Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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मृत्यु का डर अज्ञानियों और आतंकवादी कुकर्मियों को ही लगता है (Kahani)
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कर्कटि नाम की एक राक्षसी को क्षुधा बहुत तीव्र थी। वह समय-कुसमय, बाल-वृद्ध किसी को भी भक्षण कर जाती थी। फिर भी भूखी रहती थी। उसने अपनी कठिनाई ब्रह्माजी से कही। उनने अनुग्रहपूर्वक उसे सुई जैसा छोटा बना दिया। तनिक सी रक्त की बूँद पी जाने से उसकी तृप्ति हो जाती। इस पर मृतकों के ढेर जमा होने लगे और दुर्गंध फैलने लगी। कर्कटि ने फिर इस अव्यवस्था की चर्चा ब्रह्माजी से कीं। उन्होंने उसका पुरातन रूप बना दिया। साथ ही यह भी कहा कि वह कुछ प्रश्न पूछकर हर किसी से यह जान लिया करे कि वह मरण योग्य है भी या नहीं? जो मृत्यु कं मुख में जाने योग्य हो, उन्हीं को खाया कर। किसी आत्मवेत्ता पर हाथ न डालना, क्योंकि अमर जीवन पर विश्वास करने के कारण वो शरीर छोड़ने पर भी नहीं मर सकते।
कर्कटि वैसा ही करती। आत्मा का अमरत्व जिन्हें विदित होता, वे उसकी हंसी उड़ाकर प्रसन्नतापूर्वक शरीर त्याग देते। जिन्हें अज्ञान का नागपाश जकड़े होता, वही मृत्यु के समय बिलखते, उन्हीं का माँस कर्कटि को स्वादिष्ट लगता। निदान यह सुँदर नर्तकी का भेष बनाकर राजमहल में चली गई। जिन कुकर्मियों को प्राण दंड मिलता, उनसे पेट भरती और जो उसके नृत्य-गायन पर मुग्ध हो जाते, उन्हें चूसकर खोखला कर देती। राजा की सभा में जो ज्ञानवान आते, उनसे भी वह दूर रहती।
मृत्यु का डर अज्ञानियों और आतंकवादी कुकर्मियों को ही लगता है।
*समाप्त*