Books - गायत्री महात्म्य
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Language: HINDI
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गायत्री से पाप और दुःखों से निवृत्ति
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गायत्री साधना से सब पापों की और सब दुःखों की निवृत्ति के अनेक प्रमाण मिलते हैं जिनमें से कुछ नीचे दिए जाते हैं—
ब्रह्म हत्यादि पापानि गुरुपि च लघूनि च ।
नाशयन्त्यचिरेणैव गायत्री जापतो द्विजः ।।
—पद्म पुराण
गायत्री जपने वाले के ब्रह्महत्यादि सभी पाप, छोटे हों चाहे बड़े हों शीघ्र ही समस्त नष्ट हो जाते हैं।
गायत्री जपकृद्भक्त्या सर्व पापै प्रमुच्यते ।
—पाराशर
भक्तिपूर्वक गायत्री जपने वाला समस्त पापों से छूट जाता है।
सर्व पापानि नश्यन्ति गायत्री जपतो नम् ।
—भविष्य पुराण
गायत्री जपने वाला समस्त पापों से छूट जाता है।
गायत्र्यष्ट सहस्रं तु जापं कृत्वा स्थिते रवौ ।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो यदि न ब्रह्मदा भवेत् ।।
—अत्रि स्मृति 3-15
सूर्य के समक्ष खड़े होकर यदि गायत्री का आठ हजार जप करे तो वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। यदि ब्रह्मा अर्थात् ज्ञानी पुरुषों की निन्दा करने वाला न हो, तो।
सहस्र कृत्वस्त्वभ्यस्य वहिरेतत्रिकं द्विजः ।
महतोप्येनसो मासात्वचे वाहिर्विमुच्यते ।।
—मनुस्मृति अ. 2।79
एकान्त स्थान में प्रणव, महाव्याहृति पूर्वक गायत्री का एक हजार जप करने वाला द्विज बड़े से बड़े पाप से ऐसे छूट जाता है जैसे केंचुली से सर्प छूट जाता है।
जना यैस्तरति तानि तीर्थानि ।
जिनसे पुरुषों के पाप दूर हो जाते हैं और वे इस संसार से तर जाते हैं उनको तीर्थ कहते हैं। गायत्री इन तीन अक्षरों में वही तीर्थ विद्यमान हैं—ग=गंगा। य=यमुना। त्र=त्रिवेणी समझनी चाहिये।
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वाङ्गना गमः ।
महानि पातकान्यानि, स्मरणान्नशमाप्नुयात् ।।
—गायत्री पु. 22
गायत्री के स्मरण मात्र से ब्रह्म-हत्या, सुरापान, चोरी, गुरु-स्त्री गमन आदि अन्य महापातक भी नष्ट हो जाते हैं।
ए एतां वेद गायत्रीं पुन्यांसवगुणान्विताम् ।
तत्वेन भरतश्रेष्ठ ! स लोके न प्राणश्यति ।।
—महा. भा. भीष्म. प. अ. 41।16
हे युधिष्ठिर! जो मनुष्य तत्वपूर्णक सर्वगुण सम्पन्न पुण्य गायत्री को जान लेता है, वह संसार में दुखित नहीं होता है।
गायत्री निरतं हव्य कव्येषु विनियोजयेत् ।
तस्मिन्न तिष्ठते पापमविदु रिव पुष्करे ।।
गायत्री जपने वालों को ही पितृकार्य तथा देव कार्य में बुलाना चाहिए, क्योंकि गायत्री उपासक में पाप उस प्रकार नहीं रहता जैसे कमल के पत्ते पर पानी की बूंद नहीं ठहरती।
गायत्रीमपठेद्विप्रो न स पापेनलिप्यते ।
—लघु अत्रि संहिता
जो द्विज गायत्री को जपता है वह पाप से युक्त नहीं होता।
चरक संहिता में गायत्री-साधना के साथ आंवला सेवन करने से दीर्घ जीवन का वर्णन किया है।
सावित्रीं मनसा ध्यायान् ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः ।
सम्वत्सरान्तं पौषों वा माघीं वा फाल्गुनीं तिथिम ।।
—चरक चिकित्सा. आंव. रसा. श्लो. 9
मन से गायत्री का ब्रह्मचर्य पूर्वक एक वर्ष तक ध्यान करता हुआ वर्ष के उपरान्त में पौष मास अथवा माघ मास की अथवा फाल्गुन मास की किसी शुभ तिथि में तीन दिन क्रमशः उपासना कर उपरान्त आंवले के वृक्ष पर चढ़, जितने आंवले खायगा उतने ही वर्ष मनुष्य जीवित रहेगा।
यदिहवा अप्येवं विद्वह्विव प्रतिगृहणानि न हैव तद् गायत्र्या एक च न पदं प्रति । स य इमाणं स्त्रींल्लोकान् पूर्णान् प्रतिगृह्णीयात सो स्वा एतत्प्रथमं पदमवाप्नुयादश्च यावतीयं त्रयी विद्या यस्तावत्प्रति गृह्णीयात् सोऽस्या एतत द्वितीय पदमवाप्नुयादथ यावदिद प्राणि यस्तावत् प्रतिगृह्णीयात् सोऽस्याः एतत्तृतीयं पदमवाप्नुयात् अथास्याः एतदेव तुरीयं दशनं पदं परोरजाय एष तपतिनैव केनचनाप्यं कुत उ एतावत्प्रतिगृह्णीयात ।
—वृ. 5।14।5-6
गायत्री को सर्वात्मक भाव से जपने वाला मनुष्य यदि बहुत ही प्रतिगृह लेता है तो भी उस प्रतिगृह का दोष गायत्री के प्रथम पाद उच्चारण के समान भी नहीं होता है। यदि समस्त तीनों लोगों को प्रतिगृह में लेवे तो उसका दोष प्रथम पाद उच्चारण से नष्ट हो जाता है। यदि तीनों वेदों का प्रतिगृह लेवे तो उसका दोष द्वितीय पाद में नष्ट हो जाता है। यदि संसार के समस्त प्राणियों को भी प्रतिगृह से लेवे तो उसका दोष तृतीय पाद में नाश हो जाता है, अतः गायत्री जपने वाले को कोई हानि नहीं पहुंचती। गायत्री का चौथा पद चौथा परब्रह्म है, इसके सदृश दुनिया में कुछ भी नहीं है।
यदान्हात्कुरुते पापं तदन्हात्प्रतिमुच्यते ।
यद्रात्रियात्कुरुते पापं तद्रात्रियात्प्रतिमुच्यते ।।
—तै. आ. प्र. 10 अ. 34
हे गायत्री! तुम्हारे प्रभाव से दिन में किये पाप दिन में ही नष्ट हो जाते हैं और रात्रि में किये पाप रात्रि में ही नष्ट हो जाते हैं।
गायत्री तु परित्यज्य येऽन्य मन्त्रमुपासते ।
मुण्डकरावै ते ज्ञेया इतिवेदविदोविदुः ।।
जो गायत्री-मन्त्र को त्याग अन्य मन्त्र की उपासना करते हैं वे नास्तिक हैं ऐसा वेदवेत्ताओं ने कहा है।
गायत्रीं चिन्तयेद्यस्तु हृदपद्मे समुपस्थिताम् ।
धर्माधर्म विनिर्मुक्तः स याति परमां गतिम् ।।
जो मनुष्य हृदय कमल बैठी गायत्री का चिन्तन करता है, वह धर्म-अधर्म के द्वन्द से छूटकर परम गति को प्राप्त होता है।
सहस्र जप्त्वा सा देवी ह्युपपातक नाशिनी ।
लक्ष्य जाप्ये तथा तच्च महापातक नाशिनी ।।
कोटि जाप्येन राजेन्द्र ! यदिच्छतितदाप्नुयात् ।।
एक सहस्र जप करने से गायत्री उपपातकों का विनाश करती है। एक लाख जप करने से महापातकों का विनाश होता है। एक करोड़ जप करने से अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है।