Magazine - Year 2001 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
व्यर्थ का घमंड (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अपने समय की प्रख्यात लेखिका, नारी स्वातंत्र्य की हिमायती मेरी स्टो किशोरावस्था में बहुत सुँदर लगती थी। इसकी चर्चा और प्रशंसा भी बहुत होती थी। इस पर लड़की को गर्व होने लगा और इतराकर चलने लगी। बात पिता को मालूम हुई, तो उन्होंने बेटी को बुलाकर प्यार कहा, “बच्ची, किशोरावस्था का सौंदर्य प्रकृति की देन है। इन अनुदान पर उसी की प्रशंसा होनी चाहिए।”
“तुम्हें गर्व करना हो तो साठ वर्ष की उम्र में शीशा देखकर करना कि तुम उस प्रकृति की देन को लंबे समय तक अक्षुण्ण रखकर अपनी समझदारी का परिचय दे सकी या नहीं।” इस शिक्षा का ही परिणाम था कि अपने अहंकार को गलाकर मेरी स्टो एक समाज सेविका के रूप में विकसित हो सकी।
प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. क्रोनिन बड़े गरीब थे। डॉक्टर बनकर वे धनवान हो गए। किंतु उनका मन पैसा संचय करने में पड़ गया। उनकी पत्नी ने कहा, “हम गरीब ही ठीक थे, कम से कम दिल में दया तो थी अब उसे खोकर कंगाल हो गए।” डॉ. क्रोनिन ने कहा, “सच है, धनी धन से नहीं होते, धनी तो मन से होते हैं। तुमने मुझे सही राह दिखाई, नहीं तो हम ऐसी स्थिति में पहुँच जाते, जहाँ परस्पर स्नेह के सूत्र भी कमजोर पड़ने लगते।”
एक बार एक स्त्री पहाड़ पर धान काट रही थी। इतने में एक दुष्ट मनुष्य उधर आया और उसके साथ दुष्टता करने पर उतारू हो गया पहले तो स्त्री ने आत्मरक्षा के लिए लड़ाई झगड़ा किया, पर शरीर से दुर्बल होने के कारण जब उसे विपत्ति आती दिखी, तो ईश्वर का नाम लेकर पहाड़ से नीचे कूद पड़ी ईश्वर ने उसकी रक्षा की। उसे जरा भी चोट न लगी और प्रसन्नतापूर्वक घर चली गई।
अब उसे अपने सतीत्व का अभिमान हो गया। हर किसी से शेखी मारती कि मैं ऐसी सतवंती हूँ कि पहाड़ से गिरने पर भी मुझे चोट नहीं लगती। पड़ोसी इस बात पर अविश्वास करने लगे और कहा ऐसा ही है, तो चल हमें आँखों के सामने पहाड़ पर से कूद कर दिखा। दूसरे दिन उस स्त्री ने सारे नगर में मुनादी कर दी कि आज मैं पहाड़ पर से कूदकर ससवंती होने का परिचय दूँगी। पूरा गाँव इकट्ठा हो गया और उसके साथ चल पड़ा। वह पहाड़ पर से कूदी तो उसकी एक टाँग टूट गई। मरते-मरते मुश्किल से बची। उस असफलता पर उसे बड़ा दुख हुआ और दिन रात खिन्न रहने लगीं उधर से एक ज्ञानी पुरुष निकले, तो सत्री ने अपनी इस असफलता का कारण पूछा। उन्होंने बताया कि पहली बार तू धर्म की रक्षा के लिए कूदी थी, इसलिए धर्म ने तेरी रक्षा की। दूसरी बात तू अपनी प्रशंसा दिखाने और अभिमान प्रकट करने के उद्देश्य से कूदी, तो यश, कामना और अभिमान ने तेरा पैर तोड़ दिया।”
स्त्री को अपनी भूल मालूम हुई और उसने अपना व्यर्थ का घमंड छोड़ दिया।