Books - वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
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Language: HINDI
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ग्राम विकास दीपयज्ञ
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(( उस गांव में करें जहां हमें रचनात्मक कार्य प्रारंभ करने हैं ))
गांव की चौपाल पर, विद्यालय प्रांगण में, अथवा अन्य खुले सार्वजनिक जगह पर इस दीपयज्ञ का आयोजन हो। प्रचारित किया जाए कि गांव की खुशहाली, विकास और उज्ज्वल भविष्य के लिए यह आयोजन किया जा रहा है। दीपयज्ञ के मुख्य यजमान के रूप में ग्राम प्रमुख, उप प्रमुख या किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति को बुलाया जाए। साथ ही गांव के हर समुदाय से, प्रतिनिधी के रूप में एक- एक जोडे (पति- पत्नी) को भी देव मंच पर पूजन के लिए विशेष रूप से बुलाया जाए।
जहां तक संभव हो शाम सूरज ढलने से पूर्व ही दीपयज्ञ की प्रक्रिया पूर्ण हो जाए। इस अवसर पर गांव में सार्वजनिक उत्सव सा वातावरण बनाया जाए। संभव हो 24 घंटे पूर्व से रामायण का अखंड पाठ चलाया जाए। चौपाल या यज्ञ स्थल पर आने वाले सभी रास्तों पर स्वागत द्वार के रूप में आम की पत्तियों के तोरण लगाए जाएं। बैठने की जगह को गोबर से लीप दें या गोबर मिले पानी का छिड़काव करें।
आवश्यक तैयारी --
पूर्व ही निम्नलिखित वस्तुओं आदि की व्यवस्था कर लें...
फावड़ा, कुदाल, हल, दो बाल्टी गोबर, बड़ पीपल आम आंवला और नीम की एक- एक डाल पत्ती सहित, तुलसी का एक गमला, राम दरबार का चित्र, कृष्ण भगवान का चित्र, गुड़- चने का प्रसाद, गांव के सरोवर का पवित्र जल, एक देशी गाय बछड़े सहित, एक जोड़ी देशी बैल, पूजन की अन्य सामग्री एवं लाल मशाल का चित्र आदि।
देव पूजन मंच --
यथा संभव, ग्राम विकास दीपयज्ञ में देव पूजन, किसी वृक्ष के नीचे चबूतरे पर सम्पन्न करें। राम दरबार, भगवान कृष्ण व मशाल के चित्र तने के पास छोटा मंच बनाकर स्थापित करें। चाहें तो मां गायत्री का चित्र भी रख सकते हैं। गौरी- गणेश व ग्राम देवता के प्रतीक स्वरूप गोबर की छोटी- छोटी ढेरियां बनाकर उन्हें पुष्प रंगोली आदि से सजा दें। पूजा मंच पर फावड़ा, कुदाल व हल को रखा जाए। वृक्ष के एक ओर गाय, बछड़े व बैल जोड़ी को बांधने की व्यवस्था हो। दूसरी ओर दीपयज्ञ हेतु सौ- पचास दीपक रखे जा सकें, ऐसी जगह लीप कर स्वच्छ कर ली जाए। देव मंच के ठीक सामने लगभग छः फीट की दूरी पर डेढ़ फीट लंबा- चौड़ा व गहरा एक गड्ढा खोदा जाए। उसे चारों ओर से रंगोली से सजा दें। इसी के बगल में एक बाल्टी गोबर का पहाड़नुमा बड़ा ढेर बना लें। इसमें बड़ पीपल आम आंवला और नीम की डालियों को खोंच कर सजा दें।
चार छः भाई बहनों को स्वयंसेवक के रूप में तैयार करके सारा कार्यक्रम समझा दें ताकि यज्ञमंच के निर्देशों का ठीक से पालन हो सके।
निश्चित समय पर मंच से एक प्रेरक गीत लिया जाए तत्पश्चात् संगठक प्रशिक्षक मुख्य पुरोहित के आसन पर बैठें तथा सभी पूजन कर्त्ता और ग्रामवासियों को यथा स्थान बिठा दिया जाए। सारी व्यवस्था पूर्ण होने पर संगठक प्रशिक्षक प्रारंभिक उद्बोधन दें।
प्रेरणा --
भारत ग्राम प्रधान देश है। गाँव की प्रगति के बिना देश की प्रगति सार्थक एवं स्थाई नही हो सकती। आदर्श गाँव की हमारी परिकल्पना है- व्यसन मुक्त, संस्कार युक्त, स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित, स्वावलम्बी, सहकारी ग्राम बड़े सौभाग्य का विषय है कि आज पूरा गांव इस यज्ञीय कार्य में उपस्थित है। यह यज्ञ हम गांव के विकास और खुशहाली के लिए करने जा रहे हैं। ऐसा ही यज्ञ भगवान कृष्ण ने अपने बचपन में सम्पन्न कराया था। उस समय कंस का राज्य था। हर तरफ अनीति अनाचार का बोलबाला था। ठीक आज के ही जैसी स्थिति हो गई थी। जंगल कट चुके थे, लोगों के पास रोजगार नहीं था। लोगों ने पशु पालन का काम प्रारंभ किया तो उनके चारे पानी की भी समस्या थी। बारिश कभी- कभी बहुत ज्यादा होती तो कभी एकदम सूखा पड़ जाता था। इसके बाद जो कुछ दूध दही मक्खन निकलता था, उसे भी सरकार को याने कंस को एकदम कम दाम में बेचना पड़ जाता था। कृषि भी मार खा गई थी, एक तो पानी की नियमितता नहीं थी सो फसल ठीक से हो नहीं पाती थी और जो होती भी तो औने- पौने में उसे भी सरकार को बेच देना पड़ता था। कंस की सेना जरूर पलती थी लेकिन प्रजा में हाहाकार था। ऐसे में यदि कोई गांव वालों को संगठित करने का प्रयास भी करता तो लोग साथ नहीं देते थे। ठीक आज की ही तरह..
आपको गोवर्धन पर्वत की पूजा का किस्सा तो मालूम ही होगा। बार- बार कभी सूखा कभी बाढ़ से परेशान गांव वालों को पंडितों ने सलाह दी की अखण्ड जाप करो और इन्द्र देवता को प्रसन्न करने विशेष पूजा करो, तभी इन्द्र देवता ठीक से पानी बरसाएंगे। तब आलसी व कामचोर लोग हांजी.. हौ भइया कहते हुए झटपट चंदा इकट्ठा करने की तैयार करने लगे। इस समय भगवान कृष्ण ने अपने ग्वाल बालों की टोली के माध्यम से उनका विरोध किया और साफ- साफ कह दिया कि हम बच्चें हैं तो क्या हुआ, हम सब जानते हैं। ये चंदा इकट्ठा करके केवल पूजापाठ से कोई देवता मनोकामना पूरी करने वाला नहीं है।
हम भी मानते हैं कि देवता नाराज हैं इसीलिए सुख शांति नहीं है। खाने को अनाज, पीने को पानी नहीं है। हमारा पशुधन कमजोर है। बच्चे गाली गलौच करते जुआ खेलते बैठे रहते हैं या कंस के नौकर बनकर हमारा ही शोषण करते हैं। सब मुफ्तखोर हराम का खाने वाले बन गये हैं। बस बैठे- बैठे कुछ फोकट का मिल जाए... यही चाहते हैं।
श्री कृष्ण ने कहा देवता तो देने वाले को कहते हैं। ये पर्वत ये जंगल, पानी के स्त्रोत, वनस्पति, जड़ी- बूटियां, आंवला बड़ पीपल आम इन सबके पेड़ देवता ही हैं। ये सर्व रोग हारी वृन्दा तुलसी देव है, ये गाय, ये तो कामधेनु है यह तो सब कुछ देती है, अमृत देती है ये तो देवताओं की भी माता है। ये हंसिया, कुदाली, रांपा, नांगर ये सब हमारी मदद करते हैं ये सब देवता हैं। उन्होंने पर्वत की ओर इशारा करके कहा था इस पर्वत से बह कर आया सारा पानी ही गांव में बाढ़ की स्थिति लाता है। यदि तुम लोग सचमुच देवताओं का आशीर्वाद चाहते हो तो आओ हम लोग कुदाल फावड़ा लेकर चलतेहैं। सबसे पहले इसी पर्वत पर खूब पेड़ पौधे लगाते हैं, यहाँ जड़ी- बूटियां और घांस उगाते हैं।
उस समय भी सारे गांव वाले साथ नहीं आए लेकिन ग्वालों की टोली ने ही उस सूखे बीरान पर्वत को हरा- भरा कर दिया। पानी को रोकने के लिए जगह- जगह डबरियां खोद दी गईं।
इसी को प्रतीकात्मक रूप से कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने केवल उंगली से इशारा भर किया और सभी ग्वालों ने अपनी पूरी ताकत लगाकर पहाड़ जैसे काम का बोझ आपस में बांट लिया।
वही पहाड़ जो बाढ़ लाता था अब गोवर्धन पर्वत हो गया, वृक्षारोपण और डबरियों के कारण फिर बाढ़ नहीं आई। तब लोगों का विश्वास जमा और फिर उन्होंने गांव के चारों ओर तुलसी रोपण करके उसे तुलसी का जंगल वृन्दावन बना दिया। उस युग में श्रीकृष्ण के गौ पालन व बलराम जी की खेती ने ऐसी धूम मचायी थी कि सर्वत्र यदुवंशियों का राज फैल गया था।
मित्रों..., देवता हमेशा देते हैं, वो मरते भी नहीं हैं अमर होते हैं... लेकिन हम यदि देवताओं की सेवा नहीं करेंगे और देवताओं को देने लायक नहीं बनाएंगे तो वो हमें क्या देंगे ?? अब गाय को ही लें अगर उसे ठीक से खिलाएंगे पिलाएंगे नहीं तो दूध कहां से मिलेगा ?? धरती माता को ही लें यदि उस पर पेड़ नहीं लगे, उस पर तालाब या डबरियां नहीं बनाईं उसकी प्यास ही नहीं बुझाई तब हम कितनी ही बोरिंग या कुंए खोदें पानी नहीं मिलेगा। अगर धरती में पानी है ही नहीं, तो वह हमें देगी कहां से ?? हमारे बच्चे भी तो देवता हैं। यदि हमने उन्हें ठीक से शिक्षा और संस्कार नहीं दिये तो हमारे ही बच्चे हमारे लिए राक्षस हो जाएंगे और हमारे बुढ़ापे में हमें ही लूट कर खा जाएंगे। यही बात नारी के लिए भी लागू होती है। मित्रों, यह दुनिया है, यहां जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है।
भगवान कृष्ण की कथा आपको इसलिए बताई है कि इस जमाने में भी अब वैसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई है। आज भी हमारी समस्याएं वही हैं पानी, खेती, हरामखोरी, दुर्व्यसन और शक्तिशालियों के आतंक की समस्या सब कुछ वैसा ही है, तो इसका उपाय भी वैसा ही होगा।
मित्रों..., हमारा जीवन छोटा सा है। मगर बहुत कीमती है। आज कलयुग के निष्कलंक अवतार की लीला चल रही है। भगवान दुष्टों का नाश व सज्जनों का उद्घार करने जा रहे हैं। आइये अपना- अपना जीवन जीते हुए भी हम ग्वाल- बालों की तरह या राम के वानर भालुओं की तरह उनके काम में उनका हाथ बंटाएं। वो पूरी दुनिया की व्यवस्था सुधारने जा रहे हैं, हम अपने गांव को ही विकसित समुन्नत बनाने का कार्य मिलजुल कर करें। ये कलयुग है, इसमें संगठन की ही ताकत है। ये जो मशाल का चित्र पूजा स्थल पर रखा है, यह संगठन की उसी ताकत का प्रतीक है।
आइये हम सभी मिलकर, युग परिवर्तन के कार्य में लगी युगावतार महाकाल की, उपस्थिति का अनुभव करते हुए एक बार साथ- साथ उनका जयघोष करें..
बोलिये.. युगावतार महाकाल की.. जय !
अब हम आज के इस यज्ञ कार्य को प्रारंभ करने जा रहे हैं। सत्बुद्घि इस युग की सबसे बड़ी ताकत है आइये भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे सबको सत्बुद्घि दें और गुरूदेव से प्रार्थना करते हैं कि वे सबको सन्मार्ग दिखाएं। सभी लोग कमर सीधी करके बैठें और हमारे साथ- साथ गायत्री महामंत्र का उच्चारण करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
आज गांव के सभी प्रमुख परिजन इस ग्राम विकास दीपयज्ञ में उपस्थित हैं। गांव का विकास, गांव वालों के चाहने पर ही हो सकता है। सबकी भलाई का इससे अच्छा दूसरा कोई उपाय नहीं हे। युगावतार की प्रेरणा से इस यज्ञ का आयोजन हो रहा है और उन्हीं की प्रेरणा से आप सभी यहां पर आए हैं तो अब इस सारी प्रक्रिया को समझने का भी प्रयास करें। हमें विश्वास है कि ईश्वरीय प्रेरणा से आप सभी अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
आप सभी का इस पवित्र कार्य में एक साथ आना स्वागत योग्य कार्य है। दैवीय अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत- पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है... श्रद्घापूर्वक इन दैवीय अनुदानों को स्वीकार करें।
(स्वयं सेवक अक्षत पुष्प का सिंचन उपस्थित परिजनों पर करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
हमारा गांव अपने आप में एक इकाई है। हमारा इतिहास एक है, एक ही वर्तमान है और भविष्य भी एक ही रहने वाला है। हमारी समस्याओं से हम अकेले ही नहीं निपट सकते। एक बार हम अपने मन से निजी फायदे नुकसान की बात निकाल दें और पूरे गांव को एक परिवार मानकर काम करना शुरू कर दें तो हमारे ग्राम देवता, हमारे पीतर सभी प्रसन्न हो जाएंगे। तब देखते ही देखते हमारी सभी समस्याओं का समाधान आपसी सहयोग से हो जाएगा।
शुद्घ पवित्र विचारों को धारण करना, ईश्वरीय अनुदानों को प्राप्त करने की पहली और अनिवार्य शर्त है। इस यज्ञ के प्रारंभ में आप सभी पर पवित्र जल का सिंचन हो रहा है। दोनों हाथ गोद में रखकर गांव के समस्त देवी देवताओं का ध्यान करते हुए, भावना करें कि इन पवित्र जल बूंदों के रूप में वे अपनी पवित्रता की वर्षा हम पर कर रहे हैं। इस पवित्रता को अपने अंतःकरण में धारण करने का भाव करते हुए यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
आजकल शहरी हवा गांव के वातावरण को दूषित कर रही है। शहर की सारी बीमारियां गांव में आती जा रही हैं क्योंकि गांव में प्राणवान वातावरण नहीं रहा, प्राणवान लोग नहीं रहे।
ग्राम विकास का हमारा यह शुभ संकल्प प्राणवान लोग ही पूरा कर सकेंगे। प्राणवान और शक्तिशाली बनने से हमारा ही लाभ होने वाला है। हम श्रम से जी ना चुराएं, गांव में हरियाली का वातावरण बनाएं, जगह- जगह सुंदर तालाब बनाएं। नित्य प्रातः काल उठकर व्यायाम करें, सूर्य भगवान का ध्यान करें, प्राणयाम करें। बुरी आदतों को छोड़ते जाएं व गांव की उन्नति के कार्यो में मन लगाएं तो अच्छा वातावरण दुबारा बनाया जा सकता है। तभी प्राणायाम की यौगिक क्रिया भी असरकारी हो सकेगी। ऐसी अच्छी व्यवस्था बनाने का संकल्प मन से लेते हुए आइये अब एक बार प्रतीकात्मक रूप से प्राणायाम करें।
एक लंबी श्वास लें, कुछ देर रोक कर धीरे- धीरे छोड़ें। सूर्य इस धरती के प्रत्यक्ष देवता हैं, वही प्राण दाता हैं उन्हीं के प्राण को धारण करने का भाव करते हुए यह प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
मित्रों ये गांव हमारा है। अनेक जन्मों से हम यहां पैदा होते और जीते मरते रहे हैं। इस गांव की धरती ने हमेशा हमें अपनी गोद में स्थान दिया है। इस मिट्टी के कण- कण में हमारे पूर्वजों की अमिट छाप है। यही हमारी एकता और समृद्घि का आधार भी है। हम सबको इस पर गर्व है। हम इस माटी की नालायक संतान नहीं बनेंगे। एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए इस गांव की उन्नति के लिए एक जुट होकर कार्य करेंगे। अब... अपनी अनामिका उंगली को धरती पर लगाएं और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करें कि आवेश व उत्तेजना में हमसे कोई गलत कार्य ना हो, शांत चित्त से हम ऐसे कार्य करें जिससे हमारा व सारे गांव का सिर ऊंचा हो। इसी उच्च भावना के साथ यह सूत्र दोहराएं और गांव की इस पवित्र माटी से एक दूसरे का तिलक करें। कहिये --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात.... ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
संकल्प सूत्र धारणम् --
अब हम एक दूसरे की कलाई पर कलावा बांधेंगे और देव शक्तियों को इस यज्ञ में आमंत्रित करेंगे। देव शक्तियां यूं ही किसी के बुलावे या मंत्र पढ़ने से नहीं आ जातीं। देव शक्तियां हमेशा लोगों का भला चाहती हैं। इसलिए जो लोग शुद्घ मन से लोगों का भले का काम करना चाहते हैं, वे उन्हीं की मदद के लिए आती हैं।
आज इस यज्ञ का आयोजन गांव को विकसित व खुशहाल बनाने के लिए किया जा रहा है। ऐसे सार्वजनिक हित के काम, देव- शक्तियों के सहयोग बिना सम्पूर्ण हो भी नहीं सकते। इसका एक अपना विज्ञान है। जब अच्छे कार्य करने का संकल्प सार्वजनिक रूप से पूरी ईमानदारी से लिया जाता है तो देव शक्तियां अपनी ओर से मदद करती हैं। जब देव शक्तियों की मदद मिले तो कोई भी कार्य अधूरा नहीं रहेगा बशर्ते हमसच्चे मन से प्रयास करें। इसी बात को सदा स्मरण रखने और अपने संकल्प को ना भूलने के लिए ही यह कलावा बांधा जाता है।
आज हम गांव के सर्वांगीण विकास हेतु मिलजुलकर कार्य करने का संकल्प लेने जा रहे हैं। इसके लिए सहायक देव शक्तियों को हमने प्रतीक रूप में पूजन के स्थान पर सजा ही रखा है। उनका स्मरण करते हुए हमें यह संकल्प लेना है कि हम सामाजिक नैतिक मर्यादाओं का पालन करेंगे, दण्डनीय, अपराधिक स्तर के या वर्जित कार्य नहीं करेंगे। ईश्वरीय विधी व्यवस्था का पालन करते हुए ही, ग्राम विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास करेंगे।
अब सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। स्वयं सेवक, उपस्थित जनों में संकल्प सूत्र बांट दें। संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें और एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि, ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की... जय !
कलश पूजनम् --
बिना कलश पूजन के कोई भी पवित्र कार्य नहीं हो सकता। हमें सोचना पड़ेगा आखिर क्या है इस कलश पूजन का उद्देश्य। इस कलश में होती है शक्ति। ये शक्ति -कलश है। इसमें 33 करोड़ देवता हैं। इसीलिए तो इसका पूजन करते हैं। कौन हैं ये 33 करोड़ देवता ?.. क्या है इस शक्ति कलश की शक्ति ?? भाइयों ये है मिट्टी और पानी। क्या इसमें सूक्ष्म रूप से देवता होते हैं ?? अरे जिस स्थूल रूप को मिट्टी और पानी के रूप में देखते हो, यही तो जीवन देने वाले देवता हैं। इसी में शक्ति है। जिस दिन गांव का किसान, मिट्टी और पानी की शक्ति भूल जाएगा या जैसे- जैसे भूलता जाएगा, उस दिन वह तो नुकसान उठाएगा ही, समाज भी अभाव ग्रस्त हो जाएगा। इसलिए हमारे पूर्वजों ने, सभी के लिए इसका पूजन अनिवार्य कर दिया है कलशपूजन के रूप में।
यहां धरती माता के मुख के प्रतीक स्वरूप एक छोटा सा गड्ढा बनाया गया है। इधर गांव के सरोवर का पवित्र जल रखा गया है। यहां मुख्य पूजा में बैठे प्रतिनिधियों से अनुरोध है कि वे जल से उस गड्ढे को अपने हाथों से भरें।
देखिए ये आप सब के प्रतिनिधी बन के धरती को जल पिला रहे हैं। आप लोगों को भी नालों के जल को रोकना चाहिए, डबरियां बनानी चाहिए, तालाबों की सफाई करनी चाहिए, तभी धरती माता की प्यास बुझेगी और हमारे कुओं में पानी आएगा। मित्रों... धरती, जल का अक्षय भंडार जरूर है परन्तु हमारी मां का भंडार खाली ना हो, इसका प्रयास भी हमें करना होगा। पूरे यज्ञ के दौरान जैसे- जैसे गड्ढे का पानी सूखते जाए इसी भाव के साथ उसे बार- बार भरा जाए।
बिना भावों को समझे केवल फूल पत्ती चढ़ाने का कोई अर्थ नहीं। गोल कलश धरती का प्रतीक है। उस पर ये आम के पत्ते लगने चाहिए, यानि धरती में मिट्टी पानी पेड़ तीनों का संरक्षण हम करेंगे, तो सभी देवताओं का सहयोग हमें मिलेगा। यही कलशपूजन का अर्थ है।
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
देव पूजनम् --
देव पूजन के क्रम में सर्व प्रथम गुरू पूजन करने का विधान है। हमारे गुरूदेव ने कहा है कि मै व्यक्ति नहीं विचार हू अतः हमें गुरूदेव के विचारों का क्रियान्वयन करते हुए ही उनका वास्तविक पूजन करना है। यहां पूजा स्थल पर गौरी गणेश और ग्राम देवता स्थापित हैं। रामायण जो कि घर- घर में श्रेष्ठ संस्कार एवं प्रेरणा देने वाली अमर गाथा है, उसका स्मरण कराने वाले राम दरबार का चित्र है। जिसमें वीरवेश में बैठे हनुमान जी ईश्वर की सेवा सब कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दे रहे हैं। ये साथ में चित्र है द्वापर युग की अवतारी चेतना भगवान कृष्ण का। इन्हीं के सूत्रों पर चलकर हमें गौ संवर्धन, वृक्षारोपण, भूजल संवर्धन, पर्यावरण संरक्षण, गौ आधारित कृषि करके ग्रामवासियों की संगठित शक्ति से सर्वांगीण ग्रामीण विकास का लक्ष्य प्राप्त करना है। कामधेनु गाय, ये बैलों की पावन जोड़ी, ये हल, कुदाल, रांपा ये सभी देवता हैं। हमें जो कुछ भी मिलेगा इन्हीं की पूजा से मिलेगा। हमारे लिए यही देवता हैं और श्रम करना ही इनकी पूजा करना है।
मित्रों, आज कोई किसी का साथ देने वाला नहीं है। बस हम हैं और हमारे भगवान हैं। बेहतर यही है कि सम्मान पूर्वक श्रमशील जीवन जिया जाए।
इधर गोवर्धन पर्वत पर बड़ पीपल आंवला आम और नीम के ये देव वृक्ष लगे हैं, इनकी संख्या जितनी बढ़ेगी हमारा जीवन उतना ही खुशहाल होता जाएगा। हर दृष्टि से यही उचित है और यही होना भी चाहिए। आइये हम सब मिलकर आज इसी बात का संकल्प लें। इसे ही गुरूदेव का संदेश मान कर, आइये हम उनका स्मरण करते हुए संघ शक्ति के प्रतीक लाल मशाल का पूजन करें --
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
अब प्रतिनिधी जल, चंदन, पुष्प लेकर उठें और गौरी गणेश, ग्राम देवता, गौमाता, बैल जोड़ी, गोवर्धन पर्वत, पांचों पवित्र वृक्षों, कुदाल, हल, फावड़ा आदि सबका पूजन करते चलें। पश्चात् दीपक अगरबत्ती लगाकर, गुड़ चने का भोग लगाया जाए।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः --
अभी वर्णन की गई सभी दिव्य शक्तियों एवं उनके उपकारी स्वभाव को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। शेष सभी परिजन दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करें --
हे अग्रिदेव.. युग परिवर्तर्न की इ�
गांव की चौपाल पर, विद्यालय प्रांगण में, अथवा अन्य खुले सार्वजनिक जगह पर इस दीपयज्ञ का आयोजन हो। प्रचारित किया जाए कि गांव की खुशहाली, विकास और उज्ज्वल भविष्य के लिए यह आयोजन किया जा रहा है। दीपयज्ञ के मुख्य यजमान के रूप में ग्राम प्रमुख, उप प्रमुख या किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति को बुलाया जाए। साथ ही गांव के हर समुदाय से, प्रतिनिधी के रूप में एक- एक जोडे (पति- पत्नी) को भी देव मंच पर पूजन के लिए विशेष रूप से बुलाया जाए।
जहां तक संभव हो शाम सूरज ढलने से पूर्व ही दीपयज्ञ की प्रक्रिया पूर्ण हो जाए। इस अवसर पर गांव में सार्वजनिक उत्सव सा वातावरण बनाया जाए। संभव हो 24 घंटे पूर्व से रामायण का अखंड पाठ चलाया जाए। चौपाल या यज्ञ स्थल पर आने वाले सभी रास्तों पर स्वागत द्वार के रूप में आम की पत्तियों के तोरण लगाए जाएं। बैठने की जगह को गोबर से लीप दें या गोबर मिले पानी का छिड़काव करें।
आवश्यक तैयारी --
पूर्व ही निम्नलिखित वस्तुओं आदि की व्यवस्था कर लें...
फावड़ा, कुदाल, हल, दो बाल्टी गोबर, बड़ पीपल आम आंवला और नीम की एक- एक डाल पत्ती सहित, तुलसी का एक गमला, राम दरबार का चित्र, कृष्ण भगवान का चित्र, गुड़- चने का प्रसाद, गांव के सरोवर का पवित्र जल, एक देशी गाय बछड़े सहित, एक जोड़ी देशी बैल, पूजन की अन्य सामग्री एवं लाल मशाल का चित्र आदि।
देव पूजन मंच --
यथा संभव, ग्राम विकास दीपयज्ञ में देव पूजन, किसी वृक्ष के नीचे चबूतरे पर सम्पन्न करें। राम दरबार, भगवान कृष्ण व मशाल के चित्र तने के पास छोटा मंच बनाकर स्थापित करें। चाहें तो मां गायत्री का चित्र भी रख सकते हैं। गौरी- गणेश व ग्राम देवता के प्रतीक स्वरूप गोबर की छोटी- छोटी ढेरियां बनाकर उन्हें पुष्प रंगोली आदि से सजा दें। पूजा मंच पर फावड़ा, कुदाल व हल को रखा जाए। वृक्ष के एक ओर गाय, बछड़े व बैल जोड़ी को बांधने की व्यवस्था हो। दूसरी ओर दीपयज्ञ हेतु सौ- पचास दीपक रखे जा सकें, ऐसी जगह लीप कर स्वच्छ कर ली जाए। देव मंच के ठीक सामने लगभग छः फीट की दूरी पर डेढ़ फीट लंबा- चौड़ा व गहरा एक गड्ढा खोदा जाए। उसे चारों ओर से रंगोली से सजा दें। इसी के बगल में एक बाल्टी गोबर का पहाड़नुमा बड़ा ढेर बना लें। इसमें बड़ पीपल आम आंवला और नीम की डालियों को खोंच कर सजा दें।
चार छः भाई बहनों को स्वयंसेवक के रूप में तैयार करके सारा कार्यक्रम समझा दें ताकि यज्ञमंच के निर्देशों का ठीक से पालन हो सके।
निश्चित समय पर मंच से एक प्रेरक गीत लिया जाए तत्पश्चात् संगठक प्रशिक्षक मुख्य पुरोहित के आसन पर बैठें तथा सभी पूजन कर्त्ता और ग्रामवासियों को यथा स्थान बिठा दिया जाए। सारी व्यवस्था पूर्ण होने पर संगठक प्रशिक्षक प्रारंभिक उद्बोधन दें।
प्रेरणा --
भारत ग्राम प्रधान देश है। गाँव की प्रगति के बिना देश की प्रगति सार्थक एवं स्थाई नही हो सकती। आदर्श गाँव की हमारी परिकल्पना है- व्यसन मुक्त, संस्कार युक्त, स्वच्छ, स्वस्थ, शिक्षित, स्वावलम्बी, सहकारी ग्राम बड़े सौभाग्य का विषय है कि आज पूरा गांव इस यज्ञीय कार्य में उपस्थित है। यह यज्ञ हम गांव के विकास और खुशहाली के लिए करने जा रहे हैं। ऐसा ही यज्ञ भगवान कृष्ण ने अपने बचपन में सम्पन्न कराया था। उस समय कंस का राज्य था। हर तरफ अनीति अनाचार का बोलबाला था। ठीक आज के ही जैसी स्थिति हो गई थी। जंगल कट चुके थे, लोगों के पास रोजगार नहीं था। लोगों ने पशु पालन का काम प्रारंभ किया तो उनके चारे पानी की भी समस्या थी। बारिश कभी- कभी बहुत ज्यादा होती तो कभी एकदम सूखा पड़ जाता था। इसके बाद जो कुछ दूध दही मक्खन निकलता था, उसे भी सरकार को याने कंस को एकदम कम दाम में बेचना पड़ जाता था। कृषि भी मार खा गई थी, एक तो पानी की नियमितता नहीं थी सो फसल ठीक से हो नहीं पाती थी और जो होती भी तो औने- पौने में उसे भी सरकार को बेच देना पड़ता था। कंस की सेना जरूर पलती थी लेकिन प्रजा में हाहाकार था। ऐसे में यदि कोई गांव वालों को संगठित करने का प्रयास भी करता तो लोग साथ नहीं देते थे। ठीक आज की ही तरह..
आपको गोवर्धन पर्वत की पूजा का किस्सा तो मालूम ही होगा। बार- बार कभी सूखा कभी बाढ़ से परेशान गांव वालों को पंडितों ने सलाह दी की अखण्ड जाप करो और इन्द्र देवता को प्रसन्न करने विशेष पूजा करो, तभी इन्द्र देवता ठीक से पानी बरसाएंगे। तब आलसी व कामचोर लोग हांजी.. हौ भइया कहते हुए झटपट चंदा इकट्ठा करने की तैयार करने लगे। इस समय भगवान कृष्ण ने अपने ग्वाल बालों की टोली के माध्यम से उनका विरोध किया और साफ- साफ कह दिया कि हम बच्चें हैं तो क्या हुआ, हम सब जानते हैं। ये चंदा इकट्ठा करके केवल पूजापाठ से कोई देवता मनोकामना पूरी करने वाला नहीं है।
हम भी मानते हैं कि देवता नाराज हैं इसीलिए सुख शांति नहीं है। खाने को अनाज, पीने को पानी नहीं है। हमारा पशुधन कमजोर है। बच्चे गाली गलौच करते जुआ खेलते बैठे रहते हैं या कंस के नौकर बनकर हमारा ही शोषण करते हैं। सब मुफ्तखोर हराम का खाने वाले बन गये हैं। बस बैठे- बैठे कुछ फोकट का मिल जाए... यही चाहते हैं।
श्री कृष्ण ने कहा देवता तो देने वाले को कहते हैं। ये पर्वत ये जंगल, पानी के स्त्रोत, वनस्पति, जड़ी- बूटियां, आंवला बड़ पीपल आम इन सबके पेड़ देवता ही हैं। ये सर्व रोग हारी वृन्दा तुलसी देव है, ये गाय, ये तो कामधेनु है यह तो सब कुछ देती है, अमृत देती है ये तो देवताओं की भी माता है। ये हंसिया, कुदाली, रांपा, नांगर ये सब हमारी मदद करते हैं ये सब देवता हैं। उन्होंने पर्वत की ओर इशारा करके कहा था इस पर्वत से बह कर आया सारा पानी ही गांव में बाढ़ की स्थिति लाता है। यदि तुम लोग सचमुच देवताओं का आशीर्वाद चाहते हो तो आओ हम लोग कुदाल फावड़ा लेकर चलतेहैं। सबसे पहले इसी पर्वत पर खूब पेड़ पौधे लगाते हैं, यहाँ जड़ी- बूटियां और घांस उगाते हैं।
उस समय भी सारे गांव वाले साथ नहीं आए लेकिन ग्वालों की टोली ने ही उस सूखे बीरान पर्वत को हरा- भरा कर दिया। पानी को रोकने के लिए जगह- जगह डबरियां खोद दी गईं।
इसी को प्रतीकात्मक रूप से कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने केवल उंगली से इशारा भर किया और सभी ग्वालों ने अपनी पूरी ताकत लगाकर पहाड़ जैसे काम का बोझ आपस में बांट लिया।
वही पहाड़ जो बाढ़ लाता था अब गोवर्धन पर्वत हो गया, वृक्षारोपण और डबरियों के कारण फिर बाढ़ नहीं आई। तब लोगों का विश्वास जमा और फिर उन्होंने गांव के चारों ओर तुलसी रोपण करके उसे तुलसी का जंगल वृन्दावन बना दिया। उस युग में श्रीकृष्ण के गौ पालन व बलराम जी की खेती ने ऐसी धूम मचायी थी कि सर्वत्र यदुवंशियों का राज फैल गया था।
मित्रों..., देवता हमेशा देते हैं, वो मरते भी नहीं हैं अमर होते हैं... लेकिन हम यदि देवताओं की सेवा नहीं करेंगे और देवताओं को देने लायक नहीं बनाएंगे तो वो हमें क्या देंगे ?? अब गाय को ही लें अगर उसे ठीक से खिलाएंगे पिलाएंगे नहीं तो दूध कहां से मिलेगा ?? धरती माता को ही लें यदि उस पर पेड़ नहीं लगे, उस पर तालाब या डबरियां नहीं बनाईं उसकी प्यास ही नहीं बुझाई तब हम कितनी ही बोरिंग या कुंए खोदें पानी नहीं मिलेगा। अगर धरती में पानी है ही नहीं, तो वह हमें देगी कहां से ?? हमारे बच्चे भी तो देवता हैं। यदि हमने उन्हें ठीक से शिक्षा और संस्कार नहीं दिये तो हमारे ही बच्चे हमारे लिए राक्षस हो जाएंगे और हमारे बुढ़ापे में हमें ही लूट कर खा जाएंगे। यही बात नारी के लिए भी लागू होती है। मित्रों, यह दुनिया है, यहां जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है।
भगवान कृष्ण की कथा आपको इसलिए बताई है कि इस जमाने में भी अब वैसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई है। आज भी हमारी समस्याएं वही हैं पानी, खेती, हरामखोरी, दुर्व्यसन और शक्तिशालियों के आतंक की समस्या सब कुछ वैसा ही है, तो इसका उपाय भी वैसा ही होगा।
मित्रों..., हमारा जीवन छोटा सा है। मगर बहुत कीमती है। आज कलयुग के निष्कलंक अवतार की लीला चल रही है। भगवान दुष्टों का नाश व सज्जनों का उद्घार करने जा रहे हैं। आइये अपना- अपना जीवन जीते हुए भी हम ग्वाल- बालों की तरह या राम के वानर भालुओं की तरह उनके काम में उनका हाथ बंटाएं। वो पूरी दुनिया की व्यवस्था सुधारने जा रहे हैं, हम अपने गांव को ही विकसित समुन्नत बनाने का कार्य मिलजुल कर करें। ये कलयुग है, इसमें संगठन की ही ताकत है। ये जो मशाल का चित्र पूजा स्थल पर रखा है, यह संगठन की उसी ताकत का प्रतीक है।
आइये हम सभी मिलकर, युग परिवर्तन के कार्य में लगी युगावतार महाकाल की, उपस्थिति का अनुभव करते हुए एक बार साथ- साथ उनका जयघोष करें..
बोलिये.. युगावतार महाकाल की.. जय !
अब हम आज के इस यज्ञ कार्य को प्रारंभ करने जा रहे हैं। सत्बुद्घि इस युग की सबसे बड़ी ताकत है आइये भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे सबको सत्बुद्घि दें और गुरूदेव से प्रार्थना करते हैं कि वे सबको सन्मार्ग दिखाएं। सभी लोग कमर सीधी करके बैठें और हमारे साथ- साथ गायत्री महामंत्र का उच्चारण करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
आज गांव के सभी प्रमुख परिजन इस ग्राम विकास दीपयज्ञ में उपस्थित हैं। गांव का विकास, गांव वालों के चाहने पर ही हो सकता है। सबकी भलाई का इससे अच्छा दूसरा कोई उपाय नहीं हे। युगावतार की प्रेरणा से इस यज्ञ का आयोजन हो रहा है और उन्हीं की प्रेरणा से आप सभी यहां पर आए हैं तो अब इस सारी प्रक्रिया को समझने का भी प्रयास करें। हमें विश्वास है कि ईश्वरीय प्रेरणा से आप सभी अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
आप सभी का इस पवित्र कार्य में एक साथ आना स्वागत योग्य कार्य है। दैवीय अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत- पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है... श्रद्घापूर्वक इन दैवीय अनुदानों को स्वीकार करें।
(स्वयं सेवक अक्षत पुष्प का सिंचन उपस्थित परिजनों पर करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
हमारा गांव अपने आप में एक इकाई है। हमारा इतिहास एक है, एक ही वर्तमान है और भविष्य भी एक ही रहने वाला है। हमारी समस्याओं से हम अकेले ही नहीं निपट सकते। एक बार हम अपने मन से निजी फायदे नुकसान की बात निकाल दें और पूरे गांव को एक परिवार मानकर काम करना शुरू कर दें तो हमारे ग्राम देवता, हमारे पीतर सभी प्रसन्न हो जाएंगे। तब देखते ही देखते हमारी सभी समस्याओं का समाधान आपसी सहयोग से हो जाएगा।
शुद्घ पवित्र विचारों को धारण करना, ईश्वरीय अनुदानों को प्राप्त करने की पहली और अनिवार्य शर्त है। इस यज्ञ के प्रारंभ में आप सभी पर पवित्र जल का सिंचन हो रहा है। दोनों हाथ गोद में रखकर गांव के समस्त देवी देवताओं का ध्यान करते हुए, भावना करें कि इन पवित्र जल बूंदों के रूप में वे अपनी पवित्रता की वर्षा हम पर कर रहे हैं। इस पवित्रता को अपने अंतःकरण में धारण करने का भाव करते हुए यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
आजकल शहरी हवा गांव के वातावरण को दूषित कर रही है। शहर की सारी बीमारियां गांव में आती जा रही हैं क्योंकि गांव में प्राणवान वातावरण नहीं रहा, प्राणवान लोग नहीं रहे।
ग्राम विकास का हमारा यह शुभ संकल्प प्राणवान लोग ही पूरा कर सकेंगे। प्राणवान और शक्तिशाली बनने से हमारा ही लाभ होने वाला है। हम श्रम से जी ना चुराएं, गांव में हरियाली का वातावरण बनाएं, जगह- जगह सुंदर तालाब बनाएं। नित्य प्रातः काल उठकर व्यायाम करें, सूर्य भगवान का ध्यान करें, प्राणयाम करें। बुरी आदतों को छोड़ते जाएं व गांव की उन्नति के कार्यो में मन लगाएं तो अच्छा वातावरण दुबारा बनाया जा सकता है। तभी प्राणायाम की यौगिक क्रिया भी असरकारी हो सकेगी। ऐसी अच्छी व्यवस्था बनाने का संकल्प मन से लेते हुए आइये अब एक बार प्रतीकात्मक रूप से प्राणायाम करें।
एक लंबी श्वास लें, कुछ देर रोक कर धीरे- धीरे छोड़ें। सूर्य इस धरती के प्रत्यक्ष देवता हैं, वही प्राण दाता हैं उन्हीं के प्राण को धारण करने का भाव करते हुए यह प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
मित्रों ये गांव हमारा है। अनेक जन्मों से हम यहां पैदा होते और जीते मरते रहे हैं। इस गांव की धरती ने हमेशा हमें अपनी गोद में स्थान दिया है। इस मिट्टी के कण- कण में हमारे पूर्वजों की अमिट छाप है। यही हमारी एकता और समृद्घि का आधार भी है। हम सबको इस पर गर्व है। हम इस माटी की नालायक संतान नहीं बनेंगे। एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए इस गांव की उन्नति के लिए एक जुट होकर कार्य करेंगे। अब... अपनी अनामिका उंगली को धरती पर लगाएं और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करें कि आवेश व उत्तेजना में हमसे कोई गलत कार्य ना हो, शांत चित्त से हम ऐसे कार्य करें जिससे हमारा व सारे गांव का सिर ऊंचा हो। इसी उच्च भावना के साथ यह सूत्र दोहराएं और गांव की इस पवित्र माटी से एक दूसरे का तिलक करें। कहिये --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात.... ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
संकल्प सूत्र धारणम् --
अब हम एक दूसरे की कलाई पर कलावा बांधेंगे और देव शक्तियों को इस यज्ञ में आमंत्रित करेंगे। देव शक्तियां यूं ही किसी के बुलावे या मंत्र पढ़ने से नहीं आ जातीं। देव शक्तियां हमेशा लोगों का भला चाहती हैं। इसलिए जो लोग शुद्घ मन से लोगों का भले का काम करना चाहते हैं, वे उन्हीं की मदद के लिए आती हैं।
आज इस यज्ञ का आयोजन गांव को विकसित व खुशहाल बनाने के लिए किया जा रहा है। ऐसे सार्वजनिक हित के काम, देव- शक्तियों के सहयोग बिना सम्पूर्ण हो भी नहीं सकते। इसका एक अपना विज्ञान है। जब अच्छे कार्य करने का संकल्प सार्वजनिक रूप से पूरी ईमानदारी से लिया जाता है तो देव शक्तियां अपनी ओर से मदद करती हैं। जब देव शक्तियों की मदद मिले तो कोई भी कार्य अधूरा नहीं रहेगा बशर्ते हमसच्चे मन से प्रयास करें। इसी बात को सदा स्मरण रखने और अपने संकल्प को ना भूलने के लिए ही यह कलावा बांधा जाता है।
आज हम गांव के सर्वांगीण विकास हेतु मिलजुलकर कार्य करने का संकल्प लेने जा रहे हैं। इसके लिए सहायक देव शक्तियों को हमने प्रतीक रूप में पूजन के स्थान पर सजा ही रखा है। उनका स्मरण करते हुए हमें यह संकल्प लेना है कि हम सामाजिक नैतिक मर्यादाओं का पालन करेंगे, दण्डनीय, अपराधिक स्तर के या वर्जित कार्य नहीं करेंगे। ईश्वरीय विधी व्यवस्था का पालन करते हुए ही, ग्राम विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास करेंगे।
अब सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। स्वयं सेवक, उपस्थित जनों में संकल्प सूत्र बांट दें। संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें और एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि, ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की... जय !
कलश पूजनम् --
बिना कलश पूजन के कोई भी पवित्र कार्य नहीं हो सकता। हमें सोचना पड़ेगा आखिर क्या है इस कलश पूजन का उद्देश्य। इस कलश में होती है शक्ति। ये शक्ति -कलश है। इसमें 33 करोड़ देवता हैं। इसीलिए तो इसका पूजन करते हैं। कौन हैं ये 33 करोड़ देवता ?.. क्या है इस शक्ति कलश की शक्ति ?? भाइयों ये है मिट्टी और पानी। क्या इसमें सूक्ष्म रूप से देवता होते हैं ?? अरे जिस स्थूल रूप को मिट्टी और पानी के रूप में देखते हो, यही तो जीवन देने वाले देवता हैं। इसी में शक्ति है। जिस दिन गांव का किसान, मिट्टी और पानी की शक्ति भूल जाएगा या जैसे- जैसे भूलता जाएगा, उस दिन वह तो नुकसान उठाएगा ही, समाज भी अभाव ग्रस्त हो जाएगा। इसलिए हमारे पूर्वजों ने, सभी के लिए इसका पूजन अनिवार्य कर दिया है कलशपूजन के रूप में।
यहां धरती माता के मुख के प्रतीक स्वरूप एक छोटा सा गड्ढा बनाया गया है। इधर गांव के सरोवर का पवित्र जल रखा गया है। यहां मुख्य पूजा में बैठे प्रतिनिधियों से अनुरोध है कि वे जल से उस गड्ढे को अपने हाथों से भरें।
देखिए ये आप सब के प्रतिनिधी बन के धरती को जल पिला रहे हैं। आप लोगों को भी नालों के जल को रोकना चाहिए, डबरियां बनानी चाहिए, तालाबों की सफाई करनी चाहिए, तभी धरती माता की प्यास बुझेगी और हमारे कुओं में पानी आएगा। मित्रों... धरती, जल का अक्षय भंडार जरूर है परन्तु हमारी मां का भंडार खाली ना हो, इसका प्रयास भी हमें करना होगा। पूरे यज्ञ के दौरान जैसे- जैसे गड्ढे का पानी सूखते जाए इसी भाव के साथ उसे बार- बार भरा जाए।
बिना भावों को समझे केवल फूल पत्ती चढ़ाने का कोई अर्थ नहीं। गोल कलश धरती का प्रतीक है। उस पर ये आम के पत्ते लगने चाहिए, यानि धरती में मिट्टी पानी पेड़ तीनों का संरक्षण हम करेंगे, तो सभी देवताओं का सहयोग हमें मिलेगा। यही कलशपूजन का अर्थ है।
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
देव पूजनम् --
देव पूजन के क्रम में सर्व प्रथम गुरू पूजन करने का विधान है। हमारे गुरूदेव ने कहा है कि मै व्यक्ति नहीं विचार हू अतः हमें गुरूदेव के विचारों का क्रियान्वयन करते हुए ही उनका वास्तविक पूजन करना है। यहां पूजा स्थल पर गौरी गणेश और ग्राम देवता स्थापित हैं। रामायण जो कि घर- घर में श्रेष्ठ संस्कार एवं प्रेरणा देने वाली अमर गाथा है, उसका स्मरण कराने वाले राम दरबार का चित्र है। जिसमें वीरवेश में बैठे हनुमान जी ईश्वर की सेवा सब कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दे रहे हैं। ये साथ में चित्र है द्वापर युग की अवतारी चेतना भगवान कृष्ण का। इन्हीं के सूत्रों पर चलकर हमें गौ संवर्धन, वृक्षारोपण, भूजल संवर्धन, पर्यावरण संरक्षण, गौ आधारित कृषि करके ग्रामवासियों की संगठित शक्ति से सर्वांगीण ग्रामीण विकास का लक्ष्य प्राप्त करना है। कामधेनु गाय, ये बैलों की पावन जोड़ी, ये हल, कुदाल, रांपा ये सभी देवता हैं। हमें जो कुछ भी मिलेगा इन्हीं की पूजा से मिलेगा। हमारे लिए यही देवता हैं और श्रम करना ही इनकी पूजा करना है।
मित्रों, आज कोई किसी का साथ देने वाला नहीं है। बस हम हैं और हमारे भगवान हैं। बेहतर यही है कि सम्मान पूर्वक श्रमशील जीवन जिया जाए।
इधर गोवर्धन पर्वत पर बड़ पीपल आंवला आम और नीम के ये देव वृक्ष लगे हैं, इनकी संख्या जितनी बढ़ेगी हमारा जीवन उतना ही खुशहाल होता जाएगा। हर दृष्टि से यही उचित है और यही होना भी चाहिए। आइये हम सब मिलकर आज इसी बात का संकल्प लें। इसे ही गुरूदेव का संदेश मान कर, आइये हम उनका स्मरण करते हुए संघ शक्ति के प्रतीक लाल मशाल का पूजन करें --
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
अब प्रतिनिधी जल, चंदन, पुष्प लेकर उठें और गौरी गणेश, ग्राम देवता, गौमाता, बैल जोड़ी, गोवर्धन पर्वत, पांचों पवित्र वृक्षों, कुदाल, हल, फावड़ा आदि सबका पूजन करते चलें। पश्चात् दीपक अगरबत्ती लगाकर, गुड़ चने का भोग लगाया जाए।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः --
अभी वर्णन की गई सभी दिव्य शक्तियों एवं उनके उपकारी स्वभाव को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। शेष सभी परिजन दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करें --
हे अग्रिदेव.. युग परिवर्तर्न की इ�