• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • गायत्री उपासना से कुण्डलिनी जागरण
    • कुण्डलिनी के षट चक्र और उनका वेधन
    • षट्-चक्र ब्रह्माण्ड व्यापी शक्तियों के रेडियो केन्द्र
    • कुण्डलिनी महाशक्ति का साक्षात्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • गायत्री उपासना से कुण्डलिनी जागरण
    • कुण्डलिनी के षट चक्र और उनका वेधन
    • षट्-चक्र ब्रह्माण्ड व्यापी शक्तियों के रेडियो केन्द्र
    • कुण्डलिनी महाशक्ति का साक्षात्कार
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


गायत्री उपासना से कुण्डलिनी जागरण

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


2 Last
पुराणों में ब्रह्मा जी के दो पत्नी होने का उल्लेख है (1) गायत्री (2) सावित्री। वस्तुतः इस अलंकारिक चित्रण के पीछे परमात्मा की दो प्रमुख शक्तियों के होने का भाव दर्शाया गया है, पहली भाव चेतना या परा प्रकृति दूसरी पदार्थ चेतना या अपरा प्रकृति। सृष्टि में मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि की जो भी क्रियाशीलता दिखाई देती है वह सब परा प्रकृति अथवा गायत्री विद्या के अंतर्गत आती है। गायत्री उपासना से भावनाओं का विकास इस सीमा तक होता है जिससे मनुष्य ब्रह्माण्डीय चेतना—परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ कर समाधि, स्वर्ग, मुक्ति का आनन्द लाभ प्राप्त करता है।

जगत की दूसरी सत्ता जड़ प्रकृति है। परमाणुओं का अपनी धुरी पर परिभ्रमण और विभिन्न संयोगों के द्वारा अनेक पदार्थों तथा जड़ जगत की रचना इसी के अन्तर्गत आती है। वाह्य जीवन प्रकृति परमाणुओं से अत्यधिक प्रभावित प्रतीत होने के कारण भौतिक जीवन में उसे अधिक महत्व दिया गया है। विज्ञान की समस्त धारायें इसी के अन्तर्गत आती हैं। आज की भौतिक प्रगति को सावित्री साधना का एक अंग कहा जा सकता है, पर उसका मूल अभी तक भौतिक विज्ञान की पकड़ में नहीं आया। इसी कारण अच्छे से अच्छे यन्त्र बना लेने पर भी मानवीय प्रतिभा अपूर्ण लगती है। उसकी पूर्णता सावित्री उपासना से होती है।

योग विज्ञान के अन्तर्गत कुण्डलिनी साधना की चर्चा प्रायः होती है। कुण्डलिनी साधना वस्तुतः चेतन प्रकृति द्वारा जड़ पदार्थों के नियन्त्रण की ही विद्या है। भौतिक विज्ञान तो उपकरण और यन्त्र साध्य होते हैं पर परा और अपरा प्रकृति के संयोग से प्राप्त विज्ञान में ऐसी कोई जटिल प्रणाली आवश्यक नहीं होती। परमात्मा का बनाया हुआ सर्व समर्थ शरीर ही उन आवश्यकताओं को पूर्ण कर देता है। रेडियो ट्रांसमिशन में तो केवल संदेश-संप्रेषण की एकांगी व्यवस्था रहती है पर शरीर एक ऐसा समर्थ यन्त्र है यदि उसके पूरी तरह संचालन की जानकारी हो जाये तो मनुष्य ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने की किसी भी शक्ति सत्ता से सम्पर्क स्थापित कर सकता है, हलचल और परिवर्तन प्रस्तुत कर सकता है। इस साधनों के अन्तर्गत जिस परमाणु शक्ति का नियंत्रण, प्रयोग-प्रक्षेपण होता है। उसे ‘प्राण’ कहते हैं प्राण वस्तुतः एक ऐसा आग्नेय स्फुल्लिंग है जिसे जड़ भी कह सकते हैं चेतन भी। इस अर्द्ध चेतन परमाणु को देखने जानने, विकसित करने, विस्फोट करने नियंत्रित करने, आदि की विद्या का साधना का—नाम कुण्डलिनी साधना है।

अतीत कालीन भारत को देखें तो पता चलता है कि हमारी प्रगति आत्मिक ही नहीं रही भौतिक दृष्टि से भी यह देश की समृद्धि और सफलता के उच्च शिखर तक पहुंचा है। इस जगत को माया, मिथ्या, भ्रम, जंजाल मध्य युग की देन है। दोनों अपेक्षाओं में संगति संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता कुण्डलिनी साधना द्वारा पूर्ण होती रही है। गायत्री उपासना द्वारा ऋतम्भरा प्रज्ञा का विकास और कुण्डलिनी साधना द्वारा भौतिक सिद्धियों सामर्थ्यों की उपलब्धि से यहां का जीवन क्रम परिपूर्ण बना रहा। लोक और परलोक दोनों में प्रत्यक्ष स्वर्ग की आनंदानुभूति होती रही। इसी लिए गायत्री और सावित्री दोनों ही उपासनाओं को समान महत्व दिया गया। कुण्डलिनी साधना में इन दोनों का समन्वय है। इस विज्ञान का सहयोग लिये बिना आज का विज्ञान भी मानवता का कल्याण नहीं कर सकता।

गायत्री और सावित्री दोनों परस्पर पूरक हैं। इनके मध्य कोई प्रतिद्वन्दिता नहीं। गंगा-यमुना की तरह ब्रह्म हिमालय की इन्हें दो निर्झरिणी कह सकते हैं। सच तो यह है कि दोनों अविच्छिन्न रूप से एक-दूसरे के साथ गुंथी हुई हैं। इन्हें एक प्राण दो शरीर कहना चाहिए। ब्रह्मज्ञानी को भी रक्त-मांस का शरीर और उसके निर्वाह का साधन चाहिए। पदार्थों का सूत्र संचालन चेतना के बिना सम्भव नहीं। इस प्रकार यह सृष्टि क्रम दोनों के संयुक्त प्रयास से चल रहा है। जड़-चेतना का संयोग बिखर जाय तो फिर दोनों में से एक का भी अस्तित्व शेष न रहेगा। दोनों अपने मूल कारण में विलीन हो जायेंगे। इसे सृष्टि के—प्रगति रथ के—दो पहिए कहना चाहिए। एक के बिना दूसरा निरर्थक है। अपंग तत्वज्ञानी और मूढ़ मति नर-पशु दोनों ही अधूरे हैं। शरीर में दो भुजायें, दो पैर, दो आंखें, दो फेफड़े, दो गुर्दे आदि हैं। ब्रह्म शरीर भी अपनी दो शक्ति धाराओं के सहारे यह सृष्टि प्रपंच संजोये हुये है, इन्हें उसकी दो पत्नियों, दो धाराएं आदि किसी भी शब्द प्रयोग के सहारे ठीक तरह वस्तु स्थिति को समझने का प्रयोजन पूरा किया जा सकता है। पत्नी शब्द अलंकार मात्र है। चेतन सत्ता का कुटुम्ब परिवार मनुष्यों जैसा कहां है? अग्नि तत्व की दो विशेषताएं हैं—गर्मी और रोशनी। कोई चाहे तो इन्हें अग्नि की दो पत्नियां कह सकते हैं। यह शब्द अरुचिकर लगे तो पुत्रियां कह सकते हैं। सरस्वती को कहीं ब्रह्मा की पुत्री कहीं पत्नी कहा गया है। इसे स्थूल मनुष्य व्यवहार जैसा नहीं समझना चाहिये। यह अलंकारिक वर्णन मात्र उपमा भर के लिये है। आत्मशक्ति को गायत्री और वस्तु-शक्ति को सावित्री कहते हैं। सावित्री साधना को कुण्डलिनी जागरण कहते हैं। उसमें शरीरगत प्राण ऊर्जा की प्रसुप्ति, विकृति के निवारण का प्रयास होता है। बिजली की ऋण और धन दो धारायें होती हैं। दोनों के मिलने पर ही शक्ति प्रवाह बहता है। गायत्री और सावित्री के समन्वय से साधना की समग्र आवश्यकता पूरी होती है। गायत्री साधना का सन्तुलित लाभ उठाने के लिए सावित्री शक्ति को भी साथ लेकर चलना पड़ता है।

समन्वयात्मक साधना का जितना महत्व है उतना एकांगी का—असंबद्ध का नहीं। प्रायः साधना क्षेत्र में इन दिनों यही भूल होती रही है। ज्ञान मार्गी-राजयोगी-भक्तिपरक साधना तक सीमित रह जाते हैं और हठयोगी, कर्मकांडी-तप साधनाओं में निमग्न रहते हैं। उपयोगिता दोनों की है। महत्ता किसी की भी कम नहीं, (पर उनका एकांगीपन उचित नहीं) दोनों को जोड़ा और मिलाया जाना चाहिए। यह शिव पार्वती विवाह ही गणेश जैसा भावनात्मक वरदान और कार्तिकेय जैसे पदार्थात्मक अनुदानों की भूमिका प्रस्तुत कर सकता है।

हम समन्वयात्मक साधना की उपयोगिता मानते रहे हैं और उसी का मार्ग दर्शन करते रहते हैं। वैदिक योग साधना के साथ-साथ तान्त्रिक प्रयोगों को भी महत्व दिया है। गायत्री साधना को प्रमुखता देते हुए भी कुण्डलिनी जागरण की उपयोगिता को माना है। यही कारण है कि प्रथम पाठ पढ़ाने के बाद अब दूसरे पाठ की भी पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। इसे प्रकारांतर न समझा जाय इसमें विरोधाभास न ढूंढ़ा जाय। यह इकलौती सन्तान के बड़े होने पर उसका जोड़ा मिलाने—विवाह करने का प्रयत्न मात्र है। यों गायत्री के देवता सविता को विष्णु या शिव मानते हैं और उनकी पत्नी अग्नि-लक्ष्मी काली को कुण्डलिनी का प्रतीक माना गया है। इस प्रकार सुगम युग्म-एक प्रकार से नर नारी का शिव-पार्वती का विवाह ही हुआ। धनुष तोड़ने की प्रक्रिया पूरी करके इसे सिया स्वयंवर राम जानकी का विवाह सम्पन्न करना कहा जा सकता है। पर यदि कोई कुण्डलिनी और गायत्री में भाषा की दृष्टि से एक ही लिंग देखता हो तो भी उसे कुछ अचम्भा नहीं करना चाहिए। अभी पिछले ही दिनों में दो नारियों ने परस्पर कानूनी विवाह किया है। कुछ दिन पूर्व दो पुरुष भी ये समलिंगी विवाह कर चुके हैं।

जीव और ब्रह्म दो पुल्लिंग होते हुए भी परस्पर विवाह करते हैं। साक्षी दृष्टा ब्रह्म निष्क्रिय है उसकी परा-अपरा प्रकृतियां दोनों परस्पर मिल जुलकर ही अपने संयोग-संभोग से इस समस्त सृष्टि का सृजन कर संचालन कर रही हैं। यह कथन अलंकार भर हैं। वस्तुतः नर-नारी जैसा लिंग भेद सूक्ष्म जगत में कहीं है ही नहीं। गायत्री या कुण्डलिनी को स्त्री और ब्रह्म शिव को पुरुष मानना अपनी बात को चेतना का उदाहरण देकर समझाना भर है। तत्वतः इस उच्च शक्ति क्षेत्र में नर नारी जैसा कोई भेद है ही नहीं। इस जगत में भी जिन ब्रह्म वादियों को तत्वज्ञान हो जाता है वे नर-नारी के शरीर भेदों के अन्तर को भी सर्वथा भुला ही देते है। उन्हें सभी में एक लिंग एक तत्व दिखाई पड़ता है। उनकी दृष्टि में न कोई नर है न नारी। अद्वैत ज्ञान में भेद बुद्धि समाप्त होते ही नर-नारी की भिन्नता भी समाप्त हो जाती है। कुण्डलिनी और गायत्री विद्याओं के सम्बन्ध में यदि विवाह संयोग, समन्वय जैसी चर्चा अलंकारिक रूप से आ पड़े तो उसमें कुछ विस्मय न किया जाय इसीलिये यह पंक्तियां लिखी गई हैं। तत्व-दर्शियों ने गायत्री और कुण्डलिनी को परस्पर पूरक माना है और एकात्म भाव में देखा है। इसके कुछ प्रकरण आगे देखिये—

कुण्डलिनी साधना के अन्तर्गत षटचक्र वेधन प्रक्रिया मुख्य है। यही इस साधना का प्रधान आधार है। गायत्री शक्ति भी वही प्रयोजन पूरा करती है। इस प्रकार मूलतः वे दोनों एक ही छड़ के दो सिरों की तरह अभिन्न ही हैं। षट्चक्र जागरण में कुण्डलिनी शक्ति को गायत्री का सहकार प्राप्त हो जाता है।

गायत्री-मन्त्र का ‘भू कार’ भू-तत्व या पृथ्वी-तत्व है। साधना के मार्ग में वह मूलाधार चक्र है। फिर जगन्माता के निम्नस्तर ब्राह्मी या इच्छाशक्ति-महायोनि-पीठ में सृष्टि तत्व है। ‘भुवः’ भुवर्लोक या अन्तरिक्ष तत्व। साधना की दृष्टि से यह विशुद्ध-चक्र है और महाशक्ति के मध्य स्तर में पीनोन्नत पयोधर में, वैष्णवी या क्रिया-शक्ति पालन व सृष्टि तत्व है। ‘स्वःकार’ सुरलोक या स्वर्ग-तत्व। साधना के पथ में सहस्रार निर्दिष्ट चक्र एवं आद्यशक्ति के ऊर्ध्व या उच्चस्तर में गौरी या ज्ञान-शक्ति, संहार या लय तत्व है। यही वेदमाता गायत्री का स्वरूप तथा स्थान रहस्य है।’’

यों ज्ञान चेतना समस्त शरीर में संव्याप्त है पर उसका केन्द्र मस्तिष्क माना गया है। यों क्रिया शक्ति संपूर्ण शरीर में फैली पड़ी है पर उसका केन्द्र स्थल जननेन्द्रिय है। नपुंसक व्यक्ति प्रायः सभी उच्च गुणों के अभिवर्धन और साहस भरे पुरुषार्थी के सम्पादन में असमर्थ रहते हैं। किसी को नपुंसक क्लीव कहना उसकी अन्तः क्षमता को अपमानित करने वाला है। शरीर के अन्य अंग दुर्बल हों तो उसके बिना प्रगति रुकेगी नहीं पर नपुंसक से कुछ महत्वपूर्ण कार्य बन पड़ना कठिन है। सरकारी नौकरियों में भर्ती करते समय डाक्टरी जांच में यह भी परीक्षा की जाती है कि वह व्यक्ति नपुंसक तो नहीं है। शारीरिक विशेषताओं के केन्द्र इसीलिए जननेंद्रिय गह्वर के मर्म स्थल योनि कन्द को माना गया है।

साधना के यही दो मर्म स्थल हैं। उन्हें ही कायपिण्ड के दो ध्रुव कहते हैं। यों विद्युत-शक्ति एक ही है पर उसे दो भागों में विभाजित किया गया है एक धन (पॉजिटिव) दूसरी ऋण (निगेटिव) मानवीय समान चेतना की धन विद्युत इस ज्ञान केन्द्र मस्तिष्क केन्द्र में केन्द्रित है—इस स्थल को अध्यात्म की भाषा में ‘सहस्रार’ कहते हैं। दूसरी ऋण विद्युत-काय केन्द्र जननेन्द्रिय मूल में है—जिसे ‘मूलाधार’ कहते हैं। इन दो केन्द्रों में से ज्ञान केन्द्र को—गायत्री का और काम केन्द्र को—कुण्डलिनी का उद्गम केन्द्र कहा गया है। भौतिक क्षमताएं-समृद्धियां, सिद्धियां कुण्डलिनी में प्रादुर्भूत होती हैं और आध्यात्मिक दिव्य विभूतियां, ऋद्धियां गायत्री के द्वारा विकसित होती हैं। दोनों का सम्मिश्रण साधक को समृद्धियों और विभूतियों से ऋद्धियों और सिद्धियों से—ज्ञान और क्रिया से सुसम्पन्न बनाता है। इसलिये दोनों की सम्मिश्रित साधना का अवलम्बन करना ही समन्वयात्मक प्रवृत्ति के साधकों के लिए उपयुक्त है।

सहस्रार कमल को ब्रह्म केन्द्र के रूप में—गायत्री गह्वर के रूप में—विष्णु के क्षीर सागर या शिव के कैलाश के रूप में चित्रित किया गया है। इसके प्रमाण इस प्रकार मिलते हैं।

ब्रह्मरन्ध्रसरसीरुहोदरे नित्यलग्नमवदात्मतभुतम् कुण्डली विवरकांड मंडित द्वादशार्ण सरसीरुहं भजे । —पादुका पेचक्र

मस्तक के मध्य अधोमुख सहस्र दल कमल है। उसके उदर में अद्भुत पथ गामिनी नाड़ी। उसे कुण्डलिनी कहते हैं।

इदं स्थानं ज्ञात्वा नियतनिजचित्तो नरवरो, न भूयात् संसारे पुनरपि न बद्धस्त्रिभुवने । समग्रा शक्तिः स्यान्नियत मनसस्तस्य कृतिनः, सदा कर्तु हर्तु खगतिरपि वाणी सुविमला ।। —षट्चक्र निरुपणम् 46

इस सहस्रार कमल की साधना से योगी चित्त को स्थिर कर आत्मभाव में लीन हो जाता है। भवबन्धन से छूट जाता है। समग्र शक्तियों से सम्पन्न होता है। स्वच्छन्द विचरता है और उसकी वाणी विमल हो जाती है।

शिरः कपालविवरे ध्यायेद्दुग्धमहोदधिम् । तत्र स्थित्वा सहस्रारे पद्मे चन्द्रं विचिन्तयेत् ।179। —शिव संहिता 5।179

कमल की गुफा में क्षीर सागर समुद्र का तथा सहस्र दल कमल में चन्द्रमा जैसे प्रकाश का ध्यान करे।

सहस्रार चन्द्र की कैलाश पर्वत से तुलना करते हुए वहां की दिव्य परिस्थितियों का मत्स्य पुराण में वर्णन किया गया है। यह वर्णन तिब्बत स्थित कैलाश पहाड़ का नहीं वरन् विशुद्ध रूप से ब्रह्मरन्ध्र में अवस्थित सहस्रार ज्ञान केन्द्र का ही है। संवर्तक बड़वानल विद्युत का वहीं निवास है। महासर्पों का सरोधर उसी केन्द्र में है। साधना की सिद्धि इसी केन्द्र में तीव्रगति से होती है। यह तथ्य कैलाश पहाड़ पर लागू नहीं हो सकते।

परस्परेण द्विगुणा धर्म्मतः कामतोऽर्थतः । हेमकूटस्य पृष्ठ तु सर्पाणां तत्सरःस्मृतम् ।। सरस्वतीं प्रभवति तस्माज् ज्योतिष्ठती तु या । इत्येते पर्वताविष्टाश्चत्वारो लवणोदधिम् । छिद्ममानेषु पक्षेषु पुरा इन्द्रस्य वै भयात् ।। —मत्स्स पुराण

कैलाश पर्वत पर की हुई साधना से दूनी सिद्धि होती है। धर्म, अर्थ, काम तीनों ही प्राप्त होते हैं, वह हेम कूट पर्वत का सरोवर सर्पों का बनाया हुआ है। ज्योतिर्मान, प्रज्ञा वहीं उत्पन्न होती है।

वहां संवर्तक नामक महा भयानक अग्नि जलता रहता है। वह उस सरोवर के जल को पी जाता है। यह अग्नि समुद्र को भी सुखा देने वाला बड़वा मुख है।

मूलाधार को शक्ति का केन्द्र माना गया है। इसे अग्नि कुण्ड-शक्ति उद्गम-काली पीठ तथा क्रिया शक्ति की अधिष्ठात्री कुण्डलिनी के रूप में चित्रित किया गया है। इसका संकेत अध्यात्म शास्त्र में इस प्रकार मिलता है—

आदेहमध्यकट्यन्तमग्निस्थानमुदाहृतम् । तत्र सिन्दूरवर्णोऽग्निर्ज्वलनं दशपञ्च च । 137 ।। —त्रिशिखा

कटि से निम्न भाग में अग्नि स्थान है। वह सिन्दूर के रंग का है। उसमें पन्द्रह घड़ी प्राण को रोक कर अग्नि की साधना करनी चाहिए।

नाभेस्तिर्यगधोर्ध्व कुण्डलिनीस्थानम् । अष्ट प्रकृति रूपाऽष्टधा कुण्डलीकृता कुंडलिनी शक्तिर्भवति । यथावद्वायुसंचारं जलान्नादीनि परितः स्कन्धपार्श्वेष निरुध्यैनं मुखेनैष समावेष्ट्य ब्रह्मरन्ध्रं योगकालेऽपानेनाग्तिना च स्फुरति । —शाण्डिल्योपनिषद् 7।6

नाभि के नीचे कुण्डलिनी का निवास है। यह आठ प्रकृति वाली है। इसके आठ कुण्डल हैं। यह प्राण वायु को यथावत संचालित करती है। अन्न और जल को व्यवस्थित करती है। मुख तथा ब्रह्म रन्ध्र की अग्नि को प्रकाशित करती है।

तडिल्लेखा तन्वी अपन शशि वैश्वानरमयी । तडिल्लता समरुचिर्विद्युल्लेखेन भास्वती ।।

बिजली की बेल के समान, तपते हुए चन्द्रमा के समान, अग्निमयी वह शक्ति दृष्टिगोचर होती है।

इन सब तथ्यों पर दृष्टिपात करते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है कि गायत्री की ज्ञान शक्ति का और कुण्डलिनी की क्रिया शक्ति का परस्पर अन्योन्याश्रय संबन्ध है। दोनों के मिलने से ही परिपूर्ण एवं समग्र उत्कर्ष की सम्भावना मूर्तिमान होती है। इन दोनों साधनाओं में विरोधाभास नहीं माना जाना चाहिये और न प्रकारान्तर। वरन् यही समझना चाहिए कि साधना-क्रम में दोनों का समन्वय होने से भौतिक और आत्मिक दोनों ही सफलताओं का पथ प्रशस्त होता है। यह समन्वयात्मक साधना भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रयोजनों को पूरा करती है। इसीलिए साधना विज्ञान के तत्ववेत्ता एकांगी साधना की अपूर्णता को ध्यान में रखते हुए उभय प्रयोजन पूरे करने वाली समग्र साधना का पथ प्रदर्शन करते रहे हैं। वही यहां भी किया जा रहा है।

यो देवता भागकरी सा मोक्षाग्र न कल्पते । मोक्षदा नहि भोगाय त्रिपुरा तु द्वय प्रदा ।। —त्रिपुरा तन्त्र

जो देवता भोग देते हैं वे मोक्ष नहीं देते जो मोक्ष देते हैं वे भोग नहीं देते। पर कुण्डलिनी दोनों प्रदान करती हैं।
2 Last


Other Version of this book



गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण
Type: SCAN
Language: HINDI
...

गायत्री साधना से कुण्डलिनी जागरण
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • गायत्री उपासना से कुण्डलिनी जागरण
  • कुण्डलिनी के षट चक्र और उनका वेधन
  • षट्-चक्र ब्रह्माण्ड व्यापी शक्तियों के रेडियो केन्द्र
  • कुण्डलिनी महाशक्ति का साक्षात्कार
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj