Books - युग परिवर्तन में ज्ञानयज्ञ की भूमिका
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विचार शैली बदले
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इसलिए हमारे लिए सबसे बड़ा काम मनुष्य जाति की सेवा का यह है कि आदमी की विचार करने की शैली को उत्कृष्ट बनाने के लिए बेहतरीन किस्म के योजना- बद्ध काम किए जाएँ। युगनिर्माण योजना यही करती हुई चली आ रही है।
उसका पहला कदम यह है कि मनुष्य की सोचने की शैली में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया जाए। पिछले हजारों वर्ष ऐसे भयंकर समय में गये हैं, जिसमें सामंतवाद से लेकर के पंडावाद तक छाया रहा। हमारे धर्म के ऊपर पंडावाद छाया रहा। जिसमें यह कोशिश की गई कि आदमी को बौद्धिक दृष्टि से गुलाम बना दिया जाए, ताकि उसके चंगुल में फँसे हुए लोग जिसको चेले कहते हैं, भगत कहते हैं, धर्म प्रेमी कहते हैं, उनकी बुरी तरीके से हजामत बनाई जा सके और उल्लू बनाया जा सके। बौद्धिक क्षेत्र में एक ओर हमारा पंडावाद हावी रहा, जिसने कि मनुष्य की कोई सेवा नहीं की। धर्म के नाम पर ,, अध्यात्म के नाम पर, तीर्थ यात्रा के नाम पर, पूजा- पाठ के नाम पर आदमी को राई भर भी नहीं उठाया गया बल्कि सही बात यह है कि और भी इम्मोरल, और भी अनैतिक बना दिया गया और आदमी को मूढ़तावादी और अंधविश्वासी बना दिया गया। पंडावाद के द्वारा समाज की बहुत हानि हुई। जिस प्रकार से पंडावाद के द्वारा विशाल हानि हुई है, उसी प्रकार से राजसत्ता जिन लोगों के हाथ में रही, उनको हम सामंत कहते हैं, उनको हम राजा कहते हैं और उनको हम डाकू कहते हैं। उन लोगों ने सिर्फ अपने महल, अपनी ऐय्याशी और विलासिता के लिए समाज का शोषण किया और बराबर ये कोशिश की, कि कहीं ऐसा न हो जाए कि विचारशीलता फैल जाए और लोगों में अनीति के विरुद्ध बगावत के भाव पैदा हो जाएँ, न्याय की भावना पैदा हो जाए। फिर हमारा क्यों करेंगे ये लोग समर्थन? यही बात पंडावाद ने भी कोशिश की, कि लोग समझदार न होने पाएँ। समझदार हो जाएँगे तो हमारे शिकार हमारे हाथ से निकल जायेंगे और यही बात सामंतवाद ने कोशिश की कि आदमी को घटिया किस्म से विचार करना सिखाया जाए अन्यथा विचारशील और समझदार और चरित्रवान लोग हो जाएँगे, तो उन पर हावी होना और मनमानी करना हमारे लिए मुमकिन नहीं रहेगा। दोनों ही तरीके से बराबर यह कोशिश की गई कि आदमी के विचार करने की शैली गिरा दी जाए और घटा दी जाए।
यही काम था कि हम हजार वर्षों तक गुलाम होकर रहे। वजह क्या थी? पंद्रह सौ लोग, पंद्रह सौ मुसलमान हिन्दुस्तान के ऊपर आए और एक हजार वर्ष तक इस बुरी तरीके से हुकूमत हमारे ऊपर करते रहे, ऐसे नृशंस अत्याचार करते रहे जैसे कि दुनिया की तारीख में कभी भी कहीं दिखाई नहीं पड़ते। लेकिन हम बुझदिलों के तरीके, कायरों के तरीके से, मरे हुए लोगों के तरीके से, इस तरीके से, उनके अत्याचारों को सहन करते रहे कि हम जरा भी उनके विरुद्ध सिर ऊँचा नहीं कर सके, कुछ भी कर नहीं सके। ज्यादा से ज्यादा जी में आया- बस भक्ति की बात कह दी, सूरदास जी का गीत गा दिया, मीरा जी का गीत गा दिया और रावण जी का गीत गा दिया। बस खत्म हो गया। खेल खत्म और कुछ भी नहीं कर सके। क्यों? विचार करने का स्तर आदमी का गिरा हुआ था, घटिया। गिरा हुआ और घटिया विचार करने का स्तर है, जिसने हमें मुद्दतों तक गुलाम रखा और हम अभी भी बौद्धिक गुलामी में बुरी तरीके से जकड़े हुए हैं। राजनैतिक गुलामी दूर हो गई तो क्या? बौद्धिक गुलामी जहाँ की तहाँ है। अकल की दृष्टि से हम बेहद बुरी तरीके से गुलाम हैं।
उसका पहला कदम यह है कि मनुष्य की सोचने की शैली में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया जाए। पिछले हजारों वर्ष ऐसे भयंकर समय में गये हैं, जिसमें सामंतवाद से लेकर के पंडावाद तक छाया रहा। हमारे धर्म के ऊपर पंडावाद छाया रहा। जिसमें यह कोशिश की गई कि आदमी को बौद्धिक दृष्टि से गुलाम बना दिया जाए, ताकि उसके चंगुल में फँसे हुए लोग जिसको चेले कहते हैं, भगत कहते हैं, धर्म प्रेमी कहते हैं, उनकी बुरी तरीके से हजामत बनाई जा सके और उल्लू बनाया जा सके। बौद्धिक क्षेत्र में एक ओर हमारा पंडावाद हावी रहा, जिसने कि मनुष्य की कोई सेवा नहीं की। धर्म के नाम पर ,, अध्यात्म के नाम पर, तीर्थ यात्रा के नाम पर, पूजा- पाठ के नाम पर आदमी को राई भर भी नहीं उठाया गया बल्कि सही बात यह है कि और भी इम्मोरल, और भी अनैतिक बना दिया गया और आदमी को मूढ़तावादी और अंधविश्वासी बना दिया गया। पंडावाद के द्वारा समाज की बहुत हानि हुई। जिस प्रकार से पंडावाद के द्वारा विशाल हानि हुई है, उसी प्रकार से राजसत्ता जिन लोगों के हाथ में रही, उनको हम सामंत कहते हैं, उनको हम राजा कहते हैं और उनको हम डाकू कहते हैं। उन लोगों ने सिर्फ अपने महल, अपनी ऐय्याशी और विलासिता के लिए समाज का शोषण किया और बराबर ये कोशिश की, कि कहीं ऐसा न हो जाए कि विचारशीलता फैल जाए और लोगों में अनीति के विरुद्ध बगावत के भाव पैदा हो जाएँ, न्याय की भावना पैदा हो जाए। फिर हमारा क्यों करेंगे ये लोग समर्थन? यही बात पंडावाद ने भी कोशिश की, कि लोग समझदार न होने पाएँ। समझदार हो जाएँगे तो हमारे शिकार हमारे हाथ से निकल जायेंगे और यही बात सामंतवाद ने कोशिश की कि आदमी को घटिया किस्म से विचार करना सिखाया जाए अन्यथा विचारशील और समझदार और चरित्रवान लोग हो जाएँगे, तो उन पर हावी होना और मनमानी करना हमारे लिए मुमकिन नहीं रहेगा। दोनों ही तरीके से बराबर यह कोशिश की गई कि आदमी के विचार करने की शैली गिरा दी जाए और घटा दी जाए।
यही काम था कि हम हजार वर्षों तक गुलाम होकर रहे। वजह क्या थी? पंद्रह सौ लोग, पंद्रह सौ मुसलमान हिन्दुस्तान के ऊपर आए और एक हजार वर्ष तक इस बुरी तरीके से हुकूमत हमारे ऊपर करते रहे, ऐसे नृशंस अत्याचार करते रहे जैसे कि दुनिया की तारीख में कभी भी कहीं दिखाई नहीं पड़ते। लेकिन हम बुझदिलों के तरीके, कायरों के तरीके से, मरे हुए लोगों के तरीके से, इस तरीके से, उनके अत्याचारों को सहन करते रहे कि हम जरा भी उनके विरुद्ध सिर ऊँचा नहीं कर सके, कुछ भी कर नहीं सके। ज्यादा से ज्यादा जी में आया- बस भक्ति की बात कह दी, सूरदास जी का गीत गा दिया, मीरा जी का गीत गा दिया और रावण जी का गीत गा दिया। बस खत्म हो गया। खेल खत्म और कुछ भी नहीं कर सके। क्यों? विचार करने का स्तर आदमी का गिरा हुआ था, घटिया। गिरा हुआ और घटिया विचार करने का स्तर है, जिसने हमें मुद्दतों तक गुलाम रखा और हम अभी भी बौद्धिक गुलामी में बुरी तरीके से जकड़े हुए हैं। राजनैतिक गुलामी दूर हो गई तो क्या? बौद्धिक गुलामी जहाँ की तहाँ है। अकल की दृष्टि से हम बेहद बुरी तरीके से गुलाम हैं।