Books - गायत्री महात्म्य
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Language: HINDI
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अथ गायत्री महात्म्य
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गायत्री की महिमा को वेद, शास्त्र, पुराण सभी वर्णन करते हैं। अथर्व वेद में गायत्री की स्तुती की गई है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा है।
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम् ।
आयुः प्राणं प्रजा पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् ।।
(अथर्ववेद-19-71-1)
अथर्ववेद में स्वयं वेद भगवान ने कहा है—
मेरे द्वारा स्तुति की गई, द्विजों को पवित्र करने वाली वेदमाता गायत्री आयु, प्राण, शक्ति, पशु, कीर्ति, धन, ब्रह्मतेज प्रदान करें।
यथामधु च पुष्पेभ्यो घृतं दुग्धाद्रसात्पयः ।
एवं हि सर्ववदानां गायत्री सार मुच्यते ।।
—व्यास
जिस प्रकार पुष्पों का सारभूत मधु, दूध का घृत, रसों का सारभूत दूध है उसी प्रकार गायत्री-मन्त्र समस्त वेदों का सार है।
तदित्यृचः समो नास्ति मन्त्रो वेदाचतुष्टये ।
सर्वे वेदाश्च यज्ञाश्च दानानि च तपांसि च ।
समानि कलया प्राहुर्मुनयो नतदित्यृचः ।।
—विश्वामित्रः
गायत्री मन्त्र के समान मन्त्र चारों वेदों में नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप, गायत्री मन्त्र की एक कला के समान नहीं है ऐसा मुनि लोग कहते हैं।
गायत्री छन्दसां मातेति ।।2।।
—महानारायणोपनिषद् ।15।1
गायत्री वेदों की माता अर्थात् आदि कारण है।
त्रिभ्य एव तु वेदेभ्यः पादम्पादमदूहुहत् ।
तदित्यचोऽस्याः सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजायति ।।
—मनु. अ. 2।77
परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्माजी ने तीन ऋचा वाली गायत्री के तीनों चरणों को तीन वेदों से सारभूत निकाला।
गायत्र्यास्तु परन्नास्ति शोधनं पापकर्मणाम् ।
महाव्याहृति संयुक्ता प्रणवेन च संजपेत् ।।
—सम्वर्त स्मृ. श्लो. 218
पाप को नाश करने में समर्थ गायत्री के समान अन्य कोई मन्त्र नहीं है, अतः प्रणव तथा महाव्याहृतियों सहित गायत्री-मन्त्र का जाप करे।
नान्नतोयं समं दानं न चाहिंसा परं तपः ।
न गायत्री समं जाप्यं न व्याहृति समं हुतम् ।।
सूत संहिता यज्ञ वैभव खण्ड अ. 6।30
अन्न और जन के समान दान, अहिंसा के समान तप, गायत्री के समान जप, व्याहृति के समान अग्निहोत्र कोई भी नहीं है।
हस्तत्राणप्रदा देवी पततां नरकार्णवे ।
तस्मात्तामभ्यसेन्नित्यं ब्राह्मणो हृदये शुचिः ।।
गायत्री नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली है अतः द्विज नित्य ही पवित्र हृदय से गायत्री का अभ्यास करे अर्थात् जपे।
गायत्री चैव वेदाश्च तुलया समतोलयन् ।
वेदा एकत्र सांगास्तु गायत्री चैकतः स्थिता ।।
—योगी याज्ञवल्क्य
गायत्री और समस्त वेदों को तराजू में तोला गया। षट् अंगों सहित वेद एक ओर रखे गये और गायत्री को एक ओर रखा गया।
सारभूतास्तु वेदानां गुह्योपनिषदो मताः ।
ताभ्यः सारस्तु गायत्री तिस्रो व्याहृतयस्तथा ।।
—योगी याज्ञ.
वेदों का सार उपनिषद् हैं और उपनिषदों का गायत्री और तीनों महाव्याहृतियां हैं।
गायत्री वेदजननी गायत्री पापनाशिनी ।
गायत्र्यास्तु परन्नास्ति दिविचेह च पावनम् ।।
गायत्री वेदों की जननी है। गायत्री पापों को नाश करने वाली है। गायत्री से अन्य कोई पवित्र करने वाला मन्त्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है।
तद्यथाग्निर्देवाना, ब्राह्मणो मनुष्याणां ।
वसन्तऋतुनामवं गायत्री छन्दसाम् ।।
—गोपथ ब्राह्मण
जिस प्रकार देवताओं में अग्नि, मनुष्यों में ब्राह्मण, ऋतुओं में बसन्त ऋतु श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त छन्दों में गायत्री श्रेष्ठ है।
अष्टादशसु विद्यासु मीमांसाति गरीयसा ।
ततोऽपि तर्क शास्त्राणि पुराणां तेभ्य एव च ।।
ततोऽपि धर्मशास्त्राणि तेभ्यो गुर्बी श्रुतिः द्विज ।
ततोऽप्युपनिषच्छष्ठा गायत्री च ततोऽधिका ।।
दुर्लभ सर्वमन्त्रेषु गायत्री प्रणवान्विता ।
—वृह0 सं0 भा0
अठारह विद्याओं में मीमांसा अत्यन्त श्रेष्ठ है। मीमांसा से तर्कशास्त्र श्रेष्ठ है और तर्क शास्त्र से पुराण श्रेष्ठ हैं।
पुराणों में भी धर्मशास्त्र श्रेष्ठ हैं, हे द्विज! धर्मशास्त्रों से वेद श्रेष्ठ हैं और वेदों में उपनिषद् श्रेष्ठ हैं और उपनिषदों से गायत्री-मन्त्र अत्यधिक श्रेष्ठ है।
प्रणव युक्त यह गायत्री समस्त वेदों में दुर्लभ है।
नास्ति गङ्गा समं तीर्थ न देवाः केशवात्परः ।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतं न भविष्यति ।।
वृ0 यो0 यज्ञ0 अ0 102।79
गङ्गाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है, केशव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं है। गायत्री-मन्त्र के जप से श्रेष्ठ कोई जप न आज तक हुआ और न होगा।
सर्वोषां जप सूक्तानामृचाश्च यजुषां तथा ।
साम्नां चैकाक्षरादीनां गायत्री परमो जपः ।।
—वृ. पाराशर. स्मृति अ. 4।4
समस्त जप सूक्तों में, ऋग्यजु सामवेदों में तथा एकाक्षरादि मन्त्रों में गायत्री-मन्त्र का जप परम श्रेष्ठ है।
एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणयामाः परन्तपाः ।
सावित्र्यास्तु परन्नास्ति पावनं परमं स्मृतम् ।।
—ममु. स्मृति. अ. 2।83
एकाक्षर अर्थात् ‘ओ३म्’ परब्रह्म है। प्राणयाम परम तप है और गायत्री-मन्त्र से बढ़कर पवित्र करने वाला कोई भी मन्त्र नहीं है।
गायत्र्या परमं नास्ति दिवि चेह न पावनम् ।
हस्तत्राणप्रदादेवी पततां नरकार्णवे ।।
—शङ्ख स्मृति. अ. 12।25
नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली गायत्री के समान पवित्र करने वाली वस्तु या मन्त्र पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में भी नहीं है।
गायत्री चैव वेदाश्च ब्रह्मणा तोलिता पुरा ।
वेदेभ्यश्च चतुस्रेभ्यो गायत्र्यतिगरीयसी ।।
—वृ. पाराशर स्मृति अ. 5।16
प्राचीनकाल में ब्रह्माजी ने गायत्री को वेदों से तोला। परन्तु चारों वेदों से गायत्री का पल्ला भारी रहा।
सोमादित्यान्वयः सर्वे राघवाः कुरुवस्तथा ।
पठन्ति शुचयो नित्यं सावित्रीं परमां गतिम् ।।
—महाभारत अनु. पर्व. अ. 15।78
हे युधिष्ठिर! सम्पूर्ण चन्द्रवंशी, सूर्यवंशी, रघुवंशी तथा कुरुवंशी नित्य ही पवित्र होकर परमगतिदायक गायत्री-मन्त्र का जप करते हैं।
बहुना निमिहोक्तेन यथावत् साधु साधिता ।
द्विजन्मानमियं विद्या सिद्धा कामदुधास्मृता ।।
यहां पर अधिक कहने से क्या लाभ? अच्छी प्रकार सिद्धि की गई यह गायत्री विद्या द्विज जाति को कामधेनु कहा गया है।
सर्व वेदोधृतः सारो मन्त्रोऽयं समुदाहृतः ।
ब्रह्मादेव्यादि गायत्री परमात्मा समीरितः ।।
यह गायत्री-मन्त्र समस्त वेदों का सार कहा गया है। गायत्री ही ब्रह्मा आदि देवता है। गायत्री ही परमात्मा कही गई है।
या नित्या ब्रह्मगायत्री सैवगङ्गा न संशयः ।
सर्व तीर्थमयी गंगा तेन गंगा प्रकीर्तिता ।।
—गायत्री तन्त्र
गंगा सर्व तीर्थमय होने से ‘गंगा’ कहलाती है। वह गंगा ब्रह्म गायत्री का ही रूप है।
सर्वशास्त्र मयीगीता गायत्री सैव निश्चिता ।
गयातीर्थ न गोलोकं गायत्री रूप मद्भुतम् ।।
—गायत्री तन्त्र
गीता में सब शास्त्र भरे हुए हैं। वह गीता निश्चय ही गायत्री रूप है। गया तीर्थ और गौलोक यह भी गायत्री के ही रूप हैं।
अशुचिर्वा शुचिर्वापि गच्छन् तिष्ठन् यथा तथा ।
गायत्रीः प्रजपेद्वीमान् जपात् पापान्निवर्तते ।।
—गायत्री तन्त्र
अपवित्र हो अथवा पवित्र हो, चलता हो अथवा बैठा हो अथवा जिस भी स्थिति में हो, बुद्धिमान मनुष्य गायत्री का जप करता रहे। इस जप के द्वारा पापों से छुटकारा होता है।
मननात् पापतस्त्राति मननात् स्वर्ग मश्नुते ।
मननात् मोक्ष माप्नोति चतुर्वर्ग मयोभवेत् ।।
—गायत्री तन्त्र
गायत्री का मनन करने से पाप छूटते हैं, स्वर्ग प्राप्त होता है और मुक्ति मिलती है तथा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) सिद्ध होते हैं।
गायत्री तु परित्यज्य अन्य मन्त्रामुपासते ।
सिद्धान्नं च परित्यज्य भिक्षामटिति दुर्मति ।।
जो गायत्री को छोड़कर दूसरे मन्त्रों की उपासना करता है, वह दुर्बुद्धि मनुष्य पकाये हुए अन्न को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले पुरुष के समान है ।।43।।
नित्यनैमित्तके माम्ये तीये तप वर्धने ।
गायत्र्यास्तु परं नास्ति इहलोके परत्र च ।।2।।
नित्य, नैमित्तिक, काम्य की सफलता तथा तप की वृद्धि के लिये इस लोक तथा परलोक में गायत्री से बढ़कर कोई नहीं है।
सावित्री जापतो नित्यः स्वर्ग माप्नोति मानव ।
तस्मात् सर्व प्रयत्नेन स्नानः प्रयतमानसः ।
गायत्री तु जपेद् भक्त्या सर्व पाप प्रणाशिनीम् ।।
—शंख स्मृति
गायत्री-मन्त्र जानने वाला मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त करता है। इसी कारण समस्त प्रयत्नों से स्नान कर स्थिर चित्त हो समस्त पाप नाश करने वाली गायत्री का जप करे।