Books - युग परिवर्तन में ज्ञानयज्ञ की भूमिका
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अभी भी गुलाम हैं हम
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सामाजिक कुरीतियों को देखिये न; कोई तुक है इसमें? कोई बात है? कोई चीज है इसमें? हमारी कुलदेवी है और कुलदेवी पर हमारे बच्चे का मुंडन होगा। कुलदेवी कहाँ रहती है तुम्हारी? २००० मील दूर रहती है। वहाँ क्या करोगे? बच्चे का मुंडन कराने ले जाएँगे। फिर क्या हो जाएगा? देवी को बालों को चढ़ा देंगे। क्या करेगी देवी? बालों को खाएगी। रोटी नहीं खाती? नहीं, बाल खाती है। बाल नहीं खिलाया तो? ये देवी बीमार कर देगी और बच्चे को मार डालेगी। देवी है कि चुड़ैल है। इस तरह की चुड़ैलों को देवियाँ बना दिया गया, कुलदेवी बना दिया गया और पागल आदमी कलकत्ता से रवाना होता है और कुलदेवी उसकी जैसलमेर में रहती है, दो हजार रुपया फूँककर के आ जाता है और बच्चे का मुंडन करा के आता है और समझता है कि मैंने देवी के ऊपर अहसान कर दिया या देवी ने उसके ऊपर अहसान कर दिया। पागल कहीं का।
इस तरीके के पागलों से सारा समाज भरा हुआ पड़ा है। बौद्धिक दृष्टि से गुलाम और हमारी सामाजिक कुरीतियाँ कैसी बेहूदा। ये कुरीतियाँ हमारा सारा का सारा पैसा खा जाती हैं, अक्ल खा जाती हैं। जाने क्या से क्या खा जाती हैं? बस इधर से उधर मारे- मारे लोग डोलते हैं यहाँ से वहाँ। उनमें अक्ल नहीं है, न विवेक। हम देखते हैं कि बौद्धिक दृष्टि से किस तरीके से गुलाम हमारे यहाँ हैं। जन्म पत्रिकाओं की बात को ले लीजिए न। जन्मपत्री का जंजाल ऐसा खड़ा हो गया है कि लाखों आदमी उसी से उल्लू बने फिरते हैं। मंगल आ गया, राहु आ गया, चन्द्रमा आ गया, शुक्र आ गया। चन्द्रमा इन्हीं के ऊपर आ गया है और यहीं राजा साहब बैठे हुए हैं। चन्द्रमा भी इन्हीं के पीछे- पीछे फिरेगा। चन्द्रमा के पास काम ही नहीं है। इन्हीं को मारेंगे, इन्हीं की पूजा करेंगे, इन्हीं पर लक्ष्मी बरसाएँगें, इन्हीं को हानि पहुँचाएँगे। बस यही रह गये हैं, नवाब के तरीके से। चन्द्रमा इन्हीं के पीछे पड़ेगा। बेवकूफ कहीं के। इस तरीके से बेअक्ली और बेवकूफी का कोई अन्त है क्या? कुछ अन्त नहीं है।
इस तरीके के पागलों से सारा समाज भरा हुआ पड़ा है। बौद्धिक दृष्टि से गुलाम और हमारी सामाजिक कुरीतियाँ कैसी बेहूदा। ये कुरीतियाँ हमारा सारा का सारा पैसा खा जाती हैं, अक्ल खा जाती हैं। जाने क्या से क्या खा जाती हैं? बस इधर से उधर मारे- मारे लोग डोलते हैं यहाँ से वहाँ। उनमें अक्ल नहीं है, न विवेक। हम देखते हैं कि बौद्धिक दृष्टि से किस तरीके से गुलाम हमारे यहाँ हैं। जन्म पत्रिकाओं की बात को ले लीजिए न। जन्मपत्री का जंजाल ऐसा खड़ा हो गया है कि लाखों आदमी उसी से उल्लू बने फिरते हैं। मंगल आ गया, राहु आ गया, चन्द्रमा आ गया, शुक्र आ गया। चन्द्रमा इन्हीं के ऊपर आ गया है और यहीं राजा साहब बैठे हुए हैं। चन्द्रमा भी इन्हीं के पीछे- पीछे फिरेगा। चन्द्रमा के पास काम ही नहीं है। इन्हीं को मारेंगे, इन्हीं की पूजा करेंगे, इन्हीं पर लक्ष्मी बरसाएँगें, इन्हीं को हानि पहुँचाएँगे। बस यही रह गये हैं, नवाब के तरीके से। चन्द्रमा इन्हीं के पीछे पड़ेगा। बेवकूफ कहीं के। इस तरीके से बेअक्ली और बेवकूफी का कोई अन्त है क्या? कुछ अन्त नहीं है।