Books - गायत्री सर्वतोन्मुखी समर्थता की अधिष्ठात्री
Language: HINDI
गायत्री माता का परिचय
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गायत्री वह शक्ति केन्द्र है, जिसके अन्तर्गत विश्व के सभी दैहिक, दैविक, भौतिक छोटे- बड़े शक्ति- तत्वों का समावेश है। यह छोटे- बड़े शक्ति तत्व अपनी- अपनी क्षमता और सीमा के अनुसार संसार के विभिन्न कार्यों का सम्पादन करते है, इन्हीं का नाम देवता है। ये ईश्वरीय सत्ता के अन्तर्गत उसी के अंश रूपी इकाइयाँ हैं, जो सृष्टि संचालन के विशाल कार्यक्रम में अपना कार्य भाग पूरा करते रहते हैं। जिस प्रकार एक शासन- तन्त्र के अन्तर्गत अनेक अधिकारी अपनी- अपनी जिम्मेदारी निबाहते हुए सरकार का कार्य- संचालन करते हैं, जिस प्रकार एक मशीन के अनेक पुर्जे अपने- अपने स्थान पर अपने- अपने क्रियाकलापों को जारी रखते हुए उस मशीन की प्रक्रिया को सफल बनाते हैं, उसी प्रकार ये देव तत्व भी ईश्वरीय सृष्टि- व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की विधि- व्यवस्था का सम्पादन करते हैं।
गायत्री एक सरकार एवं मशीन के सदृश है, जिसके अंग प्रत्यंगों के रूप में सभी देवता गुत्थे हुए हैं ।। ‘गायत्री’ के तीन अक्षर सत्, रज, तम तीन तत्वों के प्रतीक हैं। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश- सरस्वती, लक्ष्मी, काली कहते हैं। इन्हीं तीनों श्रेणियों में विश्व की सभी स्थूल एवं सूक्ष्म शक्तियों की गणना होती है। जितनी भी शुभ- अशुभ, अनुपयोगी, शान्ति- अशान्ति की प्रक्रियायें दृष्टिगोचर होती हैं वे इन्हीं सत, रज, तम के अन्तर्गत हैं और यह तीन तत्व गायत्री के तीन चरण हैं। इस प्रकार समस्त शक्ति तत्वों का मूल आधार गायत्री ही ठहरहती है ।।
ब्रह्म, इस विशाल सृष्टि का मूल कारण तो अवश्य है पर वह स्वभावतः साक्षी और दृष्टा के रूप में स्थित रहता हुआ स्वयं अपने आप में निष्क्रिया है। उसकी ‘गतिशीलता’ ही वह तत्व है, जिसके द्वारा जगत् के स्थूल और सूक्ष्म विभिन्न कार्यक्रम सम्पन्न होते हैं। इस गतिशीलता को ही प्रकृति, माया, चेतना, ब्रह्मापत्नी आदि नामों से पुकारा गया है। यही गायत्री है।