Magazine - Year 1978 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
समर्थ सत्ता को देखें, सुनें, प्राप्त करें!
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
उन्होंने श्रीमती नियेशन को एक बन्द कमरे में रखा और एक उनके सर्वथा अजनबी व्यक्ति की एक वस्तु दी। उस वस्तु को हाथ में लेते ही उन्होंने उस व्यक्ति का न केवल नाक−नक्शा अपितु उसके पूर्व जीवन की अनेक घटनाएँ यों कह सुनाई मानों वे चलचित्र में सब देख रही हैं। कु0 एडम नामक एक अन्य लड़की की अतीन्द्रिय क्षमता के बार में भी प्रो0 क्रेग ने लिखा है कि वह सूँघकर टेलीफोन पकड़ कर दूरवर्ती वस्तुओं को ऐसे बता देती थी मानों वह सामने पड़ी पुस्तक पढ़ रही हो।
इन घटनाओं का उल्लेख करने के बाद प्रो0 क्रेग ने लिखा−परामनोविज्ञान ने (1) दूरानुभूति (2) क्लेसर वापेन्स (3) दूरदृष्टि (4) विचार संचालन (टेलीपैथी) सम्बन्धी अन्य घटनाओं की प्रामाणिक खोजें की हैं उनसे मनुष्य की विलक्षण अतीन्द्रिय क्षमता का पता चलता है कि घटनाओं को इनमें से किसी भी कोटि में नहीं रखा जा सकता। यदि कोई ऐसी शक्ति जो भूत भविष्य को एक ही बिन्दु पर देख सकती हो वह शक्ति आत्मा की या परम सत्ता ही हो सकती है विज्ञान उसे झुठला नहीं सकता।
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो0 फर्नीनेड वान न्यूट्राइटर को उनके एक सहयोगी ने बताया एक ल्यूथिनियन लड़का किसी भी भाषा का कितना ही बड़ा वाक्य गद्य अथवा पद्य आप कहें, बच्चा उसी भाषा में अर्ध विराम, पूर्ण विराम सहित दोहरा देता है यही नहीं आप बोलना प्रारम्भ करें तो वह स्वयं भी वही शब्द उसी मोड़ और लचक के साथ इस तरह शब्द से शब्द मिलाकर बोलता चला जाता है मानों उसे स्वयं ही वह पाठ कंठस्थ हो। प्रो0 फर्डीनेड ने कहा−सम्भव है वह ओठों की हरकत से उच्चारण पहचानने में सिद्ध हस्त हो सो उनने स्वयं जाँच करने का निश्चय किया। उन्होंने उस बच्चे को एक कमरे में और दूसरे एक व्यक्ति को दूसरे कमरे में−बैठाकर उसे कई भाषायें बदल−बदल कर लगातार बोलने को कहा दोनों कमरों से माइक एक सामने के कमरे में लाकर रखे गये जिसमें डॉ0 फर्निनेंड स्वयं बैठे, प्रयोग प्रारम्भ हुआ तो वस्तुतः वे अत्यन्त आश्चर्य चकित रह गये कि लड़का एक दो भाषाओं का ज्ञाता हो सकता है पर वह तो किसी को भी लाकर खड़ा करने से उसी की भाषा दोहरा देता था इसका अर्थ यह हुआ कि बिना पढ़े हर विद्या में निष्णात होना। ऐसा किसी भी पार्थिव या भौतिक सिद्धांत से सम्भव नहीं। उन्होंने माना कि स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म की शक्तियाँ और क्षमतायें अधिक अलौकिक है जो भौतिकी, बायोलॉजी सब से परे। इन साक्षियों में तो उस तत्व का मृत्यु के उपरान्त भी जीवित बने रहना सम्भव है क्योंकि किसी भी भूत की जानकारी का अर्थ ज्ञाता की उपस्थिति अनिवार्य है। अभी तक में इन बातों को इमेजिनरी (काल्पनिक) मानता था किन्तु अब उनकी वास्तविकता पर कतई सन्देह नहीं रहा।
जीवशास्त्री कैरिंग्टन ने लिखा है जब तक मैं इस घटना से दूर था तब तक धर्म और अध्यात्म के प्रति मेरी मान्यतायें बड़ी निर्जीव और निर्बल थीं किन्तु (उक्त घटना का उल्लेख) जब मैं अपनी प्रयोगशाला से लौट रहा था मुझे एकाएक सामने से आता हुआ मेरा मित्र इलियट दिखाई दिया, मैं सहमा, आंखें मलीं कि कहीं भ्रम तो नहीं हो रहा। इलियट की मृत्यु हुये 3 माह हो चुके मैं उसकी शव यात्रा में स्वयं रहा हूँ और इन्हीं आँखों से दफन होता देखा है कि फिर इलियट यहाँ−वैज्ञानिक के नाते मैं भ्रम पर ही विश्वास कर रहा था मुझे डर नहीं था−तभी क्षीण सी आवाज सुनाई दी−“मित्र! मेरी पत्नी आर्थिक तंगी का जीवन जी रही है मैंने उसके लिये एक लाख डालर जोड़कर अमुक तहखाने में रखे हैं जिसकी चाभी गुप्त रूप से अमुक स्थान पर छिपी है वह आप उसे चुपचाप बता दें आप से अधिक विश्वास पात्र कोई और नहीं इसी लिए यह बात आप तक पहुँचा रहा हूँ।” इन्हीं शब्दों के साथ ऐसा लगा जैसे पानी में पड़ने वाला नंगा प्रतिबिम्ब लहर आ जाने से हौले−हौले ओझल हो रहा हो मैंने उस सूक्ष्म अस्तित्व को अनुभव किया, सुना, स्पर्श किया और वह मेरे सामने ही घुल गया (मेल्टेड) इसे भ्रम (इलूजन) भी मान लेता पर उन कही हुई बातों की सत्यता पर अविश्वास करूं तो अपने आपसे धोखा होगा। लगता है इससे प्राणि शास्त्र में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है। पदार्थ का शक्ति और शक्ति का पदार्थ में इच्छाभूत परिवर्तन व पंजीकरण की इस घटना से तो यही लगता है कि अतीन्द्रिय तत्व बहुत अधिक समर्थ हैं। इसमें मरणोत्तर जीवन तो प्रमाणित होता ही है। नैतिकता का धर्म सम्मत सिद्धान्त पुष्ट होता है। आज भौतिकता की बाढ़ आ गई हैं। उसने नैतिकता को मानवीय दुर्बलता माना है, पर अब यह लगता है कि मनुष्य की मनुष्यता नीति सदाचार और उसकी परमार्थ परायणता आदि शाश्वत महत्व रखते हैं इनको व्यावहारिक और सामयिक लाभ समाज की सुख, शान्ति और व्यवस्था के रूप में गौण है, पारलौकिक जीवन में उनका मूल्य और महत्व और अधिक सिद्ध होता है।
कैबटाउन में एक बिल्डिंग इंजीनियर वान वान्डे के बारे में कहा जाता है कि समय उनकी इच्छा से चलता है। ज्ञात नहीं रहस्य क्या है किन्तु वे सोने जा रहे हों और आप कहें महोदय आप 8 बजे सो रहे हैं पर जगिये आप ठीक बारह बजे सात मिनट उनसठ सैकिंड पर और आप घड़ी लेकर बैठ जाइये क्या मजाल कि उनकी नींद एक भी सैकिण्ड आगे पीछे टूटे। परीक्षण के लिये उन्हें कई दिनों तक किसी से न तो मिलने दिया गया, उनकी घड़ी भी छीन ली गई। एक टूटी घड़ी रख कर उसकी चाभी घुमाकर 8 बजे का समय लगा दिया गया और उन्हें प्रातःकाल 8 बजे सोने को कहा गया और सायंकाल 8 बजे जगने का आग्रह किया गया। और तब भी जब उनकी नींद टूटी तो लोग आश्चर्य चकित रह गये कि ठीक 8 ही बजे थे।
बिना किसी संकेत और वह भी सुषुप्त अवस्था में समय का ज्ञान इस बात का प्रमाण है कि उस स्थिति में भी घटनाएँ चलती रहती हैं क्योंकि समय कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं वह घटनाओं की सापेक्ष माप मात्र है।
डॉ0 केमिले फ्लेमेरियन लिखते हैं बिना इन्द्रिय सहयोग दूर से कार्य करने की क्षमता से ओत प्रोत होना आश्चर्यजनक बात हैं। यह नहीं छिपाना चाहिये कि उपरोक्त प्रकार की घटनायें अज्ञात लोक में प्रवेश कराती हैं इस संदर्भ में और विस्तृत जानकारियों की अपेक्षा है ताकि आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व एवं उसकी अलौकिक क्षमताओं की और भी अधिक सार्थक जानकारियाँ उपलब्ध हो सकें।
श्रद्धा और विश्वास के द्वारा आत्मा और परमात्मा की अनुभूति किन्हीं संस्कारवान् आत्माओं को पूर्व जन्मों में की गई साधनाओं के पुण्य स्वरूप हो सकती है किन्तु सर्वसाधारण उसका लाभ नहीं ले सकता इस लिये भारतीय तत्वदर्शियों ने क्रिया विज्ञान की खोज की जिसे “योग साधना” कहते हैं भले ही, आत्म सत्ता अशरीरी अतीन्द्रिय चैतन्य मन से भी परे हो पर अन्ततः वह अपने भौतिक शरीर में भी तो निवास करती है। दूर के देव−दर्शन दुर्लभ हो सकते हैं। किन्तु अपने ही भीतर बैठे अधिदेव की प्राप्ति असम्भव कैसे हो सकती है? ध्यान, धारणा, प्रत्याहार, प्राणायाम, मनोलय आदि यौगिक क्रियाओं से क्रमशः शरीर की चंचलता पर विजय, मन की एकाग्रता, प्राणों पर नियन्त्रण करते हुए अपन अहंकार उसी तत्व में घुल जाता है और “तत्वमसि” अर्थात् जो तत्व वह है वही मैं हूँ के रूप में विकसित हो जाता है।
भौतिकीय चेतना से परे चेतना के अस्तित्व को इन वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है और माना है कि वह सर्व समर्थ सत्ता है दूर−दर्शन, दूर अनुभूति विचार संचालन जैसी सामर्थ्य उसके नन्हे−नन्हे खेल हैं। वह इन सबसे भी अधिक अति समर्थ एवं सर्वव्यापी चेतना है। उसे देखे सुने और उसी को प्राप्त कर अपनी क्षुद्रता मिटायें यही मनुष्य जीवन का ध्येय है उसे प्राप्त करने में ही उसकी सार्थकता है।
----***----