Magazine - Year 1994 - October 1994
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
क्या बुढ़ापा रोका जा सकता है?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
वार्धक्य की गति को कम किया जा सकता है क्या? यदि हाँ, तो वह कौन-से तरीके हो सकते हैं, जिनसे उसको नियंत्रित कर पाना संभव है? विज्ञान जगत में आज इस लक्ष्य को लेकर नित नई-नई शोधें हो रही हैं और नये-नये उपाय बताये जा रहे हैं।
इनकी चर्चा से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि आखिर बुढ़ापा है क्या? शरीर शास्त्र के शब्दों में कहें, तो कोशिकाओं की अक्षमता ही वृद्धावस्था है। अशक्त कोशिकाओं के कारण शरीर तंत्र में ऐसे लक्षण उभरने लगते हैं, जो अधिक आयु वाले वृद्धों से मिलते-जुलते हैं। इसी कारण सामान्य बोल-चाल की भाषा में उन सब को इस श्रेणी में रख दिया जाता है जिसमें ऐसा कोई एक लक्षण भी प्रकट हो जाता है।
विकास की दृष्टि से शरीर में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं एक वह जिनमें मात्र आकार में वृद्धि होती है, दूसरी वे, जिनमें विभाजन होता है। माँसपेशियाँ, मस्तिष्क आदि कुछ ऐसे अवयव हैं, जिनमें केवल आयतन में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे अंगों के साथ कोई दुर्घटना घट जाय, तो वे कमजोर पड़ने लगते हैं, जबकि रक्त, त्वचा आदि ऐसे हिस्से हैं, जिनमें बराबर कोश-विभाजन चलता रहता है। इस क्रम में थोड़े-थोड़े समय में उसका नवीनीकरण होता रहता है। यह क्रिया जीवन के अंतिम दिनों तक चलती रहती है।
गड़बड़ी यहीं पैदा होती है। उम्र के साथ-साथ कोशाणुओं की अनुकृति पैदा करने वाला उसका तंत्र लड़खड़ाने लगता है, जिससे मातृ कोशाओं जितने समर्थ कोशाणु बाद में पैदा नहीं हो पाते। इतना ही नहीं, समय के साथ-साथ वे और कमजोर होते जाते हैं। प्रौढ़ावस्था के त्वचा के कोशाणु अपने यौवनकाल से दुर्बल पाये जाते हैं। उनमें पहले जैसी लोच-लचक का अभाव देखा जाता है। इसी प्रकार तंत्रिका सेल्स अपनी संवेदनशीलता खोने लगती हैं, परिणामस्वरूप संपूर्ण शरीर रोगों के प्रति अधिक सुग्राहक बन जाता है और दबाव, तनाव, चोट आदि झेलने और सहने की उसकी शक्ति क्षीण पड़ जाती है। इस स्थिति में कई बार कोशाणु इतने निर्बल पैदा होने लगते हैं कि शरीर तंत्र सहज में उन्हें स्वीकार नहीं कर पाता। कई मौकों में वे अस्वीकार कर दिये जाते हैं। यही वार्धक्य है।
इसे विलंबित करने के क्रम में विशेषज्ञों ने कई प्रकार के सुझाव दिये हैं। एक सलाह के अनुसार यदि वृद्धों में रस-स्रावों के स्तर को युवा जितना बनाये रखा जाय, तो कोशाणुओं के नवीनीकरण की क्रिया सही रीति से लंबे काल तक जारी रह सकती है। हारमोन इंजेक्शन के माध्यम से काया में पहुँचाये जा सकते हैं और इस तरह शरीर क्रिया को सशक्त रखा जा सकता है, पर कब, कौन-सा हारमोन कितनी मात्रा में दिया जाय-यह पता लग पाना अत्यंत कठिन है, इसलिए व्यावहारिकता की दृष्टि से यह लगभग महत्वहीन है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शरीरशास्त्री जेम्स एम. बेरी एवं सहयोगियों का विचार था कि काया का नवीनीकरण तंत्र रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण क्षतिग्रस्त हो जाता है यदि इसे रोका जा सके, तो वृद्धावस्था को दूर धकेला जा सकना संभव है। उन्होंने शरीर के अंदर की इन प्रतिक्रियाओं को निरस्त करने और प्रक्रिया को पलटने के लिए कुछ चूहों पर प्रयोग किया। उन्हें बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद्य खिलाये गये। इससे उनके रक्त में ऑक्सीजन का परिमाण घट गया, जबकि दूसरों को एक विशिष्ट प्रकार का रसायन यकृत के उद्दीपन के लिए दिया गया। इस प्रयोग का परिणाम यद्यपि कुछ चूहों में उत्साहवर्धक देखा गया, किंतु परिणाम के कारणों का सही-सही पता नहीं चल सका।
इस क्रम में अधिक बुद्धिसंगत और व्यावहारिक सलाह फिलाडेल्फिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दी। दल के प्रमुख डॉ. किप केल्सो का कहना था कि यदि संतुलित भोजन नियमित रूप से लिया जाता रहे तो काफी हद तक बुढ़ापे को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रयोग के दौरान बिल्लियों के एक समूह को ऐसा भोजन दिया गया, जिसमें सभी तत्वों की आवश्यक मात्रा निश्चित परिमाण में थी। केवल कैलोरी की मात्रा घटा कर सामान्य स्तर से 3/5 वाँ हिस्सा रहने दिया गया। दूसरे दल के भोजन में सभी तत्वों की उपस्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया। उनका पेट भर सके, ऐसा कुछ भी आहार दे दिया जाता। कुछ काल पश्चात् दोनों समूहों में शारीरिक अंतर प्रत्यक्ष हो गया। जिन बिल्लियों को संतुलित भोजन मिल रहा था, वे दूसरे ग्रुप से अधिक चुस्त, स्वस्थ और आयु की दृष्टि से जवान दीख रही थीं, जबकि दूसरे समूह में स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, निस्तेजता, त्वचा का ढीलापन स्पष्ट झलक रहा था। सामान्य रूप से बढ़ती आयु के कारण जो कठिनाइयाँ पैदा होने लगती हैं, वह भी संतुलित भोजन पा रही बिल्लियों में 40 प्रतिशत पीछे शुरू होती देखी गईं। शारीरिक कमजोरी भी उनमें बहुत बाद में आयी, जबकि दूसरा दल बहुत जल्द ही दुर्बल प्रतीत होने लगा था।
इस आधार पर अनुसंधानकर्त्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि मनुष्यों के मामलों में उनकी वर्तमान आयु को लगभग दुगुना किया जा सकता है। इसकी पुष्टि सोवियत संघ के कजाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के कुछ हिस्सों में निवास करने वाले उन लोगों से हो जाती है, जो आयु के सौ वर्ष पूरे करते देखे जाते हैं। उनके आहार के बारे में शोध दल का कहना है कि वे पूर्णतः शाकाहारी हैं और भोजन में उन सभी आवश्यक तत्वों का समावेश है, जो एक संतुलित भोजन के लिए जरूरी होता है। इस अध्ययन के बाद उनकी लंबी वय संबंधी रहस्य से पर्दा उठ गया, जिसके बारे में अब तक यही मान्यता थी कि रूसियों की लंबी उम्र उस क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जलवायु के कारण है।
यह हर किसी के लिए संभव है कि वह अपने आहार को संतुलित बनाकर अपने को दीर्घायु बना ले। आज की विषम परिस्थितियों और विकट स्थितियों से यदि बचा जा सकना संभव हो, तो यह मार्ग प्रत्येक के लिए खुला है। इसे अपनाकर कोई भी वार्धक्य को दूर भगा सकता है और एक लंबी, सक्रिय जिंदगी जी सकता है।