Books - वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
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Language: HINDI
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नशा एवं कुरीति उन्मूलन दीपयज्ञ
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पूर्व तैयारी --
इस दीपयज्ञ के योग्य माहौल बनाने के लिए नशे के दुष्परिणामों को दर्शाने वाली चित्र प्रदर्शनी लगाई जा सकती है अथवा नशा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत लिखे गए एकांकी, नाटकों का मंचन भी किया जा सकता है। यज्ञ के प्रभावी संचालन से श्रोताओं में नशा उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग हेतु संकल्प भी उभरते हैं। अतः लोगों से संकल्प पत्र भरवाकर देव दक्षिणा के रूप में उसे देव चरणों में समर्पित करवाया जाना चाहिए। इसके लिए छपे हुए अथवा कोरे संकल्प पत्रों की पूर्व में ही व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
आमंत्रण, मंच व्यवस्था तथा दीपयज्ञ की अन्य व्यवस्थाएं पूर्ववत ही रहेंगी। प्रारंभ में जयघोष व सामुहिक गायत्री मंत्रोच्चार के पश्चात संगठक प्रशिक्षक एक संक्षिप्त उद्बोधन दें।
प्रेरणा - नशे और कुरीतियों को विनाश का प्रारंभ कहा गया है। नशा करने वालों को कोई पसंद नही करता।
आज दास प्रथा, सती प्रथा, छुआछूत और बाल विवाह जैसी कुरीतियां से तो हम लगभग उबर गए हैं, किन्तु आरामतलबी, दहेज, फैशन तथा दिखावे की वृत्ति आज हमें जकड़े हुए है। अज्ञान से नये- नये अंध विश्वास और कुरीतियां जन्म लेती ही रहती हैं। शादियों, पार्टियों के नाम पर ऐश्वर्य और अहंकार का भौंडा प्रदर्शन सर्वत्र दिखता रहता है। फैशन की प्रवृत्ति तथा चित्र विचित्र अंग प्रदर्शन भी, अनेक उभरती कुरीतियों में से हैं।
शराब, सिगरेट, नशीली दवाओं के सेवन तथा भौंडी फैशन परस्ती में हो रही वृद्घि के लिए हम, फिल्मों और विदेशी संस्कृति के आयात को दोष दे सकते हैं, किन्तु बीड़ी तंबाकू, गुटका, गांजा, भांग, मांसाहार आदि दुर्व्यसनों की वृद्घि के लिये किसे दोष देंगे ??
बुराइयों को छुड़वाने के लिए यह जानाना भी जरूरी है कि आखिर व्यक्ति इन सारी बुराइयों को पालता ही क्यों है ?? सब जानते हैं ,कि शराब पीने से पेट और लीवर खराब हो जाते है। कुछ देर के लिए मस्तिष्क भ्रम हो जाता है, सिगरेट तंबाकू के सेवन से कैंसर का खतरा होता है, तो फिर लोग इन्हें अपनाते ही क्यों हैं ?? इनकी संख्या तेजी से बढ़ती क्यों जा रही है ?? इस बात को समझे बिना हम नशा उन्मूलन में सफल नहीं हो सकते।
आज नशे का व्यापार करने वाले तुरंत धनवान बन जाते हैं। यही हाल फैशन एवं ग्लैमर के बाजार का है। घर के पुरूषों के सामने महिलाएं, अंग उघाड़, वस्त्र पहनती हैं, कोई कुछ नहीं कहता। अश्लीलता बढ़ाने वाली फिल्में और टी वी सीरियल पूरा परिवार आज एक साथ बैठ कर देख रहा है।
एक तरफ नशा विरोधी आन्दोलन बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर शराब की बिक्री देश में रिकॉर्डर् तेजी से बढ़ी है। युवा और किशोरों के बीच गुटका, एक महामारी का रूप ले चुका है। देश की आबादी 1०० करोड़ है और 6००० करोड़ से अधिक का गुटका हम खा जाते हैं। अपने देश की महिलाएं भी अब नशे को तेजी से अपनाने लगी हैं।
मित्रों...., ऋषि कहता है, जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्चते... मनुष्य जन्म से ही तो शूद्र ही होता है, पशु होता है, संस्कारों से उसका दूसरा जन्म होता है, वह उन्नत बनता है। आज मनुष्य को देवता बनाने वाली हमारी प्रक्रिया कमजोर हो गई है, इसीलिए ये आसुरी और पाश्विक प्रवृत्तियां बे- लगाम बढ़ रही हैं।
एक बात हमेशा याद रखें... बच्चा बालपन से नकल कर करके ही सिखता है। जो कुछ भी वह होते देखता है, वैसा ही करने लगता है, वही उसका सत्य हो जाता है। माता पिता उसके प्रथम गुरू... और परिवार उसकी पहली पाठशाला होती है। यदि बच्चे के हृदय में प्रारंभ से ही दैवी वृत्ति को उभारा नहीं जाएगा, तब आसुरी वृत्ति तो स्वतः ही उभर आएगी। आज के माता पिता बच्चों के भावनात्मक विकास के लिए, ना तो उन्हें समय देते हैं ना ही उनके सामने उच्च जीवन आदर्श रखते हैं। वो तो केवल पॉकिट मनी, यूनिफॉर्म, टिफिन, वॉटर बैग तथा अन्य जरूरी सामान दे देते हैं और बाकी फिर अपनी लाइफ अपने ढंग से जीते हैं, तब बच्चे भी समाज को और टी वी को देखकर अपने ढंग से जीना सीख जाते हैं। जिस बच्चे के सम्मुख जीवन का कोई आदर्श नहीं है, जिसके पास प्रेम की धरोहर नही है.. ऐसा अधूरा और प्यासा व्यक्ति यदि नशा अपना ले तो यह स्वाभाविक ही होगा। ऐसे लोगों पर समझाइश का असर भी कम ही होता है।
एक बात और ...। शरीर को नियमित तथा पर्याप्त पोषण, विश्राम और मनोरंजन भी चाहिए होता है। आज हमें अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, व्यस्तता तथा विपरीत परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। टी. वी. विज्ञापनों ने भोगों की लालसा को तीव्र कर दिया है। अशुद्घ खान- पान, अनियमित जीवन चर्चा तथा दैनिक जीवन में बढ़ता असंतोष, अनेक शारीरिक मानसिक उपद्रवों को बढ़ा देते हैं। तब आदमी थोड़ा चेंज चाहता है और फिर चाय, कॉफी, पान, बीड़ी सिगरेट, गुटका, शराब और अन्य तथा कथित बुराइयों में अपने लिए सुख संतोष ढूँढ़ने लगता है। कुछ क्षणों के नशे में वह अपने आप को भूलने लगता है और फिर उसी का आदि हो जाता है।
कोई उसे सहयोग नही करता, प्रेम, सेवा, आत्मीयता और समर्पण से इनमें सुधार हो सकता है पर, लोग कोरे भाषण देते हैं जिसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मित्रों, हो सकता है कल को हमारा भी नौनिहाल नशा करने लगे। बेहतर यही है कि, हम इसके विरुद्घ एक संगठित योजनाबद्घ प्रयास में जुट जाएं। हमें दो दिशाओं में एक साथ काम शुरू करना होगा। एक काम हमारा प्रचारात्मक है, जिसमें प्रदर्शनी, दिवाललेखन, पर्चे वितरण, नाटक प्रदर्शन, रैली निकालना, ज्ञापन देना जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। इससे समाज में एक वातावरण बनता है, यह तो हम प्रायः करते ही रहते हैं। दूसरा कार्यक्रम हमसे प्रायः छुट जाता है अर्थात् व्यक्ति निर्माण और देव परिवार निर्माण से देव समाज के निर्माण की दिशा में चलने वाला कार्यक्रम। व्यसन और कुरीतियां दोनों ही समाज की सुख शांति में बाधक हैं, किन्तु सब कुछ हमारी सोच और संकल्प पर निर्भर है, अतः हमें ही कुछ करना होगा।
दैवी प्रेरणा से आप आज इस नशा कुरीति उन्मूलन दीपयज्ञ में आ ही गए हैं तो आत्म कल्याण, परिवार कल्याण और समाज कल्याण हेतु कुछ ना कुछ करने का संकल्प भी अवश्य लें और उज्ज्वल भविष्य का रास्ता प्रशस्त करें...
बोलिये युगावतार महाकाल की जय !
अब हम आज के इस विशेष दीपयज्ञ को प्रारंभ करते हैं। सभी लोग कमर सीधी करके बैठें और हमारे साथ- साथ गायत्री मंत्र का उच्चारण करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
मित्रों...., बाइबिल में एक जगह लिखा है, बंधुत्व और सहयोग की भावना से एक सूत्र में बंधकर रहने में बहुत आनंद है। भाईचारा बढ़ाना, निःस्वार्थ आपसी सहयोग करना और इसके लिए एक सूत्र में बंधना बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। यज्ञीय जीवन भी तो ऐसा ही कहा गया है ना ?? देव पूजन करना याने निःस्वार्थ रूप से देने वाली, सामाजिक प्राकृतिक ताकतों को बल प्रदान करना.... और ऐसा करने के लिए संगतिकरण करना याने आपस में ताल- मेल बिठाते हुए एक साथ कार्य करना।
मित्रों, नशा, हम स्वतः करते हैं, कुरीतियां भी हम ही पालते हैं। आप सभी चाहते हैं कि इनको समाज से मिटा दिया जाए, आप सब इसी उद्देश्य से एक साथ यहां आए भी हैं... यही तो यज्ञीय भाव है। आपकी इस यज्ञीय भावना का, आपके इस शुभ -- संकल्प का.. हम स्वागत करते हैं, देव शक्तियां स्वागत करती हैं।
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
शुभ संकल्पों में, देव शक्तियां भी सहयोग करती हैं, जिससे असंभव से लगने वाले काम भी सफल हो जाते हैं। यहां हम सभी, देवताओं को बुलाएंगे और वो आएंगे भी... किन्तु पहले हमें अपनी खुद की कमजोरियों को दूर करना पड़ेगा। विचारों, स्वभाव और कार्या को ठीक करना, यही पवित्रीकरण कहलाता है।
अब आप कमर सीधी करके बैठें, दोनों हाथ गोद में रखें। शांत चित्त होने का प्रयास करें। देखिये शुभ विचारों से, हमें एक साथ आया देखकर देव शक्तियां भी प्रसन्न हैं और हम पर पवित्रता की वर्षा कर रही हैं। शांत चित्त रहें और भावना करें कि जल की इन बूंदों के माध्यम से, ईश्वरीय पवित्र प्रेम हम बरस रहा है। इस पवित्रता को अपने मन, वाणी और अंतःकरण में प्रविष्ट हो जाने दें। भाव पूर्वक सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
मित्रों, नशे का दुर्गुण अज्ञानता वश शरीर से चिपकता है... इसलिए प्रेम का प्यासा शराब पीने लगता है। हम कहीं ना कहीं ऐसे काम कर बैठते हैं, जिनसे दूसरों को तकलीफ होने लगती है। सभी चाहते हैं कि सब सुखी हों, लेकिन सब दुःखी होते हैं। सही मार्ग पर चलकर ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। कुरीतियां, आखिरकार दुःख और निराशा का कारण ही बनती हैं। आप सोचकर देखें.. फिजूलखर्ची और फैशन परस्ती से क्या कभी कोई सुख संतोष प्राप्त कर सका है ??
हम छोटी- छोटी तात्कालिक सुविधाओं को ही ना देखें। सन्मार्ग पर चलने के लिए, अपने भीतर एक संकल्प उठ जाने दें... शक्ति, भगवान देंगे... $जरूर देंगे, पर पहले उनकी इच्छानुसार अनुसार काम तो करें।
प्राण परमात्मा की ऐसी शक्ति है, जिसमें चेतना है। यदि आप शुभ कार्यो के लिए प्रवृत्त होंगे और परमात्मा से अतिरिक्त प्राण ऊर्जा मांगेंगे तो जरूर मिलेगी। हमारे इस यज्ञ में देव शक्तियां भी आएंगी और हमें अतिरिक्त प्राण ऊर्जा भी मिलेगी, यदि हम इस शुभ कार्य का संकल्प ले लें।
कमर सीधी करके बैठें। आंखें बंद कर लें, चित्त शांत कर लें। विश्व के महाप्राण, सविता देवता का ध्यान करते हुए मन ही मन प्रार्थना करें कि हे विश्व के स्वामी, हे महाप्राण हमें श्रेष्ठताओं से जोड़ि़ए और बुराइयों से दूर कीजिए। अब प्राणाकर्षण प्राणायाम हेतु लंबी श्वास खींचें और कुछ देर रोककर धीरे- धीरे छोड़ें और प्राणायाम की प्रक्रिया को भावना पूर्वक पूर्ण करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् -- (स्वयंसेवक, सब को रोली बांट दें)
मित्रों, कोई भी जानबूझ कर बुरा बनना या बुरे कार्य करना नहीं चाहता... लेकिन, जब समझ उल्टी हो जाती है, तो कार्य भी उल्टे होते जाते हैं। हम दूसरे का हित देखते ही नहीं। दूसरों के विचार हम सुनना ही नहीं चाहते। जिसके चलते वैचारिक भिन्नता, वैमनस्यता तक बढ़ाती चली जाती है।
आइये, भगवान से हम आज एक आशीर्वाद ले लें। आपको रोली चंदन दिया जा रहा है। इसे अनामिका उंगली में लेकर, उसकी ओर देखते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारा मस्तिष्क शांत, विवेकवान और आवेश रहित रहे। हमें अपने ही गलत निर्णयों के कारण, कभी शर्मिंदगी ना झेलनी पड़े। हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए प्रसन्नता पूर्वक जीयें।
अब भावना पूर्वक सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात, ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
अब गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए एक दूसरे के माथे पर तिलक करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
संकल्प सूत्र धारणम् --
(संकल्प सूत्र बांटने की व्यवस्था कर दें) मित्रों...., आज मनोरंजन और प्रचार माध्यमों का बा$जारी करण हो गया है, तो धूर्तों और ठगों की अच्छी चल पड़ी है। आज का आदमी अब या तो एक्टर हो गया है, मॉडल हो गया है या उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहा। वह एक लेबर है, इंसान नहीं। वो सिर्फ एक उपभोक्ताहै.. उसको तो बस कोई मूर्ख ही बनाते रहे। लोग आदमी का पहले तो भरपूर उपयोग कर लेते हैं, फिर उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकते हैं। आज मानवीय स्वार्थ ने, आपसी विश्वास और प्रेम को जैसे मार ही डाला है। हर मनुष्य भीतर से व्याकुल है। विशुद्घ मानवी प्रेम और सम्मान पाने के लिए आज मानवता कलप रही है... पर समझने वाला कोई नहीं है।
लोगों ने अपनी आवश्यकताएं और महत्त्वाकांक्षाएं इतनी बढ़ा ली हैं कि उन्हें संतुष्ट कर पाना असंभव है। प्रेम और ज्ञान के अभाव में ही, निराश असफल और कुंठित लोग नशेड़ी और हिंसक होते जा रहे हैं। नशा मत करो, हिंसा मत करो, फैशन परस्ती या दिखावा मत करो... सिर्फ इतना ही कह भर देने से कोई मानेगा नहीं।हमें लोगों के बीच विचार क्रांति अभियान चलाना पड़ेगा। धर्म तंत्र से लोक शिक्षण, लोक जागरण करना पड़ेगा। सन्मार्ग पर चलते हुए अपना आचरण इतना सुधारना पड़ेगा कि बुरे से बुरा व्यक्ति भी, हमारे व्यवहार को देख कर प्रभावित हो जाए। तभी सत्य पर लोगों की श्रद्घा टिकेगी। प्रेम पूर्ण व्यवहार ही सुधार ला सकता है। डांट डपट और कठोरता के प्रदर्शन से स्थिति सुधर नहीं सकेगी।
उपासना, साधना और आराधना के कार्यक्रमों का पूर्णतः पालन करके आत्म सुधार की दिशा में हम आगे बढ़ें। अपने अपने प्रज्ञा मंडलों के द्वारा, ऐसे ही छोटे- छोटे दीपयज्ञों के माध्यम से जन चेतना जगाने के कार्यक्रम चलाएं।
अब सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। सूत्र को बाएं हाथ में लेकर उसे दाहिने हाथ से ढंक लें। निश्चित् मर्यादाओं में चलने का, दुराचरण नहीं करने का तथा आत्म सुधार करके ईश्वरीय अनुशासन के अनुसार जीवन चलाने का संकल्प मन ही मन लें, ताकि ईश्वरीय शक्ति का भी सहयोग आपको प्राप्त हो। हमारे साथ- साथ यह सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि, ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे...
बोलिये युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
अभी तक हमने अपने आप की तैयारी की.. स्थिति को समझा, शुभ संकल्प लिया। अब हम देव शक्तियों को आमंत्रित करके उनका पूजन करेंगे। जब हम अपने साधन और अपना समय, देव कार्यो में लगाने का संकल्प लेंगे.. तब जहां हमारी बुद्घि और शक्ति कम पड़ेगी, देव शक्तियां हमारा सहयोग करेंगी।
यहां देव मंच पर पवित्र कलश स्थापित किया गया है। उसके विभिन्न भागों में देव शक्तियों का आवाहन करें, ताकि वे इस यज्ञ को सही अर्थो में सफल बनाने में हमारी मदद करें। अब प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
गुरु वंदना --
मित्रों, आज पुस्तकें पढ़ के और परिक्षाएं दे देकर के लोगों ने बड़े- बड़े प्रमाण पत्र पा लिए हैं। लोग अब बहुत होशियार और चालाक हो गए हैं। जैसे- जैसे ये होशियारी, चालाकी बढ़ते जा रही है, लोगों के पास धन संपदा बढ़ते जा रही हैं और साथ ही लोगों की परेशानियां भी बढ़ रही हैं। जो जो नहीं करना चाहिए, लोग वही करते हैं और इससे लोगों के दुःख मुसीबतें और भी बढ़ जाती हैं। लोग समझ नहीं पा रहे हैं... नशा कर रहे हैं और आत्म हत्याएं कर रहे हैं।
वास्तव में समाज को सद् विवेक चाहिए सन्मार्ग चाहिए। तो आइये इसके लिए गुरूसत्ता और गायत्री के रूप में युग शक्ति का आह्वान और उनकी स्थापना करते हैं, ताकि हमारे जीवन में प्रज्ञा एवं श्रद्घा का उदय हो जाए। हम उनके दिखाए मार्ग पर जीवन जी सकें और अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें।
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
पंचमोपचार पूजनम् --
मित्रों, जीवन की घटनाओं में कार्य कारण संबंध बना हुआ है। परम पूज्य गुरूदेव कहा करते थे कि मनुष्य भटका हुआ देवताज्ज् है, हम सब देवता ही हैं। देवता अपने आचरण से लोगों को सुख पहुंचाते रहते हैं, इसलिए वे जहां रहते हैं वहीं स्वर्ग जैसी स्थितियां बन जाती हैं।
84 लाख योनियों से उन्नति करते हुए हमने यह महत्त्वपूर्ण मुकाम मानव देह के रूप में प्राप्त किया है। बाहर से तो सब ठीक हो गया है, लेकिन देवताओं सा मान- सम्मान और सुख शांति पाने के लिए हमें कुछ और भी सीखना पड़ेगा। कुछ भौंडे रीति- रिवाज हमने अपना रखे हैं। हम सोचते हैं कि ऐसा करने से लोग हमें अच्छा समझने लगेंगे, नशे के पदार्थ हमें जन्नन्नत में पहुंचा देंगे... लेकिन ये हमारी भूल है। अभी हमें लोगों के हित में जीना सीखना पड़ेगा। अपने समय साधनों का उपयोग लोक हित में कैसे करें यह सीखना पड़ेगा। नशे की प्रवृत्ति और सामाजिक कुरीतियां ऐसे ही भाषण बाजी से दूर होने वाली नहीं है। आप एक बात याद रखना कोई किसी की कभी नहीं सुनेगा। लोग जब भी कुछ करेंगे, दूसरों की देखा सीखी ही करेंगे, अपने संस्कारों के अनुसार ही आचरण करेंगे... इसलिए आज के चाल चलन को बदलने के लिए, परिवारों की व्यवस्था को और परिवार को बदलने के लिए, उसके कम से कम एक सदस्य को, अपना आचरण सुधार कर अन्य लोगों का विश्वास जीतना होगा। ऐसा व्यक्ति अपने प्रेम का वास्ता देकर, दूसरे को अपना चाल चलन बदलने की प्रेरणा दे सकता है। ज्योत से ही ज्योत जलेगी। ऐसा नहीं है कि प्रचारात्मक कार्यो का कोई महत्त्व नही है... उनसे एक अच्छा माहौल बनता है। ऐसे कार्यो से सामाजिक नियम कायदे बदले जा सकते हैं। इनका भी अपना महत्त्व है पर यही सब कुछ नहीं होता।
व्यक्ति को बदलने की विद्या ही आध्यात्म है। देव पूजन का कर्मकाण्ड यदि समझ में आ जाए और हम अपने दैनिक कर्मो को ही पूजा बना सकें, तो हमारा यह देव पूजन भी सफल हो जाएगा। वास्तव में हजारों सिरों वाला, हजारों हाथों वाला और हजारों आंखों वाला यह समाज प्रत्यक्ष देवता है। यदि जल के रूप में हम अपनी श्रद्घा, चंदन और फूलों के रूप में अपनी प्रसन्नता, धूप- दीप नैवेद्य के रूप में अपनी साधन संपदा का अंश औरों के हित में लगाने लगें.. तो धीरे- धीरे समाज समृद्घ होगा और हमें भी अनेकों लाभ होंगे।
उपस्थित सभी भाई बहन कण- कण में और जन- जन में व्याप्त उस विराट सत्ता को श्रद्घापूर्वक नमन करें और प्रतिनिधी जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य समर्पित करते हुए पूजन की प्रक्रिया प्रारंभ करें।
बोलिए युगावतार महाकाल की...... जय !
गायत्री माता की....... जय !
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः --
शांत और नम्र बनकर हम समझने का प्रयास करें तथा जीवन और मार्गदर्शन देने वाली समस्त देव शक्तियों का नमन वंदन करें। सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
गायत्री और यज्ञ के रूप में सत्बुद्घि और सत्कर्म ही भारतीय संस्कृति के माता- पिता हैं। अब हम यज्ञ करने जा रहे हैं। अभी तक हमने जो भाव प्रेरणा ग्रहण की है उसे सदा स्मरण रखें। यदि हम गायत्री के रूप में सत्बुद्घि को धारण करें और यज्ञ के रूप में लोकहित के कार्य करने लगें... तो हम लोग भी देवता कहलाने लगेंगे। यज्ञ करने का उद्देश्य यह भी है कि जीवन यज्ञमय हो जाए।
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। परिजन दोनों हाथ जोड़कर अग्रिशिखा का दर्शन करते हुए भगवान से प्रार्थना करें -- हे अग्रिदेव.. हमें अपने ऊपर उठना सिखाएं। हे अग्रिदेव... हमें प्रकाश से भर दें। हमें शक्ति सम्पन्न बनाएं। हमें आपके अनुरूप बनने एवं दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। हम भी आपकी तरह सुगंधि और प्रकाश बांटने लगें...
ॐ अग्रेनय सुपथाराये अस्मान् विश्वानिदेव वयुनानि विद्वान, युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठान ते नम उक्तिम् विधेम।
गायत्री स्तवनम् --
हम बार- बार, अच्छी- अच्छी प्रार्थनाएं तो करते हैं किन्तु तदनुकूल आचरण ना करें तो देव शक्तियां रूष्ट भी हो जाती हैं। इस बात का स्मरण रखा जाए। भगवान केवल बहलाने फुसलाने से प्रसन्न नहीं होते।
अपने संकल्प को पूरा करने के लिए, आइये ज्ञान, प्रकाश और तेज स्वरूप उस परमात्मा से आशीर्वाद मांगें --
इस दीपयज्ञ के योग्य माहौल बनाने के लिए नशे के दुष्परिणामों को दर्शाने वाली चित्र प्रदर्शनी लगाई जा सकती है अथवा नशा उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत लिखे गए एकांकी, नाटकों का मंचन भी किया जा सकता है। यज्ञ के प्रभावी संचालन से श्रोताओं में नशा उन्मूलन कार्यक्रम में सहयोग हेतु संकल्प भी उभरते हैं। अतः लोगों से संकल्प पत्र भरवाकर देव दक्षिणा के रूप में उसे देव चरणों में समर्पित करवाया जाना चाहिए। इसके लिए छपे हुए अथवा कोरे संकल्प पत्रों की पूर्व में ही व्यवस्था कर लेनी चाहिए।
आमंत्रण, मंच व्यवस्था तथा दीपयज्ञ की अन्य व्यवस्थाएं पूर्ववत ही रहेंगी। प्रारंभ में जयघोष व सामुहिक गायत्री मंत्रोच्चार के पश्चात संगठक प्रशिक्षक एक संक्षिप्त उद्बोधन दें।
प्रेरणा - नशे और कुरीतियों को विनाश का प्रारंभ कहा गया है। नशा करने वालों को कोई पसंद नही करता।
आज दास प्रथा, सती प्रथा, छुआछूत और बाल विवाह जैसी कुरीतियां से तो हम लगभग उबर गए हैं, किन्तु आरामतलबी, दहेज, फैशन तथा दिखावे की वृत्ति आज हमें जकड़े हुए है। अज्ञान से नये- नये अंध विश्वास और कुरीतियां जन्म लेती ही रहती हैं। शादियों, पार्टियों के नाम पर ऐश्वर्य और अहंकार का भौंडा प्रदर्शन सर्वत्र दिखता रहता है। फैशन की प्रवृत्ति तथा चित्र विचित्र अंग प्रदर्शन भी, अनेक उभरती कुरीतियों में से हैं।
शराब, सिगरेट, नशीली दवाओं के सेवन तथा भौंडी फैशन परस्ती में हो रही वृद्घि के लिए हम, फिल्मों और विदेशी संस्कृति के आयात को दोष दे सकते हैं, किन्तु बीड़ी तंबाकू, गुटका, गांजा, भांग, मांसाहार आदि दुर्व्यसनों की वृद्घि के लिये किसे दोष देंगे ??
बुराइयों को छुड़वाने के लिए यह जानाना भी जरूरी है कि आखिर व्यक्ति इन सारी बुराइयों को पालता ही क्यों है ?? सब जानते हैं ,कि शराब पीने से पेट और लीवर खराब हो जाते है। कुछ देर के लिए मस्तिष्क भ्रम हो जाता है, सिगरेट तंबाकू के सेवन से कैंसर का खतरा होता है, तो फिर लोग इन्हें अपनाते ही क्यों हैं ?? इनकी संख्या तेजी से बढ़ती क्यों जा रही है ?? इस बात को समझे बिना हम नशा उन्मूलन में सफल नहीं हो सकते।
आज नशे का व्यापार करने वाले तुरंत धनवान बन जाते हैं। यही हाल फैशन एवं ग्लैमर के बाजार का है। घर के पुरूषों के सामने महिलाएं, अंग उघाड़, वस्त्र पहनती हैं, कोई कुछ नहीं कहता। अश्लीलता बढ़ाने वाली फिल्में और टी वी सीरियल पूरा परिवार आज एक साथ बैठ कर देख रहा है।
एक तरफ नशा विरोधी आन्दोलन बढ़ रहे हैं, दूसरी ओर शराब की बिक्री देश में रिकॉर्डर् तेजी से बढ़ी है। युवा और किशोरों के बीच गुटका, एक महामारी का रूप ले चुका है। देश की आबादी 1०० करोड़ है और 6००० करोड़ से अधिक का गुटका हम खा जाते हैं। अपने देश की महिलाएं भी अब नशे को तेजी से अपनाने लगी हैं।
मित्रों...., ऋषि कहता है, जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्चते... मनुष्य जन्म से ही तो शूद्र ही होता है, पशु होता है, संस्कारों से उसका दूसरा जन्म होता है, वह उन्नत बनता है। आज मनुष्य को देवता बनाने वाली हमारी प्रक्रिया कमजोर हो गई है, इसीलिए ये आसुरी और पाश्विक प्रवृत्तियां बे- लगाम बढ़ रही हैं।
एक बात हमेशा याद रखें... बच्चा बालपन से नकल कर करके ही सिखता है। जो कुछ भी वह होते देखता है, वैसा ही करने लगता है, वही उसका सत्य हो जाता है। माता पिता उसके प्रथम गुरू... और परिवार उसकी पहली पाठशाला होती है। यदि बच्चे के हृदय में प्रारंभ से ही दैवी वृत्ति को उभारा नहीं जाएगा, तब आसुरी वृत्ति तो स्वतः ही उभर आएगी। आज के माता पिता बच्चों के भावनात्मक विकास के लिए, ना तो उन्हें समय देते हैं ना ही उनके सामने उच्च जीवन आदर्श रखते हैं। वो तो केवल पॉकिट मनी, यूनिफॉर्म, टिफिन, वॉटर बैग तथा अन्य जरूरी सामान दे देते हैं और बाकी फिर अपनी लाइफ अपने ढंग से जीते हैं, तब बच्चे भी समाज को और टी वी को देखकर अपने ढंग से जीना सीख जाते हैं। जिस बच्चे के सम्मुख जीवन का कोई आदर्श नहीं है, जिसके पास प्रेम की धरोहर नही है.. ऐसा अधूरा और प्यासा व्यक्ति यदि नशा अपना ले तो यह स्वाभाविक ही होगा। ऐसे लोगों पर समझाइश का असर भी कम ही होता है।
एक बात और ...। शरीर को नियमित तथा पर्याप्त पोषण, विश्राम और मनोरंजन भी चाहिए होता है। आज हमें अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, व्यस्तता तथा विपरीत परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। टी. वी. विज्ञापनों ने भोगों की लालसा को तीव्र कर दिया है। अशुद्घ खान- पान, अनियमित जीवन चर्चा तथा दैनिक जीवन में बढ़ता असंतोष, अनेक शारीरिक मानसिक उपद्रवों को बढ़ा देते हैं। तब आदमी थोड़ा चेंज चाहता है और फिर चाय, कॉफी, पान, बीड़ी सिगरेट, गुटका, शराब और अन्य तथा कथित बुराइयों में अपने लिए सुख संतोष ढूँढ़ने लगता है। कुछ क्षणों के नशे में वह अपने आप को भूलने लगता है और फिर उसी का आदि हो जाता है।
कोई उसे सहयोग नही करता, प्रेम, सेवा, आत्मीयता और समर्पण से इनमें सुधार हो सकता है पर, लोग कोरे भाषण देते हैं जिसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
मित्रों, हो सकता है कल को हमारा भी नौनिहाल नशा करने लगे। बेहतर यही है कि, हम इसके विरुद्घ एक संगठित योजनाबद्घ प्रयास में जुट जाएं। हमें दो दिशाओं में एक साथ काम शुरू करना होगा। एक काम हमारा प्रचारात्मक है, जिसमें प्रदर्शनी, दिवाललेखन, पर्चे वितरण, नाटक प्रदर्शन, रैली निकालना, ज्ञापन देना जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। इससे समाज में एक वातावरण बनता है, यह तो हम प्रायः करते ही रहते हैं। दूसरा कार्यक्रम हमसे प्रायः छुट जाता है अर्थात् व्यक्ति निर्माण और देव परिवार निर्माण से देव समाज के निर्माण की दिशा में चलने वाला कार्यक्रम। व्यसन और कुरीतियां दोनों ही समाज की सुख शांति में बाधक हैं, किन्तु सब कुछ हमारी सोच और संकल्प पर निर्भर है, अतः हमें ही कुछ करना होगा।
दैवी प्रेरणा से आप आज इस नशा कुरीति उन्मूलन दीपयज्ञ में आ ही गए हैं तो आत्म कल्याण, परिवार कल्याण और समाज कल्याण हेतु कुछ ना कुछ करने का संकल्प भी अवश्य लें और उज्ज्वल भविष्य का रास्ता प्रशस्त करें...
बोलिये युगावतार महाकाल की जय !
अब हम आज के इस विशेष दीपयज्ञ को प्रारंभ करते हैं। सभी लोग कमर सीधी करके बैठें और हमारे साथ- साथ गायत्री मंत्र का उच्चारण करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
मंगलाचरणम् --
मित्रों...., बाइबिल में एक जगह लिखा है, बंधुत्व और सहयोग की भावना से एक सूत्र में बंधकर रहने में बहुत आनंद है। भाईचारा बढ़ाना, निःस्वार्थ आपसी सहयोग करना और इसके लिए एक सूत्र में बंधना बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। यज्ञीय जीवन भी तो ऐसा ही कहा गया है ना ?? देव पूजन करना याने निःस्वार्थ रूप से देने वाली, सामाजिक प्राकृतिक ताकतों को बल प्रदान करना.... और ऐसा करने के लिए संगतिकरण करना याने आपस में ताल- मेल बिठाते हुए एक साथ कार्य करना।
मित्रों, नशा, हम स्वतः करते हैं, कुरीतियां भी हम ही पालते हैं। आप सभी चाहते हैं कि इनको समाज से मिटा दिया जाए, आप सब इसी उद्देश्य से एक साथ यहां आए भी हैं... यही तो यज्ञीय भाव है। आपकी इस यज्ञीय भावना का, आपके इस शुभ -- संकल्प का.. हम स्वागत करते हैं, देव शक्तियां स्वागत करती हैं।
(स्वयं सेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें)
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरै रंगै स्तुष्टुवा, स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥
पवित्रीकरणम् --
शुभ संकल्पों में, देव शक्तियां भी सहयोग करती हैं, जिससे असंभव से लगने वाले काम भी सफल हो जाते हैं। यहां हम सभी, देवताओं को बुलाएंगे और वो आएंगे भी... किन्तु पहले हमें अपनी खुद की कमजोरियों को दूर करना पड़ेगा। विचारों, स्वभाव और कार्या को ठीक करना, यही पवित्रीकरण कहलाता है।
अब आप कमर सीधी करके बैठें, दोनों हाथ गोद में रखें। शांत चित्त होने का प्रयास करें। देखिये शुभ विचारों से, हमें एक साथ आया देखकर देव शक्तियां भी प्रसन्न हैं और हम पर पवित्रता की वर्षा कर रही हैं। शांत चित्त रहें और भावना करें कि जल की इन बूंदों के माध्यम से, ईश्वरीय पवित्र प्रेम हम बरस रहा है। इस पवित्रता को अपने मन, वाणी और अंतःकरण में प्रविष्ट हो जाने दें। भाव पूर्वक सूत्र दोहराते चलें --
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें)
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्।
सूर्यध्यान प्राणायामः --
मित्रों, नशे का दुर्गुण अज्ञानता वश शरीर से चिपकता है... इसलिए प्रेम का प्यासा शराब पीने लगता है। हम कहीं ना कहीं ऐसे काम कर बैठते हैं, जिनसे दूसरों को तकलीफ होने लगती है। सभी चाहते हैं कि सब सुखी हों, लेकिन सब दुःखी होते हैं। सही मार्ग पर चलकर ही मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। कुरीतियां, आखिरकार दुःख और निराशा का कारण ही बनती हैं। आप सोचकर देखें.. फिजूलखर्ची और फैशन परस्ती से क्या कभी कोई सुख संतोष प्राप्त कर सका है ??
हम छोटी- छोटी तात्कालिक सुविधाओं को ही ना देखें। सन्मार्ग पर चलने के लिए, अपने भीतर एक संकल्प उठ जाने दें... शक्ति, भगवान देंगे... $जरूर देंगे, पर पहले उनकी इच्छानुसार अनुसार काम तो करें।
प्राण परमात्मा की ऐसी शक्ति है, जिसमें चेतना है। यदि आप शुभ कार्यो के लिए प्रवृत्त होंगे और परमात्मा से अतिरिक्त प्राण ऊर्जा मांगेंगे तो जरूर मिलेगी। हमारे इस यज्ञ में देव शक्तियां भी आएंगी और हमें अतिरिक्त प्राण ऊर्जा भी मिलेगी, यदि हम इस शुभ कार्य का संकल्प ले लें।
कमर सीधी करके बैठें। आंखें बंद कर लें, चित्त शांत कर लें। विश्व के महाप्राण, सविता देवता का ध्यान करते हुए मन ही मन प्रार्थना करें कि हे विश्व के स्वामी, हे महाप्राण हमें श्रेष्ठताओं से जोड़ि़ए और बुराइयों से दूर कीजिए। अब प्राणाकर्षण प्राणायाम हेतु लंबी श्वास खींचें और कुछ देर रोककर धीरे- धीरे छोड़ें और प्राणायाम की प्रक्रिया को भावना पूर्वक पूर्ण करें --
ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव
यदभद्रं तन्न आसुव॥
चंदन धारणम् -- (स्वयंसेवक, सब को रोली बांट दें)
मित्रों, कोई भी जानबूझ कर बुरा बनना या बुरे कार्य करना नहीं चाहता... लेकिन, जब समझ उल्टी हो जाती है, तो कार्य भी उल्टे होते जाते हैं। हम दूसरे का हित देखते ही नहीं। दूसरों के विचार हम सुनना ही नहीं चाहते। जिसके चलते वैचारिक भिन्नता, वैमनस्यता तक बढ़ाती चली जाती है।
आइये, भगवान से हम आज एक आशीर्वाद ले लें। आपको रोली चंदन दिया जा रहा है। इसे अनामिका उंगली में लेकर, उसकी ओर देखते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारा मस्तिष्क शांत, विवेकवान और आवेश रहित रहे। हमें अपने ही गलत निर्णयों के कारण, कभी शर्मिंदगी ना झेलनी पड़े। हम एक दूसरे के विचारों का सम्मान करते हुए प्रसन्नता पूर्वक जीयें।
अब भावना पूर्वक सूत्र दोहराएं। कहिए --
ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात, ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात, ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात।
अब गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए एक दूसरे के माथे पर तिलक करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
संकल्प सूत्र धारणम् --
(संकल्प सूत्र बांटने की व्यवस्था कर दें) मित्रों...., आज मनोरंजन और प्रचार माध्यमों का बा$जारी करण हो गया है, तो धूर्तों और ठगों की अच्छी चल पड़ी है। आज का आदमी अब या तो एक्टर हो गया है, मॉडल हो गया है या उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहा। वह एक लेबर है, इंसान नहीं। वो सिर्फ एक उपभोक्ताहै.. उसको तो बस कोई मूर्ख ही बनाते रहे। लोग आदमी का पहले तो भरपूर उपयोग कर लेते हैं, फिर उसे अपनी जिंदगी से निकाल फेंकते हैं। आज मानवीय स्वार्थ ने, आपसी विश्वास और प्रेम को जैसे मार ही डाला है। हर मनुष्य भीतर से व्याकुल है। विशुद्घ मानवी प्रेम और सम्मान पाने के लिए आज मानवता कलप रही है... पर समझने वाला कोई नहीं है।
लोगों ने अपनी आवश्यकताएं और महत्त्वाकांक्षाएं इतनी बढ़ा ली हैं कि उन्हें संतुष्ट कर पाना असंभव है। प्रेम और ज्ञान के अभाव में ही, निराश असफल और कुंठित लोग नशेड़ी और हिंसक होते जा रहे हैं। नशा मत करो, हिंसा मत करो, फैशन परस्ती या दिखावा मत करो... सिर्फ इतना ही कह भर देने से कोई मानेगा नहीं।हमें लोगों के बीच विचार क्रांति अभियान चलाना पड़ेगा। धर्म तंत्र से लोक शिक्षण, लोक जागरण करना पड़ेगा। सन्मार्ग पर चलते हुए अपना आचरण इतना सुधारना पड़ेगा कि बुरे से बुरा व्यक्ति भी, हमारे व्यवहार को देख कर प्रभावित हो जाए। तभी सत्य पर लोगों की श्रद्घा टिकेगी। प्रेम पूर्ण व्यवहार ही सुधार ला सकता है। डांट डपट और कठोरता के प्रदर्शन से स्थिति सुधर नहीं सकेगी।
उपासना, साधना और आराधना के कार्यक्रमों का पूर्णतः पालन करके आत्म सुधार की दिशा में हम आगे बढ़ें। अपने अपने प्रज्ञा मंडलों के द्वारा, ऐसे ही छोटे- छोटे दीपयज्ञों के माध्यम से जन चेतना जगाने के कार्यक्रम चलाएं।
अब सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। सूत्र को बाएं हाथ में लेकर उसे दाहिने हाथ से ढंक लें। निश्चित् मर्यादाओं में चलने का, दुराचरण नहीं करने का तथा आत्म सुधार करके ईश्वरीय अनुशासन के अनुसार जीवन चलाने का संकल्प मन ही मन लें, ताकि ईश्वरीय शक्ति का भी सहयोग आपको प्राप्त हो। हमारे साथ- साथ यह सूत्र दोहराते चलें --
ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि, ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि,
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि।
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें...
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए, अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए, हमें उपयुक्त शक्ति -- मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभु.. हमारे संकल्प पूरे हों, हम सुख सौभाग्य, श्रेय पुण्य तथा आपकी कृपा के अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने तथा उन्हें जन- जन तक पहुँचाने की हमारी पात्रता बढ़ती रहे...
बोलिये युगावतार महाकाल की जय !
कलश पूजनम् --
अभी तक हमने अपने आप की तैयारी की.. स्थिति को समझा, शुभ संकल्प लिया। अब हम देव शक्तियों को आमंत्रित करके उनका पूजन करेंगे। जब हम अपने साधन और अपना समय, देव कार्यो में लगाने का संकल्प लेंगे.. तब जहां हमारी बुद्घि और शक्ति कम पड़ेगी, देव शक्तियां हमारा सहयोग करेंगी।
यहां देव मंच पर पवित्र कलश स्थापित किया गया है। उसके विभिन्न भागों में देव शक्तियों का आवाहन करें, ताकि वे इस यज्ञ को सही अर्थो में सफल बनाने में हमारी मदद करें। अब प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अंगैश्च संहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति- पुष्टिकरी सदा॥
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणः प्रतिष्ठिताः।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः॥
आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः॥
त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।।
सान्निध्यं कुरु मे देव ! प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
प्रसन्नो भव सर्वदा ॥
गुरु वंदना --
मित्रों, आज पुस्तकें पढ़ के और परिक्षाएं दे देकर के लोगों ने बड़े- बड़े प्रमाण पत्र पा लिए हैं। लोग अब बहुत होशियार और चालाक हो गए हैं। जैसे- जैसे ये होशियारी, चालाकी बढ़ते जा रही है, लोगों के पास धन संपदा बढ़ते जा रही हैं और साथ ही लोगों की परेशानियां भी बढ़ रही हैं। जो जो नहीं करना चाहिए, लोग वही करते हैं और इससे लोगों के दुःख मुसीबतें और भी बढ़ जाती हैं। लोग समझ नहीं पा रहे हैं... नशा कर रहे हैं और आत्म हत्याएं कर रहे हैं।
वास्तव में समाज को सद् विवेक चाहिए सन्मार्ग चाहिए। तो आइये इसके लिए गुरूसत्ता और गायत्री के रूप में युग शक्ति का आह्वान और उनकी स्थापना करते हैं, ताकि हमारे जीवन में प्रज्ञा एवं श्रद्घा का उदय हो जाए। हम उनके दिखाए मार्ग पर जीवन जी सकें और अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें।
प्रतिनिधी हाथ में अक्षत् पुष्प ले लें... अन्य सभी भावनात्मक पूजन सम्पन्न करें --
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चरा चरम्।
तत्पदं दर्शितम् येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्ग दर्शिका।
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्घा प्रज्ञा युता चया॥
ॐ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।
अक्षत् पुष्प मंच पर समर्पित कर प्रणाम करें।
पंचमोपचार पूजनम् --
मित्रों, जीवन की घटनाओं में कार्य कारण संबंध बना हुआ है। परम पूज्य गुरूदेव कहा करते थे कि मनुष्य भटका हुआ देवताज्ज् है, हम सब देवता ही हैं। देवता अपने आचरण से लोगों को सुख पहुंचाते रहते हैं, इसलिए वे जहां रहते हैं वहीं स्वर्ग जैसी स्थितियां बन जाती हैं।
84 लाख योनियों से उन्नति करते हुए हमने यह महत्त्वपूर्ण मुकाम मानव देह के रूप में प्राप्त किया है। बाहर से तो सब ठीक हो गया है, लेकिन देवताओं सा मान- सम्मान और सुख शांति पाने के लिए हमें कुछ और भी सीखना पड़ेगा। कुछ भौंडे रीति- रिवाज हमने अपना रखे हैं। हम सोचते हैं कि ऐसा करने से लोग हमें अच्छा समझने लगेंगे, नशे के पदार्थ हमें जन्नन्नत में पहुंचा देंगे... लेकिन ये हमारी भूल है। अभी हमें लोगों के हित में जीना सीखना पड़ेगा। अपने समय साधनों का उपयोग लोक हित में कैसे करें यह सीखना पड़ेगा। नशे की प्रवृत्ति और सामाजिक कुरीतियां ऐसे ही भाषण बाजी से दूर होने वाली नहीं है। आप एक बात याद रखना कोई किसी की कभी नहीं सुनेगा। लोग जब भी कुछ करेंगे, दूसरों की देखा सीखी ही करेंगे, अपने संस्कारों के अनुसार ही आचरण करेंगे... इसलिए आज के चाल चलन को बदलने के लिए, परिवारों की व्यवस्था को और परिवार को बदलने के लिए, उसके कम से कम एक सदस्य को, अपना आचरण सुधार कर अन्य लोगों का विश्वास जीतना होगा। ऐसा व्यक्ति अपने प्रेम का वास्ता देकर, दूसरे को अपना चाल चलन बदलने की प्रेरणा दे सकता है। ज्योत से ही ज्योत जलेगी। ऐसा नहीं है कि प्रचारात्मक कार्यो का कोई महत्त्व नही है... उनसे एक अच्छा माहौल बनता है। ऐसे कार्यो से सामाजिक नियम कायदे बदले जा सकते हैं। इनका भी अपना महत्त्व है पर यही सब कुछ नहीं होता।
व्यक्ति को बदलने की विद्या ही आध्यात्म है। देव पूजन का कर्मकाण्ड यदि समझ में आ जाए और हम अपने दैनिक कर्मो को ही पूजा बना सकें, तो हमारा यह देव पूजन भी सफल हो जाएगा। वास्तव में हजारों सिरों वाला, हजारों हाथों वाला और हजारों आंखों वाला यह समाज प्रत्यक्ष देवता है। यदि जल के रूप में हम अपनी श्रद्घा, चंदन और फूलों के रूप में अपनी प्रसन्नता, धूप- दीप नैवेद्य के रूप में अपनी साधन संपदा का अंश औरों के हित में लगाने लगें.. तो धीरे- धीरे समाज समृद्घ होगा और हमें भी अनेकों लाभ होंगे।
उपस्थित सभी भाई बहन कण- कण में और जन- जन में व्याप्त उस विराट सत्ता को श्रद्घापूर्वक नमन करें और प्रतिनिधी जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य समर्पित करते हुए पूजन की प्रक्रिया प्रारंभ करें।
बोलिए युगावतार महाकाल की...... जय !
गायत्री माता की....... जय !
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। जलं गंधाक्षतम्, पुष्पं, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि।
सर्वदेव नमस्कारः --
शांत और नम्र बनकर हम समझने का प्रयास करें तथा जीवन और मार्गदर्शन देने वाली समस्त देव शक्तियों का नमन वंदन करें। सभी लोग दोनों हाथ जोड़कर सूत्र दोहराएं --
ॐ सर्वेभ्यो देव शक्तिभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो देव पुरूषेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो महाप्राणेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो महारुद्रेभ्यो नमः ।।
ॐ सर्वेभ्यो आदितेभ्यो नमः ।। ॐ सर्वेभ्यो मातृ शक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यो नमः। ॐ महाविद्यायै नमः।
ॐ एतद् कर्म प्रधान श्रीमन महाकालाय नमः।
अग्रिस्थापनम् --
गायत्री और यज्ञ के रूप में सत्बुद्घि और सत्कर्म ही भारतीय संस्कृति के माता- पिता हैं। अब हम यज्ञ करने जा रहे हैं। अभी तक हमने जो भाव प्रेरणा ग्रहण की है उसे सदा स्मरण रखें। यदि हम गायत्री के रूप में सत्बुद्घि को धारण करें और यज्ञ के रूप में लोकहित के कार्य करने लगें... तो हम लोग भी देवता कहलाने लगेंगे। यज्ञ करने का उद्देश्य यह भी है कि जीवन यज्ञमय हो जाए।
अब दीपयज्ञ के लिए स्वयं सेवक दीपक एवं अगरबत्तियां प्रज्ज्वलित करें। परिजन दोनों हाथ जोड़कर अग्रिशिखा का दर्शन करते हुए भगवान से प्रार्थना करें -- हे अग्रिदेव.. हमें अपने ऊपर उठना सिखाएं। हे अग्रिदेव... हमें प्रकाश से भर दें। हमें शक्ति सम्पन्न बनाएं। हमें आपके अनुरूप बनने एवं दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। हम भी आपकी तरह सुगंधि और प्रकाश बांटने लगें...
ॐ अग्रेनय सुपथाराये अस्मान् विश्वानिदेव वयुनानि विद्वान, युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठान ते नम उक्तिम् विधेम।
गायत्री स्तवनम् --
हम बार- बार, अच्छी- अच्छी प्रार्थनाएं तो करते हैं किन्तु तदनुकूल आचरण ना करें तो देव शक्तियां रूष्ट भी हो जाती हैं। इस बात का स्मरण रखा जाए। भगवान केवल बहलाने फुसलाने से प्रसन्न नहीं होते।
अपने संकल्प को पूरा करने के लिए, आइये ज्ञान, प्रकाश और तेज स्वरूप उस परमात्मा से आशीर्वाद मांगें --