद मुझे नास्तिक घोषित करे तो अपने को नास्तिक कहलाने में भी मुझे कोई ऐतराज नहीं है।