Books - अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -3
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Language: HINDI
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सब कुछ करता तू ही...
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एक बार मेरी धर्मपत्नी बहुत गम्भीर रूप से बीमार हो गईं। उन्हें
दमा की बीमारी थी। हालत इतनी खराब थी कि पानी में हाथ डालना
भी मुश्किल था। कोई भी काम अपने हाथ से नहीं कर पातीं। केवल हम
दो व्यक्तियों के परिवार में घर के काम- काज के लिए दो लड़कियों
को रखना पड़ा। अपनी दोनों बेटियों का विवाह हो चुका था। वे अपने
परिवार की जिम्मेदारियों को छोड़कर हमारे पास आकर मॉँ
की सेवा नहीं कर सकतीं थी। इधर यह बीमारी थी जो छूटती ही
नहीं थी। पाँच साल तक इलाज चलता रहा। मगर हालत सुधरने के बजाय
बिगड़ती ही चली गई।
मैं स्वयं एक होमियोपैथ चिकित्सक हूँ। होमियोपैथिक,एलोपैथी,आयु़र्वेद सब तरह का इलाज कराकर थक चुका था। हर रात किसी न किसी डॉक्टर को बुलाकर लाना पड़ता था। हुगली जिले में ऐसे कोई प्रतिष्ठित डॉक्टर नहीं बचे थे जिन्हें न दिखाया गया हो, लेकिन यह सिलसिला कभी समाप्त होता नहीं दिखता था। रात- रात भर पत्नी के बिस्तर के पास बैठकर बीतता। कभी रोते- रोते गुरु देव से प्रार्थना करता- हे गुरु देव! उनकी यह असह्य पीड़ा हमसे नहीं सही जाती। या तो ठीक ही कर दीजिए या जीवन ही समाप्त कर दीजिए।
दिन पर दिन बीतते गए। हमारे आँसुओं का कोई अंत नहीं दिखता था। एक दिन आधी रात को इसी उधेड़बुन में बैठा था कि किस नए डॉक्टर को दिखाया जाए। दिखाने से कोई लाभ है भी या नहीं। अचानक किसी की आवाज आई- इतनी चिन्ता क्यों करते हो? एक अंतिम प्रयास खुद भी तो करके देखो। मैंने चौंककर इधर- उधर देखा। यह अन्तरात्मा की आवाज थी। जैसे गुरु देव ही इलाज की नई दिशा की ओर इंगित कर रहे हों। मैंने तत्काल निर्णय कर लिया, अब जो कुछ हो उन्हीं के निर्देश पर इलाज करूँगा। किसी डॉक्टर को नहीं बुलाऊँगा।
यह निर्णय लेते ही मन में उत्साह की लहर आई। मन की सारी दुश्चिंताए मिट गईं। भोर होते- होते मैंने धर्मपत्नी को भी यह बात बता दी कि अब मेरे घर कोई डॉक्टर नहीं आएँगे। मैं ही इलाज करूँगा। उन्होंने भी सहमति जताई। कहा- ‘मर तो जाऊँगी ही, यह मरण अगर आपके ही हाथों लिखा हो, तो कौन टाल सकता है? पत्नी की इन निराशा भरी बातों से भी मेरा उत्साह कम नहीं हुआ। बल्कि अन्दर से जोरदार कोई प्रेरणा उठी और मैं होमियोपैथी की किताब लेकर बैठ गया।
गहन अध्ययन कर सारे लक्षणों को मिलाकर सटीक दवा खोजने का प्रयास करता। इसी तरह एक के बाद एक कई दवाएँ चलाईं; लेकिन स्थिति दिन- पर बुरी होती गई। बेटियाँ मुझ पर लांछन लगाने लगीं। आस- पड़ोस के लोग भी कंजूस कहकर ताने देने लगे। बेटियों ने तो यहाँ तक कह दिया कि यदि हमारी माँ को कुछ हो गया, तो हम आपको जेल भी पहुँचाने में नहीं चूकेंगी। फिर भी इस काम में गुरु देव का निर्देश समझकर मैं जुटा रहा।
गुरु देव को स्मरण कर एक पर एक दवा मिला- मिलाकर प्रयोग परीक्षण करता रहा। कुछ लाभ न होता देख जब मन विचलित हो उठा, हिम्मत जवाब देने लगी, तब फिर एक बार वही आवाज सुनाई पड़ी- चिन्ता मत कर, कल तू जरूर सही दवा खोज निकालेगा। मैं चारों ओर से ध्यान हटाकर किताब लेकर बैठा। सारे लक्षणों को सूचीबद्ध किया। पहले दी गई दवाओं के परिणामों को देखते हुए दुबारा अच्छी तरह अध्ययन कर दवा चुनी। गुरु देव का स्मरण कर दवा देते समय मन ही मन कहा- गुरुदेव! यह दवा मैं नहीं दे रहा। यह आपकी दी हुई दवा है। अब आप जानिए और आपका काम जाने।
गुरु देव की बात सच हुई। दवा सही निकली। इसी दवा से धीरे- धीरे मेरी पत्नी स्वस्थ होने लगी। हमारे घर में फिर से खुशियाँ लौट आईं।
इसके बाद से पूज्य गुरु देव को स्मरण कर जब- जब रोगियों को दवा दी है, रोगी को अवश्य ही आराम पहुँचा है। गुरुदेव की बड़ी कृपा रही है मुझ पर।
प्रस्तुति :- डॉ.टी० के० घोष
हुगली (पं.बंगाल)
मैं स्वयं एक होमियोपैथ चिकित्सक हूँ। होमियोपैथिक,एलोपैथी,आयु़र्वेद सब तरह का इलाज कराकर थक चुका था। हर रात किसी न किसी डॉक्टर को बुलाकर लाना पड़ता था। हुगली जिले में ऐसे कोई प्रतिष्ठित डॉक्टर नहीं बचे थे जिन्हें न दिखाया गया हो, लेकिन यह सिलसिला कभी समाप्त होता नहीं दिखता था। रात- रात भर पत्नी के बिस्तर के पास बैठकर बीतता। कभी रोते- रोते गुरु देव से प्रार्थना करता- हे गुरु देव! उनकी यह असह्य पीड़ा हमसे नहीं सही जाती। या तो ठीक ही कर दीजिए या जीवन ही समाप्त कर दीजिए।
दिन पर दिन बीतते गए। हमारे आँसुओं का कोई अंत नहीं दिखता था। एक दिन आधी रात को इसी उधेड़बुन में बैठा था कि किस नए डॉक्टर को दिखाया जाए। दिखाने से कोई लाभ है भी या नहीं। अचानक किसी की आवाज आई- इतनी चिन्ता क्यों करते हो? एक अंतिम प्रयास खुद भी तो करके देखो। मैंने चौंककर इधर- उधर देखा। यह अन्तरात्मा की आवाज थी। जैसे गुरु देव ही इलाज की नई दिशा की ओर इंगित कर रहे हों। मैंने तत्काल निर्णय कर लिया, अब जो कुछ हो उन्हीं के निर्देश पर इलाज करूँगा। किसी डॉक्टर को नहीं बुलाऊँगा।
यह निर्णय लेते ही मन में उत्साह की लहर आई। मन की सारी दुश्चिंताए मिट गईं। भोर होते- होते मैंने धर्मपत्नी को भी यह बात बता दी कि अब मेरे घर कोई डॉक्टर नहीं आएँगे। मैं ही इलाज करूँगा। उन्होंने भी सहमति जताई। कहा- ‘मर तो जाऊँगी ही, यह मरण अगर आपके ही हाथों लिखा हो, तो कौन टाल सकता है? पत्नी की इन निराशा भरी बातों से भी मेरा उत्साह कम नहीं हुआ। बल्कि अन्दर से जोरदार कोई प्रेरणा उठी और मैं होमियोपैथी की किताब लेकर बैठ गया।
गहन अध्ययन कर सारे लक्षणों को मिलाकर सटीक दवा खोजने का प्रयास करता। इसी तरह एक के बाद एक कई दवाएँ चलाईं; लेकिन स्थिति दिन- पर बुरी होती गई। बेटियाँ मुझ पर लांछन लगाने लगीं। आस- पड़ोस के लोग भी कंजूस कहकर ताने देने लगे। बेटियों ने तो यहाँ तक कह दिया कि यदि हमारी माँ को कुछ हो गया, तो हम आपको जेल भी पहुँचाने में नहीं चूकेंगी। फिर भी इस काम में गुरु देव का निर्देश समझकर मैं जुटा रहा।
गुरु देव को स्मरण कर एक पर एक दवा मिला- मिलाकर प्रयोग परीक्षण करता रहा। कुछ लाभ न होता देख जब मन विचलित हो उठा, हिम्मत जवाब देने लगी, तब फिर एक बार वही आवाज सुनाई पड़ी- चिन्ता मत कर, कल तू जरूर सही दवा खोज निकालेगा। मैं चारों ओर से ध्यान हटाकर किताब लेकर बैठा। सारे लक्षणों को सूचीबद्ध किया। पहले दी गई दवाओं के परिणामों को देखते हुए दुबारा अच्छी तरह अध्ययन कर दवा चुनी। गुरु देव का स्मरण कर दवा देते समय मन ही मन कहा- गुरुदेव! यह दवा मैं नहीं दे रहा। यह आपकी दी हुई दवा है। अब आप जानिए और आपका काम जाने।
गुरु देव की बात सच हुई। दवा सही निकली। इसी दवा से धीरे- धीरे मेरी पत्नी स्वस्थ होने लगी। हमारे घर में फिर से खुशियाँ लौट आईं।
इसके बाद से पूज्य गुरु देव को स्मरण कर जब- जब रोगियों को दवा दी है, रोगी को अवश्य ही आराम पहुँचा है। गुरुदेव की बड़ी कृपा रही है मुझ पर।
प्रस्तुति :- डॉ.टी० के० घोष
हुगली (पं.बंगाल)