Books - युवा क्रांति पथ
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
संस्कृति संवेदना को युवतियाँ जनव्यापी बनाएँ
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
युवा नारी यदि संस्कृति संरक्षण करे, तो सांस्कृतिक परिदृश्य में सुखद परिवर्तन निश्चित है। वैसे भी संस्कृति का नारी के साथ प्रगाढ़ रिश्ता है। युवतियों के साथ यह प्रगाढ़ता और भी सघन हो जाती है। युवा नारी के संस्कार, शील व लज्जा से किसी भी देश की सांस्कृतिक पवित्रता बढ़ती है; लेकिन यदि इसके विपरीत होने लगे, युवा नारी का शील उघड़ने लगे, लज्जा वसन छूटने और लुटने लगें तो सांस्कृतिक प्रदूषण बढ़ता है। आज का सांस्कृतिक सच यही है। इसके कारणों की कई तरह की पड़ताल होती रहती है। इस सम्बन्ध में अनेकों सभा-संगोष्ठियाँ होती हैं, पत्र-पत्रिकाएँ भी काफी कुछ प्रकाशित करते हैं। इन प्रयासों में सामाजिक-आॢथक कई पहलू उजागर होते हैं। लेकिन मूल बात जो ङ्क्षचतनीय है, उस पर कम ही लोग ङ्क्षचतन कर पाते हैं। इस ङ्क्षचतन का निष्कर्ष यही है कि युवा नारी को स्वयं ही इस स्थिति को सँवारने के लिए आगे आना होगा।
उसे खुद ही आगे बढ़कर यह घोषणा करनी होगी कि उसका शील और संस्कार बिकाऊ नहीं है, फिर विज्ञापन दाता इसकी कितनी ऊँची बोली क्यों न लगाएँ? इसी तरह उसे अपने में ऐसे साहस का संचार करना होगा, जिससे कोई दुष्ट-दुराचारी उसकी लज्जा लूटने की हिम्मत न जुटा सकें। उत्तरांचल मूल की युवती प्रतिभा नैथानी इस महत् कार्य के लिए स्वयं से प्रेरित होकर संकल्पित हुई हैं। प्रतिभा का मूल निवास जरूर उत्तराँचल है, पर उनका कार्यक्षेत्र समूचा भारत देश है। मुम्बई में सेंट जेवियर कॉलेज में राजनीति विज्ञान की प्राध्यापिका प्रतिभा नैथानी द्वारा टी.वी. चैनलों में परोसी जा रही अश्लीलता पर रोक लगाने के लिए जनहित याचिका दायर करने के बाद उनके सांस्कृतिक कार्यों को लोगों ने पहचाना है।
उत्तराँचल की प्रतिभाशाली युवती प्रतिभा नैथानी का सांस्कृतिक परिचय व्यापक है। इन दिनों वह ‘नंदादेवी जैव उद्यान में जनजातीय लोगों के पारम्परिक हक’ विषय पर शोध कार्य कर रही हैं। उन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत में संगीत विशारद की शिक्षा पायी है। प्रतिभा राजस्थानी लोकगीत गायन में भी सिद्धहस्त कलाकार है तथा घूँघर-घूमर डांस अकादमी की मुख्य गायिका भी है। यह अकादमी लुप्त हो रहे राजवरी घूमर नृत्य के पुनरुत्थान में जुटी है। अकादमी के सदस्य के तौर पर प्रतिभा ने अमेरिका, मारिशस, मोरक्को, वेनेजुएला, नाइजीरिया, त्रिनिडाड, टोबैको में अपनी सांस्कृतिक प्रतिभा का प्रकाश बिखेरा है।
टी.वी. चैनलों पर परोसी जा रही अश्लीलता के विरुद्ध प्रतिभा ने जबरदस्त संघर्ष करने की ठानी है। इस सम्बन्ध में मुम्बई हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाली प्रतिभा का कहना है-‘देश में अश्लीलता को रोकने वाले कई कानूनों के होते हुए भी यह सब क्यों और कैसे हो रहा है नहीं मालूम। पर इतना सच तो हर कोई जानता है कि टी.वी. चैनलों पर धड़ल्ले से अश्लीलता परोसी जा रही है। अश्लीलता का यह प्रदर्शन बच्चों के लिए कितना घातक हो सकता है, यह ब्रिटेन और अमेरिका में हुए सर्वे से साबित हो चुका है। इस सर्वे के अनुसार सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने वाले इन कार्यक्रमों से बच्चों के दिलो-दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। दुनिया भर के जन संचार माध्यम आज जहाँ ऐसे कार्यक्रमों को रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं, वहीं हम भारतवासी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, यह किसी भी तरह उचित नहीं है।’अपनी संस्कृति संरक्षण में जुटी प्रतिभा का कहना है कि शुरुआत में इस मुहिम में मैं अकेली थी, लेकिन आज इस अध्ययन में मुझे २५ संगठनों का सहयोग मिल रहा है।
ये सभी संगठन और इनमें कार्यरत युवतियाँ अश्लीलता के खिलाफ लड़ाई में मेरे साथ खड़े हैं। प्रतिभा देहरादून के स्वयंसेवी संगठन जनाधार से भी जुड़ी है। इसके अलावा नन्दादेवी बायोस्फियर रिजर्व में भोटिया जनजाति के हक दिलाने के लिए भी संघर्षरत है। प्रतिभा मुम्बई स्थित संस्था डेवलेपमेण्ट की निदेशक हैं तथा गरीब बच्चों को सस्ती प्लास्टिक सर्जरी मुहैया कराने वाले स्वयंसेवी संगठन से जुड़ी है। संस्थाएँ या संगठन कोई भी क्यों न हो, पर प्रतिभा का मकसद अपनी संस्कृति संवेदना को जनव्यापी बनाना है और देश की सांस्कृतिक धरोहर को बचाये रखने के लिए प्रयास करना है।
शहर में संस्कृति संरक्षण का काम कर रही प्रतिभा की तरह ग्रामीण युवतियों ने भी इसके लिए साहस भरे कदम बढ़ाये हैं। इन महिलाओं ने अपने कार्य के लिए अखबार को माध्यम बनाया है। ग्रामीण युवतियों व महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे इन न्यूज लेटर्स का मुख्य उद्देश्य नवसाक्षरों को पढ़ने में रुचि बनाये रखना, जागरूकता लाना, देश व क्षेत्र की संस्कृति का संरक्षण व प्रसार करना और महिलाओं की आवाज को सामने लाना है। बात १९९२ की है। इसकी पृष्ठभूमि महिला समाख्या ने तैयार की और गाँव की महिलाओं को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी। शुरुआत में ग्रामीण महिलाएँ काफी संकोच व हिचकिचाती थी कि इस काम को कैसे कर पायेंगी?
लेकिन सबसे पहले चित्रकूट की महिलाओं ने हिम्मत जुटाई और अपना अखबार ‘महिला डाकिया’ निकाला। थोड़ी डगमग स्थिति के बाद इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि इसे पत्रकारिता का चमेली देवी पुरस्कार मिला। इसके बाद १२ जनपदों की महिलाओं ने न्यूज लेटर्स निकाले। चित्रकूट से महिला डाकिया, वाराणसी से पुरवई, सीतापुर से डेहरिया, प्रतापगढ़ से मिनसार, औरैया से मित्रा, जौनपुर से गुनागर, इलाहाबाद से गुइया, गोरखपुर से सखी सगुन, सहारनपुर से ङ्क्षहडोला, मऊ से अंजोरिया, मुजफ्फरपुर से साथन और मथुरा से मायेली नाम से ये न्यूज लेटर गाँवों में पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ा रहे हैं। महिला समाख्या से जुड़ी गाँव की युवतियों के द्वारा निकाले जाने वाले इन अखबारों की खास बात है कि इनकी सामग्री से लेकर साज-सज्जा तक के प्रत्येक चरण में नारी ही भागीदार बनती हैं। कई स्थानों में तो इनका वितरण भी महिलाओं के हाथों में है।
इसमें छपने वाली विषयवस्तु पर ध्यान दें-पंचायत चुनावों में महिलाओं की भागीदारी, न्यूनतम मजदूरी, सरकारी स्कूलों में फीस, दहेज उन्मूलन, भूजल की समस्या, नशाखोरी के नुकसान, लड़के-लड़कियों में भेदभाव, ङ्क्षलग परीक्षण आदि के साथ देश और क्षेत्र की संस्कृति के संरक्षण से जुड़े मुद्दे इनमें प्रकाशित होते हैं। इनके आलेखों, टिप्पणियों की भाषा इतनी सरल व क्षेत्रीय होती है कि इसे समझना और आत्मसात् करना बहुत आसान होता है। ‘गुनागर’ टीम की सदस्याएँ मंजू, सुमन, वृजभा और सुषमा को गाँवों में लोग गुनागर दीदी कहकर पुकारते हैं। इनका कहना है कि हम लोग विषय का चयन करते समय सांस्कृतिक, सामाजिक एवं सामयिक पहलुओं पर गौर करते हैं। गुनागर टीम से जुड़ी नारियों ने अभी हाल में दहेज विरोधी भारी संघर्ष किया था। इससे उन्हें व्यापक प्रशंसा भी मिली।
‘पुरवई’ जिसका प्रकाशन बनारस से होता है, इसने महिला किसानों के लिए काफी काम किया। इससे प्रेरणा लेने वाली निर्मला का कहना है-‘पुरवई हमहन क आँख खोले का काम कयले ह। एहसे ज्ञान बढ़े के संगे, हमार बात रखे क मौका मिलेल, नाही त हमार के सुनी।’ अपने इस काम से जुड़ी इन ग्रामीण युवा नारियों में अपूर्व संतोष उभरा है। आत्म विश्वास से भरी इनमें से कई युवतियों ने अपने जीवन को संस्कृति को संकल्पित व समॢपत किया है। युवा नारियाँ गाँव की हो या शहर की, सांस्कृतिक दायित्व सभी के समान हैं। यदि ये और देश के अन्य युवा विचार क्रान्ति अभियान में अपनी भागीदारी निभायें तो नवयुग के नवोदय का अहसास सभी को हो सकता है।
उसे खुद ही आगे बढ़कर यह घोषणा करनी होगी कि उसका शील और संस्कार बिकाऊ नहीं है, फिर विज्ञापन दाता इसकी कितनी ऊँची बोली क्यों न लगाएँ? इसी तरह उसे अपने में ऐसे साहस का संचार करना होगा, जिससे कोई दुष्ट-दुराचारी उसकी लज्जा लूटने की हिम्मत न जुटा सकें। उत्तरांचल मूल की युवती प्रतिभा नैथानी इस महत् कार्य के लिए स्वयं से प्रेरित होकर संकल्पित हुई हैं। प्रतिभा का मूल निवास जरूर उत्तराँचल है, पर उनका कार्यक्षेत्र समूचा भारत देश है। मुम्बई में सेंट जेवियर कॉलेज में राजनीति विज्ञान की प्राध्यापिका प्रतिभा नैथानी द्वारा टी.वी. चैनलों में परोसी जा रही अश्लीलता पर रोक लगाने के लिए जनहित याचिका दायर करने के बाद उनके सांस्कृतिक कार्यों को लोगों ने पहचाना है।
उत्तराँचल की प्रतिभाशाली युवती प्रतिभा नैथानी का सांस्कृतिक परिचय व्यापक है। इन दिनों वह ‘नंदादेवी जैव उद्यान में जनजातीय लोगों के पारम्परिक हक’ विषय पर शोध कार्य कर रही हैं। उन्होंने हिन्दुस्तानी संगीत में संगीत विशारद की शिक्षा पायी है। प्रतिभा राजस्थानी लोकगीत गायन में भी सिद्धहस्त कलाकार है तथा घूँघर-घूमर डांस अकादमी की मुख्य गायिका भी है। यह अकादमी लुप्त हो रहे राजवरी घूमर नृत्य के पुनरुत्थान में जुटी है। अकादमी के सदस्य के तौर पर प्रतिभा ने अमेरिका, मारिशस, मोरक्को, वेनेजुएला, नाइजीरिया, त्रिनिडाड, टोबैको में अपनी सांस्कृतिक प्रतिभा का प्रकाश बिखेरा है।
टी.वी. चैनलों पर परोसी जा रही अश्लीलता के विरुद्ध प्रतिभा ने जबरदस्त संघर्ष करने की ठानी है। इस सम्बन्ध में मुम्बई हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाली प्रतिभा का कहना है-‘देश में अश्लीलता को रोकने वाले कई कानूनों के होते हुए भी यह सब क्यों और कैसे हो रहा है नहीं मालूम। पर इतना सच तो हर कोई जानता है कि टी.वी. चैनलों पर धड़ल्ले से अश्लीलता परोसी जा रही है। अश्लीलता का यह प्रदर्शन बच्चों के लिए कितना घातक हो सकता है, यह ब्रिटेन और अमेरिका में हुए सर्वे से साबित हो चुका है। इस सर्वे के अनुसार सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाने वाले इन कार्यक्रमों से बच्चों के दिलो-दिमाग पर बुरा असर पड़ता है। दुनिया भर के जन संचार माध्यम आज जहाँ ऐसे कार्यक्रमों को रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं, वहीं हम भारतवासी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, यह किसी भी तरह उचित नहीं है।’अपनी संस्कृति संरक्षण में जुटी प्रतिभा का कहना है कि शुरुआत में इस मुहिम में मैं अकेली थी, लेकिन आज इस अध्ययन में मुझे २५ संगठनों का सहयोग मिल रहा है।
ये सभी संगठन और इनमें कार्यरत युवतियाँ अश्लीलता के खिलाफ लड़ाई में मेरे साथ खड़े हैं। प्रतिभा देहरादून के स्वयंसेवी संगठन जनाधार से भी जुड़ी है। इसके अलावा नन्दादेवी बायोस्फियर रिजर्व में भोटिया जनजाति के हक दिलाने के लिए भी संघर्षरत है। प्रतिभा मुम्बई स्थित संस्था डेवलेपमेण्ट की निदेशक हैं तथा गरीब बच्चों को सस्ती प्लास्टिक सर्जरी मुहैया कराने वाले स्वयंसेवी संगठन से जुड़ी है। संस्थाएँ या संगठन कोई भी क्यों न हो, पर प्रतिभा का मकसद अपनी संस्कृति संवेदना को जनव्यापी बनाना है और देश की सांस्कृतिक धरोहर को बचाये रखने के लिए प्रयास करना है।
शहर में संस्कृति संरक्षण का काम कर रही प्रतिभा की तरह ग्रामीण युवतियों ने भी इसके लिए साहस भरे कदम बढ़ाये हैं। इन महिलाओं ने अपने कार्य के लिए अखबार को माध्यम बनाया है। ग्रामीण युवतियों व महिलाओं द्वारा चलाये जा रहे इन न्यूज लेटर्स का मुख्य उद्देश्य नवसाक्षरों को पढ़ने में रुचि बनाये रखना, जागरूकता लाना, देश व क्षेत्र की संस्कृति का संरक्षण व प्रसार करना और महिलाओं की आवाज को सामने लाना है। बात १९९२ की है। इसकी पृष्ठभूमि महिला समाख्या ने तैयार की और गाँव की महिलाओं को इस कार्य की जिम्मेदारी सौंपी। शुरुआत में ग्रामीण महिलाएँ काफी संकोच व हिचकिचाती थी कि इस काम को कैसे कर पायेंगी?
लेकिन सबसे पहले चित्रकूट की महिलाओं ने हिम्मत जुटाई और अपना अखबार ‘महिला डाकिया’ निकाला। थोड़ी डगमग स्थिति के बाद इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि इसे पत्रकारिता का चमेली देवी पुरस्कार मिला। इसके बाद १२ जनपदों की महिलाओं ने न्यूज लेटर्स निकाले। चित्रकूट से महिला डाकिया, वाराणसी से पुरवई, सीतापुर से डेहरिया, प्रतापगढ़ से मिनसार, औरैया से मित्रा, जौनपुर से गुनागर, इलाहाबाद से गुइया, गोरखपुर से सखी सगुन, सहारनपुर से ङ्क्षहडोला, मऊ से अंजोरिया, मुजफ्फरपुर से साथन और मथुरा से मायेली नाम से ये न्यूज लेटर गाँवों में पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ा रहे हैं। महिला समाख्या से जुड़ी गाँव की युवतियों के द्वारा निकाले जाने वाले इन अखबारों की खास बात है कि इनकी सामग्री से लेकर साज-सज्जा तक के प्रत्येक चरण में नारी ही भागीदार बनती हैं। कई स्थानों में तो इनका वितरण भी महिलाओं के हाथों में है।
इसमें छपने वाली विषयवस्तु पर ध्यान दें-पंचायत चुनावों में महिलाओं की भागीदारी, न्यूनतम मजदूरी, सरकारी स्कूलों में फीस, दहेज उन्मूलन, भूजल की समस्या, नशाखोरी के नुकसान, लड़के-लड़कियों में भेदभाव, ङ्क्षलग परीक्षण आदि के साथ देश और क्षेत्र की संस्कृति के संरक्षण से जुड़े मुद्दे इनमें प्रकाशित होते हैं। इनके आलेखों, टिप्पणियों की भाषा इतनी सरल व क्षेत्रीय होती है कि इसे समझना और आत्मसात् करना बहुत आसान होता है। ‘गुनागर’ टीम की सदस्याएँ मंजू, सुमन, वृजभा और सुषमा को गाँवों में लोग गुनागर दीदी कहकर पुकारते हैं। इनका कहना है कि हम लोग विषय का चयन करते समय सांस्कृतिक, सामाजिक एवं सामयिक पहलुओं पर गौर करते हैं। गुनागर टीम से जुड़ी नारियों ने अभी हाल में दहेज विरोधी भारी संघर्ष किया था। इससे उन्हें व्यापक प्रशंसा भी मिली।
‘पुरवई’ जिसका प्रकाशन बनारस से होता है, इसने महिला किसानों के लिए काफी काम किया। इससे प्रेरणा लेने वाली निर्मला का कहना है-‘पुरवई हमहन क आँख खोले का काम कयले ह। एहसे ज्ञान बढ़े के संगे, हमार बात रखे क मौका मिलेल, नाही त हमार के सुनी।’ अपने इस काम से जुड़ी इन ग्रामीण युवा नारियों में अपूर्व संतोष उभरा है। आत्म विश्वास से भरी इनमें से कई युवतियों ने अपने जीवन को संस्कृति को संकल्पित व समॢपत किया है। युवा नारियाँ गाँव की हो या शहर की, सांस्कृतिक दायित्व सभी के समान हैं। यदि ये और देश के अन्य युवा विचार क्रान्ति अभियान में अपनी भागीदारी निभायें तो नवयुग के नवोदय का अहसास सभी को हो सकता है।