Magazine - Year 2001 - Version 2
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Language: HINDI
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‘ध्यान- से मिलते हैं ढेर सारे लाभ
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हम सबके मस्तिष्क से चेतना की तरंगें सतत स्पंदित होती रहती हैं। अज्ञानता एवं निर्दिष्ट लक्ष्य के अभाव में मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं रह पाता और ये बहुमूल्य तरंगें बिखरती रहती है। ध्यान इन ऊर्जा तरंगों के बिखराव को रोककर एक सुनिश्चित केंद्रबिंदु पर केंद्रित करने की कला है। ध्यान द्वारा अपनी इन प्रसुप्त शक्तियों को जाग्रत एवं केंद्रित करके भौतिक और आध्यात्मिक सफलताओं को अर्जित किया जा सकता है।
आज आधुनिकता में रचे-बसे लोग अनिद्रा, तनाव आदि मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं। प्रचलित पद्धतियों से कारगर उपचार के अभाव में इन दिनों वैज्ञानिक ध्यान द्वारा उद्विग्नता, तनाव आदि के निदान हेतु गहन शोध -प्रयत्नों में जुटे हैं। ‘द फिजियोलॉजी ऑफ मेडिटेशन, ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ (टवस ख्ख्म्) में आरके वैलेस और हर्बर्ट बेन्सन ने बताया है कि ध्यान के दौरान शरीर में ऑक्सीजन की खपत और उपापचय दर बहुत ही न्यून हो जाती है। ऑक्सीजन की खपत पाँच मिनट में ही घटकर ब्भ् सेमी फ् (घन सेमी) मिनट हो जाती है, जो सामान्य से ख् प्रतिशत कम है। ध्यान के दौरान उपापचय दर अर्थात् शरीर में ऊर्जा की खपत में भी तीव्रता से कमी आने लगती है।
सर्वमान्य है कि तनाव एवं उद्विग्नता की स्थिति में त्वचा की प्रतिरोधकता कम हो जाती है। ध्यानावस्था में जीएसआर (गैल्वेनीक स्कीन रेसीस्टैन्स) ख्भ् से भ् प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जबकि सामान्य निद्रावस्था में यह क् से ख् प्रतिशत तक ही बढ़ता है। अतः ध्यान प्रक्रिया से गहन विश्राम मिल सकता है। रोटर के लॉ ऑफ कन्ट्रोल स्केल और वेडिंग के एन्जाइमी स्केल द्वारा किए गए शोध द्वारा पता चला है कि ध्यान करने वाले व्यक्तियों का अंतःसंयम अपेक्षाकृत अधिक है, साथ ही वे ध्यान न करने वालों की तुलना में कम उद्विग्न होते हैं।
ब्रिटिश जनरल और साइकोलॉजी के संपादक जे सैण्डलर्स ने ख् व्यक्तियों पर प्रयोग किया। वह एक माह तक नइ सबसे सोऽहम् का जप ध्यान कराते रहें ये क्− से भ्त्त् वर्ष के आयु वर्ग के थे। अध्ययन द्वारा उन्हें यह मानक प्राप्त हुआ। श्वसन दर /मिनट क्भ्.त्त् से त्त्.फ् नाड़ी स्पंदन प्रति मिनट स्त्रभ्.म्-म्म्.ख्, रक्त चाप (सिस्टोलिक) क्फ्भ्.स्त्र- क्क्ब्.भ्, डायस्टोलिक त्त्भ्.त्त्-त्त्−.म्, जीएसआर (मिलीवोल्ट) त्त्.ब्-ख्म्.भ् और ईई जी क्ख्.म् तक। इस मानक के विश्लेषण से स्पष्ट पता चलता है कि ध्यान के बाद की स्थिति ध्यान से पूर्व की अपेक्षा अधिक शांत, तनावरहित, अंतर्मुखी एवं स्थिर हो गई।
डॉ. जीटी स्टालीन के एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार ध्यान करने वाले एक समूह के त्त्फ् प्रतिशत व्यक्तियों ने कुछ समय पश्चात ही नशीले पदार्थों का सेवन बंद कर दिया। इन व्यक्तियों के जीवन की विविध गतिविधियों में अधिक सुव्यवस्था देखी गई। डॉ. स्टालीन ने स्कूलों, कार्यालयों आदि अनेकों स्थानों पर इस प्रकार के ढेरों प्रयोग किए थे, जिनमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिलीं। इसके अलावा ‘प्रास एंड कानस ऑफ मेडीटेशन’ नामक ग्रंथ में अमेरिका के विख्यात वैज्ञानिक गैरी ई स्वाईन ने अपनी एक शोध का उल्लेख करते हुए कहा कि ध्यान करने वाले व्यक्ति आसानी से शराब, सिगरेट काफी आदि नशीले पदार्थों के सेवन से छुटकारा पा जाते हैं। यही नहीं उनका जीवन सामान्य अमेरिकी वासियों की तुलना में अधिक व्यवस्थित एवं तनावमुक्त देखा गया। वैज्ञानिक डब्ल्यू सीमन और टी बंट पंद्रह विद्यार्थियों के समूह को दो माह तक ध्यान करवाया। दो माह पश्चात जब उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया तो पता चला कि सामान्य विद्यार्थियों की तुलना में ध्यान करने वाले विद्यार्थियों के अंतःनिर्देशन सहजता, आत्मसम्मान आदि मानवीय गुणों में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हुई।
एक अन्य परीक्षण में हैदराबाद के एम.केसर रेड्डी ने एथलीटों पर ध्यान के प्रभाव का अध्ययन किया। इस प्रयोग ध्यान में संलग्न एथलीटों की वाइटल केपेसिटी और कार्डिसयों वास्कुलर एफीसियेंसी दोनों में सार्थक सुधार पाया गया। कार्डियों वास्कुलर एफीसियेंसी का अर्थ होता है, हृदय द्वारा कार्य कम व उपलब्धि अधिक। यह ऊतकों के पोषण का कार्य करता है व आपातकालीन परिस्थितियों के लिए आरक्षित क्षमता (क्रद्गह्यद्गह्क्द्गस्र ष्टड्डश्चड्डष्द्बह्लब्) रखता है।
ध्यान साधना से रक्त में लेक्टेट की मात्रा में स्पष्ट घटोत्तरी होती है। यह दर फ्फ् प्रतिशत तक कम हो जाती है। रक्त में लेक्टेट की सघनता उद्विग्नता, उच्च रक्त चाप को सूचित करती है। कमी होने से व्यक्ति के अंदर उत्साह उमंग और स्फूर्ति की, नवीन चेतना की लहरें हिलोरें मारने लगती है। इस अवस्था में श्वसन गति सामान्य विश्रामावस्था से लगभग आधी हो जाती है। कभी कभी तो यह चार श्वास प्रति मिनट कम देखा गया है। यहाँ तक कि ध्यान करने वाले अति संवेदनशील रोगियों के सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक रक्त चाप में भी पर्याप्त सुधार देखा गया है।
वैज्ञानिकों के लिए हृदय जो जीवन को स्पंदन देता हैं, अति महत्वपूर्ण एवं कोमल अंग है, मनुष्य विश्राम कर सकता है, पर उसका हृदय एक ही बार विश्राम करता है। और वह समय होता है मौत। निरंतर कार्य करने से हृदय की उत्पादकता में विशेष दबाव पड़ता है। उत्पादकता में कमी हृदय पर कार्य दबाव के घटने की सूचक है। ध्यानावस्था में हृदय उत्पादकता की कमी लगभग ख्भ् प्रतिशत होती है। इस क्रम में हृदय की धड़कन भी औसतन पाँच प्रति मिनट की दर से कम हो जाती है।
वैसे ध्यान योग का प्रमुख उद्देश्य मस्तिष्कीय तरंगों के बिखराव को रोकना और विशिष्ट चिंतन बिंदु पर केंद्रित करने की प्रवीणता प्राप्त करना है यूँ तो सामान्य विश्रामावस्था में ही अधिकाँश व्यक्तियों के मस्तिष्क से अल्फा तरंगें निकलती हैं। वे अल्फा तरंगें शरीर व मन की स्थिर व शाँत अवस्था की द्योतक है। ध्यान साधना से इन अल्फा तरंगों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि देखी गई है। शोधकर्ता ब्राउन, स्टीवार्ट एवं ब्लोगेट ने ईईजी पर ग्यारह ध्यान करने वाले व ग्यारह ध्यान न करने वाले व्यक्तियों पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि ग्यारह में से क् साधकों की ध्यानावस्था में अधिकाँश समय अल्फा तरंगें निकल रही थी। जबकि ध्यान न करने वालों में से मात्र तीन में ही ये तरंगें हल्की सी दिख रही थी।
जर्मनी के मनोचिकित्सक डॉ. हंस बर्जर ने भी इलेक्ट्रोएन्सोफेलोग्राफ के माध्यम से ध्यान के कई प्रयोग किए। उन्होंने मानवीय मस्तिष्क से भिन्न-भिन्न प्रकृति की तरंगों को प्रस्फुटित होते देखा। त्त् से क्फ् क्रम प्रति सेकेंड की आवृत्तियों का नाम उन्होंने अल्फा तरंग रखा। ये विचार हीन अवस्था की द्योतक हैं। क्फ् से क्त्त् आवृत्ति प्रति सेकेंड का नाम उन्होंने बीटा तरंग बताया। यह पाँचों इंद्रियों की सक्रिय अवस्था की द्योतक है। भ् से त्त् की आवृत्ति का नाम उन्होंने थीटा तरंग दिया व भ् से कम को उन्होंने डेल्टा तरंग कहा।
बर्जर के शिष्यों ने शिशु एवं बच्चों पर प्रयोग करके देखा कि नवजात शिशु में डेल्टा तरंग व एकवर्षीय शिशु में शुरू हो जाती हैं। जो सतत सात-आठ वर्ष तक रहती है। त्त् वर्ष के बाद बीटा तरंगों का बाहुल्य हो जाता है। डब्ल्यू वाल्टर ने इस तथ्यों को अपने वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा पुष्ट किया। फ् से त्त् वर्षीय बालक की उच्च बौद्धिक जागरुक ग्रहण क्षमता अल्फा तरंगों के कारण ही मानी जा सकती है।
अध्यात्म साधनाओं में अल्फा स्थिति उत्पन्न करने के लिए साधकों को यम नियम से लेकर ध्यान धारणा के विविध यौगिक उपक्रमों का आश्रय लेना पड़ता है। कषाय- कल्मषों के परिशोधनों के पश्चात ही अल्फा तरंगों में अतिशय वृद्धि होती है। जिसे स्वभाव, आदतों व व्यवहार में उत्कृष्टता के समावेश के रूप में स्पष्ट देखा जाता है। ध्यान द्वारा प्रतिक्रिया समय (त्मंबजपवद ज्पउम) में जो तीव्रता देखी जाती है, वह बढ़ी हुई सतर्कता तथा मन व शरीर के सुधरे हुए सामंजस्य व घटी हुई जड़ता की सूचक है। श्रवण क्षमताओं में विकास की दर ध्यान के प्रभाव से आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है।
एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिलीजन एण्ड एथीक्स (जेम्स हेस्टींग) के खंड फ्.स्त्र−ख् में एडवड्र कारपेंटर कृत ‘दइ आर्ट ऑफ क्रियेशन’ में ध्यान का उल्लेख कुछ इस प्रकार से है, ध्यानावस्था में हर्ष, प्रेम, उमंग, उत्साह और साहसरूपी चैतन्य तरंगें उठती हैं, जिससे जीवन के वास्तविक मूल्यों का बोध होता है। ध्यान के माध्यम से ही मौलिक विचारों का सृजन संभव हो सकता है।
एनसाइक्लोपीडिया के इसी खंड फ्.स्त्र−ख् में ही हेनरी वुड के शोधपत्र आइडीयल सजेशन में ध्यान को जीवन की दिव्यता बताया है।उनके अनुसार मात्र एक माह के ध्यान में ही व्यक्ति पूर्णतः शाँत, नीरव हो आत्मा के पावन मंदिर में प्रवेश प्राप्त कर उसके अव्यक्त महान संदेशों को श्रवण करना प्रारंभ कर लेता है। दिव्य जीवन के दिव्य पथ की ओर उसके कदम अनायास ही बढ़ने लगते हैं।
ध्यान के इन प्रभावों को देखते हुए अच्छा यही है कि व्यक्ति अपना ध्यान दुनिया के लुभावने मायाजाल से हटाकर आत्मतत्व की ओर उन्मुख हो। अंतर्मुखी एकाग्रता की यह यात्रा जीवन में प्रसन्नता, मानस में उत्कृष्ट चिंतन और हृदय में परिष्कृत भाव तरंगों को उमगाने वाली सिद्ध होगी और जीवनक्रम भी श्रेय पथ पर सदैव ही निरंतर निर्बाध गति से अग्रसर होता है।