Books - वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
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Language: HINDI
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सामुहिक गौशाला
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यदि आप कालोनी में या शहर में रहते हैं... आपका दो कमरे का मकान है... या आप कहीं चौथी मंजिल पर रहते हैं, तो भी आप गौपालन कर सकते हैं ।। भारतीय गौवंश के संरक्षण में आप भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं... यह काम आर्थिक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही... स्वास्थ्य रक्षण का बेहतरीन काम भी सामुहिक रूप से गौशाला खोलकर किया जा सकता है...
एक बात.. सौ टके की...
भारतीय नस्ल की गाय विश्व में सर्वोत्तम मानी जाती है ।। पुराणों में और आयुर्वेद में दूध के जो श्रेष्ठ गुण वर्णित हैं, उनका संबंध कामधेनु कहलाने वाली भारतीय नस्ल की गायें से ही है ।। मां के दुध के पश्चात् सर्वाधिक लाभदायक, रोगों से लड़ने की शक्ति देने वाला, सुपाच्य, कम वसा युक्त, दैवी संस्कारों से युक्त तथा कैरोटीन युक्त दूध केवल भारतीय नस्ल की गाय ही देती है ।। इसी के दही, छाछ और घी का महत्व वर्णन किया जाता है ।।
भैंस का, जर्सी या संकर गायों का, सोयाबीन का या रासायनिक दूध, वह दूध नही है जिससे सही अर्थों में हमारा तन- मन स्वास्थ रह सके ।। मगर बाजार में तो यही सब मिल रहा है और मजबूरी में हम इसे ही ले भी रहे हैं ।। अब तो प्लास्टिक थैली में पैक दूध और पावडर दूध चलन में है जिसकी गुणवत्ता के बारे में कुछ कहना ही बेकार है ।।
बजारू दूध से बढ़ती बीमारियाँ-
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के पशु शरीर क्रिया विज्ञान के वैज्ञानिकों के अनुसार आजकल पशुपालक दूध निकालने की प्रक्रिया में आक्सीटोसीन हार्मौन्स इंजेक्शन का बहुतायत से प्रयोग कर रहे हैं ।। यह इंजेक्शन सस्ता और लगाने में आसान होता है, इसके लगाने से पशु 20 प्रतिशत तक अधिक दूध देता है ।। अतः आजकल इसका अंधाधुंध उपयोग हो रहा है परन्तु इससे स्वास्थ्य भी तेजी से बिगड़ते जा रहा है ।।
महिलाओं में बार- बार गर्भपात होना, लड़कियों का कम उम्र में वयस्क हो जाना, स्तन कैंसर की शिकायतों का बढ़ना, बच्चों की आंखें, फेफड़े व दिमाग में खराबी आदि की शिकायतों के पीछे ऐसा दूध ही कारण है ।। जिन पशुओं को आँक्सीटोसीन देकर दूध निकाला जाता है, उनके दूध में कैल्शियम और वसा की कमी हो जाती है और सोडियम तथा नमक की मात्रा बढ़ जाती है ।।
सामुहिक गौशाला खोलिये-
आज जब आदमी 40- 40 हजार रु. की मोटर सायकल खरीद रहा है तब कुछ लोग थोड़ी- थोड़ी रकम लगाकर 10- 15 देशी गाय खरीदकर सामुहिक रूप से एक जगह उनका पालन- पोषण कर सकते हैं ।। अलग- अलग गाय पालने से यह बेहतर है ।। गौसेवा का पुण्य मिलेगा, शुद्ध दूध भी मिलेगा, आप एक परिवार को रोजगार भी दे सकेंगे और चाहे तो गोबर एवं गौ मूत्र से अन्य छोटे उद्योग भी चलाए जा सकते हैं ।। यह सामुहिक प्रयास समाज में सहकारिता, सहयोग और पारिवारिक भावना बढ़ाने वाला भी होगा... तब क्या विचार है... ??
गाय का जीवन... हमारे स्वास्थ्य, संस्कृति, प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन, अर्थतंत्र, कृषि, ऊर्जा सभी क्षेत्रों में कल्याणकारी प्रभाव डालता है। औद्योगिकीकरण, सर्वत्र हो रहा रासायनीकरण, शहरीकरण एवं तथाकथित आधुनिकीकरण के बढ़ते प्रयासों ने आज अनेकों उपद्रव खड़े कर दिये हैं। गौ पालन एवं संवर्धन द्वारा समाज में पुनः सुख समृद्घि का वातावरण लाया जा सकता है। इसी निमित्त से जन मानस को तैयार करना, इन गौ संवर्धन दीप यज्ञों का उद्देश्य है।
इन दीप यज्ञों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में किया जाना है। शहरों में इसलिए क्योंकि गौ आधारित औषधि उत्पादनों की शहरी क्षेत्रों में अधिक आवश्यकता है तथा हमारे शहर उन उत्पादों की बिक्री के लिए अच्छे बाजार का काम कर सकते हैं। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि शहरों में धन साधन अधिक हैं, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में भेजकर गौ संरक्षण संवर्धन की योजनाओं को बल प्रदान किया जा सकता है।
एक बात.. सौ टके की...
भारतीय नस्ल की गाय विश्व में सर्वोत्तम मानी जाती है ।। पुराणों में और आयुर्वेद में दूध के जो श्रेष्ठ गुण वर्णित हैं, उनका संबंध कामधेनु कहलाने वाली भारतीय नस्ल की गायें से ही है ।। मां के दुध के पश्चात् सर्वाधिक लाभदायक, रोगों से लड़ने की शक्ति देने वाला, सुपाच्य, कम वसा युक्त, दैवी संस्कारों से युक्त तथा कैरोटीन युक्त दूध केवल भारतीय नस्ल की गाय ही देती है ।। इसी के दही, छाछ और घी का महत्व वर्णन किया जाता है ।।
भैंस का, जर्सी या संकर गायों का, सोयाबीन का या रासायनिक दूध, वह दूध नही है जिससे सही अर्थों में हमारा तन- मन स्वास्थ रह सके ।। मगर बाजार में तो यही सब मिल रहा है और मजबूरी में हम इसे ही ले भी रहे हैं ।। अब तो प्लास्टिक थैली में पैक दूध और पावडर दूध चलन में है जिसकी गुणवत्ता के बारे में कुछ कहना ही बेकार है ।।
बजारू दूध से बढ़ती बीमारियाँ-
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के पशु शरीर क्रिया विज्ञान के वैज्ञानिकों के अनुसार आजकल पशुपालक दूध निकालने की प्रक्रिया में आक्सीटोसीन हार्मौन्स इंजेक्शन का बहुतायत से प्रयोग कर रहे हैं ।। यह इंजेक्शन सस्ता और लगाने में आसान होता है, इसके लगाने से पशु 20 प्रतिशत तक अधिक दूध देता है ।। अतः आजकल इसका अंधाधुंध उपयोग हो रहा है परन्तु इससे स्वास्थ्य भी तेजी से बिगड़ते जा रहा है ।।
महिलाओं में बार- बार गर्भपात होना, लड़कियों का कम उम्र में वयस्क हो जाना, स्तन कैंसर की शिकायतों का बढ़ना, बच्चों की आंखें, फेफड़े व दिमाग में खराबी आदि की शिकायतों के पीछे ऐसा दूध ही कारण है ।। जिन पशुओं को आँक्सीटोसीन देकर दूध निकाला जाता है, उनके दूध में कैल्शियम और वसा की कमी हो जाती है और सोडियम तथा नमक की मात्रा बढ़ जाती है ।।
सामुहिक गौशाला खोलिये-
आज जब आदमी 40- 40 हजार रु. की मोटर सायकल खरीद रहा है तब कुछ लोग थोड़ी- थोड़ी रकम लगाकर 10- 15 देशी गाय खरीदकर सामुहिक रूप से एक जगह उनका पालन- पोषण कर सकते हैं ।। अलग- अलग गाय पालने से यह बेहतर है ।। गौसेवा का पुण्य मिलेगा, शुद्ध दूध भी मिलेगा, आप एक परिवार को रोजगार भी दे सकेंगे और चाहे तो गोबर एवं गौ मूत्र से अन्य छोटे उद्योग भी चलाए जा सकते हैं ।। यह सामुहिक प्रयास समाज में सहकारिता, सहयोग और पारिवारिक भावना बढ़ाने वाला भी होगा... तब क्या विचार है... ??
गाय का जीवन... हमारे स्वास्थ्य, संस्कृति, प्राकृतिक पर्यावरणीय संतुलन, अर्थतंत्र, कृषि, ऊर्जा सभी क्षेत्रों में कल्याणकारी प्रभाव डालता है। औद्योगिकीकरण, सर्वत्र हो रहा रासायनीकरण, शहरीकरण एवं तथाकथित आधुनिकीकरण के बढ़ते प्रयासों ने आज अनेकों उपद्रव खड़े कर दिये हैं। गौ पालन एवं संवर्धन द्वारा समाज में पुनः सुख समृद्घि का वातावरण लाया जा सकता है। इसी निमित्त से जन मानस को तैयार करना, इन गौ संवर्धन दीप यज्ञों का उद्देश्य है।
इन दीप यज्ञों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में किया जाना है। शहरों में इसलिए क्योंकि गौ आधारित औषधि उत्पादनों की शहरी क्षेत्रों में अधिक आवश्यकता है तथा हमारे शहर उन उत्पादों की बिक्री के लिए अच्छे बाजार का काम कर सकते हैं। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि शहरों में धन साधन अधिक हैं, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में भेजकर गौ संरक्षण संवर्धन की योजनाओं को बल प्रदान किया जा सकता है।