Books - वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
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Language: HINDI
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देवपरिवार निर्माण संकल्प दीपयज्ञ
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गुरु कार्य के नाम पर समयदान अंशदान की बातें कही जाती हैं, किन्तु साथ ही साथ हमारा जीवन, ब्राह्मण सा बन सके, इसके लिए भी हर किसी को प्रयास करना चाहिए।
गुरुदेव की हमसे अपेक्षा है कि हम देव परिवार बनाएं। बच्चों को अर्थात् भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित करने के लिए यह एक आवश्यक व्यवस्था है।
यह कार्यक्रम, स्वयं सहायता बचत समूहों, समस्त प्रज्ञासंस्थानों तथा मंडलों द्वारा चलाया जाने वाला एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है। जिसमें नारी जागरण एवं सशक्तिकरण, स्वास्थ्य संरक्षण, स्वावलंबन, व्यसन- कुरीति उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण जैसे हमारे सभी कार्यक्रमों का प्रत्यक्ष क्रियान्वयन घर- घर में संभव होता है....
..
प्रारंभिक व्यवस्था --
निश्चित् दिन, घर को अच्छे से साफ स्वच्छ करके दीप- यज्ञ हेतु आवश्यक व्यवस्थाएं जुटाई जाएं। पूजावेदी पर एक रेशमी वस्त्र या एक छोटी आकर्षक डिब्बी रखी जाए जिसमें पारिवारिक संकल्प पत्र को सुरक्षित रखा जा सकें।
पूजावेदी के साथ- साथ कुछ युग साहित्य, युग निर्माण सत्संकल्प की प्रति, तुलसी का गमला, अन्नघट अथवा धर्मघट भी सजाकर रख दिये जाएँ।
सभी परिवार जनों की उपस्थिति में युग- यज्ञ की यह प्रक्रिया प्रारंभ हो। जयघोष एवं सामुहिक गायत्री मंत्रोच्चारण के पश्चात् संगठक प्रशिक्षक, आवश्यक मनोभूमि का निर्माण करने के लिए संक्षिप्त उद्बोधन दें।
प्रेरणा --
सहजीवन के जिन ऊंचे सिद्घांतों के कारण भारतीय संस्कृति को महान कहा जाता है, भारतीय परिवारों में उन सिद्घांतों को जी कर दिखाने अर्थात् उन्हें जीवन व्यवहार में उतारने की विशेषता भी है। सामाजिक एवं पारिवारिक परम्पराओं के द्वारा यह क्रिया सहज ही सम्पन्न होते रहती है।
आज की नवीन अर्थप्रधान व्यवस्था ने हमारे सामाजिक ढांचे को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। साथ ही समाज में कुछ ऐसी नई आदतों का चलन बढ़ा दिया है, जिससे ना केवल शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है बल्कि व्यक्तियों के बीच दूरियां बढ़ी हैं। भोग की प्रवृत्ति को सम्पन्नता के प्रदर्शन से जोड़ देने के कारण श्रम संयम और त्याग जैसे शब्द ही व्यर्थ से हो गए हैं। इनके परिणाम बड़े दुखदायी आ रहे हैं।
आज आयोजित इस युग यज्ञ में पूज्य गुरूदेव द्वारा निर्देशित हमारा युग निर्माण सत्संकल्प के संकल्पों में दिये कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्रों को पारिवारिक एवं निजी जीवन में उतारकर लाभान्वित होने की बात निहित है। प्रारंभ में सहज ही व्यवहार हो सकने वाले कुछ सूत्रों के लिए ही संकल्प लिया जा रहा है। एक माह बाद होने वाली प्रगति के अनुसार नये- नये संकल्प क्रमशः जोड़ते जाने की व्यवस्था भी इस कार्यक्रम में है।
सुधार की प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष आचारण का है। स्वतः आचरण करने वाला व्यक्ति बोले, तभी वह प्रभावी हो सकता है। घर में बड़ों का आचरण भी एक समस्या ही होता है। दूसरा, यदि कोई व्यक्ति एकाएक कोई सुधार की प्रक्रिया अपने जीवन में उतार लेता है तो वह व्यंग्य और उपहास का पात्र भी बना दिया जाता है। कुछ परस्पर की बातें भी होती हैं जिसकी वजह से तालमेल नहीं बैठ पाता और इसे सुलझाना चाहते हुए भी परिवार जनों का व्यक्तिगत अहंकार एक बड़ी बाधा बन जाता है। स्वास्थ्य और आर्थिक विषयों से संबंधित समस्याओं के संकल्प बना पाना सहज कार्य नहीं होता है।
आज इस परिवार के लिए नये युग की शुरूवात हो रही है जिसकी साक्षी में आप सभी को आमंत्रित किया गया है। साहस पूर्वक, सामुहिक समझौते के रूप में कुछ सत्प्रवृत्तियों को एक साथ धारण करके एक साहसिक किन्तु युगानुकूल कदम उठाया जा रहा है। जिसका स्वागत किया जाना चाहिए....
युग परिवर्तन हेतु अनेक आध्यात्मिक अनुष्ठान अब तक किये जा चुके हैं। अब सृजन की बेला है और इसे अपना दायित्व समझकर सभी को देव परिवार निर्माण दिशा में कदम बढ़ा युगावतार की धरती पर स्वर्ग लाने की प्रक्रिया में सहयोग करना ही चाहिए...
बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
आइये, अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए इस यज्ञीय कर्मकाण्ड का शुभारंभ करें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
कार्यक्रम के प्रारंभ में आप सभी उपस्थित जनों का मंत्रोच्चार के साथ स्वागत किया जा रहा है।
आज हम सभी इस बात को अनुभव कर रहे हैं कि यह समय मुसीबतों का है। स्वास्थ्य, रोजगार की स्थिति अत्यंत खराब है। धोखा, फरेब, लूट, शोषण, अत्याचार एवं हिंसा आदि की वजह से सभी परेशान हैं। हम सब को प्रेम, सहानुभूति, सुरक्षा व सहारे की नितांत आवश्यकता है।
हमारा परिवार स्वस्थ, मानवीय गुणों से युक्त और सेवाभावी हो तो हमारा जीवन सुखी एवं संतुष्ट बन सकता है। देव परिवार निर्माण की प्रक्रिया, हमारी वर्तमान आवश्यकताओं को पूर्ण करती है। आपने इस प्रक्रिया को अपनाकर या इसमें सहयोग देकर अपने युग दायित्व का निर्वाह ही किया है...। पूज्य गुरूदेव के निर्देशानुसार जीवन क्रम चलाकर घर में स्वर्ग जैसी परिस्थितियों का निर्माण आप कर सकेंगे... यह सौभाग्य की बात है। अतः दैवी अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत् पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है। इस ईश्वरीय अनुदान को श्रद्घापूर्वक स्वीकार करें --
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
पूज्य गुरूदेव ने स्पष्ट किया है कि हमारी सभी समस्याओं का कारण दुर्बुद्घि ही है। इसलिए उन्होंने युग शक्ति के रूप में हमें गायत्री प्रदान की। गायत्री का न्यास अपने अंग प्रत्यंग में करके ही, हम अपने जीवन को यज्ञमय बनाने में इस महाशक्ति का विनियोग कर सकते हैं। हमारी बुद्घि और भावनाएं शुद्घ पवित्र हों, संयम व सेवा सहकार से हम अपने परिवार को श्रेष्ठ बना सकें।
विनाश के इस काल में मंत्र पूरित जल के प्रभाव से हममें पवित्रता का संचार हो.... हमारी दुर्बुद्घि व झूठा अहंकार नष्ट हो.... युग शक्ति गायत्री हमें, आत्म निर्माण व परिवार निर्माण की इस प्रक्रिया को चलाने की शक्ति दे और हम तदनुकुल कार्य करते रहें। अपने अंतःकरण में ऐसी भावना करें कि पवित्र जल बूंदों के रूप में यह शक्ति हम पर बरस रही है.. हमें अनुग्रहित कर रही है। अब दोनों हाथ जोड़ कर यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
नित्य प्रातः स्नान के पश्चात् सूर्य को जल चढ़ाना हमारी परंपरा है। सूर्य ध्यान एवं प्राणायाम करके हम प्राण शक्ति से संपन्न भी बन सकते हैं।
सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। भगवान सूर्य अथवा गुरूदेव का ध्यान करते हुए, लंबी श्वाँस लें कुछ देर रोक कर धीरे- धीरे छोड़ें। जिस प्रकार श्वांस के द्वारा शरीर की गंदगी बाहर निकलते रहती है, उसी प्रकार अपनी बुरी आदतों की जानकारी होते जाने पर, हम धीरे- धीरे उन्हें भी दूर करते जाएंगे। इस संकल्प को हम पूरी निष्ठा से पूर्ण करेंगे, ऐसा भाव करते हुए सभी प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
सम्मान देने के लिए तिलक किया जाता है। हम सभी एक दूसरे को तिलक करेंगे। परिवार एवं समाज की सुव्यवस्था के लिए आवश्यक है, कि सभी सन्मार्ग पर चलें, सत्प्रवृत्तियों को धारण करें और एक- दूसरे के विचारों का सम्मान करें। तिलक धारण करते समय सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारा मस्तिष्क शांत रहे। परिस्थितियों को बदलने के लिए आवेश युक्त कार्यो का नहीं, बल्कि सहयोग और शांतिप्रद उपायों का सहारा लें। तभी हमारे शुभ संकल्पों व कार्यो में हमें दैवी सहयोग प्राप्त हो सकेगा।
सभी अपनी अनामिका उंगली पर रोली लेकर भावना पूर्वक यह सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात, ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
संकल्प सूत्र धारणम् --
संकल्प लेकर उसका निर्वहन करना, यही सबसे प्रमुख कार्य है। निःस्वार्थ भाव एवं शुद्घ मन से कार्य करने पर दैवी शक्तियों का सहयोग भी प्राप्त होता है।
आज यह संकल्प ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। घर परिवार में तो सभी रहते हैं। परिवार में हम अधिकारों का भोग व कर्त्तव्यों का निष्पादन साथ- साथ करते चलते हैं। बिना कर्त्तव्यों को पूरा किये, किसी को अधिकार नहीं दिये जा सकते ।। प्रेम और आत्मीयता का अर्थ, कर्त्तव्य पालन ही है।
जिनसे हम पाते हैं, उनका दायरा बहुत बड़ा है। माता- पिता, भाई- बहन, गुरु, मित्र, पड़ोसी, सहयोगी, चर- अचर, स्थावर जंगम सभी स्त्रोतों से हम कुछ ना कुछ प्राप्त करते ही रहते हैं। स्वाभाविक रूप से व्यवस्था के सुसंचालन हेतु हमें दायित्व भी निभाने ही होंगे।
आज हम देव परिवार निर्माण हेतु संकल्प ले रहे हैं। भोगवादी संस्कृति के वातावरण में, जहाँ भौतिक स्वार्थ ही सब कुछ है, हम इस विश्वास को लेकर आगे बढ़ रहे हैं कि, मानवीय गुणों के संवर्धन पोषण से ही सुख- शांति और संतोष का जीवन प्राप्त हो सकता है। यदि सब सुखी होंगे, तो हम भी सुख सेरह पाएंगे... और सब सुखी हों इसके लिए हमें स्वयं को भी कुछ कर्त्तव्य बंधनों में बंधना ही होगा।
इसी की एक छोटी सी स्वयं स्वीकृत कार्य योजना यदि परिवार में भी चलाई जाए, जिसके द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन, नारी जागरण, शिक्षा एवं सत्प्रवृत्ति संवर्धन जैसे सभी कार्यक्रम पूरी बारीकी एवं कुशलता पूर्वक चलें, तो ना केवल, परिवार में सुख- शांति बढ़ सकती है बल्कि सामाजिक, राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के पूर्ण होने से समाज एवं राष्ट्र भी लाभान्वित हो सकता है।
हमें संकोच किये बिना इस प्रक्रिया को जरूर अपनाना चाहिए। परिवार में मत भिन्नता, अनुशासन हीनता, फिजूल खर्ची और आडंबरों से उत्पन्न समस्याएं दूर करने में निश्चित् ही इससे मदद मिलेगी। विभिन्न संस्कारों को करवाते समय जो संकल्प लिए जाते हैं, उन्हें पूरा करने के लिए यह एक अच्छा अवसर है। आज, हम केवल एक दूसरे को वचन दे रहे हैं ऐसी बात नहीं है। इसमें हम पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी को भी साक्षी बना रहे हैं। हमारे संयुक्त परिवार के माता- पिता होने के नाते उनकी इच्छानुसार जीवन चलाने के लिए, हम उन्हीं के सामने संकल्पित हो रहे हैं। साथ ही उन्हें आश्वस्त भी कर रहे हैं कि शुभ संकल्पों को जीने का यह प्रयास आगे भी चलता रहेगा। हे गुरूदेव आपने मनुष्य को देवता और धरती को स्वर्ग बनाने का जो संकल्प ले रखा है, उसे सत्य करने के लिए यह हमारा प्रयास है.....
अब रीढ़ सीधी करके बैठें, संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें। मन ही मन, जीवन को निश्चित् मर्यादाओं में चलाने का, युगधर्म के विरूद्घ आचरण नहीं करने का और ईश्वरीय अनुशासन को स्वीकार करने का संकल्प लेते हुए, एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि.....
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
सभी परिजन एक दूसरे को संकल्प सूत्र बांधें। आयोजक परिवार के सदस्य उठकर पूज्य गुरूदेव और वंदनीया माताजी के चरणों में सूत्र को श्रद्घापूर्वक स्पर्श कराएं। अब एक- एक करके व्यास पीठ तक आएं और संकल्प सूत्र बंधवाकर पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माता जी की ओर से आशीर्वाद लें। घर के मुखिया पारिवारिक संकल्प पत्र को रेशमी कपड़े में लपेटकर अथवा निश्चित् डिब्बी में सुरक्षित रखकर अक्षत् पुष्प व दक्षिणा के साथ गुरूदेव कोसमर्पित करें।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
सत्कर्मों और शुभेच्छाओं की सफलता का यही सूत्र है, कि कर्त्ता को अच्छी तरह से सोच समझकर, पर्याप्त अध्ययन करके कार्य का प्रारंभ करना होता है। जब कर्त्ता पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी सारी शक्ति लगा देता है। तब उसके निष्ठापूर्ण प्रयासों से प्रभावित होकर ईश्वरीय शक्तियां भी सहयोग के लिए आगे आती हैं।
हमने शुद्घ पवित्र अंतःकरण से इतने परिजनों के बीच देव परिवार निर्माण का संकल्प लिया है। देवत्व का विस्तार हो यही देवताओं की भी इच्छा होगी। अतः अब देव आवाहन हेतु सभी हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करें -- हे देव हमारी श्रद्घा को निखारें, सत्कार्य करने की हमारी प्रवृत्ति उभरे। हे देव भिन्न- भिन्न स्वभावों व योग्यताओं को सत्कर्मों के लिए एकजुट होना सिखाएं।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा....
गुरु वंदना --
जबसे ये दुनिया बनी है, हम लगातार विभिन्न शरीरों को धारण करते व छोड़ते आ रहे हैं। हमारी आत्मा की यात्रा, अब तक जैसी गुजरनी थी, गुजर गई। निश्चित ही हमारे पूर्व जन्म के कुछ सत्कर्म एक साथ जागृत हो गए हैं, जो इस जन्म में हमें, गुरूदेव के सानिध्य के रूप में, आत्मोन्नति का एक बहुत ही शानदार अवसर प्राप्त हो गया है।
हमें पूरी तरह से जागृत एवं सचेत रहते हुए, इस अवसर का लाभ उठाना है, अन्यथा विगत पाशविक स्वभावों से प्राप्त आलस्य, प्रमाद, दुर्बुद्घि आदि के रहते हमसे यह अवसर छूट भी सकता है। इस अवसर का लाभ हम तभी उठा सकते हैं जब हम उनकी इच्छानुसार अपना जीवन जीयें।
युगसंधि महापुरश्चरण के अनुयाज कार्यक्रम, नवयुग के अवतरण की प्रक्रिया को साकार कर दिखाने के लिए ही चलाए जा रहे हैं। नारी जागरण, शिक्षा, स्वास्थ्य संवर्धन, सत्प्रवृत्ति संवर्धन, व्यसन कुरीति उन्मूलन आदि कार्यक्रमों को, एक साथ और कम समय में कर दिखाने के लिए ही देव परिवार निर्माण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी को हमेशा अपने घर में प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए उपरोक्त सूत्रों को एक साथ जीने का अभ्यास किया जाता है। आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए, उनके द्वारा बताए गए जीवन दर्शन को आधार बनाकर ही, निर्णय लिए जाने की व्यवस्था बनाई जाती है।
यह एक अनुकरणीय एवं सामयिक कार्य है। श्री...... एवं श्रीमती...... ने आज से पूज्य गुरुसत्ता की उपस्थिति एवं साक्षी में देव परिवार निर्माण हेतु, अपने परिवार को संकल्प पूर्वक भागीदार बनाया है। इस अवसर पर आयोजित युगयज्ञ में, आइये हम श्रद्घापूर्वक पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी का आवाहन करें और उनसे अनुरोध करें कि वे हमें अपेक्षित साहस और लगन प्रदान करें। प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
देवपूजन का विशिष्ट क्रम
भाइयों और बहनों- घर परिवार में स्वर्ग सा सुखद वातावरण यूं ही नही बन जाता है। देव वृत्तियों की स्थायी स्थापना के लिये परिवार में विशेष क्रम चलाना होता है। घर में देवस्थापना चित्र की विधिवत स्थापना तुलसी की स्थापना, युग साहित्य की स्थापना कर नित्य स्वाध्याय का क्रम बनाना घर में अन्नघट अथवा धर्मघट की स्थापना करके बच्चों के माध्यम से उसे नित्य थोड़ा- थोड़ा भरवाना चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करता है।
अच्छा स्वास्थ्य, परिवारजनों और पड़ोसियों में आत्मीय संबंधों का निर्माण, पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से चलकर आसानी से संभव हो जाता है। उनकी कृपा और मार्गदर्शन हमें सतत् प्राप्त हो इसके लिये उनके विचारपुंज के रुप में यहां युग साहित्य स्थापना की जा रही है। परिवार में वैचारिक एकता भी इन्ही से स्थापित होगी।
घर में तुलसी की स्थापना से शुद्ध सात्विक वातावरण बनाने में मदद मिलती है।
देव परिवार निर्माण संकल्प दीपयज्ञ में, देवपूजन का यह विशिष्ट क्रम है। यहाँ देवमंच के साथ- साथ युग साहित्य, युग निर्माण सत्संकल्प की प्रति, धर्मघट (अथवा अन्नघट जो भी रखा हो )) रखे गए हैं।
इन्ही के सदुपयोग से भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा। व्यक्ति- निर्माण, परिवार- निर्माण के इस तंत्र पर आस्था प्रकट करके तथा इस क्रम को घर- घर में चलाकर कर देव परिवार निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम ईश्वर की पूजा मानकर करना है।
पंचमोपचार पूजनम् --
आज तक यज्ञ आदि के अनेकों कार्यक्रम आप सभी ने किये होंगे। जल, गंध, अक्षत्, पुष्प, नैवेद्य सब कुछ समर्पित किया होगा। अब फिर, सिर्फ उतना ही मत कर देना... चढाना तो कुछ और है....
जीवन एक जटिल विज्ञान है। किस कर्म का कब और क्या परिणाम मिलेगा, इसको स्पष्ट करना सामान्यतया संभव नहीं होता। परंपरा के निर्वाह हेतु लोग कर्मकाण्ड कर तो देते हैं लेकिन श्रद्घा, विश्वास तथा समुचित समर्पण के अभाव में, अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाते, बस खाना पूर्ति होते रहती है। ऐसा कुछ अभी यहां नहीं होना चाहिए।
युग परिवर्तन का आधार विचार हैं। विचार क्रियान्वित होंगे तभी परिवर्तनकारी कार्य हो सकेंगे। हमको, पूज्य गुरूदेव ने कृपा करके अपनी युग निर्माणी, सृजन सेना में सृजन सैनिक के रूप में शामिल किया है। गुरूदेव ने हमसे कहा, बोलो, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा.... और हमने कहना शुरू कर दिया, पर उसे समझा नहीं।
अब हमें प्राणवान बनकर श्रद्घापूर्वक पूज्य गुरूदेव, वंदनीया माताजी के विचारों को आदेश मानते हुए जीकर दिखाना ही पड़ेगा। हम अपनी प्रिय लगने वाली सारी आदतों को एक तरफ रखेंगे और देव परिवार निर्माण के सूत्रों को क्रमशः अपनी आदतों में शामिल करते जाएंगे।
अपने गुरू पर विश्वास रखें इसका लाभ भी हमें तुरंत मिलेगा। संयमित जीवन से स्वास्थ्य भी सुधरेगा, धन भी बचेगा और जीवन में स्वाध्याय, समयदान आदि के लिए समय भी मिलेगा। घर की सुख- शांति, आपसी प्रेम, श्रेष्ठ संस्कार आदि स्वतः परिलक्षित होने लगेंगे... पर ये केवल जल चढ़ाने से नहीं, वरन् अपनी श्रद्घा को गुरूदेव के उन्हीं निर्माणी विचारों पर केन्द्रित करने से प्राप्त होगा, जिनसे युग निर्माण होना है। यह तो तय है कि प्रयत्न पूर्वक अपने घर में सत् प्रवृत्तियों की स्थापना और संयमित अनुशासित जीवन को देखकर हमारे गुरूजी व माताजी जरूर प्रसन्न होंगे। आज तो अपने साधन संपदा स्वतः को ही नहीं पुरते। अतः वास्तव में नैवेद्य चढ़ाने का आनंद कैसा होता है कितनों को मालूम है ?? लेकिन जब बात समझ में आ जाएगी तब केवल परम्परा का निर्वाह ही नहीं होगा, समाज को देने की होड़ लग जाएगी और श्रेय उन्हें प्राप्त होगा जो आज इस परम्परा की नींव रखेंगे।
पूजा कार्य अनिच्छा से करने पर भी लाभ देने वाला कोई बेगार नहीं है। ये वो सूत्र हैं, जिनसे मानव जीवन की सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। आइये शुरूवात तो हम कर्मकाण्ड से ही करते हैं, लेकिन यह स्मरण रहे कि हमें अपने कर्म को ही पूजा बनाना है।
अब इसी भाव के साथ प्रतिनिधी जल, गंधाक्षत्, पुष्प, धूप- दीप नैवेद्य समर्पित करें --
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सभी लोग कण- कण में, जन- जन में व्याप्त उस विराट सत्ता को श्रद्घापूर्वक नमन करें --
ॐ नमो स्त्वनंताय सहस्त्रमूर्तये, सहस्त्रपादा क्षिशिरोरूहावहे।
सहस्त्र नाम्ने पुरूषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नमः॥
सर्वदेव नमस्कारः --
परमात्मा ने मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बुद्घि दी है तो ऐसे ही नहीं दी, उसे कर्म योनि में रखा है। कर्म हमारे लिए सबसे प्रमुख है।
परमात्मा हमें अनुदान, वरदान, सहयोग, परामर्श, मार्गदर्शन, शिक्षण आदि विभिन्न रूपों में सहयोग भी करते रहते हैं। हमें बुद्घि प्रयोग द्वारा इन्हें पहिचानना चाहिए और फिर अपना योग्य व्यवहार तय करना चाहिए। इसके लिए हमें नम्र बनकर सभी देव शक्तियों को समझने का प्रयास करना होगा और परिवार के सुव्यवस्थित संचालन के लिए उनका उपयोग भी करना होगा। ऐसी दिव्य शक्तियों को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों
हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
गायत्री और यज्ञ के रूप में, सत्बुद्घि और सत्कर्म ही भारतीय संस्कृति के माता- पिता हैं। इन्हीं से हमारी संस्कृति बनी है, इन्हीं को पुनः अपने पारिवारिक जीवन में स्थान देना यही देव परिवार निर्माण है। यदि जीवन को यज्ञमय बनाने की बात की जाती हो तो सत्विचारों की स्थापना को ही जीवन में अग्नि स्थापना के रूप में देखना चाहिए। जो कुछ भी विचार अभी तक दिये हैं, उन्हें अग्नि की तरह प्रखर और जीवंत बनाए रखना ही प्रमुख भाव है। पदार्थ यज्ञ का एक उद्देश्य जीवन को यज्ञमय बनाना भी है।
ॐ
गुरुदेव की हमसे अपेक्षा है कि हम देव परिवार बनाएं। बच्चों को अर्थात् भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित करने के लिए यह एक आवश्यक व्यवस्था है।
यह कार्यक्रम, स्वयं सहायता बचत समूहों, समस्त प्रज्ञासंस्थानों तथा मंडलों द्वारा चलाया जाने वाला एक बहुद्देशीय कार्यक्रम है। जिसमें नारी जागरण एवं सशक्तिकरण, स्वास्थ्य संरक्षण, स्वावलंबन, व्यसन- कुरीति उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण जैसे हमारे सभी कार्यक्रमों का प्रत्यक्ष क्रियान्वयन घर- घर में संभव होता है....
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प्रारंभिक व्यवस्था --
निश्चित् दिन, घर को अच्छे से साफ स्वच्छ करके दीप- यज्ञ हेतु आवश्यक व्यवस्थाएं जुटाई जाएं। पूजावेदी पर एक रेशमी वस्त्र या एक छोटी आकर्षक डिब्बी रखी जाए जिसमें पारिवारिक संकल्प पत्र को सुरक्षित रखा जा सकें।
पूजावेदी के साथ- साथ कुछ युग साहित्य, युग निर्माण सत्संकल्प की प्रति, तुलसी का गमला, अन्नघट अथवा धर्मघट भी सजाकर रख दिये जाएँ।
सभी परिवार जनों की उपस्थिति में युग- यज्ञ की यह प्रक्रिया प्रारंभ हो। जयघोष एवं सामुहिक गायत्री मंत्रोच्चारण के पश्चात् संगठक प्रशिक्षक, आवश्यक मनोभूमि का निर्माण करने के लिए संक्षिप्त उद्बोधन दें।
प्रेरणा --
सहजीवन के जिन ऊंचे सिद्घांतों के कारण भारतीय संस्कृति को महान कहा जाता है, भारतीय परिवारों में उन सिद्घांतों को जी कर दिखाने अर्थात् उन्हें जीवन व्यवहार में उतारने की विशेषता भी है। सामाजिक एवं पारिवारिक परम्पराओं के द्वारा यह क्रिया सहज ही सम्पन्न होते रहती है।
आज की नवीन अर्थप्रधान व्यवस्था ने हमारे सामाजिक ढांचे को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। साथ ही समाज में कुछ ऐसी नई आदतों का चलन बढ़ा दिया है, जिससे ना केवल शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है बल्कि व्यक्तियों के बीच दूरियां बढ़ी हैं। भोग की प्रवृत्ति को सम्पन्नता के प्रदर्शन से जोड़ देने के कारण श्रम संयम और त्याग जैसे शब्द ही व्यर्थ से हो गए हैं। इनके परिणाम बड़े दुखदायी आ रहे हैं।
आज आयोजित इस युग यज्ञ में पूज्य गुरूदेव द्वारा निर्देशित हमारा युग निर्माण सत्संकल्प के संकल्पों में दिये कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्रों को पारिवारिक एवं निजी जीवन में उतारकर लाभान्वित होने की बात निहित है। प्रारंभ में सहज ही व्यवहार हो सकने वाले कुछ सूत्रों के लिए ही संकल्प लिया जा रहा है। एक माह बाद होने वाली प्रगति के अनुसार नये- नये संकल्प क्रमशः जोड़ते जाने की व्यवस्था भी इस कार्यक्रम में है।
सुधार की प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष आचारण का है। स्वतः आचरण करने वाला व्यक्ति बोले, तभी वह प्रभावी हो सकता है। घर में बड़ों का आचरण भी एक समस्या ही होता है। दूसरा, यदि कोई व्यक्ति एकाएक कोई सुधार की प्रक्रिया अपने जीवन में उतार लेता है तो वह व्यंग्य और उपहास का पात्र भी बना दिया जाता है। कुछ परस्पर की बातें भी होती हैं जिसकी वजह से तालमेल नहीं बैठ पाता और इसे सुलझाना चाहते हुए भी परिवार जनों का व्यक्तिगत अहंकार एक बड़ी बाधा बन जाता है। स्वास्थ्य और आर्थिक विषयों से संबंधित समस्याओं के संकल्प बना पाना सहज कार्य नहीं होता है।
आज इस परिवार के लिए नये युग की शुरूवात हो रही है जिसकी साक्षी में आप सभी को आमंत्रित किया गया है। साहस पूर्वक, सामुहिक समझौते के रूप में कुछ सत्प्रवृत्तियों को एक साथ धारण करके एक साहसिक किन्तु युगानुकूल कदम उठाया जा रहा है। जिसका स्वागत किया जाना चाहिए....
युग परिवर्तन हेतु अनेक आध्यात्मिक अनुष्ठान अब तक किये जा चुके हैं। अब सृजन की बेला है और इसे अपना दायित्व समझकर सभी को देव परिवार निर्माण दिशा में कदम बढ़ा युगावतार की धरती पर स्वर्ग लाने की प्रक्रिया में सहयोग करना ही चाहिए...
बोलिए युगावतार महाकाल की .... जय !
आइये, अब समवेत स्वर में गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए इस यज्ञीय कर्मकाण्ड का शुभारंभ करें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
कार्यक्रम के प्रारंभ में आप सभी उपस्थित जनों का मंत्रोच्चार के साथ स्वागत किया जा रहा है।
आज हम सभी इस बात को अनुभव कर रहे हैं कि यह समय मुसीबतों का है। स्वास्थ्य, रोजगार की स्थिति अत्यंत खराब है। धोखा, फरेब, लूट, शोषण, अत्याचार एवं हिंसा आदि की वजह से सभी परेशान हैं। हम सब को प्रेम, सहानुभूति, सुरक्षा व सहारे की नितांत आवश्यकता है।
हमारा परिवार स्वस्थ, मानवीय गुणों से युक्त और सेवाभावी हो तो हमारा जीवन सुखी एवं संतुष्ट बन सकता है। देव परिवार निर्माण की प्रक्रिया, हमारी वर्तमान आवश्यकताओं को पूर्ण करती है। आपने इस प्रक्रिया को अपनाकर या इसमें सहयोग देकर अपने युग दायित्व का निर्वाह ही किया है...। पूज्य गुरूदेव के निर्देशानुसार जीवन क्रम चलाकर घर में स्वर्ग जैसी परिस्थितियों का निर्माण आप कर सकेंगे... यह सौभाग्य की बात है। अतः दैवी अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत् पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है। इस ईश्वरीय अनुदान को श्रद्घापूर्वक स्वीकार करें --
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
पूज्य गुरूदेव ने स्पष्ट किया है कि हमारी सभी समस्याओं का कारण दुर्बुद्घि ही है। इसलिए उन्होंने युग शक्ति के रूप में हमें गायत्री प्रदान की। गायत्री का न्यास अपने अंग प्रत्यंग में करके ही, हम अपने जीवन को यज्ञमय बनाने में इस महाशक्ति का विनियोग कर सकते हैं। हमारी बुद्घि और भावनाएं शुद्घ पवित्र हों, संयम व सेवा सहकार से हम अपने परिवार को श्रेष्ठ बना सकें।
विनाश के इस काल में मंत्र पूरित जल के प्रभाव से हममें पवित्रता का संचार हो.... हमारी दुर्बुद्घि व झूठा अहंकार नष्ट हो.... युग शक्ति गायत्री हमें, आत्म निर्माण व परिवार निर्माण की इस प्रक्रिया को चलाने की शक्ति दे और हम तदनुकुल कार्य करते रहें। अपने अंतःकरण में ऐसी भावना करें कि पवित्र जल बूंदों के रूप में यह शक्ति हम पर बरस रही है.. हमें अनुग्रहित कर रही है। अब दोनों हाथ जोड़ कर यह सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
नित्य प्रातः स्नान के पश्चात् सूर्य को जल चढ़ाना हमारी परंपरा है। सूर्य ध्यान एवं प्राणायाम करके हम प्राण शक्ति से संपन्न भी बन सकते हैं।
सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। भगवान सूर्य अथवा गुरूदेव का ध्यान करते हुए, लंबी श्वाँस लें कुछ देर रोक कर धीरे- धीरे छोड़ें। जिस प्रकार श्वांस के द्वारा शरीर की गंदगी बाहर निकलते रहती है, उसी प्रकार अपनी बुरी आदतों की जानकारी होते जाने पर, हम धीरे- धीरे उन्हें भी दूर करते जाएंगे। इस संकल्प को हम पूरी निष्ठा से पूर्ण करेंगे, ऐसा भाव करते हुए सभी प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् --
सम्मान देने के लिए तिलक किया जाता है। हम सभी एक दूसरे को तिलक करेंगे। परिवार एवं समाज की सुव्यवस्था के लिए आवश्यक है, कि सभी सन्मार्ग पर चलें, सत्प्रवृत्तियों को धारण करें और एक- दूसरे के विचारों का सम्मान करें। तिलक धारण करते समय सभी ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारा मस्तिष्क शांत रहे। परिस्थितियों को बदलने के लिए आवेश युक्त कार्यो का नहीं, बल्कि सहयोग और शांतिप्रद उपायों का सहारा लें। तभी हमारे शुभ संकल्पों व कार्यो में हमें दैवी सहयोग प्राप्त हो सकेगा।
सभी अपनी अनामिका उंगली पर रोली लेकर भावना पूर्वक यह सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात, ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
संकल्प सूत्र धारणम् --
संकल्प लेकर उसका निर्वहन करना, यही सबसे प्रमुख कार्य है। निःस्वार्थ भाव एवं शुद्घ मन से कार्य करने पर दैवी शक्तियों का सहयोग भी प्राप्त होता है।
आज यह संकल्प ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। घर परिवार में तो सभी रहते हैं। परिवार में हम अधिकारों का भोग व कर्त्तव्यों का निष्पादन साथ- साथ करते चलते हैं। बिना कर्त्तव्यों को पूरा किये, किसी को अधिकार नहीं दिये जा सकते ।। प्रेम और आत्मीयता का अर्थ, कर्त्तव्य पालन ही है।
जिनसे हम पाते हैं, उनका दायरा बहुत बड़ा है। माता- पिता, भाई- बहन, गुरु, मित्र, पड़ोसी, सहयोगी, चर- अचर, स्थावर जंगम सभी स्त्रोतों से हम कुछ ना कुछ प्राप्त करते ही रहते हैं। स्वाभाविक रूप से व्यवस्था के सुसंचालन हेतु हमें दायित्व भी निभाने ही होंगे।
आज हम देव परिवार निर्माण हेतु संकल्प ले रहे हैं। भोगवादी संस्कृति के वातावरण में, जहाँ भौतिक स्वार्थ ही सब कुछ है, हम इस विश्वास को लेकर आगे बढ़ रहे हैं कि, मानवीय गुणों के संवर्धन पोषण से ही सुख- शांति और संतोष का जीवन प्राप्त हो सकता है। यदि सब सुखी होंगे, तो हम भी सुख सेरह पाएंगे... और सब सुखी हों इसके लिए हमें स्वयं को भी कुछ कर्त्तव्य बंधनों में बंधना ही होगा।
इसी की एक छोटी सी स्वयं स्वीकृत कार्य योजना यदि परिवार में भी चलाई जाए, जिसके द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन, नारी जागरण, शिक्षा एवं सत्प्रवृत्ति संवर्धन जैसे सभी कार्यक्रम पूरी बारीकी एवं कुशलता पूर्वक चलें, तो ना केवल, परिवार में सुख- शांति बढ़ सकती है बल्कि सामाजिक, राष्ट्रिय कर्त्तव्यों के पूर्ण होने से समाज एवं राष्ट्र भी लाभान्वित हो सकता है।
हमें संकोच किये बिना इस प्रक्रिया को जरूर अपनाना चाहिए। परिवार में मत भिन्नता, अनुशासन हीनता, फिजूल खर्ची और आडंबरों से उत्पन्न समस्याएं दूर करने में निश्चित् ही इससे मदद मिलेगी। विभिन्न संस्कारों को करवाते समय जो संकल्प लिए जाते हैं, उन्हें पूरा करने के लिए यह एक अच्छा अवसर है। आज, हम केवल एक दूसरे को वचन दे रहे हैं ऐसी बात नहीं है। इसमें हम पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी को भी साक्षी बना रहे हैं। हमारे संयुक्त परिवार के माता- पिता होने के नाते उनकी इच्छानुसार जीवन चलाने के लिए, हम उन्हीं के सामने संकल्पित हो रहे हैं। साथ ही उन्हें आश्वस्त भी कर रहे हैं कि शुभ संकल्पों को जीने का यह प्रयास आगे भी चलता रहेगा। हे गुरूदेव आपने मनुष्य को देवता और धरती को स्वर्ग बनाने का जो संकल्प ले रखा है, उसे सत्य करने के लिए यह हमारा प्रयास है.....
अब रीढ़ सीधी करके बैठें, संकल्प सूत्र बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से ढांक लें। मन ही मन, जीवन को निश्चित् मर्यादाओं में चलाने का, युगधर्म के विरूद्घ आचरण नहीं करने का और ईश्वरीय अनुशासन को स्वीकार करने का संकल्प लेते हुए, एक साथ ये प्रतिज्ञा सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि.....
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
सभी परिजन एक दूसरे को संकल्प सूत्र बांधें। आयोजक परिवार के सदस्य उठकर पूज्य गुरूदेव और वंदनीया माताजी के चरणों में सूत्र को श्रद्घापूर्वक स्पर्श कराएं। अब एक- एक करके व्यास पीठ तक आएं और संकल्प सूत्र बंधवाकर पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माता जी की ओर से आशीर्वाद लें। घर के मुखिया पारिवारिक संकल्प पत्र को रेशमी कपड़े में लपेटकर अथवा निश्चित् डिब्बी में सुरक्षित रखकर अक्षत् पुष्प व दक्षिणा के साथ गुरूदेव कोसमर्पित करें।
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे।
बोलिए युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
सत्कर्मों और शुभेच्छाओं की सफलता का यही सूत्र है, कि कर्त्ता को अच्छी तरह से सोच समझकर, पर्याप्त अध्ययन करके कार्य का प्रारंभ करना होता है। जब कर्त्ता पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनी सारी शक्ति लगा देता है। तब उसके निष्ठापूर्ण प्रयासों से प्रभावित होकर ईश्वरीय शक्तियां भी सहयोग के लिए आगे आती हैं।
हमने शुद्घ पवित्र अंतःकरण से इतने परिजनों के बीच देव परिवार निर्माण का संकल्प लिया है। देवत्व का विस्तार हो यही देवताओं की भी इच्छा होगी। अतः अब देव आवाहन हेतु सभी हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करें -- हे देव हमारी श्रद्घा को निखारें, सत्कार्य करने की हमारी प्रवृत्ति उभरे। हे देव भिन्न- भिन्न स्वभावों व योग्यताओं को सत्कर्मों के लिए एकजुट होना सिखाएं।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा....
गुरु वंदना --
जबसे ये दुनिया बनी है, हम लगातार विभिन्न शरीरों को धारण करते व छोड़ते आ रहे हैं। हमारी आत्मा की यात्रा, अब तक जैसी गुजरनी थी, गुजर गई। निश्चित ही हमारे पूर्व जन्म के कुछ सत्कर्म एक साथ जागृत हो गए हैं, जो इस जन्म में हमें, गुरूदेव के सानिध्य के रूप में, आत्मोन्नति का एक बहुत ही शानदार अवसर प्राप्त हो गया है।
हमें पूरी तरह से जागृत एवं सचेत रहते हुए, इस अवसर का लाभ उठाना है, अन्यथा विगत पाशविक स्वभावों से प्राप्त आलस्य, प्रमाद, दुर्बुद्घि आदि के रहते हमसे यह अवसर छूट भी सकता है। इस अवसर का लाभ हम तभी उठा सकते हैं जब हम उनकी इच्छानुसार अपना जीवन जीयें।
युगसंधि महापुरश्चरण के अनुयाज कार्यक्रम, नवयुग के अवतरण की प्रक्रिया को साकार कर दिखाने के लिए ही चलाए जा रहे हैं। नारी जागरण, शिक्षा, स्वास्थ्य संवर्धन, सत्प्रवृत्ति संवर्धन, व्यसन कुरीति उन्मूलन आदि कार्यक्रमों को, एक साथ और कम समय में कर दिखाने के लिए ही देव परिवार निर्माण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी को हमेशा अपने घर में प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए उपरोक्त सूत्रों को एक साथ जीने का अभ्यास किया जाता है। आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए, उनके द्वारा बताए गए जीवन दर्शन को आधार बनाकर ही, निर्णय लिए जाने की व्यवस्था बनाई जाती है।
यह एक अनुकरणीय एवं सामयिक कार्य है। श्री...... एवं श्रीमती...... ने आज से पूज्य गुरुसत्ता की उपस्थिति एवं साक्षी में देव परिवार निर्माण हेतु, अपने परिवार को संकल्प पूर्वक भागीदार बनाया है। इस अवसर पर आयोजित युगयज्ञ में, आइये हम श्रद्घापूर्वक पूज्य गुरूदेव एवं वंदनीया माताजी का आवाहन करें और उनसे अनुरोध करें कि वे हमें अपेक्षित साहस और लगन प्रदान करें। प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
देवपूजन का विशिष्ट क्रम
भाइयों और बहनों- घर परिवार में स्वर्ग सा सुखद वातावरण यूं ही नही बन जाता है। देव वृत्तियों की स्थायी स्थापना के लिये परिवार में विशेष क्रम चलाना होता है। घर में देवस्थापना चित्र की विधिवत स्थापना तुलसी की स्थापना, युग साहित्य की स्थापना कर नित्य स्वाध्याय का क्रम बनाना घर में अन्नघट अथवा धर्मघट की स्थापना करके बच्चों के माध्यम से उसे नित्य थोड़ा- थोड़ा भरवाना चमत्कारी प्रभाव उत्पन्न करता है।
अच्छा स्वास्थ्य, परिवारजनों और पड़ोसियों में आत्मीय संबंधों का निर्माण, पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से चलकर आसानी से संभव हो जाता है। उनकी कृपा और मार्गदर्शन हमें सतत् प्राप्त हो इसके लिये उनके विचारपुंज के रुप में यहां युग साहित्य स्थापना की जा रही है। परिवार में वैचारिक एकता भी इन्ही से स्थापित होगी।
घर में तुलसी की स्थापना से शुद्ध सात्विक वातावरण बनाने में मदद मिलती है।
देव परिवार निर्माण संकल्प दीपयज्ञ में, देवपूजन का यह विशिष्ट क्रम है। यहाँ देवमंच के साथ- साथ युग साहित्य, युग निर्माण सत्संकल्प की प्रति, धर्मघट (अथवा अन्नघट जो भी रखा हो )) रखे गए हैं।
इन्ही के सदुपयोग से भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा। व्यक्ति- निर्माण, परिवार- निर्माण के इस तंत्र पर आस्था प्रकट करके तथा इस क्रम को घर- घर में चलाकर कर देव परिवार निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम ईश्वर की पूजा मानकर करना है।
पंचमोपचार पूजनम् --
आज तक यज्ञ आदि के अनेकों कार्यक्रम आप सभी ने किये होंगे। जल, गंध, अक्षत्, पुष्प, नैवेद्य सब कुछ समर्पित किया होगा। अब फिर, सिर्फ उतना ही मत कर देना... चढाना तो कुछ और है....
जीवन एक जटिल विज्ञान है। किस कर्म का कब और क्या परिणाम मिलेगा, इसको स्पष्ट करना सामान्यतया संभव नहीं होता। परंपरा के निर्वाह हेतु लोग कर्मकाण्ड कर तो देते हैं लेकिन श्रद्घा, विश्वास तथा समुचित समर्पण के अभाव में, अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाते, बस खाना पूर्ति होते रहती है। ऐसा कुछ अभी यहां नहीं होना चाहिए।
युग परिवर्तन का आधार विचार हैं। विचार क्रियान्वित होंगे तभी परिवर्तनकारी कार्य हो सकेंगे। हमको, पूज्य गुरूदेव ने कृपा करके अपनी युग निर्माणी, सृजन सेना में सृजन सैनिक के रूप में शामिल किया है। गुरूदेव ने हमसे कहा, बोलो, हम सुधरेंगे युग सुधरेगा.... और हमने कहना शुरू कर दिया, पर उसे समझा नहीं।
अब हमें प्राणवान बनकर श्रद्घापूर्वक पूज्य गुरूदेव, वंदनीया माताजी के विचारों को आदेश मानते हुए जीकर दिखाना ही पड़ेगा। हम अपनी प्रिय लगने वाली सारी आदतों को एक तरफ रखेंगे और देव परिवार निर्माण के सूत्रों को क्रमशः अपनी आदतों में शामिल करते जाएंगे।
अपने गुरू पर विश्वास रखें इसका लाभ भी हमें तुरंत मिलेगा। संयमित जीवन से स्वास्थ्य भी सुधरेगा, धन भी बचेगा और जीवन में स्वाध्याय, समयदान आदि के लिए समय भी मिलेगा। घर की सुख- शांति, आपसी प्रेम, श्रेष्ठ संस्कार आदि स्वतः परिलक्षित होने लगेंगे... पर ये केवल जल चढ़ाने से नहीं, वरन् अपनी श्रद्घा को गुरूदेव के उन्हीं निर्माणी विचारों पर केन्द्रित करने से प्राप्त होगा, जिनसे युग निर्माण होना है। यह तो तय है कि प्रयत्न पूर्वक अपने घर में सत् प्रवृत्तियों की स्थापना और संयमित अनुशासित जीवन को देखकर हमारे गुरूजी व माताजी जरूर प्रसन्न होंगे। आज तो अपने साधन संपदा स्वतः को ही नहीं पुरते। अतः वास्तव में नैवेद्य चढ़ाने का आनंद कैसा होता है कितनों को मालूम है ?? लेकिन जब बात समझ में आ जाएगी तब केवल परम्परा का निर्वाह ही नहीं होगा, समाज को देने की होड़ लग जाएगी और श्रेय उन्हें प्राप्त होगा जो आज इस परम्परा की नींव रखेंगे।
पूजा कार्य अनिच्छा से करने पर भी लाभ देने वाला कोई बेगार नहीं है। ये वो सूत्र हैं, जिनसे मानव जीवन की सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। आइये शुरूवात तो हम कर्मकाण्ड से ही करते हैं, लेकिन यह स्मरण रहे कि हमें अपने कर्म को ही पूजा बनाना है।
अब इसी भाव के साथ प्रतिनिधी जल, गंधाक्षत्, पुष्प, धूप- दीप नैवेद्य समर्पित करें --
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सभी लोग कण- कण में, जन- जन में व्याप्त उस विराट सत्ता को श्रद्घापूर्वक नमन करें --
ॐ नमो स्त्वनंताय सहस्त्रमूर्तये, सहस्त्रपादा क्षिशिरोरूहावहे।
सहस्त्र नाम्ने पुरूषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नमः॥
सर्वदेव नमस्कारः --
परमात्मा ने मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बुद्घि दी है तो ऐसे ही नहीं दी, उसे कर्म योनि में रखा है। कर्म हमारे लिए सबसे प्रमुख है।
परमात्मा हमें अनुदान, वरदान, सहयोग, परामर्श, मार्गदर्शन, शिक्षण आदि विभिन्न रूपों में सहयोग भी करते रहते हैं। हमें बुद्घि प्रयोग द्वारा इन्हें पहिचानना चाहिए और फिर अपना योग्य व्यवहार तय करना चाहिए। इसके लिए हमें नम्र बनकर सभी देव शक्तियों को समझने का प्रयास करना होगा और परिवार के सुव्यवस्थित संचालन के लिए उनका उपयोग भी करना होगा। ऐसी दिव्य शक्तियों को नमन वंदन करते हुए सभी लोग दोनों
हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
गायत्री और यज्ञ के रूप में, सत्बुद्घि और सत्कर्म ही भारतीय संस्कृति के माता- पिता हैं। इन्हीं से हमारी संस्कृति बनी है, इन्हीं को पुनः अपने पारिवारिक जीवन में स्थान देना यही देव परिवार निर्माण है। यदि जीवन को यज्ञमय बनाने की बात की जाती हो तो सत्विचारों की स्थापना को ही जीवन में अग्नि स्थापना के रूप में देखना चाहिए। जो कुछ भी विचार अभी तक दिये हैं, उन्हें अग्नि की तरह प्रखर और जीवंत बनाए रखना ही प्रमुख भाव है। पदार्थ यज्ञ का एक उद्देश्य जीवन को यज्ञमय बनाना भी है।
ॐ