Books - गायत्री की चमत्कारी साधना
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Language: HINDI
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गायत्री रहस्य
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गायत्री वेद की माता है। सभी वेदों में उसको महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अथर्व वेद के. 19 सू. 71 मं. 1 में गायत्री की बड़ी महिमा गाई है। ऋग्वेद में 3-62-60 में और साम वेद के 30-6-10 में गायत्री मन्त्र है। यजुर्वेद में तो उसे चार बार दिया गया है 3-35, 22-9, 30-2 और 36-3 में यही मन्त्र है। इसके अतिरिक्त अन्य धर्म ग्रन्थों में कितने कितने बार गायत्री मन्त्र दिया हुआ है इसकी सूची नीचे दी जाती है। तैत्तिरीय आरण्यक 2 बार, आन्ध्र आरण्यक 1, मैत्रेय ब्राह्मण 4, कौशीतकी ब्राह्मण 2, गोपथ ब्राह्मण 1, दैवत ब्राह्मण 1, शतपथ ब्राह्मण 3, ब्रह्मदारण्यक उपनिषद् 1, नारायणी उपनिषद् 1, बाराही उपनिषद् 1, जैमिनीय उपनिषद् 1, श्वेताश्वेतर 1, आश्वलयन श्रौतसूत्र 2, शांखायन श्रौत सूत्र 5, आपस्तम्ब सूत्र 2, शंखा. ग्रह्य सूत्र 3, कौशीतकी सूत्र 1, साममन्त्र ब्राह्मण 1, खादिर गृह्य सूत्र, योधायन धर्म शास्त्र 1, मानव गृह्य सूत्र 3, मानव श्रौत सूत्र 1, मानव धर्म शास्त्र 1, मैत्रेय उपनिषद् 1, इसके अतिरिक्त अन्य अनेक ग्रन्थों में जो हमारे दृष्टिगोचर नहीं हुए हैं गायत्री का समावेश होना सम्भव है। इतने अधिक ग्रन्थों में इतनी प्रमुखता के साथ गायत्री के अतिरिक्त और किसी मन्त्र का उल्लेख नहीं है, इससे प्रकट होता है कि इस मन्त्र को हिन्दू धर्म में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है।
संसार की समस्त विद्याओं के भण्डार 24 महाग्रन्थ हैं। 4 वेद, 4 उपवेद, 4 ब्राह्मण, 6 दर्शन और 6 वेदांग = 24। गायत्री के 24 अक्षरों में से एक एक अक्षर लेकर इन 24 ग्रन्थों की रचना हुई है, ऐसा कई तत्वज्ञों का मत है।
हृदय जीवन का और ब्रह्मरन्ध्र ईश्वर का स्थान है। हृदय से ब्रह्मरन्ध्र 24 अंगुल दूर है। एक एक अक्षर से एक एक अंगुल की दूरी करके जीवन गायत्री द्वारा ब्रह्म में लीन हो सकता है, ऐसा योगी लोग कहते हैं।
शरीर में आठ आठ अक्षरों के तीन पदों के अन्तर्गत शरीर के सब अंग प्रत्यंग आ जाते हैं अर्थात् इन 24 अक्षरों के अन्तर्गत सारा शरीर आ जाता है। (1) शिर, नेत्र, श्रोत प्राण=8 अक्षर (2) मुख, हस्त, पाद, नाभि=8 अक्षर (3) कण्ठ, त्वचा, गुदा, शिश्न=8 अक्षर। इस प्रकार 3 पदों में कुल 24 अक्षर हुए। चौबीस अक्षर गायत्री के एक एक अंश से एक एक अंग की रचना होकर मनुष्य का पूरा शरीर बना है, ऐसा भी कहा जाता है।
शरीर की सुषुम्ना नाड़ी में 24 कशेरुकाएं हैं (ग्रीवा में 7, पीठ में 12, कमर में 5=24) गायत्री में 24 अक्षर हैं। शरीर में 21 प्राण सूत्र हैं गायत्री में 6 उदात्त 5 अनुदात्त और लघुमाएं तथा अर्धाक्षर 20 का फल 10 इन सब का जोड़ 21 होता है। शरीर में 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, 5 प्राण, 5 तत्व और 4 अन्तःकरण हैं, गायत्री के अक्षरों की तरह इन सब का जोड़ भी 24 होता है। एक दूसरे प्रकार से गणना करने पर शरीर के चार भागों में से प्रत्येक के 24-24 अंग गिने जाते हैं। यथा-निचला भाग-पैरों के तलवे 2, पैरों के ऊपर की पीठ 2, पैरों की उंगलियां 10, टखने 4, पिण्डलियां 2, जानु 2=24। मध्य भाग-सीने के बाजू 2, आमाशय 1, पेट 1, नाभि 1, नितम्ब 2, गुदा, शिश्न 1, अण्डकोष 2, कमर के भाग 2, कोख 2, रीढ़ 1, पीठ भाग 2, कंठ की हंसली 2, फुफ्फुस 2, कण्ठ 1, अपान 1=24। भुजाओं का भाग—कन्धे 2, हथेलियां 2, हाथों की पीठ 2, उंगलियां 10, कलाइयां 2, बांहें 2, कोहनी 2, दंड 2=24। शिर भाग—पिछला भाग 1, चोटी 1, तालु 1, मस्तक 1, त्रिकुटी 1, भृकुटी 1, पलकें 4, आंखें 2, नाक 1, नथुने 2, कान 2, गाल 2, जिह्वा 1, होठ 2, ठोडी 1=24। शरीर और गायत्री का चौबीस के अंक द्वारा बड़ा सुन्दर समीकरण होता है।
24 अक्षरा गायत्री की साधना द्वारा मनुष्य को 24 शक्तियों में दिव्य प्रेरणा प्राप्त होती है। यह चौबीसों शक्तियां क्रमशः बढ़ती हैं, निखरती हैं, प्रकाशित होती हैं और पवित्रता करती हैं। (1) काल, (2) पराक्रम, (3) आकर्षण, (4) प्रेरणा, (5) गति, (6) प्रचण्डता, (7) विरेचन, (8) क्रिया, (9) उत्साह, (10) स्मरण, (11) निश्चय, (12) इच्छा, (13) प्रेम, (14) द्वेष, (15) संयोग, (16) परीक्षण, (17) नियोजन, (18) विभाजन, (19) श्रवण, (20) स्पर्श, (21) दृष्टि, (22) स्वाद, (23) गंध, (24) ज्ञान। इन चौबीस शक्तियों में गायत्री माता की कृपा से प्रेरणा पाकर मनुष्य अपने इस लोक और परलोक को आनन्द मय बना सकता है।
वृहदारण्यक उपनिषद् में गायत्री का माहात्म्य इस प्रकार लिखा है:—
‘‘गायत्री की कृपा से उपासक को पाप रूप भयंकर शत्रु और पापी पुरुष कभी प्राप्त नहीं होते। गायत्री जानने वाला विद्वान जिस पापी पुरुष से द्वेष करता है उसकी सारी अभिलाषाएं मिट्टी में मिल जाती हैं। गायत्री का उपासक जिसको शाप देता है वह अवश्य ही नष्ट हो जाता है। गायत्री का मुख अग्नि के समान है, उस पर डाला हुआ पाप रूपी ईंधन जल कर भस्म हो जाता है।’’
संसार की समस्त विद्याओं के भण्डार 24 महाग्रन्थ हैं। 4 वेद, 4 उपवेद, 4 ब्राह्मण, 6 दर्शन और 6 वेदांग = 24। गायत्री के 24 अक्षरों में से एक एक अक्षर लेकर इन 24 ग्रन्थों की रचना हुई है, ऐसा कई तत्वज्ञों का मत है।
हृदय जीवन का और ब्रह्मरन्ध्र ईश्वर का स्थान है। हृदय से ब्रह्मरन्ध्र 24 अंगुल दूर है। एक एक अक्षर से एक एक अंगुल की दूरी करके जीवन गायत्री द्वारा ब्रह्म में लीन हो सकता है, ऐसा योगी लोग कहते हैं।
शरीर में आठ आठ अक्षरों के तीन पदों के अन्तर्गत शरीर के सब अंग प्रत्यंग आ जाते हैं अर्थात् इन 24 अक्षरों के अन्तर्गत सारा शरीर आ जाता है। (1) शिर, नेत्र, श्रोत प्राण=8 अक्षर (2) मुख, हस्त, पाद, नाभि=8 अक्षर (3) कण्ठ, त्वचा, गुदा, शिश्न=8 अक्षर। इस प्रकार 3 पदों में कुल 24 अक्षर हुए। चौबीस अक्षर गायत्री के एक एक अंश से एक एक अंग की रचना होकर मनुष्य का पूरा शरीर बना है, ऐसा भी कहा जाता है।
शरीर की सुषुम्ना नाड़ी में 24 कशेरुकाएं हैं (ग्रीवा में 7, पीठ में 12, कमर में 5=24) गायत्री में 24 अक्षर हैं। शरीर में 21 प्राण सूत्र हैं गायत्री में 6 उदात्त 5 अनुदात्त और लघुमाएं तथा अर्धाक्षर 20 का फल 10 इन सब का जोड़ 21 होता है। शरीर में 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, 5 प्राण, 5 तत्व और 4 अन्तःकरण हैं, गायत्री के अक्षरों की तरह इन सब का जोड़ भी 24 होता है। एक दूसरे प्रकार से गणना करने पर शरीर के चार भागों में से प्रत्येक के 24-24 अंग गिने जाते हैं। यथा-निचला भाग-पैरों के तलवे 2, पैरों के ऊपर की पीठ 2, पैरों की उंगलियां 10, टखने 4, पिण्डलियां 2, जानु 2=24। मध्य भाग-सीने के बाजू 2, आमाशय 1, पेट 1, नाभि 1, नितम्ब 2, गुदा, शिश्न 1, अण्डकोष 2, कमर के भाग 2, कोख 2, रीढ़ 1, पीठ भाग 2, कंठ की हंसली 2, फुफ्फुस 2, कण्ठ 1, अपान 1=24। भुजाओं का भाग—कन्धे 2, हथेलियां 2, हाथों की पीठ 2, उंगलियां 10, कलाइयां 2, बांहें 2, कोहनी 2, दंड 2=24। शिर भाग—पिछला भाग 1, चोटी 1, तालु 1, मस्तक 1, त्रिकुटी 1, भृकुटी 1, पलकें 4, आंखें 2, नाक 1, नथुने 2, कान 2, गाल 2, जिह्वा 1, होठ 2, ठोडी 1=24। शरीर और गायत्री का चौबीस के अंक द्वारा बड़ा सुन्दर समीकरण होता है।
24 अक्षरा गायत्री की साधना द्वारा मनुष्य को 24 शक्तियों में दिव्य प्रेरणा प्राप्त होती है। यह चौबीसों शक्तियां क्रमशः बढ़ती हैं, निखरती हैं, प्रकाशित होती हैं और पवित्रता करती हैं। (1) काल, (2) पराक्रम, (3) आकर्षण, (4) प्रेरणा, (5) गति, (6) प्रचण्डता, (7) विरेचन, (8) क्रिया, (9) उत्साह, (10) स्मरण, (11) निश्चय, (12) इच्छा, (13) प्रेम, (14) द्वेष, (15) संयोग, (16) परीक्षण, (17) नियोजन, (18) विभाजन, (19) श्रवण, (20) स्पर्श, (21) दृष्टि, (22) स्वाद, (23) गंध, (24) ज्ञान। इन चौबीस शक्तियों में गायत्री माता की कृपा से प्रेरणा पाकर मनुष्य अपने इस लोक और परलोक को आनन्द मय बना सकता है।
वृहदारण्यक उपनिषद् में गायत्री का माहात्म्य इस प्रकार लिखा है:—
‘‘गायत्री की कृपा से उपासक को पाप रूप भयंकर शत्रु और पापी पुरुष कभी प्राप्त नहीं होते। गायत्री जानने वाला विद्वान जिस पापी पुरुष से द्वेष करता है उसकी सारी अभिलाषाएं मिट्टी में मिल जाती हैं। गायत्री का उपासक जिसको शाप देता है वह अवश्य ही नष्ट हो जाता है। गायत्री का मुख अग्नि के समान है, उस पर डाला हुआ पाप रूपी ईंधन जल कर भस्म हो जाता है।’’