Books - गायत्री सर्वतोन्मुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मन्त्र विद्या में विधि विधान की आवश्यकता
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मन्त्र विद्या का तत्व- ज्ञान इससे भिन्न है। उसमें विधि- विधान, कर्मकाण्ड और मर्यादा की प्रधानता है। मन्त्र में प्रचण्ड शक्ति सन्निहित है। मन्त्र- शास्त्रों एक प्रत्यक्ष विज्ञान है ।। जिस प्रकार भौतिक विज्ञान के नियमों के आधार पर काम करने वाले यन्त्र विधिवत् चलाये जावें तो अपना कार्य नियमित रूप से करते हैं, उसी प्रकार मंत्र भी यदि निर्धारित कर्मकाण्ड एवं विधान के आधार पर प्रयुक्त किये जायँ तो उनके द्वारा वही लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं जो शास्त्रकारों एवं ऋषियों ने बताये हैं।
गायत्री की यदि विधिवत् शास्त्रीय प्रक्रियाओं के आधार पर उपासना की जाय तो वह मंत्र रूप होकर चमत्कारी परिणाम उत्पन्न करती है। जिस प्रकार प्रार्थना में भावना प्रधान है, उसी प्रकार मंत्र में साधना- विधान की प्रधानता है। भावना विहीन प्रार्थना निष्फल जाती है, उसी प्रकार साधना विधान उपेक्षा करने पर मंत्र का समुचित परिणाम नहीं होता ।।
गायत्री जहाँ प्रार्थना स्वरूप है, वहाँ वह महान रहस्यमयी मन्त्र शक्ति भी है। मन्त्र रूप में इस अनादि शक्ति की उपासना करने वाले साधक बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री का माहात्म्य बताते हुए साधना ग्रंथों में कहा गया है -
तदित्यृच समोनास्ति मन्त्रे वेद चतुष्टये ।।
सर्वे वेदश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांस च ।।
सम्मानि कलया प्राहुमुनयो न तादित्यृच ।।
-विश्वामित्र
इस गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मन्त्र नहीं ।। समस्त वेद, यज्ञ, दान, तप भी गायत्री की एक कला के बराबर नहीं हो सकते, ऐसा ऋषियों ने कहा है।
सर्वेपांजप सूक्तानामृचाञ्च यजुषान्त ता ।।
साम्नां चैकाक्षरादीनां गायत्री परमो जपः ॥
तस्याश्चैव तु ओंकारो ब्रह्मणा य उपासितः ।।
आभ्यान्तु परमं जप्यं त्रैलोक्येऽपि न विद्यते ॥
-वृहत पाराशर संहिता
सम्पूर्ण वेदों, सूक्तों तथा प्रणव आदि मन्त्रों में सबसे श्रेष्ठ गायत्री जप ही है। जिस ओंकार की उपासना ब्रह्माजी द्वारा की गई वह भी गायत्री का ही अंग है। इनसे बढ़कर तीनों लोकों में और कोई जप संसार में नहीं है।
यतःसाक्षात् सर्व देवतात्मनः सर्वात्म द्योतकः
सर्वात्म प्रतिपादकोऽय गायत्री मन्त्रः ।।
-संध्या भाष्य
यह गायत्री मन्त्र साक्षात् सर्व देवता स्वरूप, सर्व शक्तिमान्, सर्वत्र प्रकाश करने वाला तथा परमात्मा का प्रतिपादन करने वाला है।
दुर्लभा सर्व गायत्री प्रणवान्विता ।।
न गायत्र्याधिकं किंचित् त्रधीषु परिगीयते ॥
अर्थात्- इस संसार में गायत्री के समान परम पवित्र और कोई दुर्लभ मंत्र नहीं है। श्रुति में गायत्री से अधिक और कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है।
अष्टादशसु विद्यासु मीमांसाति गरीयसी ।।
तपोपितर्क शास्त्राणि पुराणं तेभ्य एवं च ॥
ततोपि धर्म शास्त्राणि तेभ्योगुर्वो श्रुतिर्द्विज ।।
तपोप्पुनिपच्छेष्टा गायत्री च ततोधिका ॥
-वृ० संध्या भाष्य
अठारहों विद्याओं में मीमांसा श्रेष्ठ है। उनसे भी न्याय शास्त्र श्रेष्ठ है। पुराणों की महत्ता उससे भी ऊँची है। धर्म शास्त्र उससे भी श्रेष्ठ है। उनसे ऊपर उपनिषद् हैं और उनसे भी श्रेष्ठ गायत्री है।
चारों वेदों में विश्व का समस्त ज्ञान- विज्ञान भरा हुआ है। भौतिक और आध्यात्मिक, लौकिक और पारलौकिक सुख- शान्ति के सारे भण्डार वेदों में छिपे हुए हैं। समस्त प्रकार की सिद्धियों और शक्तियों को प्राप्त करने के रहस्य वेदों में मौजूद हैं। गायत्री वेद माता हैं। उसमें वेदों में सन्निहित समस्त विद्याएँ बीज रूप में मौजूद हैं, उसका सार गायत्री में समाया हुआ है। इसलिए गायत्री उपासना करने वाला वेद- विद्या के समस्त लाभों को प्राप्त कर सकता है।
वेद माता गायत्री की महत्ता प्रतिपादन ग्रंथों में इस प्रकार किया गया है-
गायत्र्येव परो विष्णु गायत्र्येव परः शिवः ।।
गायत्र्येव परो ब्रह्मा गायत्र्येव त्रयी ततः ॥
अर्थात्- गायत्री में ब्रह्मा, विष्णु, महेश की तीनों शक्तियाँ समाई हुई हैं, गायत्री में वेदत्रयी भी सन्निहित है।
गायत्री वेद जननी गायत्री पाप नाशिनी ।।
गायवीत्रयास्तु परन्नस्ति दिविचेह च पावनम् ॥
गायत्री वेदों की जननी है, गायत्री पापों का नाश करने वाली है, गायत्री से अधिक श्रेष्ठ पवित्र करने वाला और कोई मन्त्र इस पृथ्वी और स्वर्ग पर नहीं है ।।
इति वेद पवित्राण्एयर्भिहितानि एम्यः सावित्री विशिष्यते ।।
-शंखस्मृति
यों तो सभी वेद मंत्र पवित्र हैं, पर उन सबों में गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है ।।
त्रिम्यएव तु वेदेभ्यः पादं पादमद्दुहत् ।।
तदित्यचोऽस्या सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजापतिः ॥
-मनु० २- ७७
अर्थात्- परमेष्ठी प्रजापति ने तीन वेदों का दोहन करके उससे गायत्री के तीन पाद बनाये ।।
ओंकार पूर्विकास्तिस्त्रों महाव्याहृतयो व्ययाः ।।
त्रिपदाचैव सावित्री विज्ञेयं ब्रह्मणो मुखम् ॥
अर्थात्- ॐकार पूर्वक तीन महाव्याहृतियों समेत त्रिपदा गायत्री की वेद का मुख ही जानना चाहिए ।।
गायत्री की यदि विधिवत् शास्त्रीय प्रक्रियाओं के आधार पर उपासना की जाय तो वह मंत्र रूप होकर चमत्कारी परिणाम उत्पन्न करती है। जिस प्रकार प्रार्थना में भावना प्रधान है, उसी प्रकार मंत्र में साधना- विधान की प्रधानता है। भावना विहीन प्रार्थना निष्फल जाती है, उसी प्रकार साधना विधान उपेक्षा करने पर मंत्र का समुचित परिणाम नहीं होता ।।
गायत्री जहाँ प्रार्थना स्वरूप है, वहाँ वह महान रहस्यमयी मन्त्र शक्ति भी है। मन्त्र रूप में इस अनादि शक्ति की उपासना करने वाले साधक बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री का माहात्म्य बताते हुए साधना ग्रंथों में कहा गया है -
तदित्यृच समोनास्ति मन्त्रे वेद चतुष्टये ।।
सर्वे वेदश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांस च ।।
सम्मानि कलया प्राहुमुनयो न तादित्यृच ।।
-विश्वामित्र
इस गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मन्त्र नहीं ।। समस्त वेद, यज्ञ, दान, तप भी गायत्री की एक कला के बराबर नहीं हो सकते, ऐसा ऋषियों ने कहा है।
सर्वेपांजप सूक्तानामृचाञ्च यजुषान्त ता ।।
साम्नां चैकाक्षरादीनां गायत्री परमो जपः ॥
तस्याश्चैव तु ओंकारो ब्रह्मणा य उपासितः ।।
आभ्यान्तु परमं जप्यं त्रैलोक्येऽपि न विद्यते ॥
-वृहत पाराशर संहिता
सम्पूर्ण वेदों, सूक्तों तथा प्रणव आदि मन्त्रों में सबसे श्रेष्ठ गायत्री जप ही है। जिस ओंकार की उपासना ब्रह्माजी द्वारा की गई वह भी गायत्री का ही अंग है। इनसे बढ़कर तीनों लोकों में और कोई जप संसार में नहीं है।
यतःसाक्षात् सर्व देवतात्मनः सर्वात्म द्योतकः
सर्वात्म प्रतिपादकोऽय गायत्री मन्त्रः ।।
-संध्या भाष्य
यह गायत्री मन्त्र साक्षात् सर्व देवता स्वरूप, सर्व शक्तिमान्, सर्वत्र प्रकाश करने वाला तथा परमात्मा का प्रतिपादन करने वाला है।
दुर्लभा सर्व गायत्री प्रणवान्विता ।।
न गायत्र्याधिकं किंचित् त्रधीषु परिगीयते ॥
अर्थात्- इस संसार में गायत्री के समान परम पवित्र और कोई दुर्लभ मंत्र नहीं है। श्रुति में गायत्री से अधिक और कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है।
अष्टादशसु विद्यासु मीमांसाति गरीयसी ।।
तपोपितर्क शास्त्राणि पुराणं तेभ्य एवं च ॥
ततोपि धर्म शास्त्राणि तेभ्योगुर्वो श्रुतिर्द्विज ।।
तपोप्पुनिपच्छेष्टा गायत्री च ततोधिका ॥
-वृ० संध्या भाष्य
अठारहों विद्याओं में मीमांसा श्रेष्ठ है। उनसे भी न्याय शास्त्र श्रेष्ठ है। पुराणों की महत्ता उससे भी ऊँची है। धर्म शास्त्र उससे भी श्रेष्ठ है। उनसे ऊपर उपनिषद् हैं और उनसे भी श्रेष्ठ गायत्री है।
चारों वेदों में विश्व का समस्त ज्ञान- विज्ञान भरा हुआ है। भौतिक और आध्यात्मिक, लौकिक और पारलौकिक सुख- शान्ति के सारे भण्डार वेदों में छिपे हुए हैं। समस्त प्रकार की सिद्धियों और शक्तियों को प्राप्त करने के रहस्य वेदों में मौजूद हैं। गायत्री वेद माता हैं। उसमें वेदों में सन्निहित समस्त विद्याएँ बीज रूप में मौजूद हैं, उसका सार गायत्री में समाया हुआ है। इसलिए गायत्री उपासना करने वाला वेद- विद्या के समस्त लाभों को प्राप्त कर सकता है।
वेद माता गायत्री की महत्ता प्रतिपादन ग्रंथों में इस प्रकार किया गया है-
गायत्र्येव परो विष्णु गायत्र्येव परः शिवः ।।
गायत्र्येव परो ब्रह्मा गायत्र्येव त्रयी ततः ॥
अर्थात्- गायत्री में ब्रह्मा, विष्णु, महेश की तीनों शक्तियाँ समाई हुई हैं, गायत्री में वेदत्रयी भी सन्निहित है।
गायत्री वेद जननी गायत्री पाप नाशिनी ।।
गायवीत्रयास्तु परन्नस्ति दिविचेह च पावनम् ॥
गायत्री वेदों की जननी है, गायत्री पापों का नाश करने वाली है, गायत्री से अधिक श्रेष्ठ पवित्र करने वाला और कोई मन्त्र इस पृथ्वी और स्वर्ग पर नहीं है ।।
इति वेद पवित्राण्एयर्भिहितानि एम्यः सावित्री विशिष्यते ।।
-शंखस्मृति
यों तो सभी वेद मंत्र पवित्र हैं, पर उन सबों में गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्ठ है ।।
त्रिम्यएव तु वेदेभ्यः पादं पादमद्दुहत् ।।
तदित्यचोऽस्या सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजापतिः ॥
-मनु० २- ७७
अर्थात्- परमेष्ठी प्रजापति ने तीन वेदों का दोहन करके उससे गायत्री के तीन पाद बनाये ।।
ओंकार पूर्विकास्तिस्त्रों महाव्याहृतयो व्ययाः ।।
त्रिपदाचैव सावित्री विज्ञेयं ब्रह्मणो मुखम् ॥
अर्थात्- ॐकार पूर्वक तीन महाव्याहृतियों समेत त्रिपदा गायत्री की वेद का मुख ही जानना चाहिए ।।