Books - गायत्री महामंत्र की व्यावहारिक साधना
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
गायत्री साधना का व्यावहारिक स्वरूप
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
परम पूज्य गुरुदेव ने गायत्री को युग धर्म का आधार बनाया। चौबीस अक्षरों के इस महामंत्र में कितना ज्ञान-विज्ञान भरा है—यह जिज्ञासा और बोध उन्हीं का अनुदान है। उनसे पहले शायद ही किसी महापुरुष ने कहा हो कि इसके अक्षर-अक्षर में शास्त्र भरे पड़े हैं। अगर किसी ने कहा भी हो जिसकी संभावना बिल्कुल नहीं है, फिर भी मान लें कि किसी ने संकेत किया हो तो भी उसे उजागर करने का पुरुषार्थ तो किसी ने कदापि ही नहीं किया।
पूज्य गुरुदेव कहा करते थे कि गायत्री महाविद्या है, वह महाविज्ञान भी है। उसका तत्वदर्शन है, तो उसके साथ साधना भी है, जिसके तत्वदर्शन का साक्षात किया जा सकता है। तत्वदर्शन आधार है, सिद्धान्त है और विज्ञान उसका प्रायोगिक पक्ष, वह स्वरूप जो दिखाई देता है। पूज्य गुरुदेव ने अपनी लेखनी और वाणी से गायत्री के इन दोनों पक्षों को प्रकट किया है। इस विषय को उन्होंने इतनी तरह से समझाया है कि कदाचित ही कोई बात कहने से रह गई हो और तरीका भी शायद ही कोई बचा हो, जो उन्होंने समझाने के लिए नहीं अपनाया।
पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों को पुस्तक रूप में सामने लाने का सिलसिला शुरू करते हुए हमने आरम्भ उनके विषय पर दिए प्रवचनों से किया है। प्रवचन अब से चौबीस वर्ष पहले गायत्री तपोभूमि, मथुरा में दिए गए थे। ये प्रवचन जिन दिनों दिए गए, उन दिनों गुरुदेव गायत्री के ऐसे उपासक तलाश कर रहे थे, जिन्हें वे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर सकें। उन्हें प्रमाण के तौर पर सामने लाकर यह कह सकें कि गायत्री का उपासक ऐसा होता है और गायत्री उपासना का असली स्वरूप यह है। प्रवचन ऐसे निष्ठावान साधकों को सम्बोधित करते हुए दिए गए हैं, जिनमें साधना की लगन तो है, पर साधना की ऐसी कोई विधि नहीं है, जो उन्हें गायत्री महाविद्या को सिद्ध करा सके। गायत्री उपासना के नाम पर तब एक घिसा-पिटा ढर्रा ही प्रचलित था, जिसका कर्मकाण्ड पक्ष तो प्रबल होता था। उस कर्मकाण्ड की आत्मा, प्रेरणा और संदेश की तब न कहीं चर्चा होती थी और न ही लोग उससे अवगत हैं। कोई बहुमूल्य यंत्र उपकरण तो अपने पास हो, लेकिन उसके उपयोग और संचालन की विधि से हम बिल्कुल अवगत नहीं हों, उस स्थिति में वह यन्त्र हमारे किसी काम का नहीं रह जाता और उसकी पूजा अर्चना से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। यही स्थिति गायत्री साधना और विज्ञान की उन दिनों थी। पूज्य गुरुदेव अपनी लेखनी और वाणी से तब इस अभाव की पूर्ति करने लगे थे। यह बहुत प्रारंभिक दिनों की बात है, जब एकदम ‘‘क, ख, ग’’ से शुरू करा रहे थे। इन प्रवचनों से उन बहुत से उपासकों को दिशा और प्रेरणा मिलेगी, जो आज भी कर्मकाण्ड में, उस बहुमूल्य यंत्री पूजा-अर्चना में ही उलझे हैं और उसके उपयोग की विधि नहीं जानने के कारण दीर्घकाल तक व्यस्त रहने के बावजूद कुछ भी हासिल नहीं कर पाते।
पुस्तक के विषय और प्रतिपादन के सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहना आवश्यक नहीं है। पढ़ेंगे तो ही पायेंगे कि इन आधारभूत बातों से परिचित न होने के कारण भ्रम जंजाल में कैसे भटकते रहे हैं? जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि पुस्तक में गायत्री साधना का व्यावहारिक स्वरूप पूज्य गुरुदेव ने अपनी अनूठी और ओजस्वी शैली में समझाया है। अगर इतना आरम्भ किया जा सके, तो आगे का मार्ग स्वयं ही आलोकित हो उठेगा। हाथ में पकड़े दीए की रोशनी उसी क्रम से मार्ग प्रकाशित करती चलेगी जिस क्रम से अपने कदम उठते जाते हैं। पुस्तक के परिचय में सिर्फ इतना ही, बाकी पूज्य गुरुदेव और उनका अनुग्रह स्वयं प्रमाण है।
— प्रकाशक