Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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मातृ वंदना (Kavita)
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आज कर दो कृपा, मातु वरदायिनी। स्वच्छ-शालीन, अंतःकरण हो सके। बुद्धि दो, हम सुपथ का, चयन कर सकें, फिसलनों पर स्वयं, संतुलन कर सकें, खाइयों के निकट हम, संभल कर चलें, छाँह अमराइयों की, न हमको छलें, विघ्न-बाधा-ढलानों, भरे मार्ग पर, एक पल भी न डगमग, चरण हो सके। मातु! इतना विपुल धन, न देना हमें, स्वार्थ से पूर्ण जीवन, न देना हमें, प्राप्त कर हम जिसे, भूल जायें विनय, लोक कल्याण को, मिल न पाये समय, मोह-संकीर्णता से, न मन भर सके, स्वार्थ का फिर नहीं, संक्रमण हो सके। दृष्टि में प्यार हो, पर प्रलोभन न हो, जिंदगी में जरा भी, प्रदर्शन न हो, प्यार से छलछलाता, हृदय दो हमें, कंठ से सौम्यता दो, विनय दो हमें, भाव संवेदनापूर्ण, व्यवहार से, विश्व का स्वस्थ, वातावरण हो सके। माँ! हमें विश्व-परिवार, का भाव दो, लोकहित के लिए, नित नया चाव दो, द्वेष-दुर्भावना से, न हम भर सकें, दूसरों की गहन पीर, कम कर सकें, कर्म से आत्मसंतोष, पायें सदा, आचरण का सहज, अनुकरण हो सके।
-शचीन्द्र भटनागर