Books - गायत्री महात्म्य
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Language: HINDI
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गायत्री जाप के लाभ
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गायत्री जाप करने से कितना महत्वपूर्ण लाभ होता है, इसका कुछ आभास निम्नलिखित थोड़े से प्रमाणों से जाना जा सकता है। ब्राह्मण के लिए तो इसे विशेष रूप से आवश्यक कहा है, क्योंकि ब्राह्मणत्व का सम्पूर्ण आधार सद्बुद्धि पर निर्भर है और वह सद्बुद्धि गायत्री के बताये हुए मार्ग पर चलने से मिलती है।
सर्वेषां वेदानां गुह्योपनिषत्सार भूतां ततो गायत्री जपेत् ।
(छांदोग्य परिशिष्टम्)
गायत्री समस्त वेदों का और गुह्य उपनिषदों का सार है। इसलिए गायत्री मन्त्र का नित्य जप करे।
सर्व वेद सारभूता गायत्र्यास्तु समर्चना ।
ब्रह्मदयोऽपि सन्ध्यायां तां ध्यायन्ति जपन्ति च ।।
—दे. भा. स्कं. 16 अ. 16।15
गायत्री-मन्त्र का आराधन समस्त वेदों का सारभूत है। ब्रह्मादि देवता भी सन्ध्याकाल में गायत्री का ध्यान करते हैं और जप करते हैं।
गायत्री मात्र निष्णातो द्विजो मोक्षमवाप्नुयात् ।।
—वे. भा. स्कं. 12 अ. 8।90
गायत्री-मात्र की उपासना करने वाला भी ब्राह्मण मोक्ष को प्राप्त होता है।
एहिकामुष्मिकं सर्व गायत्री जपती भवेत् ।
—अग्निपुराण
गायत्री जपने वाले को सांसारिक और पारलौकिक समस्त सुख प्राप्त हो जाते हैं।
योऽवीतेऽहन्यहन्येतां त्रीणिवर्षाण्यतन्छ्रितः ।
स ब्रह्म परमभ्येति वायुभूतः स्वमूर्तिवान् ।।
—मनुस्मृति 2।82
जो मनुष्य तीन वर्ष तक प्रतिदिन गायत्री-मन्त्र जपता है, वह अवश्य ब्रह्म को प्राप्त करता है और वायु के समान स्वेच्छाचारी होता है।
कुर्यादन्यन्न वा कुर्यात् इति प्राह मनुः स्वयं ।
अक्षय मोक्षमवाप्नोति, गायत्री मात्र जापनात् ।।
—शौनकः
इस प्रकार मनुजी ने स्वयं कहा है कि अन्य देवताओं की उपासना करे या न करे, केवल गायत्री के जप से द्विज अक्षय मोक्ष को प्राप्त होता है।
वहुना किमहाक्तेन यथावत् साधु साधिता ।
द्विजन्मानामियं विद्या सिद्धिः कामदुधास्मृता ।।
(शारदायां)
यहां पर अधिक कहने से क्या? अच्छी प्रकार उपासना की गई गायत्री द्विजों के मनोरथ पूर्ण करने वाली कही गई है।
एतया ज्ञातया सर्व वाङ्मयं विदितं भवेत् ।
उपासितं भवित्तेन विश्वं भुवन सप्तकम् ।।
—योगी याज्ञ.
गायत्री के जान लेने से समस्त विद्याओं का वेत्ता हो जाता है और उसने केवल गायत्री की ही उपासना नहीं की अपितु सात लोकों की उपासना करली।
ओंकार पूर्विकस्तिस्रो गायत्रीं यश्च विंदति ।
चरितब्रह्मचर्यश्च स वै श्रोत्रिय उच्यते ।।
—योगी याज्ञ.
जो ब्रह्मचर्य पूर्वक ओंकार, महाव्याहृतियों सहित गायत्री मन्त्र का जप करता है वह श्रोत्रिय है।
एतदक्षरमेतां जपन व्याहृति पूर्वकाम् ।
सन्ध्ययोर्वेदविद्विप्रो वेद पुण्येन मुचयते ।।
—मनुस्मृति अ. 2।78
जो ब्राह्मण दोनों सन्ध्याओं में प्रणवव्याहृति पूर्वग गायत्री मन्त्र का जप करता है, वह वेदों के पढ़ने का फल प्राप्त करता है।
गायत्री जपते यस्तु द्वौ कालौ ब्राह्मणः सदा ।
असत्प्रतिगृहीतोपि सा याति परमां गतिम् ।।
—अग्निपुराण
जो ब्राह्मण सदा सायंकाल और प्रातःकाल गायत्री का जप करता है वह ब्राह्मण अयोग्य प्रतिगृह लेने पर भी परम गति को प्राप्त होता है।
सकृद्यादि जपेद्विद्वान् गायत्रीं परमाक्षरीम ।
तत्क्षणात् संभवेत्सिद्विर्ब्रह्म सायुज्यमाप्नुयात् ।।
—गायत्री पुरश्चरण-28
श्रेष्ठ अक्षरों वाली गायत्री को विद्वान यदि एक बार भी जपे तो तत्वक्षण सिद्धि होती है और वह ब्रह्म की सायुज्यता को प्राप्त करता है।
जप्पेनैव तु संसिद्धयेत् ब्राह्मणो मात्र संशयः ।
कुर्यादन्यन्नवा कुर्यान्मेत्रो ब्राह्मण उच्यते ।।
—मनु. 97
ब्राह्मण अन्य कुछ करे या न करे, परन्तु वह केवल गायत्री जप से ही सिद्धि पा सकता है।
कुर्यादन्यन्नवा कुर्यादनुष्ठानादिकं तथा ।
गायत्री मात्र निष्ठस्तु कृत्यकृत्यो भवेद्विजः ।।
—गायत्री तन्त्र ।8
अन्य अनुष्ठानादिक करे या न करे, गायत्री मात्र की उपासना करने वाला द्विज कृतकृत्य हो जाता है।
सन्ध्यासु चार्घ्य दानं च गायत्री जपमेव च ।
सहस्रत्रितयं कुर्वन्सुरै पूज्यो भवेन्मुने ।।
—गायत्री तन्त्र श्लोक 9
हे मुने! सन्ध्याकाल में सूर्य को अर्घ्यदान और तीन हजार नित्य गायत्री जपने से पुरुष देवताओं में भी पूजनीय हो जाता है।
यदक्षरैक संसिद्धेः स्पर्धते ब्राह्मणोत्तमः ।
हरिशङ्कर कंजोत्थ सूर्योचन्द्र हुताशनैः ।।
—गायत्री पुर. 11
गायत्री के एक अक्षर की सिद्धिमात्र से हरि, शंकर, ब्रह्मा, सूर्य, चन्द्र, अग्नि आदि देवता भी साधक से स्पर्धा करने लगते हैं।
दस सहस्रमभ्यस्ता गायत्री शोधिनी परा ।
लघु अत्रि संहिता
दस हजार जपी हुई गायत्री परम शोधन करने वाली है।
सर्वोषाञ्चैव पापानां संकरे समुपस्थिते ।
दशसार्हासुकाभ्यासो गायत्र्याः शोधनंपरम् ।।
समस्त पापों को तथा संकटों को दस हजार गायत्री का जप नाश करके परम शुद्ध करने वाला है।
गायत्री मेव यो ज्ञात्वा सम्यगश्चोच्यते पुनः ।।
इहामुत्र च युज्योऽसौ ब्रह्मलोकमवाप्नुयात् ।।
—व्यास
जो गायत्री को भली प्रकार जानकर उसका उच्चारण करता है, वह इस लोक और परलोक में ब्रह्म को सायुज्यता को प्राप्त करता है।
मोक्षय च मुमुक्षणां श्री कामानांश्रियेप्तदा ।
विजयाम युयुत्सूनां व्याधि नानामरोगकृत् ।।1।।
—गायत्री पञ्चाङ्ग 1
गायत्री-साधना से मुमुक्षुओं को मोक्ष मिलेगा, श्री कामियों को लक्ष्मी का, युद्धेच्छुओं को विजय तथा व्याधिग्रस्तों को निरोगता प्राप्त होगी।
वश्याय वश्य कामानां विधायै वेदकामिनाम् ।द्रविणाय दरिद्राणां पापनां पाप शान्तये ।।28।।
वशीकरण करने वालों को वशीकरण होंगे, वेदार्थियों को विद्या, दरिद्रियों को धन, पापियों का पाप की शान्ति हो जाती है।
वादिनां वाद विजये कवीनां कविता प्रदम् ।
अन्नाय क्षुधितानां च स्वर्गीय नाक मिच्छताम् ।।39
शास्त्रार्थियों को शास्त्र विजय, कवियों को काव्य लाभ, भूखों को अन्न तथा स्वर्गेच्छुओं को स्वर्ग।
पशुभ्यः पशुकामानां युत्रभ्य युत्रकामिणाम् ।
क्लेशिनां शोक शान्त्यर्थ नृणां शत्रुभयाय च ।।40।।।
पशु इच्छुओं को पशु, पुत्रार्थियों को पुत्र, क्लेशियों को शोक शान्ति, शत्रु-भय वालों को अभय मिलता है।
अष्टादशसु विद्यासु मीमांसाऽस्ति गरीयसी ।
ततोऽपि तर्क शास्त्राणि पुराणां तेभ्य एवं च ।।
अठारह विद्याओं में मीमांसा श्रेष्ठ है उससे श्रेष्ठ तर्क शास्त्र तथा पुराण उससे भी श्रेष्ठ कहे हैं।
ततोऽपि धर्म शास्त्राणि तेभ्यो गुर्वी श्रुतिनृप ।
ततोह्यु पनिषत् श्रेष्ठा गायत्री च ततोधिका ।।6।।
धर्मशास्त्र उनसे भी श्रेष्ठ है तथा हे राजन्! उनसे भी श्रेष्ठ श्रुतियां कही गई हैं। उन श्रुतियों से भी श्रेष्ठ उपनिषद् हैं और उपनिषदों से भी गरीयसी गायत्री कही गई है।
तां देवी मुपतिष्ठन्ते ब्राह्मण ये जितेन्द्रियाः ।
सूर्य्य लोकं ते प्रयान्ति क्रमान्मुक्तिञ्च पार्थिवः ।।1।।
—पद्म पुराणम् ।
जो इन्द्रियजित ब्राह्मण इस गायत्री की उपासना करते हैं। हे पार्थिव! अवश्य ही सूर्य-लोक को प्राप्त होते हैं तथा क्रमशः मुक्ति को भी प्राप्त करते हैं।
सावित्री सार मात्रोऽपि वरं प्रियः सुमन्त्रितः।।2।।
चारों वेदों का सारभूत सावित्री को विधि सहित जानने वाला ब्राह्मण श्रेष्ठ है।
गायत्रीं जपते यस्तु त्रिकालं ब्राह्मणः सदा ।
अर्थी प्रतिग्रही वापि सगच्छेत्परमांगतिम् ।।3।।
जो ब्राह्मण गायत्री को त्रिकाल में जपता है वह मांगने वाला या दान देने वाला (अग्रह्य दान को ग्रहण करने वाला) ही क्यों न हो वह भी परम गति को प्राप्त हो जाता है।
गायत्रीं जपते यस्तु कल्पमुत्थापयो द्विजः ।
सलिम्पति न पापेन पद्म पत्र मिवाम्भसा ।।
जो ब्राहृमण उठकर गायत्री का जप करता है वह जल में कमल पत्र की भांति पाप-ग्रस्त नहीं होता।
अर्थोऽयं ब्रह्म सूत्राणां भारताथ विनिर्णयः ।
गायत्री भाष्य रूपौऽसौ वेदार्थ परिवृंहिताः।।
—मत्स पुराण
गायत्री का अर्थ ब्रह्म सूत्र है। गायत्री का निर्णय महाभारत है, गायत्री का अर्थ वेदों में हुआ है।
जपन हि पावनी देवीं गायत्रीं वेदमातरम् ।
तपसः भावितो देव्या ब्राह्मणः पूतः किल्विषः ।।
—कूर्म पुराण
ब्राह्मण वेद-जननी पवित्र गायत्री को जपता हुआ अनेक पापों से मुक्त हो जाता है।
गायत्री ध्यान पूतस्य कलां नहिति षोडशीम् ।
एवं किल्विष युक्तस्य विनिर्दहति पातकम् ।।
—कूर्म पुराण
गायत्री के ध्यान से पवित्र हुई सोलह कलाओं का कोई मूल्यांकन नहीं हो सकता। इस प्रकार पाप-युक्त के पापों को शीघ्र ही दहन कर देती है।
उभे सन्ध्ये ह्युपासीत तस्मान्नित्यं द्विजोत्तम ।
छन्दस्तस्यास्तु गायत्रं गायत्री त्युच्यते ततः ।।
—मत्स्य पुराण
द्विज श्रेष्ठ! गायत्री का छन्दानुसार दोनों सन्ध्याकाल में ध्यान करना चाहिए।
गान करने वाले का यह त्राण करती है इसलिये इसे गायत्री कहा है।
गायन्तं त्रायते यस्मात् गायत्री तु ततः स्मृता ।
मरीचे ! कारणत्तस्मात् गायत्री कीर्तिता मया ।।
—लंकेश तन्त्र
हे मारीच! गान करने वाले का त्राण करती है इसी हेतु मैंने इसे गायत्री कहा है।
ततः बुद्धिमताश्रेष्ठ नित्यं सर्वषुकर्मसु ।
सव्याहृतिं सप्रणवां गायत्री शिरसासह ।।
जपन्ति ये सदा तेषां न भयं विद्यते क्वचित् ।
दशकृत्वः प्रजसा सा रात्र्यह्नायि कृतं लघु ।।
—नारद पुराण
बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, अपने नित्य नियमित सभी कार्यों को करते हुए व्याहृतियों सहित तथा प्रणव के उच्चारण सहित गायत्री को जो पुरुष सदा जपते हैं उनको कहीं भी भय नहीं है। दस बार जपने से रात्रि तथा दिन के लघु दोषों का निवारण होता है।
काम कामी लभेत् कामान् गति कामश्च सद्गतिम् ।
अकामः सम वाप्नोति तद्विष्णोः परमं पदम् ।।
कामाभिलाषी को काम की प्राप्ति होती है और जो मोक्ष की आकांक्षा करते हैं, उन्हें सद्गति प्राप्त होती है। जो पुरुष निष्काम भाव से गायत्री की उपासना करते हैं, वे विष्णु के परम पद को प्राप्त हो जाते हैं।
त्रिभ्य एव तु चेदेभ्यः पादं पादमद्दुहत् ।
तदित्यृयोऽस्याः सावित्र्याः परमेष्ठी प्रजापतिः ।।
परमेष्ठी पितामह ब्रह्माजी ने एक-एक वेद से गायत्री के एक पद की रचना की, इस प्रकार तीन वेदों से तीन पदों का सृजन किया।
एतदक्षर मेकाञ्च जपन् व्याहृति पूर्विकाम् ।
सन्धायोर्वदविद्विप्रो वेद पुण्येन युज्यते ।।
व्याहृति पूर्वक इस गायत्री को दोनों सन्ध्याकाल में जपता हुआ ब्राह्मण वेद पढ़ने के पुण्य को प्राप्त होता है।
इयमेव स व्याहृतिका ब्रह्म पद प्राप्ते द्वाररूपं ।
तस्मात्प्रत्यहं ब्राह्मणौ व्याहृतिपूर्विके यं अध्ययनीया ।।
यह गायत्री ब्रह्मपद की प्राप्ति का द्वार है अतः व्याहृतिपूर्वक प्रतिदिन इसका अध्ययन (मनन) करना चाहिये।
योऽधी तेऽहन्य हन्ये तान्त्रीणिवर्षाण्यतन्द्रितः ।
स ब्रह्म परमभ्येति वायु भूतः ख मूर्तिमान् ।।
जो इस गायत्री को तन्द्रा रहित (आलस्य को छोड़कर) तीन वर्ष तक नियमित रूप से जपता है वह ब्रह्म को निस्सन्देह उपलब्ध हो जाता है।
तत् पापं प्रणुदत्याधु नात्र कार्या विचारणा ।
शतं जप्त्वा तु सा देवी पापौघ शमनी स्मृता ।।
इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए कि उन पापों का शीघ्र ही निवारण हो जाता है। सौ बार जप करने पर यह गायत्री पापों के समूह का विनाश कर देती है।
विधिना नियतं ध्यायेत प्राप्नोति परमं पदम् ।
यथा कथिञ्चजपिता गायत्री पाप हारिणी ।
सर्व्व काम प्रदा प्रोक्ता पृथक्कम्मसु निष्ठिता ।।
विधि पूर्वक नियम ध्यान करने पर परम गति की प्राप्ति होती है जिस किसी भी प्रकार जपी हुई गायत्री पापों का विनाश करती है, भिन्न-भिन्न कार्यों के उद्देश्य से किया हुआ जप भी अभीष्टों की सिद्धि कर देता है।