Magazine - Year 1994 - October 1994
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Language: HINDI
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जब आसमान से हुई रुधिर की वृष्टि
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मनुष्य सृष्टि का बुद्धिमान प्राणी है। उसमें बुद्धि जिस भूमिका में पहुँची और जिस स्तर पर प्रकट हुई है, उसे सर्वोपरि कहा जा सकता है। इतने पर भी सच यह है कि उसका अंत यहीं नहीं। चेतना स्वर का उसका विकास अभी बाकी है। आगे वही संपन्न होना है। इस धरातल में पहुँच कर बुद्धि वह सब जान-समझ सकेगी, जो अभी उसके लिए अविज्ञात स्तर के रहस्य बने हुए हैं। फिर उस प्रकार की शिकायत की गुंजाइश न रह सकेगी, जैसी विचित्र वर्षा के संदर्भ में की जाती रही है कि प्रकृति ने कहीं कुछ तो कहीं कुछ की वर्षा क्यों करायी?
घटना लुसियाना की है। सन् 1967 का मार्च महीना था। अचानक शुभ आकाश से श्वेत चूर्ण की बरसात होने लगी। यह अनोखी वर्षा लाल नदी के तट से 60 मील लंबी और 5 मील चौड़ी पट्टी में करीब आधे घंटे तक होती रही। मौसम अत्यंत ठंडा था, इसलिए लोगों ने समझा कि शायद हिमपात हो रहा है, किंतु जब उसे हाथों में लिया गया, तो बर्फ से कोई भिन्न पदार्थ मालूम पड़ा। उसे चखने से ही यह ज्ञात हो सका कि वह और कुछ नहीं, वरन् विशुद्ध नमक है। इतने उच्च स्तर का नमक उस क्षेत्र के आकाश में कहाँ से आ गया? यह अब तक अविज्ञात है। इस संपूर्ण घटना का विस्तृत विवरण तत्कालीन समय के दैनिक पत्र “न्यू ओरलियन्स टाइम्स” में विस्तारपूर्वक छपा था।
मिलती-जुलती घटना नापा, कैलीफोर्निया में इससे दस वर्ष पूर्व घटी थी। “रिपब्लिकन” पत्र का संपादक इसका ब्यौरा देते हुए लिखता है कि उसके लिए यह बड़ा ही विलक्षण अनुभव था। एक दिन कार से वह नापा से कैलीफोर्निया जा रहा था। धूप खिली हुई थी और आसमान निरभ्र था। वह एक मील हो आगे बढ़ा था कि अकस्मात् छोटे पत्थरों की बरसात होने लगी। आरंभ में लगा कि ओले पड़ रहे हैं, पर बादल रहित गगन से प्रखर धूप में ओले गिरते उसने कभी देखा-सुना नहीं था, अस्तु गाड़ी सड़क की एक ओर खड़ी कर दी। दरवाजा हल्का-सा खोल कर एक ओला उठाया। पता चला वह ओला नहीं है। उसे सूँघा, तो कुछ मीठी खुशबू आयी। जीभ से लगाया, तो चकित रह गया। वह मिसरी की डली थी। बरसात इतनी सघन हुई थी कि सड़क और संपूर्ण क्षेत्र में इसकी एक पतली पर्त बिछा गई थी। विशेषज्ञ अब तक इस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठा सके कि आखिर आकाश में मिसरी कैसे बनी और अचानक किस प्रकार गिरने लगी?
ऊपर से कीचड़ गिरने लगे, तो इसे क्या कहा जाय? बारिश? या प्रकृति का उपहास? जो भी कह लें, पर एक ऐसी ही घटना नेवादा, अमरीका में सन् 1949 में घटी थी। इस बौछार के कारण स्टोन हाउस, नेवादा के निकट एक ट्रेन को घंटों रुक जाना पड़ा था। कीचड़ इतनी बड़ी मात्रा में गिरी थी, कि रेल-लाइन में इसकी मोटी तह पड़ गई थी। इस तह के कारण ट्रेन, लाइन से कहीं फिसल न जाय, इसलिए उसे तब तक रोक दिया गया, जब तक उसकी सफाई न हो गई। संपूर्ण गाड़ी और इंजन देखने से ऐसे लग रहे थे, मानों वह कहीं पंक में से निकल कर आये हों। बरसात लगभग एक घंटे तक जारी रही। ऐसी ही दो बरसातें सन् 1960 और 61 में क्रमशः आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में प्रकाश में आयी थीं।
रक्त-माँस की बारिश कदाचित् सबसे चौंकाने वाली है, पर यह सत्य है कि ऐसी ही अद्भुत वर्षा टेनीसी, लेबनान में सन् 1941 में हुई थी। एक स्थानीय चिकित्सक डॉ॰ डब्ल्यू॰ पी॰ सेली ने इस लोमहर्षक घटना का विवरण प्रस्तुत करते हुए लिखा है-लगभग 12 बजे दिन का समय था। लेबनान से करीब पाँच मील पूरब स्थित टेनेसी के आकाश में लाल रंग के बादल का एक टुकड़ा दिखाई पड़ा। इस छोटे से रक्त वर्ण टुकड़े के अतिरिक्त आसमान बिलकुल साफ था। देखते ही देखते उस रक्ताभ टुकड़े से खून और माँस के लोथड़े नीचे गिरने लगे। यह अनूठी खूनी बौछार करीब आधे मील लंबे और 75 गज चौड़े भूभाग में हुई। जिस क्षेत्र में माँस और रक्त गिरे, वहाँ अधिकाँश हिस्से में तम्बाकू के खेत थे। यहाँ से कुछ नमूना इकट्ठा कर डॉ॰ सेली ने उसे अपने एक मित्र प्रोफेसर डॉ॰ ट्रुस्ट के पास भेज दिया और उनके विश्लेषण का अनुरोध किया। डॉ॰ ट्रुस्ट एक रसायन वेत्ता थे। रासायनिक विश्लेषण में वह सब खून और माँस ही साबित हुए, पर ठीक-ठीक यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका कि वे किस जंतु के हैं। डॉ॰ सेली के अनुसार रक्त-माँस इतने गिरे थे, जिसे सैंकड़ों पौण्ड में आँका जा सके।
इस प्रकार की दूसरी घटना क्लोवरली वर्जीनिया की है। 1950 का गुडफ्राइडे का दिन था। शाम के चार बजे थे। जी॰ डब्ल्यू बैसेट के फार्म में मजदूर काम कर रहे थे तभी ठीक ऊपर आकाश में उन्हें एक अरुणिम बादल का खंड दिखाई पड़ा। लोग अभी उसके बारे में विचार ही कर रहे थे, कि उसने अपना रहस्य खोल दिया। रक्त और माँस ओले और पानी की बूँदों की तरह उनके ऊपर गिरने लगे। माँस का निरीक्षण किया गया, तो वह बिलकुल ताजा प्रतीत हुआ। टुकड़ों में यकृत, फेफड़े, हृदय के भाग सम्मिलित थे।
एक अन्य रक्त वर्षा उसी वर्ष फरवरी महीने में सिम्पसन काउण्टी, उत्तरी कैरोलीना में देखी गई थी। दोनों प्रकार की बौछारों में समानता होते हुए भी एक भिन्नता यह थी कि क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका भूभाग कहीं अधिक विस्तृत था उल्लेखों के अनुसार करीब 30 फुट चौड़े और नौ सौ फुट लंबे दायरे में यह वृष्टि हुई थी। इसमें भी खून के साथ-साथ माँस के टुकड़ों में मस्तिष्क, गुर्दे, आँत आदि आँतरिक अवयव उपस्थित थे।
इन सभी प्रकार की रुधिर-वृष्टि में वास्तविक कारण किसी का भी नहीं जाना जा सका। मिलती-जुलती एक घटना सिनसिनैटी, ओहियो की है। जुलाई 1955 की एक सुबह एड मुट्ज अपने लाँन की घास की कटाई कर रहा था। वह चाहता था कि सूर्य निकलने से पूर्व अपना काम पूरा कर ले। गर्मी के दिन थे, इसलिए बहुत प्रातः ही उसने अपना काम प्रारंभ कर दिया। कार्य बिलकुल सामान्य ढंग से चल रहा था। इसी बीच वह एक छोटे पेड़ के नीचे उगी कुछ बड़ी घासों को उखाड़ने के लिए झुका। उसने हाथ आगे बढ़ाया ही था कि कुछ लाल रंग की बूँदें हाथ में आ गिरीं। वह गर्म, चिपचिपी और तैलीय थीं। उसका रंग रुधिर से भी अधिक गहरा था। कुछ ही क्षण में उस विचित्र द्रव्य की वहाँ बरसात होने लगी, जिसका घेरा अत्यंत छोटा था। एक मुट्ज ने उस परिधि से बाहर आकर आसमान की ओर देखा, तो ऊपर उसे एक बादल का छोटा खंड दिखाई पड़ा। वह लाल, हरा एवं गुलाबी आभा लिये हुए था। इसी में वह अरुण रंग का पदार्थ झर रहा था। इसी मध्य उसे हाथ में कुछ बिंदुओं पर जलन महसूस होने लगी। देखा, तो वह वही स्थान थे, जहाँ-जहाँ बूँदें पड़ी थीं। तुरंत उसे पानी से धोया। जब वह घर से बाहर आया, तो देखा बादल का यह टुकड़ा गायब हो चुका था। इसी के साथ वह विलक्षण वृष्टि भी थम चुकी थी।
दूसरे दिन प्रातः जब एड मुट्ज उठा, तो उसे यह देख कर घोर आश्चर्य हुआ कि सतालू के सभी छः पेड़ सूख चुके हैं। पत्तियाँ भूरी हो गईं थीं और अधिकाँश झड़ चुकी थीं। फल सिकुड़ कर बीज से जा चिपके थे। पेड़ के तने भी सिकुड़ कर कठोर हो गये थे। पेड़ों के नीचे की घास पोली पड़ गई थी।
बाद में जब इस घटना की जानकारी वैज्ञानिकों को मिली, तो दूसरे दिन वे वहाँ से पत्तियों, फलों, घासों और तनों के नमूने ले गये। यूनाइटेड स्टेट्स एयर फोर्स के विशेषज्ञों ने भी घटना स्थल पर पहुँच कर उसकी जानकारी ली और नमूने एकत्रित किये। नमूनों के विश्लेषण से विज्ञानवेत्ताओं ने यह तो पता लगा लिया कि रक्त वर्ण का पदार्थ एक तीक्ष्ण रसायन था, पर उसके बादल आकाश में कैसे बन गये? यह बता पाने में विफल रहे।
मेघ रहित आकाश से प्रखर धूप में पानी बरसने लगे, तो यह हैरानी की बात है, किंतु इस सदी में ऐसी कई घटनाएँ प्रकाश में आयी हैं। एक प्रकरण लुसियाना, एलेक्जेण्ड्रिया का है। नवम्बर 1958 के दूसरे पहर दिन में एक रोज बैबिंगटन नामक एक महिला ने आफिस से आकर गैरेज में अपनी गाड़ी खड़ी की और पिछले दरवाजे की ओर मुड़ी, तभी उसे ढेर सारी पानी की बूँदों के गिरने की आवाज सुनाई पड़ी। वह लान और मकान की छत पर एक छोटे दायरे में गिर रही थीं। पहले उसने सोचा कि बूंदें पड़ोसी के लान में लगे फव्वारे से आ रही हैं पर पता लगाने पर ज्ञात हुआ कि वहाँ कोई फव्वारा नहीं है। तब उसे पानी की आपूर्ति करने वाले किसी पाइप के फटने का संदेह हुआ। बारीकी से इसकी भी छानबीन कर ली गई, पर संकेत-सूत्र फिर भी हाथ नहीं लगा। धीरे-धीरे बात पूरे मुहल्ले में फैल गई। उपस्थित भीड़ भी यह जानने का प्रयास करने लगी कि आखिर तथ्य क्या है? सभी को यह देखकर भारी अचंभा हुआ कि वर्षा बिलकुल मेघशून्य अंतरिक्ष से हो रही थीं। ढाई घंटे तक यह अद्भुत बौछार सौ वर्ग फुट क्षेत्र में निरंतर गिरती रहीं। इसके बाद अकस्मात् वैसे ही बंद हो गई, जैसे शुरू हुई थी। निकट के इंग्लैंड एयर बेस के विशेषज्ञ और मौसम विभाग के वैज्ञानिकों में से कोई भी इसका उपयुक्त न बता सके।
ऐसे ही एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए 24 अक्टूबर 1886 के अंक में पत्र “न्यूयार्क सन्” लिखता है-उस दिन चेस्टर फील्ड काउण्टी, साउथ कैरोलिना का अंबर एकदम स्वच्छ था। तेज धूप निकली हुई थी। आस-पास कहीं कोई घटा नहीं थी। इस दशा में न जाने कैसे उसके एक निताँत छोटे वृत्त में अनवरत चौदह दिनों तक बरसात होती रही। यह इतनी सघन थी कि छतों पर जल-निकास की विशेष व्यवस्था करनी पड़ी। उल्लेखनीय यह है कि इस संपूर्ण अवधि में मेघों का कहीं नामोनिशान नहीं था।
डासन, जोर्जिया में ऐसी अनहोनी सितंबर 1966 में देखी गई। आकाश बिलकुल साफ था। सूर्य अपना प्रखर प्रकाश बिखेर रहा था, तभी अकस्मात् 25 फुट की छोटी परिधि में तेज बौछार होने लगी, जो लगभग डेढ़ घंटे तक जारी रही। चार्ल्सटन, साउथ कैरोलीना में इसी वर्ष अक्टूबर मास में हुई वर्षा इससे भी विस्मयकारी थी। वहाँ एक ही मकान और उसके बरामदे में एक सप्ताह में चार बार बारिश हुई, जबकि आस-पास का पूरा क्षेत्र सूखा बना रहा। हर बार बादल रहित अंतरिक्ष से तेज धूप में पानी गिरता पाया गया।
यह तो अंबर से खुले में होने वाली वर्षा की चर्चा हुई, पर यदि ऐसा कमरे के भीतर होने लगे, तो इसे क्या कहना चाहिए? अनुमान विज्ञजन स्वयं लगायें। एक इसी प्रकार की विचित्रता का वर्णन जी॰ सैंडरसन ने अपनी पुस्तक “दि मिस्टिरियस वर्ल्ड” में किया है। बात सितंबर 1955 की है। विंडमर, वरमोण्ट निवासी डॉक्टर विलियम वाटरमैन अपनी पत्नी के साथ जिस मकान में पिछले नौ वर्षों से रह रहे थे। वह अचानक रहस्यमय बन गया। एक विहान जब वे सोकर उठे, तो घर के अंदर के प्रत्येक सामान में बड़े-बड़े ओम-बिंदु देखकर विस्मय-विमुग्ध रह गये। उनकी समझ में यह बिलकुल नहीं आया कि कमरा रात में चारों ओर से पूरी तरह बंद रहने के बाद भी यह जल-कण कहाँ से कैसे आये? सोचा शायद कोई खिड़की किसी तरह खुल गई हो, जिससे रात की नम वायु कमरे में प्रवेश करने के कारण ऐसा हुआ हो। सभी वस्तुओं को पोंछा और सुखाया गया, पर यह क्या वे यह देखकर चकित रह गये कि अभी उन्हें सुखाये कुछ ही मिनट बीते होंगे कि फिर से उन पर जल-कण जमने लगे। उन्हें फिर पोंछा गया, किंतु पुनः वही दृश्य। आश्चर्य की बात तो यह थी कि बाहर धूप निकली हुई थी। इस प्रकार की विचित्र बारिश पाँच दिनों तक होती रही, फिर जिस प्रकार अचानक प्रारंभ हुई थी, वैसे ही स्वतः बंद हो गई। इस मध्य वाटरमैन परिवार पड़ोस के दूसरे मकान में टिके रहे और घर का सारा सामान बाहर पड़ा रहा। विशेषज्ञ अंत तक इसका कारण नहीं बता सके और न यह मालूम कर सके कि प्रकृति के नियमों की सर्वथा अवहेलना करते हुए ऐसा क्यों व कैसे हुआ? कहीं ऐसा तो नहीं कि निसर्ग अपने इस कौतुक द्वारा “वाटरमैन” उपनाम की सार्थकता सिद्ध कर रहा हो?
अनुमान चाहे जो लगा दिया जाय, वह अटकल के अतिरिक्त दूसरा कुछ नहीं हो सकता। वास्तविक कारण तो उस बुद्धि द्वारा जाना जा सकता है, जिसमें घटना की गहराई में उतरने की सामर्थ्य हो। ऐसी बुद्धि प्रदान करने की क्षमता एक मात्र अध्यात्म में ही हे। इसका द्वार हर एक के लिए खुला हुआ है। जो भी चेतना को परिष्कृत कर सकने जितना पराक्रम दिखा सके, उनमें से प्रत्येक को यह सुविधा मिली हुई है कि वह अपनी सूक्ष्म बुद्धि द्वारा घटनाओं का यथार्थ कारण जान ले। इससे कम में भौतिक जगत का ही व्यापार चलता है, अध्यात्म जगत का नहीं। वह तो अविज्ञात का जखीरा है, अणोरणीयान् महतोमहीयान् है।