
भय मुक्त (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
तब युद्ध बन्दियों को मृत्युदण्ड सार्वजनिक के हाथ लें तलवार होती थी। और अपराधी निहत्था रहता अथवा कभी-कभी तलवार भी दे दी जाती। अपराधी कुशल योद्धा के वारों को झेलता। दो-चार बार बचाव करता अन्त में उसे कुशल योद्धा के हाथों मरना होता था।
एक बार योद्धा को ऐसे अपराधी से पाला पड़ा जो थोड़ा साहसी था। उसे तलवार थमाकर कहा गया कि इस योद्धा के दस वार झेलने में वह सफल रहा और मरा नहीं तो वह बंधन-मुक्त कर दिया जाएगा। अपराधी समझता था कि वह कोई कुशल तलवार चलाने वाला तो है नहीं मरना तो है ही! वह बोला व्यर्थ प्रदर्शन से क्या लाभ, यों ही मार दे। लोगों ने कहा व्यर्थ क्यों मरना चाहता है मरना ही है तो जूझ मरो। उसे कुछ हिम्मत मिली, साहस बढ़ा। वह योद्धा से भिड़ गया। उसे दाँव-पेंच कुछ आता-जाता नहीं था। उसने दोनों हाथों से प्राणों की बाजी लगाकर जो तलवार चलाई कि कुशल योद्धा की घिग्घी बँध गई और उसका प्रत्येक बार खाली ही नहीं गया प्राण बचाना दूभर हो गया। भीड़ देखकर स्तब्ध थी कि आज इसे क्या हो गया है। इसके वारों से तो आज तक कोई नहीं बचा हैं योद्धा ने भागकर जान बचाई।
मंत्री यह सब देख रहा था। उसने अपराधी से कहा पहले तुम तलवार पकड़ने में आनाकानी कर रहे थे। तुमने तो ऐसी तलवार चलाई कि सबको हैरानी में डाल दिया। बन्दी बोला “मरता क्या न करता” न जाने कौन-सी सत्ता मुझे साहस और सूझ-बूझ स्वयं भी नहीं पता और वह बन्धन मुक्त कर दिया गया
यदि भय मुक्त हो प्राण-पण से कोई भी कार्य किया जाय तो सफलता मिलना सुनिश्चित है।