Magazine - Year 1978 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवन की पहेलियाँ और विचित्रतायें
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आयरलैण्ड के कुक हैवेन शहर में एक ही मकान में रहने वाले दो परिवारों में कुछ मिनटों के अन्तर से दो पुत्र हुए। एक दंपत्ति ने अपने बच्चे का नाम एलेनर ग्रेडी रखा, दूसरे ने अपने बच्चे का नाम पैट्रिक रखा। दोनों बच्चे धीरे-धीरे अपने जीवन के स्वाभाविक विकास क्रम की ओर चल पड़े।
पैट्रिक और एलेनर दोनों अलग-अलग खेलते, अलग-अलग रहते। किन्तु एक दिन रोते-रोते घर पहुँचे, दोनों के दाहिने पैर पर एक ही स्थान पर चोट लगी थी। माता-पिता ने पट्टी कर दी, कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों बच्चे पढ़ रहे थे तब कई बार ऐसा हुआ कि यदि परीक्षा में पैट्रिक को 300 अंक मिले तो दूसरे स्कूल में पढ़ रहे ग्रेडी को भी उतने ही अंक मिले। जिस दिन एलेनर के विवाह सम्बन्ध की बात चली ठीक उसी दिन पैट्रिक की भी और संयोग की बात यह कि दोनों का विवाह एक ही दिन हुआ। दोनों की शादी एक ही दिन तय हुई और पहला बच्चा भी एक ही दिन हुआ।
बचपन में एक ही मकान में रहे एलेनर और पैट्रिक बड़े होने पर आपस में मिले तब उन्होंने इन समानताओं पर ध्यान दिया और अन्तिम समय भी वे समानता की एक और मिसाल छोड़ गये कि दोनों व्यक्तियों की मृत्यु भी एक दिन एक ही समय पर हुई। उस समय दोनों अपने-अपने खेत में काम कर रहे थे।
यह घटना जीवन की विचित्र रहस्यमयता तो प्रतिपादित करती ही है, यह भी बताती है कि मनुष्य का अस्तित्व शरीर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि उसकी मूल सत्ता शरीर से बहुत सूक्ष्म और स्थूल नियमों से परे है। मनीषियों ने उस सूक्ष्म सत्ता को आत्म तत्व जीवन-सत्ता का नाम दिया है और कहा है कि वह काय-कलेवर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि विकसित हो कर विश्व ब्रह्माण्ड की विराट् चेतना से भी जा जुड़ती है।
पैट्रिक और ‘एलिनेर’ के जीवन की समानता से भी अधिक विचित्र समानतायें थीं इटली के सम्राट डम्बर्टों प्रथम तथा वहीं के एक होटल मालिक में। उस होटल मालिक को तो सम्राट का प्रतिरूप ही कहा जाता था। दोनों की सूरत शक्ल और चेहरे मोहरे इस प्रकार मिलते थे कि डम्बर्टों तथा होटल मालिक को एक समान कपड़े पहना कर खड़ा कर दिया जाये तो उनकी पत्नियों के लिए भी पहचानना असम्भव हो कि कौन हमारा पति है। सूरत शक्ल से ही नहीं नाम भी दोनों का एक ही था। पाठक किसी भ्रम में न पड़ जायें इसीलिए यहाँ एक को डम्बर्टों प्रथम तथा दूसरे डम्बर्टों को होटल मालिक कहा जा रहा था।
ये घटनायें सिद्ध करती हैं कि सूक्ष्म चेतना की सत्ता स्थूल सत्ता से महान है और वह मनुष्य को किसी उद्देश्य से इस पृथ्वी पर भेजती है। अपने स्वरूप को भुलाने पर वह इन संकेतों से समझाती भी है।
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