Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मरणासन्न काल के अनुभव
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ब्रिटिश सोसाइटी फॉर साइकिक रिसर्च द्वारा योरोप भर के अस्पतालों में मरणासन्न रोगियों की अन्तिम मनोदशा का परिचय प्राप्त करने के लिए लम्बी अवधि तक खोजबीन की गयी है। उनमें से प्रायः आधे ऐसे थे, जिन्हें भय या पीड़ा ने आक्रान्त कर रखा था। दिल की धड़कन अनियमित चल रही थी और साँस लेने में कठिनाई अनुभव हो रही थी। उन्हें अपने पराये का कुछ होश न था। ऐसी मनोदशा में भी मानों गहरे पानी में डुबकी लगाई हुई हो, ऐसी स्थिति का अनुभव उन्हें हो रहा है, इसका अनुमान होठों की फड़कन, साँस लेते समय के नथुने एवं कभी-कभी हिलती-जुलती पलकों को देखकर लगाया जाता था। हाथ-पैरों की हलचल भी यह बताती थी कि इन्हें बेचैनी की स्थिति घेरे हुए है।
इतने पर भी लगभग आधे रोगी ऐसे थे जिन्हें मृत्यु की गोद में पहुँचते-पहुँचते एक दो दिन लग गए। उनकी जीवनी शक्ति भी क्षीण हो गई थी और काय संचालन के लिए जितनी सामर्थ्य चाहिए, उतनी जीव-कोशों में रह नहीं गई थी। दिल बैठता जा रहा था, कमजोरी का दौर बढ़ रहा था। किन्तु इतने पर भी मस्तिष्क साथ दे रहा था। वे कुछ अनुभव करते थे, ऐसा जिसे अवास्तविक और विलक्षण ही कहा जा सकता था।
ऐसे मरणासन्न रोगियों को प्रायः कुछ ही महीनों पूर्व मरे सम्बन्धियों या मित्रों की उपस्थिति समीप दीखती थी। साथ ही उनकी हलचल भी।
ऐसे अदृश्य दर्शन उन रोगियों को ही होते रहे जो मरणासन्न थे। उनसे जो कहा गया, वैसा अनुभव समीप उपस्थित लोगों में से किसी ने नहीं किया। इसलिए रोगियों के कथनों को ही सही मानना पड़ेगा।
जो दिवंगत आत्माऐं दीख पड़ीं उन सब पे परस्पर सहानुभूति का भाव था और वे सेवा भाव दिखा रही थीं। साथ ही यह भी कह रही थीं कि “हम तुम्हें साथ ले चलने के लिए आई हैं। हमें अकेलापन अच्छा नहीं लगता। तुम्हारे साथ रहने से बड़ा मजा आएगा।”
इस प्रकार की अनुभूतियाँ व्यक्त करने वालों में स्त्रियाँ अधिक थीं, पुरुष कम। बालकों में या बाल बुद्धि वालों में वे जीवित साथियों को ही देखने की इच्छा प्रकट करती पाई गईं।
जो ऐसे रोगी देर तक अस्पतालों में रह रहे थे, उन्हें उन नर्सों, डाक्टरों, कर्मचारियों की समीपता दीखती रही जो इसी बीच परलोक सिधार गए थे।
अनुसंधानकर्ताओं के निष्कर्ष अभिमत दोनों ही हैं। एक यह कि अचेतन मस्तिष्क की पूर्व स्मृतियाँ जागृत हुई हों। उनके मरण की बात भी ध्यान में हो। शरीर की आन्तरिक क्षीणता मृत्यु की सम्भावना का परिचय देती हों। उन सब बातों के सम्मिश्रण से एक ऐसा काल्पनिक खाका बन गया हो, जो उन्हें वास्तविकता जैसा प्रतीत होता रहता है।
दूसरी सम्भावना यह भी व्यक्त की गई है कि दिवंगत आत्माओं की अदृश्य लोक में उपस्थिति यह कराती है कि अमुक साथी मरने की स्थिति के निकट आ पहुँचा अतएव पूर्व सम्बन्धी से प्रेरित-आकर्षित होकर वे निकट चली आती हों और उनके दुःख में हिस्सा बँटाती हुईं, सहानुभूति प्रकट करती हों।
दार्शनिक प्रकृति के प्रौढ़ विचारधारा वालों ने अपने चारों ओर प्रकाश, सुगन्ध एवं हर्षोल्लास का अनुभव किया है और उस सुखद माहौल में जल्दी प्रवेश करने की उत्सुकता प्रकट की है जबकि भावुकता विहीन, रूखे स्वभाव के लोगों ने मरणकाल को एक अनिश्चितता की स्थिति में आंका है। इन सब बातों पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य का संचित स्वभाव ही मरने के समय अनेक प्रकार के अनुभव कराता है।