Books - स्वामी विवेकानंद
Language: HINDI
ईश्वर साक्षात्कार की धुन
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एक छोटे लडक़े के मुँह से ऐसा प्रश्न सुनकर महर्षि चौंक पड़े और बोले- ‘‘लडक़े, तेरी आँखें तो योगी की तरह हैं।’’ पर नरेन्द्रनाथ को इस उत्तर से संतोष नहीं हुआ और वे अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अन्य धार्मिक समझे जाने वाले लोगों से यही चर्चा करने लगे। नरेन्द्र को इस प्रकार ईश्वर की खोज में चारों ओर भटकते देखकर एक दिन उनके काका ने कहा कि, ‘‘तुझे यदि वास्तव में ईश्वर को प्राप्त करना हो तो ब्रह्मसमाज आदि को छोड़कर दक्षिणेश्वर में ठाकुर रामकृष्ण परमहंस के पास जा।’’
कुछ ही दिन बाद श्री रामकृष्ण परमहंस पड़ोस में ही एक सज्जन के यहाँ पधारे। नरेन्द्र को भी संगीत कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वहाँ बुलाया गया। परमहंस जी इस अपरिचित किशोर को देखकर एकाएक उसकी तरफ आकर्षित हो गए और उसका परिचय प्राप्त करके उन्होंने उसे एक दिन दक्षिणेश्वर आने को कहा।
जब नरेन्द्र दक्षिणेश्वर पहुँचे तो उन्हें प्रथम बार अच्छी तरह देखने पर परमहंस जी के मन में जो भाव उत्पन्न हुए थे, उसकी चर्चा करते हुए उन्होंने एक बार कहा था- ‘‘मैंने देखा कि उसका अपने शरीर की तरफ कुछ भी ध्यान नहीं है। माथे के बाल और पोशाक में किसी भी प्रकार की दिखावट नहीं थी। अन्य साधारण लोगों की तरह उसकी दृष्टि बाहरी वस्तुओं की तरफ नहीं थी। उसकी आँखों को देखकर मुझे जान पड़ा कि उसके मन के एक बड़े भाग को मानों किसी ने भीतर की तरफ खींच रखा है।’’
श्री रामकृष्ण से भी नरेन्द्र ने वही प्रश्न किया कि ‘‘क्या आपने ईश्वर को देखा है?’’ उन्होंने कहा- ‘‘हाँ देखा है। जिस प्रकार मैं तुम सबको देखता हूँ और तुम्हारे साथ बात करता हूँ, उसी प्रकार ईश्वर को भी देखा जा सकता है और उसके साथ बातें की जा सकती हैं। पर इसके लिए प्रयत्न कौन करता है? लोग स्त्री, पुत्र संपत्ति के लिए हाय- हाय करते फिरते हैं, उनके वियोग में रोते हैं। पर ईश्वर नहीं मिल पाया, इसके लिए कौन रोता है? ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई इसके लिए यदि मनुष्य उसी प्रकार व्याकुल हो जाए जैसे स्त्री- पुत्र आदि के लिए हो जाता है, तो वह अवश्य ईश्वर के दर्शन कर सकेगो।’’
परमहंस जी का उत्तर सुनकर नरेन्द्र के मन में यह भाव आया कि ये अन्य धर्मोपदेशकों की तरह पुस्तकें पढक़र ऐसी बातें नहीं कर रहे हैं, वरन्� इन्होंने सर्वस्व त्यागकर, संपूर्ण मन से ईश्वर की आराधना करके अपने अंत:प्रदेश में उसे जैसा देखा है, वैसा ही वे कह रहे हैं। हो सकता है कि विदेशी दार्शनिकों की व्याख्या के अनुसार ये अर्ध पागलों की श्रेणी में आते हों, तो भी ये महापवित्र और महात्यागी हैं और इसीलिए मानव हृदय की श्रद्धा, भक्ति, पूजा और सम्मान के सच्चे अधिकारी हैं।