Books - गीत माला भाग १०
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परमार्थ है जहाँ पर
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परमार्थ है जहाँ पर
परमार्थ है जहाँ पर, परमात्मा वहीं है।
इससे बड़ा जगत में, सद्कर्म ही नहीं है॥
इस राजपंथ पर चल, कोई नहीं ठगे हैं।
बाँटी जिन्होंने मेंहदी, वे हाथ खुद रंगे हैं॥
है साधना यहीं पर आराधना यहीं है॥
पाती विकास अपनी ही, आत्मा यहाँ पर।
निज स्नेह बाँटते हैं, परमात्मा यहाँ पर॥
परमार्थ है जहाँ पर, यश कीर्ति भी वहीं है॥
इस मार्ग पर चले जो, अक्षुण्य हो गये हैं।
वानर गिलहरी केवट, तक धन्य हो गये हैं॥
इससे बड़ी नियामत, क्या और भी कहीं है॥
देती हैं बाल भेड़ें, मिलते उन्हें नये हैं।
फल फूल दान करते, वे वृक्ष बढ़ गये हैं॥
देने में सुख जहाँ पर, वह स्वर्ग भी वहीं हैं॥
युग शक्ति लोक- मंगल, पथ पर पुकारती है।
जो प्राणवान नर हैं, उनको निहारती है॥
इससे बड़ा सुअवसर, मिलना कभी नहीं है॥
परमार्थ है जहाँ पर, परमात्मा वहीं है।
इससे बड़ा जगत में, सद्कर्म ही नहीं है॥
इस राजपंथ पर चल, कोई नहीं ठगे हैं।
बाँटी जिन्होंने मेंहदी, वे हाथ खुद रंगे हैं॥
है साधना यहीं पर आराधना यहीं है॥
पाती विकास अपनी ही, आत्मा यहाँ पर।
निज स्नेह बाँटते हैं, परमात्मा यहाँ पर॥
परमार्थ है जहाँ पर, यश कीर्ति भी वहीं है॥
इस मार्ग पर चले जो, अक्षुण्य हो गये हैं।
वानर गिलहरी केवट, तक धन्य हो गये हैं॥
इससे बड़ी नियामत, क्या और भी कहीं है॥
देती हैं बाल भेड़ें, मिलते उन्हें नये हैं।
फल फूल दान करते, वे वृक्ष बढ़ गये हैं॥
देने में सुख जहाँ पर, वह स्वर्ग भी वहीं हैं॥
युग शक्ति लोक- मंगल, पथ पर पुकारती है।
जो प्राणवान नर हैं, उनको निहारती है॥
इससे बड़ा सुअवसर, मिलना कभी नहीं है॥