Books - कर्मकाण्ड नहीं, भावना प्रधान
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Language: HINDI
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कर्मकाण्ड नहीं, भावना प्रधान
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
माध्यम नहीं, लक्ष्य समझना जरूरी
देवियो, भाइयो! विद्यार्थी बी०ए० पास करते हैं, एम०ए० पास करते हैं, पी० एच० डी० करते हैं, किससे लिखते हैं? पार्कर की कलम से लिखते हैं। क्या कलम आवश्यक है? हों बहुत आवश्यक है, लेकिन अगर आपका यह ख्याल है कि कलम के माध्यम से आप तुलसीदास बन सकते हैं, कबीरदास बन सकते है और एम०ए० पास कर सकते हैं, पी० एच०डी ० पास कर सकते हैं तो आपका यह ख्याल एकांगी है और गलत है। जब दोनों का समन्वय होगा तो विश्वास रखिए कि जो लाभ आपको मिलना चाहिए वह जरूर मिलकर रहेगा। किसका समन्वय? कलम का समन्वय, हमारे ज्ञान और विद्या, अध्ययन का समन्वय। ज्ञान हमारे पास में हो, विद्या हमारे पास में हो, अध्ययन हमारे पास में हो और कलम हमारे पास बढ़िया से बढ़िया हो तो आप क्या ख्याल करते हैं कि उससे आप वह सब पूरा कर सकते हैं? नहीं, पूरा नहीं कर सकते।
इसी तरह अच्छी साइकिल हमारे पास हो तो हम ज्यादा अच्छा सफर कर सकते हैं, लेकिन साइकिल के साथ साथ हमारी टाँगों में कूबत भी होनी चाहिए। टाँगों में बल नहीं है तो साइकिल चलेगी नहीं। सीढ़ी अच्छी होनी चाहिए जीना अच्छा होना चाहिए ताकि उसके ऊपर चढ़कर हम छत तक जा पहुँचे, लेकिन जीना काफी नहीं है। टाँगों की ताकत भी आपके पास होनी चाहिए। टाँगों में ताकत नहीं होगी तो आपके पास जीना अच्छा बना हुआ है, सीढ़ियाँ अच्छी बनी हुई हैं तो भी आप छत तक नहीं पहुँच सकते।
मित्रो! माध्यमों की अपने आप में एक बड़ी उपयोगिता है और उनकी बड़ी आवश्यकता है। मूर्तियाँ किससे बनती हैं? छेनी-हथौड़े से बनती हैं। अच्छा, एक पत्थर का टुकड़ा हम आपको देंगे और छेनी-हथौड़ा भी देंगे। आप एक मूर्ति बनाकर लाइए। एक हनुमान जी की मूर्ति बनाकर लाइए। अरे साहब! हमने तो पत्थर में छेनी मारी और वह तो टुकड़े-टुकड़े हो गया। हनुमान जी नहीं बने? नहीं साहब, हनुमान जी नहीं बन सकते। तो आप छेनी की क्या करामात कह रहे थे? फिर आप हथौड़े की करामात क्या कह रहे थे? हथौड़े और छेनी की करामात है जरूर, हम इसे मानते हैं। जितनी भी मूर्तियाँ दुनिया में बनी हैं, वे सारी की सारी मूर्तियों छेनी और हथौड़े से ही बनी हैं, लेकिन छेनी और हथौड़े के साथ-साथ उस कलाकार और मूर्तिकार के मस्तिष्क और हाथों को भी सधा हुआ होना चाहिए। हाथ सधे हुए नहीं हैं, मस्तिष्क सधा हुआ नहीं है और छेनी हथौड़ी आपके पास है तो आप मूर्ति नहीं बना सकते।
चित्रकारों ने बढ़िया से बढ़िया चित्र किस माध्यम से बनाए हैं? ब्रुश के माध्यम से। ब्रुश से क्या बनता है? तसवीरें बनती हैं, पेंटिंग बनती हैं। अच्छा चलिए हम आपको एक ब्रुश जैसा भी आप चाहें, मँगा सकते हैं और आप एक पेंटिंग बनाकर दिखाइए एक तसवीर बनाकर दिखाइए। नहीं साहब, हमसे नहीं बन सकती। हमने आपको ब्रुश दिया था। ब्रुश तो आपने अच्छा दिया था; ब्रुश सही भी था बिलकुल सही तसवीरें बनतीं, यह बात भी सही हैं। चूँकि हमारे पास खाली ब्रुश था, चित्रकला के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए हम उसमें सफल न हो सके और चित्र नहीं बन सका।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
माध्यम नहीं, लक्ष्य समझना जरूरी
देवियो, भाइयो! विद्यार्थी बी०ए० पास करते हैं, एम०ए० पास करते हैं, पी० एच० डी० करते हैं, किससे लिखते हैं? पार्कर की कलम से लिखते हैं। क्या कलम आवश्यक है? हों बहुत आवश्यक है, लेकिन अगर आपका यह ख्याल है कि कलम के माध्यम से आप तुलसीदास बन सकते हैं, कबीरदास बन सकते है और एम०ए० पास कर सकते हैं, पी० एच०डी ० पास कर सकते हैं तो आपका यह ख्याल एकांगी है और गलत है। जब दोनों का समन्वय होगा तो विश्वास रखिए कि जो लाभ आपको मिलना चाहिए वह जरूर मिलकर रहेगा। किसका समन्वय? कलम का समन्वय, हमारे ज्ञान और विद्या, अध्ययन का समन्वय। ज्ञान हमारे पास में हो, विद्या हमारे पास में हो, अध्ययन हमारे पास में हो और कलम हमारे पास बढ़िया से बढ़िया हो तो आप क्या ख्याल करते हैं कि उससे आप वह सब पूरा कर सकते हैं? नहीं, पूरा नहीं कर सकते।
इसी तरह अच्छी साइकिल हमारे पास हो तो हम ज्यादा अच्छा सफर कर सकते हैं, लेकिन साइकिल के साथ साथ हमारी टाँगों में कूबत भी होनी चाहिए। टाँगों में बल नहीं है तो साइकिल चलेगी नहीं। सीढ़ी अच्छी होनी चाहिए जीना अच्छा होना चाहिए ताकि उसके ऊपर चढ़कर हम छत तक जा पहुँचे, लेकिन जीना काफी नहीं है। टाँगों की ताकत भी आपके पास होनी चाहिए। टाँगों में ताकत नहीं होगी तो आपके पास जीना अच्छा बना हुआ है, सीढ़ियाँ अच्छी बनी हुई हैं तो भी आप छत तक नहीं पहुँच सकते।
मित्रो! माध्यमों की अपने आप में एक बड़ी उपयोगिता है और उनकी बड़ी आवश्यकता है। मूर्तियाँ किससे बनती हैं? छेनी-हथौड़े से बनती हैं। अच्छा, एक पत्थर का टुकड़ा हम आपको देंगे और छेनी-हथौड़ा भी देंगे। आप एक मूर्ति बनाकर लाइए। एक हनुमान जी की मूर्ति बनाकर लाइए। अरे साहब! हमने तो पत्थर में छेनी मारी और वह तो टुकड़े-टुकड़े हो गया। हनुमान जी नहीं बने? नहीं साहब, हनुमान जी नहीं बन सकते। तो आप छेनी की क्या करामात कह रहे थे? फिर आप हथौड़े की करामात क्या कह रहे थे? हथौड़े और छेनी की करामात है जरूर, हम इसे मानते हैं। जितनी भी मूर्तियाँ दुनिया में बनी हैं, वे सारी की सारी मूर्तियों छेनी और हथौड़े से ही बनी हैं, लेकिन छेनी और हथौड़े के साथ-साथ उस कलाकार और मूर्तिकार के मस्तिष्क और हाथों को भी सधा हुआ होना चाहिए। हाथ सधे हुए नहीं हैं, मस्तिष्क सधा हुआ नहीं है और छेनी हथौड़ी आपके पास है तो आप मूर्ति नहीं बना सकते।
चित्रकारों ने बढ़िया से बढ़िया चित्र किस माध्यम से बनाए हैं? ब्रुश के माध्यम से। ब्रुश से क्या बनता है? तसवीरें बनती हैं, पेंटिंग बनती हैं। अच्छा चलिए हम आपको एक ब्रुश जैसा भी आप चाहें, मँगा सकते हैं और आप एक पेंटिंग बनाकर दिखाइए एक तसवीर बनाकर दिखाइए। नहीं साहब, हमसे नहीं बन सकती। हमने आपको ब्रुश दिया था। ब्रुश तो आपने अच्छा दिया था; ब्रुश सही भी था बिलकुल सही तसवीरें बनतीं, यह बात भी सही हैं। चूँकि हमारे पास खाली ब्रुश था, चित्रकला के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए हम उसमें सफल न हो सके और चित्र नहीं बन सका।