Magazine - Year 1978 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सिर दर्द का सिर दर्द
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सिर दर्द का सबसे बड़ा कारण चिकित्सा शास्त्र में पेट के अपच को माना है। बिना हजम हुआ भोजन आँतों में विष उत्पन्न करता है। जब हमारा शरीर उसे बाहर निकाल सकने में सफल नहीं होता तो उस विकृति की प्रतिक्रिया ज्ञान−तन्तुओं के माध्यम पर आक्रमण बोल देती है और वहाँ दर्द होने लगता है।
ऋतु प्रभाव, काम का दबाव, तनाव, क्रोध, चिन्ता, जुकाम, बुखार, अनिद्रा, आँखों की कमजोरी जैसे छुट−पुट कारण भी सिर दर्द के हो सकते हैं पर सबसे बड़ा कारण अपच ही है ‘आँत भारी तो माथ भारी’ की पुरानी उक्ति विज्ञान के पर्यवेक्षण से भी नितान्त सही सिद्ध होती है। गुर्दे या आँतों द्वारा जब सफाई का ठीक तरह पूरा नहीं होता तो रक्त में टौक्सिन नाम का हानिकारक तत्व बढ़ जाता है और उसके आक्रमण से सिर दर्द होने लगता है।
दर्द यों शरीर के अन्य अवयवों में भी होता है, पर अधिक समय तक तेज अथवा हलके सिर दर्द से मस्तिष्क को ही अधिक पीड़ित रहना पड़ता है। गठिया, जोड़ों का दर्द भी हो जाते हैं। मांसपेशियों की जकड़न नसों की अकड़न, चोट, फोड़ा, सूजन भी दर्द का कारण होती हैं। पर मनुष्य जाति को इन सबसे मिलाकर जितनी पीड़ा सहनी पड़ती है उनकी व्यथा अकेला सिर दर्द ही उत्पन्न करता रहता है। सस्ते उपचार में एस्प्रो—इर्गेंटेमाइन टार्ट रेट जैसी दवायें काम में आती हैं। मारफीन का प्रचलन अधिक दर्द होने पर किया जाता है। ऐसे ही अन्य संज्ञा शून्य कर देने वाले रसायन हैं जो दर्द को अच्छा तो नहीं, करते पीड़ित स्थान के ज्ञान तन्तुओं को मूर्छित करके कष्ट की अनुभूति न कर सकने की स्थिति में पहुँचा देते हैं। इस प्रयोजन के लिए इन्जेक्शन के रूप में नोवोक्रेन एवं प्रोकेन का उपयोग किया जाता है। थोड़ी हेरा−फेरी के साथ अलग−अलग नामों से संज्ञा शून्य करने वाली दवाएँ बनाते रहते हैं।
अन्य दर्दों के साथ−साथ सिर दर्द सम्बन्धी कारणों को खोजने में संसार के मूर्धन्य शरीर शास्त्रियों ने बहुत प्रयत्न किये हैं। इन शोधकर्ताओं में पीटर वर्ग विश्वविद्यालय ने पृथक से दर्द अनुसन्धान विभाग खड़ा किया है। शिकागो के इलिनोइस अस्पताल के पीड़ा चिकित्सक डॉ. एलन विली ने अपने अनुभवों का विस्तृत विवरण प्रकाशित कराया है। द्वितीय विश्व युद्ध के घायलों के बीच अपना अधिकांश समय लगाने वाले डॉ. हेनरी बीचर, कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के दर्द विशेषज्ञ डॉ. रिचार्ड, वाशिंगटन विद्यालय के मनोविज्ञानी प्रो. विलबर्ट फोर्डाइस, गैसाच्यूसेट्स अस्पताल के सर्जन जान वारेन, दन्त विज्ञानी विलियम थामस ग्रीन, शोध विज्ञानी गिर्ल्वट एवट जैसे विश्वविख्यात शरीर शास्त्रियों का कथन है कि ज्ञान−तन्तुओं और मस्तिष्क के बीच चल रहे सामान्य आदान−प्रदान में जब जहाँ अवरोध उत्पन्न होता है तब वहाँ दर्द अनुभव होने लगता है। चूँकि सिर समस्त नाड़ी संस्थानों का विद्युत संवाहक केन्द्र है, अस्तु शरीर भर की गड़बड़ियों की शिकायतें वहीं जमा होने लगती हैं और उस जहाँ−तहाँ से एकत्रित कचरे का कष्ट सिर को भुगतना पड़ता है। दर्द की परिभाषाओं में ‘घायल स्नायुओं की चीख’ अधिक उपयुक्त बैठती है और इस घायल होने में बाहरी आघातों से भी अधिक कारण भीतरी विषों का संचय पाया जाता है। इस विषाक्तता का उद्भव जितना अपच से होता है उतना और किसी कारण नहीं। अपच में जितना दोष, स्वाद, लिप्सा से प्रेरित होकर अधिक खा जाने का होता है उससे भी अधिक खाद्य वस्तुओं की गरिष्ठता, उत्तेजकता एवं अनुपयुक्तता की अधिकता का होना पाया है।
सच कहा जाये तो न केवल सिर दर्द अपितु शरीर के सारे उपद्रव ही पेट के विजातीय द्रव्य या मल के कारण उठ खड़े होते हैं। पाचन संस्थान का स्वस्थ, सशक्त होना आरोग्य की कुंजी है उपवास उसका प्रधान उपचार है इसीलिये उपवासों की अपने देश में लम्बी परम्परा चली आ रही है। उसे हर व्यक्ति अपना ले तो न केवल सिर दर्द अपितु शेष बीमारियाँ भी जाती रहें।
----***----