Magazine - Year 1978 - Version 2
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Language: HINDI
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भूत न बने रहें - देवत्व की ओर बढ़ें
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लगता है मनुष्य भूत की उपासना में निरत रहकर भूत बन चुका या बनने जा रहा है। पंच तत्वों को पंच भूत कहते हैं। भौतिक पदार्थों को भूत की करतूत तब कहा जाता है। जब उसका उपयोग शरीर निर्वाह से आगे बढ़कर आत्मा के क्षेत्र में प्रवेश करने और स्थान पाने लगते हैं।
शरीर भूतों का बना है और उस इंजन को चलाने के लिए पदार्थों का ईंधन आवश्यक है। किन्तु आत्मा शरीर नहीं है। उसको आहार व पोषण विचारणा और भावना की उत्कृष्टता से मिलता है। शरीर को भूत और चेतना को देव कहते हैं।
कहते हैं कि भूत श्मशान में रहते हैं। उन्हें एकाकी खण्डहरों में रहना पसन्द है। भूतकाल की विसंगतियों में ही उलझे खिन्न-विपन्न बने रहते हैं। वे डरते और डराते हैं। जलते और जलाते हैं। चाहते बहुतों से हैं किन्तु दे किसी को कुछ नहीं पाते। देखना होगा कि यह भूत कल्पना कहीं अपने ऊपर ही तो लागू नहीं होती। कहीं हम स्वयं ही भूतों में निरत रहते, स्वयं ही तो भूत नहीं बन गये हैं।
अपने स्वरूप और लक्ष्य देव हैं। देवों की सम्पदा, विचारणा और भावना की उत्कृष्टता होती है। यह सम्पदा जहाँ भी होगी वहीं स्वर्गीय वातावरण बनेगा। सत्कर्मों में सहायता करने के लिए देव निरन्तर दौड़ते हैं। देना ही उनका स्वभाव और क्रिया-कलाप होता है। वे सम्मान पाते और वरदान देते हैं। अमृत पीते और अमृत पिलाते हैं। आनन्द पाते और उल्लास बिखेरते हैं।
भूत या देव में से हमने जो चुना वह सामने है। यदि चाहें तो स्थिति को बदल भी सकते हैं। भूत योनि से निकल कर देव योनि में प्रवेश करना पूर्णतया अपनी इच्छा और हिम्मत पर निर्भर है।
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