Books - वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
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Language: HINDI
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राष्ट्रजागरण दीपयज्ञ
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प्रस्तुत राष्ट्र जागरण दीपयज्ञ अथवा युवा चेतना जागरण दीपयज्ञ वर्तमान समय की सभी समस्याओं के समाधान हेतु, लोकशक्ति नियोजित करने के उद्देश्य से किया जाना है। प्रशिक्षक संगठक किसी सार्वजनिक हित के, लंबे चलने वाले कार्यक्रम हेतु जब कोई व्यावहारिक कार्य योजना चलाना चाहें, तो समयदान व जनसहयोग प्राप्त करने के लिए भावप्रेरणा जगाने हेतु इस दीपयज्ञ को सम्पन्न करावें। समय व स्थान का सही चुनाव कर लें और उपयुक्त योग्यता रखने वाले समर्थ परिजनों को आमंत्रित करके पूरी श्रद्घा और गंभीरता पूर्वक इस यज्ञ को सम्पन्न करायें...
आवश्यक प्रारम्भिक तैयारी --
सर्वप्रथम लोकहित साधना करने वाली उपयुक्त कार्य योजना तैयार की जाए। योजना में केन्द्रीय भूमिका निभाने वाले, योग्य कार्यकर्त्ता का चुनाव करके पहले ही उन्हे मानसिक रूप से तैयार कर लिया जाए।
आवश्यक सामग्री वही होगी जो सामन्यता दीपयज्ञ में प्रयुक्त होती है। सारी यज्ञीय प्रक्रिया में भाग लेने के पश्चात् परिजनों की उस परिवर्तित मानसिकता को संकल्प पत्र के माध्यम से वास्तविकता में बदलना है, अतः अंत में, इसे भरवा कर देव चरणों में चढ़वाया जाय।
देव मंच पर लाल मशाल एवं भारत माता का चित्र स्थापित किया जाए तथा स्वयंसेवकों को उनके कार्य पूर्व में ही समझा दिये जाएं।
प्रेरणा-
जब व्यक्ति सोता है, तब अपने आपको भूल जाता है। जब जागरण होता है, तब व्यक्ति को अपनी स्थिति का भान होता है। तभी शुरू होता है अपने आपको ठीक करने, व्यवस्थित करने का क्रम। तब दिनभर के लिए कार्य योजना तैयार होती है, प्रयास यही रहता है कि दिन बेकार ना जाए।
मित्रों, हम सभी का निजी अस्तित्व है जरूर.... किन्तु हम सभी किसी अन्य बड़े अस्तित्व के अंग भी हैं, जैसे हमारा परिवार। इसी प्रकार हमारा परिवार भी, हमारे राष्ट्र् की एक सक्रिय इकाई है। वह भी राष्ट्र् पर उसी प्रकार निर्भर है जैसे हम अपने परिवार पर। भोजन आवास की सुविधा, सड़कें, संचार माध्यम, राष्ट्र्रीय सुख- दुःख की परिस्थितियां जैसे महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवादी गतिविधियां आदि से न चाहते हुए भी हमें जूझना पड़़ता ही है। इसी तरह हम प्रकृति का भी हिस्सा हैं। हम प्रकृति से और प्रकृति हम से प्रभावित होते रहती है।
मित्रों, जब व्यक्ति जागता है तो स्वतः ही अपने दैनिक कार्यों में रत हो जाता है। जब परिवार के प्रति उसका कर्त्तव्य बोध जागता है, तब वह अन्य सदस्यों को सहयोग, प्रेरणा व आवश्यक निर्देश प्रशिक्षण देकर परिवार में सुख शान्ति स्थापना का प्रयास करता है। ऐसा ही होना चाहिए।
आज हम समस्याओं के अंबार में पड़े हैं। दुखी हैं, परेशान हैं। फिर भी हमारी राष्ट्र्रीय भावना, अभी मरी नहीं है यह बहुत अच्छी बात है। अभी पिछले दिनों कारगिल युद्घ में कैसे राष्ट्र्रभाव उभर कर आया। आतंकवादी घटनाओं को देख सुनकर कैसा प्रतिरोध जागृत हो जाता है ?? क्रिकेट मैच चलता रहे तो अपने देश की जीत हो.... यह भावना कितना जोर मारती है ?? एक पल को भी चैन नहीं पड़ता। यह सब इसी बात का प्रमाण हे कि राष्ट्र्र के प्रति अपनत्व अभी मरा नहीं है, जीवित है। किन्तु यह भावना सतत् जागृत नहीं है, सोई हुई है... कभी कभार किसी क्षण के लिए जाग उठती है। परिवार प्रेम तो जागृत है, राष्ट्र् प्रेम सोया हुआ है। यदि राष्ट्रधर्म का भाव जाग जाए, राष्ट्र के प्रति अपनत्व और प्रेम... जागृत हो जाए, तो राष्ट्र् की अस्त व्यस्तता भी जरूर दूर हो जाएगी। लोग सब कुछ अकेले ही भोग लेना चाहते हैं। राष्ट्र् में यही तो हो रहा है... एक कहता है तू जाग, दूसरा कहता तू उठ, तू जाग.... लेकिन सब सोये पड़े हैं कोई उठता नहीं है।
मित्रों अब तो इस प्रकार सोते रहने से.... कमजोरी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। राष्ट्र् को यदि जीवित रहना है तो अब तो इसे उठना ही होगा, नहीं तो अंग- प्रत्यंग क्रमशः कटते जाएंगे। अब तो स्थिति ऐसी हे कि उठो, जागो और कुछ करो... नहीं तो मरो।
स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, महर्षि अरविंद, महर्षि रमण, महात्मा गांधी एवं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य आदि के रूप में अनेक देवदूत, इस राष्ट्र को जागृत करने के लिए ही प्रयत्न करते रहे हैं। इसी श्रृंखला की एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में.... युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के आवाहन पर आयोजित है, आज का यह राष्ट्र् जागरण दीपयज्ञ। उन्हीं की सूक्ष्म प्रेरणा से आप, आज इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए भी हैं।
इस यज्ञ के माध्यम से अपनी निजी व पारिवारिक समस्याओं का हल भी आज हमें प्राप्त होने जा रहा है। हमारी समस्याएं याने.... बच्चे कहना नहीं मानते, गाली गलौच और नशा करना सीखते जा रहे हैं। गुंडागर्दी बढ़ गई है, महिलाओं की सुरक्षा को खतरा है। नौकरियाँ नहीं मिलने से, युवक मानसिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं। आज विश्वसमाज में भूमंडलीकरण की प्रकिया चल रही है, तब आने वाले दिनों में आप देखना, इन डिग्री धारियों, डॉक्टरों व इंजीनियरों में भी भयंकर बेकारी आएगी। पर्यावरण भी हमारी समस्या बना हुआ है। कृषि को तो छोड़ि़ए, लोगों को पीने का स्वच्छ पानी भी सुलभ नहीं हो पाता। सामाजिक हित में तो कोई काम होता नहीं, उल्टे चारित्रिक पतन की वजह से पारिवारिक जीवन भी नर्क बना हुआ है।
आज समाज के लिए ही समय दान, अंशदान की बात करो तो लोग अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का ऐसा वर्णन करते हैं, कि कुछ कहते नहीं बनता।
मित्रों, सेवा और सांस्कृतिक मूल्यों के रक्षा की बात अब लोग समझने लगे हैं। जिस दिन लोग पारिवारिक दायित्वों की तरह, समाज व प्रकृति के प्रति अपने दायित्वों के भी निष्पादन में लग जाएंगे... राष्ट्र जागरण हुआ मानिये। आज जहां भी सामूहिक रूप से लोकहित के प्रयास हो रहे हैं.. वहां अच्छे परिणाम भी आ रहे हैं। हमने इसी प्रयास को सात सूत्रीय आन्दोलनों के माध्यम से आगे बढ़ाने का क्रम बनाया हुआ है।
महर्षि अरविंद और महर्षि रमण ने जब तप किया था तो राष्ट्र में नई चेतना आई थी। स्वदेशी अपनाने का आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन और यहाँ तक कि करो या मरो का भी आन्दोलन चला। उसमें क्या- क्या हुआ था, लोगों ने अपने पास केमहंगे- महंगे विदेशी सामानों को घर के बाहर फेंक दिया, उनकी होली जलाई गई। लोग अपनी नौकरियां छोड़ कर, धंधे बंद करके राष्ट्रहित में अपने समर्पण को अधिक अच्छा मानने लगे। यह बहुत बड़ी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। उसी सामूहिक सक्रियता और जागृत राष्ट्र- प्रेम से ही देश को आजादी मिली थी। किशोरों और युवकों में यह भावना जागी कि, मैं इस राष्ट्र का घटक हूँ। ये देश मेरा घर है, अंग्रेज विदेशी हैं, लोगों के साथ अन्याय कर रहे हैं। भारत में रहकर, मेरी ही भारत माता का अपमान कर रहे हैं। इसी भावना के चलते बारह- बारह, चौदह- चौदह वर्ष के बच्चे भी, इस परिवर्तन को लाने में मन प्राण से जुट गए। जिसे जो मार्ग मिला... बम का, पिस्तौल का या सत्याग्रह का... कोई रुका नहीं। लोगों ने घर- बार तो छोड़ा ही.. हंसते- हंसते फांसी भी झेली। मर गए... अपने आपको बिल्कुल मिटा दिया। यही कारण है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी आज तक हमारी वो राष्ट्रीयता की भावना मर नहीं सकी और जैसी भी हो, पर जिंदा तो है।
ऋषि चेतना हमें यहां इसलिए खींच कर लाई है, कि वह हमें भी परिवर्तनकारी इस महान श्रृंखला से जोड़ देना चाहती है। 15 अगस्त 1947, तो मात्र एक पड़ाव था। सैकड़ों वर्षो से मृतप्राय सामूहिक राष्टिर चेतना के जागरण का। मै और मेरा के अहंकार और अज्ञानता ने हमें पराधीनता के चक्र में लाकर पटक दिया था। अब युगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति के बाद यह राष्ट्र् दूसरी (सांस्कृतिक) आजादी के द्वार पर खड़ा है। वर्तमान में हो रही भयंकर यातना, तीव्र वेदना, ये चीख पुकार.... ये सब नव युग की प्रसव वेदना है। राष्ट्र को अभी और हिम्मत चाहिए, धैर्य चाहिए। कुछ सेवा की जरूरत है। ऋषि कहता है... वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। तो मित्रों, यह समय, देव शक्तियों के वर्षो के तप के सफल होने का समय है। हम पर विश्वास किया जा रहा है... हम पर... भारत माता को हमारी सेवा की जरूरत है...। क्या उनका खून हमारी रगों में नहीं बह रहा ?? यदि हां... तो बलिदान के मार्ग पर, हमारे कदमों में आज लड़खडाहट क्यों ??
क्रांतिकारी पुत्र कहता है.... वदा देओ मा फिरे आसि...., मां मेरी मौत को मौत मत समझना, मैं फिर तुम्हारी ही कोख से फिर जन्म लूंगा... हमने भारत माता की जय कहा था... अरे क्यों कहा था ?? और कहा था तो अब करो ना... यही तो समय है... आज का यह आयोजन, संकल्प पूर्वक इस कार्य में भीड़ जाने के लिए ही है। आसमान की ओर आंख उठाकर एक बार देखो तो सही, युग ऋषि हमारी ही ओर देख रहे हैं, कि ये असली है या ढोंगी और कचरा है।
आज सिर्फ कर्मकाण्ड या सिर्फ संकल्प नहीं हो रहा है.... हमारे सामने एक पूरी कार्य योजना है। युग निर्माण की इस खंदक की लड़ाई हेतु जवानों को चुना जा रहा है। क्या करना है, कब करना है, कैसे करना है..... सब कुछ बता दिया जाएगा, सिखा दिया जाएगा। हमारी मार्ग दर्शक सत्ता ने सम्पूर्ण संरक्षण का वचन दिया है। यदि उस पर विश्वास है और सचमुच समर्पण करना चाहते हैं, तो आज इस दीपयज्ञ में सौभाग्य समझकर शामिल हों....
गीत-
दे सकें तो दें जीवन दान, अन्यथा समयदान तो करें।
न बन पायें यदि भामाशाह, अपेक्षित अंशदान तो करें।।
समर्पित करें उन्हें प्रतिभा, उन्हीं ने जिसे संवारा है।
स्वयं भगवान हमारे गुरू, परम सौभाग्य हमारा है।।
बोलिए परम पूज्य गुरुदेव की .... जय !
युगावतार महाकाल की .... जय !
भारत माता की .... जय !
मित्रों यहां जो कुछ भी कहा जा रहा है, यह पूज्य गुरूदेव की ही प्रेरणा है। उम्मीद है आपने इसे अपने अंतस में धारण किया होगा... सचमुच यह हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसे गुरुदेव की कृपा प्राप्त हो सकी।
आइये, अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए इस यज्ञीय कर्मकाण्ड का शुभारंभ करें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् -
आप सभी को महाकाल ने योग्य समझकर ही आज यहां आमंत्रित किया है। हम आपके इस सौभाग्य की सराहना करते हैं।
आप सभी देवकृपा से प्राप्त इस सुअवसर के महत्त्व को समझते हुए, दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक सिर झुकाएं। दैवीय अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत- पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है... उसे श्रद्घापूर्वक स्वीकार करें।
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैः रंगै स्तुष्टुवा, सस्तनूभिः, व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् -- शरीर की तरह ही, मन और विचारों को भी पवित्र करना आवश्यक है, अन्यथा कल्याणकारी कार्यों की सफलता संदिग्ध हो जाएगी। हमारे भीतर की स्वाभाविक सात्विकता और पवित्रता जागे, यह पवित्रता हमारे मन, काया और अंतःकरण में व्याप्त हो जाए। इसी भाव के साथ दोनों हाथ जोड़ कर यह सूत्र दोहराते चलें।
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतःकरणेषु संविशेत्।
भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिल रहा है तथा हम भीतर एवं बाहर से पवित्र हो रहे हैं.... अतः दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
-पवित्रता हमे सन्मार्ग पर चलाएँ- ॐ पवित्रतानः/सन्मार्गं नयेत्
-पवित्रता हमें महान बनाएँ- ॐ पवित्रतानः/महत्तां प्रयच्छतु
-पवित्रता हमें शांति प्रदान करे- ॐ पवित्रतानः/शांतिं प्रददातु
सूर्यध्यान प्राणायामः --
श्रेष्ठ संकल्प का निर्वहन केवल प्राणवान व्यक्ति ही कर सकते हैं। हमें भी प्राणवान शक्तिमान बनना होगा, इसके लिए यह आवश्यक है कि निरूपयोगी या अनुत्पादक कार्यों में हम अपनी शक्ति का अपव्यय ना होने दें। इस बुराई से अपने आप को बचाएं साथ ही सत्प्रवृत्तियों को अपनाकर अपनी सामर्थ्य को बढ़ायें। प्राण शक्ति के प्रदाता, सविता देवता सूर्य हैं। उनका ध्यान करते हुए इसी भाव के साथ एक बार प्राणायाम करें कि हे विश्व के स्वामी! हे महाप्राण! हमें बुराइयों से बचाइये और सत्प्रवृत्तियों से जोड़ि़ये। सभी कमर सीधी करके बैठें और प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें -
ॐ विश्वानि देव सवितदुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् -- हम अपने कार्यों से इस धरा पर नया इतिहास लिखने जा रहे हैं। हमारे देश की मिट्टी में अनेकों अवतारों, ऋषियों, महान संतों और क्रांतिकारियों की चरण रज है। यह हमारे लिए चंदन से भी बढ़कर है। उनकी सम्मिलित ऊर्जा हमें भी प्राप्त हो। हम अहंकार क्रोध आवेश आदि दुर्भावनाओं से मुक्त हों और ठंडे दिमाग से मिलजुल कर कार्य कर सकें।
ऐसी प्रार्थना भगवान से करते हुए निम्न सूत्र दोहराएं और इस पावन माटी से एक- दूसरे का तिलक कर सम्मानित करें। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात्.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात्, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात्।
संकल्प सूत्र धारणम् --
मित्रों, इस दुनिया में कर्मों का ही फल मिलता है। मानवीय पुरूषार्थ में दैवीय सहयोग की प्राप्ति हेतु ही यज्ञों का आयोजन किया जाता है। समुचित शिक्षा तथा मानवीय पुरूषार्थ के अभाव में ही हम अनेक बुराइयों के शिकार होते गये। खराब स्वास्थ्य, नशाखोरी, दरिद्रता, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आदि सब इसी की उपज है। संयुक्त प्रयासों से हम इन सबसे छुटकारा भी पा सकते हैं, किन्तु हमें दृढ़ प्रतिज्ञ होकर इस कार्य में जुट जाना होगा। महत्त्वपूर्ण बात है, लोक सेवा की इन उच्च भावनाओं पर टिके रहकर प्रयत्नशील बने रहना। इसीलिए यज्ञ कार्यों में देव आह्वान के पूर्व संकल्प सूत्र बांधा जाता है।
उपस्थित परिजनों के बीच संकल्प सूत्र वितरित कर दिये जाएं। (यदि सभी तक सूत्र पहुँचाने की व्यवस्था ना बन पड़े तो परिजन अपने यज्ञोपवीत को ही, ओढ़ा गया दायित्व अनुभव करें और उसकी ब्रह्म ग्रंथी को स्पर्श करते हुए संकल्प लें)
मित्रों यह मात्र कलावा बांधने की औपचारिकता नहीं है। हम सदा ही भारत माता की जय कहते आए हैं, तो अपने आप को भारत माता का ऋणी अनुभव करते हुए संकल्प लें कि हम शुद्घ मन से कार्य करेंगे... मर्यादाओं का पालन करेंगे... किसी तरह आलस्य प्रमाद नही बरतेंगे। रचनात्मक कार्यक्रमों के इन दायित्वों के निर्वहन हेतु, पूज्य गुरूदेव द्वारा दी जा रही सारी विधी- व्यवस्था का सत्यनिष्ठा से पालन करेंगे।
संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें और एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें -
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं-
हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय।
कलश पूजनम् -
अब हम पूजा वेदी पर स्थापित कलश का पूजन करेंगे।
मित्रों... कहने को तो यह पानी भरा एक पात्र भर है। जिसमें अक्षत्- पुष्प, हल्दी- सुपारी और द्रव्य के साथ ही कुछ गंगाजल मिलाया गया है। किन्तु यह विचारणीय है कि...... यदि हममें हल्दी रूपी पवित्रता नहीं है... गुरू, ईश्वर या राष्ट्र्र के प्रति, जल रूपी श्रद्घा नहीं है... यदि हम फूलों की तरह मुस्कुराते हुए, सहज भाव से अक्षत् रूपी पूर्ण समर्पण नहीं कर सकते और यदि हम किसी सत्कार्य के लिए अपनी ओर से कुछ द्रव्य खर्च नहीं कर सकते, तो राष्ट्र को शक्तिशाली कैसे बना सकेंगे ??
ईश्वर के प्रति श्रद्घा समर्पण का अर्थ यह होता है कि हम उसकी विधी व्यवस्था के अनुसार अपना जीवन क्रम बनाएं। हमारी निजी सोच ठीक नहीं चलती इसीलिए तो प्रार्थना है धियो यो नः प्रचोदयात्। अब हमारी प्रार्थना सफल हो गयी है। स्वयं भगवान हमारे गुरू बनकर आ गए हैं, अब बस उन्हीं के अनुसार जीवन जीना है।
आइये पूरी श्रद्घा के साथ दिव्य शक्तियों का आह्वान- पूजन करें। प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें.... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें-
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
देव पूजनम् -
इसी क्रम में गुरू, गायत्री, भारत माता व संगठित शक्ति की प्रतीक लाल मशाल का पूजन भी करेंगे। जल, चंदन, अक्षत्, पुष्प, धूप दीप नैवेद्य आदि श्रद्घा पूर्वक समर्पित करें।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः -
देव शक्तियां सूक्ष्म होती हैं, उनकी पहचान करनी होती है। वे हमें देती हैं, देना ही उनका स्वभाव होता है। वे सर्वत्र विद्यमान हैं। उन्हें पहिचानें व उनसे तालमेल बिठाते हुए लाभ प्राप्त करें। अब दिव्य शक्तियों को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। शेष सभी परिजन दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करें -- हे अग्रिदेव.. युग परिवर्तर्न की इस बेला में, इस दिव्य ज्योति के माध्यम से हमारा अंतःकरण भी आलोकित हो। हम सभी सक्रिय समूहों में संगठित होकर, एक समर्थ सृजन शक्ति के रूप में उभर सकें। हम सभी का संयुक्त सामर्थ्य, कल्याणकारी व्यवस्था का निर्माण करे।
ॐ अग्रेनय सुपथाराये अस्मान् विश्वानिदेव वयुनानि विद्वान, युयोध्यस्मज्जुहु राणमेनो, भूयिष्ठान ते नम उक्तिम् विधेम।
गायत्री स्तवनम् -
इसके पूर्व कि हम, यज्ञ की आहुतियों समर्पित करें, दोनों हाथ जोड़कर उस ज्योति पुरूष से प्रार्थना करें कि हे तीनों लोकों में व्याप्त अनादि ईश्वर, आप दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी और पाप बुद्घि का नाश करने वाले हैं। आप सत्पथगामी के रूप में हममें अवतरित, स्थापित हो जाइये। हमें सन्मार्ग पर चलने की शक्ति व साहस प्रदान करिये ताकि हमारा जीवन भी, लोभ मोह व स्वार्थ की माया से मुक्त होकर पवित्र पावन बन सके-
शुभ ज्योति के पुंज अनादि अनुपम, ब्रह्माण्ड व्यापी आलोक कर्त्ता।
दारिद्र दुःख भय से मुक्त कर दो, पावन बना दो, हे देव सविता॥
ऋषि देवताओं से नित्य पूजित, हे भर्ग भव बंधन मुक्ति कर्त्ता।
स्वीकार कर लो वंदन हमारा, पावन बना दो, हे देव सविता॥
हे गूढ़ अंतःकरण में विराजित, तुम दोष पापादि संहार कर्त्ता।
शुभ धर्म का बोध हमको करा दो, पावन बना दो, हे देव सविता॥
हे योगियों के शुभ मार्ग दर्शक, सद्ज्ञान के आदि संचार कर्त्ता।
प्रणिपात स्वीकार लो हम सभी का, पावन बना दो, हे देव सविता।
पावन बना दो हे देव सविता॥
दीप यज्ञ -
स्तवन के बाद आइये अब यज्ञ करें।
यज्ञ के तीन चरण होते हैं --
1. देव शक्तियों को पहिचानना और उनका पूजन संवर्धन करना।
2. अपने साधनों का समर्पण करके उन्हें मजबूत बनाना।
3. बिखरी हुई श्रेष्ठ शक्तियों का संगतिकरण करके उन्हें एकजुट रखना।
राष्ट्र जागरण व लोकसेवा का कार्य भी यज्ञ ही है, जो दो घंटों में संपन्न नहीं हो सकेगा। अतः देवपूजन, दान व संगतिकरण के कार्य, हमें लंबे समय तक चलाने होंगे। आइये मजबूत भावपक्ष का निर्माण करने के लिए दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
हे यज्ञ देव, युग शक्ति महाकाल के महासंकल्प और प्रभाव से, सूक्ष्म जगत का शोधन होता चले तथा सामुहिक समस्याओं के निदान के लिए, सामुहिक प्रयत्नों की दिशा में, हम आगे बढ़ सकें, जिससे नवयुग के अवतरण का मार्ग प्रशस्त हो।
बोलिए युगावतार महाकाल की... जय !
भारत माता की... जय !
अग्रिहोत्र की प्रक्रिया दीपक प्रज्ज्वलन के साथ स्वचलित रूप से चल रही है। कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ जोड़कर समवेत स्वर में गायत्री मंत्र बोलकर इदम् न मम् कहते हुए भावनात्मक आहुतियों प्रदान करते चलें -- बोलिए... गायत्री माता की... जय।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् -- स्वाहा इदम् गायत्र्यै इदम् न मम्। (निर्धारित आहूतियां)
देव दक्षिण�
आवश्यक प्रारम्भिक तैयारी --
सर्वप्रथम लोकहित साधना करने वाली उपयुक्त कार्य योजना तैयार की जाए। योजना में केन्द्रीय भूमिका निभाने वाले, योग्य कार्यकर्त्ता का चुनाव करके पहले ही उन्हे मानसिक रूप से तैयार कर लिया जाए।
आवश्यक सामग्री वही होगी जो सामन्यता दीपयज्ञ में प्रयुक्त होती है। सारी यज्ञीय प्रक्रिया में भाग लेने के पश्चात् परिजनों की उस परिवर्तित मानसिकता को संकल्प पत्र के माध्यम से वास्तविकता में बदलना है, अतः अंत में, इसे भरवा कर देव चरणों में चढ़वाया जाय।
देव मंच पर लाल मशाल एवं भारत माता का चित्र स्थापित किया जाए तथा स्वयंसेवकों को उनके कार्य पूर्व में ही समझा दिये जाएं।
प्रेरणा-
जब व्यक्ति सोता है, तब अपने आपको भूल जाता है। जब जागरण होता है, तब व्यक्ति को अपनी स्थिति का भान होता है। तभी शुरू होता है अपने आपको ठीक करने, व्यवस्थित करने का क्रम। तब दिनभर के लिए कार्य योजना तैयार होती है, प्रयास यही रहता है कि दिन बेकार ना जाए।
मित्रों, हम सभी का निजी अस्तित्व है जरूर.... किन्तु हम सभी किसी अन्य बड़े अस्तित्व के अंग भी हैं, जैसे हमारा परिवार। इसी प्रकार हमारा परिवार भी, हमारे राष्ट्र् की एक सक्रिय इकाई है। वह भी राष्ट्र् पर उसी प्रकार निर्भर है जैसे हम अपने परिवार पर। भोजन आवास की सुविधा, सड़कें, संचार माध्यम, राष्ट्र्रीय सुख- दुःख की परिस्थितियां जैसे महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवादी गतिविधियां आदि से न चाहते हुए भी हमें जूझना पड़़ता ही है। इसी तरह हम प्रकृति का भी हिस्सा हैं। हम प्रकृति से और प्रकृति हम से प्रभावित होते रहती है।
मित्रों, जब व्यक्ति जागता है तो स्वतः ही अपने दैनिक कार्यों में रत हो जाता है। जब परिवार के प्रति उसका कर्त्तव्य बोध जागता है, तब वह अन्य सदस्यों को सहयोग, प्रेरणा व आवश्यक निर्देश प्रशिक्षण देकर परिवार में सुख शान्ति स्थापना का प्रयास करता है। ऐसा ही होना चाहिए।
आज हम समस्याओं के अंबार में पड़े हैं। दुखी हैं, परेशान हैं। फिर भी हमारी राष्ट्र्रीय भावना, अभी मरी नहीं है यह बहुत अच्छी बात है। अभी पिछले दिनों कारगिल युद्घ में कैसे राष्ट्र्रभाव उभर कर आया। आतंकवादी घटनाओं को देख सुनकर कैसा प्रतिरोध जागृत हो जाता है ?? क्रिकेट मैच चलता रहे तो अपने देश की जीत हो.... यह भावना कितना जोर मारती है ?? एक पल को भी चैन नहीं पड़ता। यह सब इसी बात का प्रमाण हे कि राष्ट्र्र के प्रति अपनत्व अभी मरा नहीं है, जीवित है। किन्तु यह भावना सतत् जागृत नहीं है, सोई हुई है... कभी कभार किसी क्षण के लिए जाग उठती है। परिवार प्रेम तो जागृत है, राष्ट्र् प्रेम सोया हुआ है। यदि राष्ट्रधर्म का भाव जाग जाए, राष्ट्र के प्रति अपनत्व और प्रेम... जागृत हो जाए, तो राष्ट्र् की अस्त व्यस्तता भी जरूर दूर हो जाएगी। लोग सब कुछ अकेले ही भोग लेना चाहते हैं। राष्ट्र् में यही तो हो रहा है... एक कहता है तू जाग, दूसरा कहता तू उठ, तू जाग.... लेकिन सब सोये पड़े हैं कोई उठता नहीं है।
मित्रों अब तो इस प्रकार सोते रहने से.... कमजोरी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। राष्ट्र् को यदि जीवित रहना है तो अब तो इसे उठना ही होगा, नहीं तो अंग- प्रत्यंग क्रमशः कटते जाएंगे। अब तो स्थिति ऐसी हे कि उठो, जागो और कुछ करो... नहीं तो मरो।
स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, महर्षि अरविंद, महर्षि रमण, महात्मा गांधी एवं पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य आदि के रूप में अनेक देवदूत, इस राष्ट्र को जागृत करने के लिए ही प्रयत्न करते रहे हैं। इसी श्रृंखला की एक ऐतिहासिक कड़ी के रूप में.... युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के आवाहन पर आयोजित है, आज का यह राष्ट्र् जागरण दीपयज्ञ। उन्हीं की सूक्ष्म प्रेरणा से आप, आज इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए भी हैं।
इस यज्ञ के माध्यम से अपनी निजी व पारिवारिक समस्याओं का हल भी आज हमें प्राप्त होने जा रहा है। हमारी समस्याएं याने.... बच्चे कहना नहीं मानते, गाली गलौच और नशा करना सीखते जा रहे हैं। गुंडागर्दी बढ़ गई है, महिलाओं की सुरक्षा को खतरा है। नौकरियाँ नहीं मिलने से, युवक मानसिक रोगों के शिकार होते जा रहे हैं। आज विश्वसमाज में भूमंडलीकरण की प्रकिया चल रही है, तब आने वाले दिनों में आप देखना, इन डिग्री धारियों, डॉक्टरों व इंजीनियरों में भी भयंकर बेकारी आएगी। पर्यावरण भी हमारी समस्या बना हुआ है। कृषि को तो छोड़ि़ए, लोगों को पीने का स्वच्छ पानी भी सुलभ नहीं हो पाता। सामाजिक हित में तो कोई काम होता नहीं, उल्टे चारित्रिक पतन की वजह से पारिवारिक जीवन भी नर्क बना हुआ है।
आज समाज के लिए ही समय दान, अंशदान की बात करो तो लोग अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का ऐसा वर्णन करते हैं, कि कुछ कहते नहीं बनता।
मित्रों, सेवा और सांस्कृतिक मूल्यों के रक्षा की बात अब लोग समझने लगे हैं। जिस दिन लोग पारिवारिक दायित्वों की तरह, समाज व प्रकृति के प्रति अपने दायित्वों के भी निष्पादन में लग जाएंगे... राष्ट्र जागरण हुआ मानिये। आज जहां भी सामूहिक रूप से लोकहित के प्रयास हो रहे हैं.. वहां अच्छे परिणाम भी आ रहे हैं। हमने इसी प्रयास को सात सूत्रीय आन्दोलनों के माध्यम से आगे बढ़ाने का क्रम बनाया हुआ है।
महर्षि अरविंद और महर्षि रमण ने जब तप किया था तो राष्ट्र में नई चेतना आई थी। स्वदेशी अपनाने का आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन और यहाँ तक कि करो या मरो का भी आन्दोलन चला। उसमें क्या- क्या हुआ था, लोगों ने अपने पास केमहंगे- महंगे विदेशी सामानों को घर के बाहर फेंक दिया, उनकी होली जलाई गई। लोग अपनी नौकरियां छोड़ कर, धंधे बंद करके राष्ट्रहित में अपने समर्पण को अधिक अच्छा मानने लगे। यह बहुत बड़ी सच्चाई है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। उसी सामूहिक सक्रियता और जागृत राष्ट्र- प्रेम से ही देश को आजादी मिली थी। किशोरों और युवकों में यह भावना जागी कि, मैं इस राष्ट्र का घटक हूँ। ये देश मेरा घर है, अंग्रेज विदेशी हैं, लोगों के साथ अन्याय कर रहे हैं। भारत में रहकर, मेरी ही भारत माता का अपमान कर रहे हैं। इसी भावना के चलते बारह- बारह, चौदह- चौदह वर्ष के बच्चे भी, इस परिवर्तन को लाने में मन प्राण से जुट गए। जिसे जो मार्ग मिला... बम का, पिस्तौल का या सत्याग्रह का... कोई रुका नहीं। लोगों ने घर- बार तो छोड़ा ही.. हंसते- हंसते फांसी भी झेली। मर गए... अपने आपको बिल्कुल मिटा दिया। यही कारण है कि इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी आज तक हमारी वो राष्ट्रीयता की भावना मर नहीं सकी और जैसी भी हो, पर जिंदा तो है।
ऋषि चेतना हमें यहां इसलिए खींच कर लाई है, कि वह हमें भी परिवर्तनकारी इस महान श्रृंखला से जोड़ देना चाहती है। 15 अगस्त 1947, तो मात्र एक पड़ाव था। सैकड़ों वर्षो से मृतप्राय सामूहिक राष्टिर चेतना के जागरण का। मै और मेरा के अहंकार और अज्ञानता ने हमें पराधीनता के चक्र में लाकर पटक दिया था। अब युगसंधि महापुरश्चरण की महापूर्णाहुति के बाद यह राष्ट्र् दूसरी (सांस्कृतिक) आजादी के द्वार पर खड़ा है। वर्तमान में हो रही भयंकर यातना, तीव्र वेदना, ये चीख पुकार.... ये सब नव युग की प्रसव वेदना है। राष्ट्र को अभी और हिम्मत चाहिए, धैर्य चाहिए। कुछ सेवा की जरूरत है। ऋषि कहता है... वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः। तो मित्रों, यह समय, देव शक्तियों के वर्षो के तप के सफल होने का समय है। हम पर विश्वास किया जा रहा है... हम पर... भारत माता को हमारी सेवा की जरूरत है...। क्या उनका खून हमारी रगों में नहीं बह रहा ?? यदि हां... तो बलिदान के मार्ग पर, हमारे कदमों में आज लड़खडाहट क्यों ??
क्रांतिकारी पुत्र कहता है.... वदा देओ मा फिरे आसि...., मां मेरी मौत को मौत मत समझना, मैं फिर तुम्हारी ही कोख से फिर जन्म लूंगा... हमने भारत माता की जय कहा था... अरे क्यों कहा था ?? और कहा था तो अब करो ना... यही तो समय है... आज का यह आयोजन, संकल्प पूर्वक इस कार्य में भीड़ जाने के लिए ही है। आसमान की ओर आंख उठाकर एक बार देखो तो सही, युग ऋषि हमारी ही ओर देख रहे हैं, कि ये असली है या ढोंगी और कचरा है।
आज सिर्फ कर्मकाण्ड या सिर्फ संकल्प नहीं हो रहा है.... हमारे सामने एक पूरी कार्य योजना है। युग निर्माण की इस खंदक की लड़ाई हेतु जवानों को चुना जा रहा है। क्या करना है, कब करना है, कैसे करना है..... सब कुछ बता दिया जाएगा, सिखा दिया जाएगा। हमारी मार्ग दर्शक सत्ता ने सम्पूर्ण संरक्षण का वचन दिया है। यदि उस पर विश्वास है और सचमुच समर्पण करना चाहते हैं, तो आज इस दीपयज्ञ में सौभाग्य समझकर शामिल हों....
गीत-
दे सकें तो दें जीवन दान, अन्यथा समयदान तो करें।
न बन पायें यदि भामाशाह, अपेक्षित अंशदान तो करें।।
समर्पित करें उन्हें प्रतिभा, उन्हीं ने जिसे संवारा है।
स्वयं भगवान हमारे गुरू, परम सौभाग्य हमारा है।।
बोलिए परम पूज्य गुरुदेव की .... जय !
युगावतार महाकाल की .... जय !
भारत माता की .... जय !
मित्रों यहां जो कुछ भी कहा जा रहा है, यह पूज्य गुरूदेव की ही प्रेरणा है। उम्मीद है आपने इसे अपने अंतस में धारण किया होगा... सचमुच यह हमारा सौभाग्य है कि हमें ऐसे गुरुदेव की कृपा प्राप्त हो सकी।
आइये, अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए इस यज्ञीय कर्मकाण्ड का शुभारंभ करें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् -
आप सभी को महाकाल ने योग्य समझकर ही आज यहां आमंत्रित किया है। हम आपके इस सौभाग्य की सराहना करते हैं।
आप सभी देवकृपा से प्राप्त इस सुअवसर के महत्त्व को समझते हुए, दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक सिर झुकाएं। दैवीय अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत- पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है... उसे श्रद्घापूर्वक स्वीकार करें।
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैः रंगै स्तुष्टुवा, सस्तनूभिः, व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् -- शरीर की तरह ही, मन और विचारों को भी पवित्र करना आवश्यक है, अन्यथा कल्याणकारी कार्यों की सफलता संदिग्ध हो जाएगी। हमारे भीतर की स्वाभाविक सात्विकता और पवित्रता जागे, यह पवित्रता हमारे मन, काया और अंतःकरण में व्याप्त हो जाए। इसी भाव के साथ दोनों हाथ जोड़ कर यह सूत्र दोहराते चलें।
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतःकरणेषु संविशेत्।
भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिल रहा है तथा हम भीतर एवं बाहर से पवित्र हो रहे हैं.... अतः दोनो हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
-पवित्रता हमे सन्मार्ग पर चलाएँ- ॐ पवित्रतानः/सन्मार्गं नयेत्
-पवित्रता हमें महान बनाएँ- ॐ पवित्रतानः/महत्तां प्रयच्छतु
-पवित्रता हमें शांति प्रदान करे- ॐ पवित्रतानः/शांतिं प्रददातु
सूर्यध्यान प्राणायामः --
श्रेष्ठ संकल्प का निर्वहन केवल प्राणवान व्यक्ति ही कर सकते हैं। हमें भी प्राणवान शक्तिमान बनना होगा, इसके लिए यह आवश्यक है कि निरूपयोगी या अनुत्पादक कार्यों में हम अपनी शक्ति का अपव्यय ना होने दें। इस बुराई से अपने आप को बचाएं साथ ही सत्प्रवृत्तियों को अपनाकर अपनी सामर्थ्य को बढ़ायें। प्राण शक्ति के प्रदाता, सविता देवता सूर्य हैं। उनका ध्यान करते हुए इसी भाव के साथ एक बार प्राणायाम करें कि हे विश्व के स्वामी! हे महाप्राण! हमें बुराइयों से बचाइये और सत्प्रवृत्तियों से जोड़ि़ये। सभी कमर सीधी करके बैठें और प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें -
ॐ विश्वानि देव सवितदुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् -- हम अपने कार्यों से इस धरा पर नया इतिहास लिखने जा रहे हैं। हमारे देश की मिट्टी में अनेकों अवतारों, ऋषियों, महान संतों और क्रांतिकारियों की चरण रज है। यह हमारे लिए चंदन से भी बढ़कर है। उनकी सम्मिलित ऊर्जा हमें भी प्राप्त हो। हम अहंकार क्रोध आवेश आदि दुर्भावनाओं से मुक्त हों और ठंडे दिमाग से मिलजुल कर कार्य कर सकें।
ऐसी प्रार्थना भगवान से करते हुए निम्न सूत्र दोहराएं और इस पावन माटी से एक- दूसरे का तिलक कर सम्मानित करें। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात्.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात्, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात्।
संकल्प सूत्र धारणम् --
मित्रों, इस दुनिया में कर्मों का ही फल मिलता है। मानवीय पुरूषार्थ में दैवीय सहयोग की प्राप्ति हेतु ही यज्ञों का आयोजन किया जाता है। समुचित शिक्षा तथा मानवीय पुरूषार्थ के अभाव में ही हम अनेक बुराइयों के शिकार होते गये। खराब स्वास्थ्य, नशाखोरी, दरिद्रता, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आदि सब इसी की उपज है। संयुक्त प्रयासों से हम इन सबसे छुटकारा भी पा सकते हैं, किन्तु हमें दृढ़ प्रतिज्ञ होकर इस कार्य में जुट जाना होगा। महत्त्वपूर्ण बात है, लोक सेवा की इन उच्च भावनाओं पर टिके रहकर प्रयत्नशील बने रहना। इसीलिए यज्ञ कार्यों में देव आह्वान के पूर्व संकल्प सूत्र बांधा जाता है।
उपस्थित परिजनों के बीच संकल्प सूत्र वितरित कर दिये जाएं। (यदि सभी तक सूत्र पहुँचाने की व्यवस्था ना बन पड़े तो परिजन अपने यज्ञोपवीत को ही, ओढ़ा गया दायित्व अनुभव करें और उसकी ब्रह्म ग्रंथी को स्पर्श करते हुए संकल्प लें)
मित्रों यह मात्र कलावा बांधने की औपचारिकता नहीं है। हम सदा ही भारत माता की जय कहते आए हैं, तो अपने आप को भारत माता का ऋणी अनुभव करते हुए संकल्प लें कि हम शुद्घ मन से कार्य करेंगे... मर्यादाओं का पालन करेंगे... किसी तरह आलस्य प्रमाद नही बरतेंगे। रचनात्मक कार्यक्रमों के इन दायित्वों के निर्वहन हेतु, पूज्य गुरूदेव द्वारा दी जा रही सारी विधी- व्यवस्था का सत्यनिष्ठा से पालन करेंगे।
संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें और एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें -
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं-
हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय।
कलश पूजनम् -
अब हम पूजा वेदी पर स्थापित कलश का पूजन करेंगे।
मित्रों... कहने को तो यह पानी भरा एक पात्र भर है। जिसमें अक्षत्- पुष्प, हल्दी- सुपारी और द्रव्य के साथ ही कुछ गंगाजल मिलाया गया है। किन्तु यह विचारणीय है कि...... यदि हममें हल्दी रूपी पवित्रता नहीं है... गुरू, ईश्वर या राष्ट्र्र के प्रति, जल रूपी श्रद्घा नहीं है... यदि हम फूलों की तरह मुस्कुराते हुए, सहज भाव से अक्षत् रूपी पूर्ण समर्पण नहीं कर सकते और यदि हम किसी सत्कार्य के लिए अपनी ओर से कुछ द्रव्य खर्च नहीं कर सकते, तो राष्ट्र को शक्तिशाली कैसे बना सकेंगे ??
ईश्वर के प्रति श्रद्घा समर्पण का अर्थ यह होता है कि हम उसकी विधी व्यवस्था के अनुसार अपना जीवन क्रम बनाएं। हमारी निजी सोच ठीक नहीं चलती इसीलिए तो प्रार्थना है धियो यो नः प्रचोदयात्। अब हमारी प्रार्थना सफल हो गयी है। स्वयं भगवान हमारे गुरू बनकर आ गए हैं, अब बस उन्हीं के अनुसार जीवन जीना है।
आइये पूरी श्रद्घा के साथ दिव्य शक्तियों का आह्वान- पूजन करें। प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें.... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें-
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
देव पूजनम् -
इसी क्रम में गुरू, गायत्री, भारत माता व संगठित शक्ति की प्रतीक लाल मशाल का पूजन भी करेंगे। जल, चंदन, अक्षत्, पुष्प, धूप दीप नैवेद्य आदि श्रद्घा पूर्वक समर्पित करें।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः -
देव शक्तियां सूक्ष्म होती हैं, उनकी पहचान करनी होती है। वे हमें देती हैं, देना ही उनका स्वभाव होता है। वे सर्वत्र विद्यमान हैं। उन्हें पहिचानें व उनसे तालमेल बिठाते हुए लाभ प्राप्त करें। अब दिव्य शक्तियों को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। शेष सभी परिजन दोनों हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करें -- हे अग्रिदेव.. युग परिवर्तर्न की इस बेला में, इस दिव्य ज्योति के माध्यम से हमारा अंतःकरण भी आलोकित हो। हम सभी सक्रिय समूहों में संगठित होकर, एक समर्थ सृजन शक्ति के रूप में उभर सकें। हम सभी का संयुक्त सामर्थ्य, कल्याणकारी व्यवस्था का निर्माण करे।
ॐ अग्रेनय सुपथाराये अस्मान् विश्वानिदेव वयुनानि विद्वान, युयोध्यस्मज्जुहु राणमेनो, भूयिष्ठान ते नम उक्तिम् विधेम।
गायत्री स्तवनम् -
इसके पूर्व कि हम, यज्ञ की आहुतियों समर्पित करें, दोनों हाथ जोड़कर उस ज्योति पुरूष से प्रार्थना करें कि हे तीनों लोकों में व्याप्त अनादि ईश्वर, आप दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी और पाप बुद्घि का नाश करने वाले हैं। आप सत्पथगामी के रूप में हममें अवतरित, स्थापित हो जाइये। हमें सन्मार्ग पर चलने की शक्ति व साहस प्रदान करिये ताकि हमारा जीवन भी, लोभ मोह व स्वार्थ की माया से मुक्त होकर पवित्र पावन बन सके-
शुभ ज्योति के पुंज अनादि अनुपम, ब्रह्माण्ड व्यापी आलोक कर्त्ता।
दारिद्र दुःख भय से मुक्त कर दो, पावन बना दो, हे देव सविता॥
ऋषि देवताओं से नित्य पूजित, हे भर्ग भव बंधन मुक्ति कर्त्ता।
स्वीकार कर लो वंदन हमारा, पावन बना दो, हे देव सविता॥
हे गूढ़ अंतःकरण में विराजित, तुम दोष पापादि संहार कर्त्ता।
शुभ धर्म का बोध हमको करा दो, पावन बना दो, हे देव सविता॥
हे योगियों के शुभ मार्ग दर्शक, सद्ज्ञान के आदि संचार कर्त्ता।
प्रणिपात स्वीकार लो हम सभी का, पावन बना दो, हे देव सविता।
पावन बना दो हे देव सविता॥
दीप यज्ञ -
स्तवन के बाद आइये अब यज्ञ करें।
यज्ञ के तीन चरण होते हैं --
1. देव शक्तियों को पहिचानना और उनका पूजन संवर्धन करना।
2. अपने साधनों का समर्पण करके उन्हें मजबूत बनाना।
3. बिखरी हुई श्रेष्ठ शक्तियों का संगतिकरण करके उन्हें एकजुट रखना।
राष्ट्र जागरण व लोकसेवा का कार्य भी यज्ञ ही है, जो दो घंटों में संपन्न नहीं हो सकेगा। अतः देवपूजन, दान व संगतिकरण के कार्य, हमें लंबे समय तक चलाने होंगे। आइये मजबूत भावपक्ष का निर्माण करने के लिए दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
हे यज्ञ देव, युग शक्ति महाकाल के महासंकल्प और प्रभाव से, सूक्ष्म जगत का शोधन होता चले तथा सामुहिक समस्याओं के निदान के लिए, सामुहिक प्रयत्नों की दिशा में, हम आगे बढ़ सकें, जिससे नवयुग के अवतरण का मार्ग प्रशस्त हो।
बोलिए युगावतार महाकाल की... जय !
भारत माता की... जय !
अग्रिहोत्र की प्रक्रिया दीपक प्रज्ज्वलन के साथ स्वचलित रूप से चल रही है। कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ जोड़कर समवेत स्वर में गायत्री मंत्र बोलकर इदम् न मम् कहते हुए भावनात्मक आहुतियों प्रदान करते चलें -- बोलिए... गायत्री माता की... जय।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् -- स्वाहा इदम् गायत्र्यै इदम् न मम्। (निर्धारित आहूतियां)
देव दक्षिण�