
गायत्री परिवार द्वारा एक ही समय-एक साथ - उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना
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पदार्थ विज्ञान के विशेषज्ञों ने मनुष्य मात्र के लिए बहुमूल्य सम्पत्तियाँ और सुविधाएँ जुटा दी हैं। यदि इनका विवेकपूर्ण और सद्भावयुक्त उपयोग हो सके तो धरती पर सतयुग जैसी-स्वर्ग परिस्थितियाँ पैदा करना कठिन नहीं है। विवेक और सद्भाव जैसी दिव्य क्षमताएँ मनुष्य के अन्दर जगाने का उत्तरदायित्व अध्यात्म के चेतना विज्ञान के विशेषज्ञों पर आता है। इसके लिए पूज्य गुरुदेव ने सद्विवेक और सद्भाव जगाने का एक ऐसा प्रयोग हमें सौंपा है जो मनुष्य मात्र के लिए विश्व स्तर पर स्वीकार किये जाने योग्य है। गायत्री परिवार उस कार्य को देवसंस्कृति के प्रति आस्थावानों, उदार विचारशीलों के सहयोग से सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रहा है। युग संधि महापुरश्चरण उसी आध्यात्मिक प्रयोग का व्यवस्थित अनुष्ठान है। युग संधि महापुरश्चरण की अर्धपूर्णाहुति के इस वर्ष में सर्व हितकारी प्रयोग की गूँज जन-जन तक, हर मन मस्तिष्क तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
क्या करें कैसे करें-
युग निर्माण योजना-गायत्री परिवार की प्रत्येक संगठित इकाई में सप्ताह में एक बार उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना सहित, अपने द्वारा किये जा रहे सेवा कार्यों पर समीक्षात्मक चर्चा होती है, जिसमें आस्थावान् सदस्य तथा क्षेत्र के सद्भाव सम्पन्न नर-नारी भाग लेते हैं। अब प्रति गुरुवार विभिन्न क्षेत्रों में यह प्रयोग एक ही समय, एक साथ, सारे भारत में की जाने वाली प्रार्थना के रूप में जोड़ दिया जाय।
-उपासना की दृष्टि से विभिन्न विश्वासों मतों, पथों व संप्रदायों के विचारशील व्यक्तियों तथा उस वर्ग के प्रमुखों से संपर्क करके सार्वजनिक स्थानों पर यह सामूहिक प्रार्थना एवं ध्यान प्रयोग अलग से भी सम्पन्न किये कराये जायें।
-जहाँ कहीं भी सज्जनों का कोई भी छोटा-बड़ा सम्मेलन हो, वहाँ 10 मिनट इस सामूहिक प्रार्थना प्रयोग को शामिल करने-कराने के लिए उन्हें सहमत किया जाए।
-प्रारम्भ से 5 मिनट में उन्हें मनुष्य मात्र के लिए उज्ज्वल भविष्य की कामना सहित की जाने वाली इस प्रार्थना का महत्व समझाया जाए।
-उसके बाद निर्धारित प्रार्थना बोल कर उनसे खण्ड-खण्ड में दुहरवायी जाये। यह प्रार्थना इस प्रकार है-
हे सर्वज्ञ! हम सबको सद्बुद्धि प्रदान करें। हे सर्वव्यापी!
मनुष्य मात्र को उज्ज्वल भविष्य के लक्ष्य तक पहुँचाने वाले मार्ग हमें दिखायें।
हे सर्वशक्तिमान्! हमें उज्ज्वल भविष्य के उस मार्ग पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ायें।
हमारा स्वभाव ऐसा बनायें कि-हम आपसे दिव्य प्रेम पायें और दूसरों को बाँटे।
-हम आपसे दिव्य सम्पदाएँ पायें और सब तक पहुँचाएँ।
-इस श्रेष्ठ मार्ग पर हम स्वयं चलें और दूसरों को चलाएँ।
-हम आपके अनुदानों तथा अपनी मेहनत के संयोग से अपने अन्दर देवत्व जगाने और आस-पास स्वर्ग जैसी परिस्थितियाँ बनाने में समर्थ हो सकें।
प्रार्थना बोली जाने के बाद सब लोग 5 मिनट तक मौन प्रार्थना एवं ध्यान करें।
-उक्त प्रार्थना के भाव मन में दुहराते हुए भावना करें कि हम सब की भावशक्ति-संकल्पशक्ति ऊपर अंतरिक्ष में एकत्रित हो रही है। उसके साथ हमारे इष्ट का सर्वशक्तिमान् सत्ता का अनुदान-आशीर्वाद जुड़ रहा है।
-अन्तरिक्ष में एक दिव्य प्रवाह उमड़कर सभी मनुष्यों पर बरस रहा है जिससे उनमें सद्भाव-सद्विवेक एवं सत्कर्म की सामर्थ्य विकसित हो रही है।
इस मौन प्रार्थना एवं ध्यान का रूप सभी को प्रार्थना दुहरवाने से पहले ही समझा दिया जाय।
अन्त में सब लोग हाथ जोड़ कर फिर सस्वर प्रार्थना करें।
विश्वानिदेव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं तन्न आसुव॥
“ हे संसार को उत्पन्न करने वाले, सबको हर बुराई से बचायें और हर अच्छाई से जोड़ते रहें।” इस प्रार्थना के पश्चात् युग निर्माण सत्संकल्प का पाठ कर शाँतिपाठ कराया जाय।
ठस सामूहिक प्रार्थना के अनेक प्रत्यक्ष एवं परोक्ष लाभ होंगे, जैसे-
-युगसंधि महापुरश्चरण साधना में सूक्ष्म जगत से आने वाले दैवी प्रवाह में अभिवृद्धि होगी।
-सभी वर्गों, यज्ञों, सम्प्रदायों के लोग इस प्रयोग के साथ जुड़ेंगे तो उनके जीवन में नया प्रकाश उभरेगा।
-राष्ट्रीय स्तर पर दुर्भावों को मिटाकर सद्भाव एवं सहयोग का वातावरण बनेगा जिसकी कि आज अत्याधिक आवश्यकता है। "